Wednesday 20 September 2017

62. जेल से फरार- अनिल मोहन

अपहरण की योजना पर आधारित देवराज चौहान सीरीज का एक रोमांचकारी उपन्यास।
अनिल ‌मोहन के चर्चित किरदार देवराज चौहान पर आधारित उपन्यास जेल से फरार एक अपहरण की योजना, क्रियान्विति व उसके परिणाम पर आधारित एक बहुत ही रोचक उपन्यास है।

कहानी:-
देवराज चौहान, जो की एक इश्तिहारी मुजरिम है। वह अपने सहयोगी मित्र जगमोहन के साथ मिलकर शहर के पूर्व कुख्यात डान विक्रम सिंह रंधावा के पुत्र सूरज रंधावा के अपहरण की योजना बनाता है। इस योजना में उसके साथ शहर की‌ कुख्यात लेडी डाॅन चीमा नारंग व एक अन्य अपराधी जुगल‌ किशोर साथ होते हैं।
सूरज रंधावा के अपहरण तक कहानी सामान्य चलती है पर इसके पश्चात कहानी में पल-पल, पृष्ठ दर पृष्ठ इतने रोमांचक मोङ आते हैं की पाठक कहानी के बहाव में बहता चला जाता है।
अपहरण के पश्चात भी सूरज रंधावा देवराज चौहान के हाथ से निकल जाता है और जो व्यक्ति सूरज रंधावा को ‌देवराज से छीन ले जाते हैं उनके साथ भी चोर पे मोर वाली कहावत लागू होती है।
इनके चक्कर में देवराज चौहान जेल‌ पहुंच जाता है।
लेकिन देवराज चौहान को जेल ज्यादा समय तक कैद न रख सकी।
"तुम‌? देवराज चौहान को‌ देखते ही उसका मुँह खुला रह गया।
" तुम...म तो ...जेल ‌में थे!"
"तो‌ क्या हो गया।"- देवराज चौहान हंसा- " जेल में था तो जेल ‌से फरार भी हो सकता हूँ।"
"जेल‌ से‌ फरार...?"- जयचंद भाटिया का मुँह फिर खुला‌ का ‌खुला ‌रह गया।
" हां, मैं जेल‌से फरार होकर सीधा यहाँ ही आया हूँ।"
"सी...धा......यहाँ....क्...यों?"- (पृष्ठ148)

एक करोङ की फिरौती के लिए देवराज चौहान ने विक्रम रंधावा के पुत्र का अपहरण कर उसे अपना दुश्मन भी  बना लिया और विक्रम रंधावा का पुत्र भी हाथ से निकल गया। फिरौती की जगह जेल की हवा भी खा ली।
लेकिन जब विक्रम सिंह रंधावा जैसे खुंखार पूर्व डाॅन ने देवराज चौहान को ही अपने पुत्र को सही सलामत घर पहुंचाने का काम सौंपा तो अपहरणकर्ता व दुश्मनों में खलबली मच गयी।

- किसने किया देखराज चौहान के साथ धोखा?
- किसने किया धोखेबाज से भी धोखा?
- किसने पहुंचाया देवराज चौहान को जेल?
- कैसे हुआ देवराज चौहान जेल से फरार?
- आखिर क्यों विक्रम रंधावा ने अपहरणकर्ता को ही अपने पुत्र को वापस लाने का काम सौंपा?

उपन्यास में कुछ विशेष व रोचक बातें हैं वो है सब चोर पर मोर हैं।
1. एक तो यह की अपहरण करने वालों से भी कोई अपहर्ता को छीन लेता है और फिर उनसे भी आगे कोई और व्यक्ति सूरज रंधाना को छीन लेता है। एक आदमी का तीन बार अपहरण होता है।
2. दूसरी रोचक बात ये है की यहाँ सब एक दूसरे पर गुप्त नजर रखते हैं, चोरी-चोरी पीछा किया जाता है।
एक दूसरे का पीछा करता है तो तीसरा दूसरे का।
- "यह ठीक है की करण चौधरी ने देवराज चौहान की पार्टी का पीछा बेहद सावधानी से किया था कि किसी को उनके बारे में पता न चला। परंतु जयचंद भाटिया ने उससे भी ज्यादा सावधानी बरती और करण चौधरी का पीछा किया।
  देवराज चौहान- करण चौधरी- जयचंद भाटिया।
- जुगल किशोर का पीछा जगमोहन करता है।
उपन्यास का कौनसा पात्र कब बदल जाये कुछ पता ही नहीं चलता। सब एक दूसरे को धोखा देने को तैयार बैठ हैं और मौका मिलते ही अपना रंग दिखा जाते हैं।
देवराज चौहान, जगमोहन व जुगल किशोर से चीमा नारंग धोखा करती है।
- जुगल किशोर व महेन्द्र सिंह से करण चौधरी धॊखा करता है।
- जयचंद भाटिया, बिल्ला और महेन्द्र सिंह जगमोहन से धोखा करते हैं।
- और एक जुगल किशोर है जो अपने पेशे से गद्दारी नहीं करना चाहता, पर मजबूर है।

भाषा शैली व संवाद-
     उपन्यास की भाषा शैली सामान्य है। लेखक ने कोई नया प्रयास नहीं किया, जो ठीक भी है। सभी पात्र सामान्य प्रचलित हिंदी बोलते हैं।
उपन्यास के संवाद सामान्य प्रचलित संवाद हैं कोई विशेष या याद रखने लायक नहीं।
जिस स्तर के संवाद इस प्रकार के उपन्यासों में होते हैं वही संवाद है।
"धूप ‌से सङती सङक पर पङी..."- (पृष्ठ 06)
धूप से कभी सङक सङती नहीं‌। यह एक भाषागत गलती है।
उपन्यास बहुत ही रोचक व पढने लायक है। पाठक एक बार बहाव में बह गया तो उपन्यास का समापन करके ही रहेगा।
उपन्यास में अपहरण, देवराज को जेल व प्रत्येक व्यक्ति द्वारा डबल क्राॅस करना काफी रोचक है।
नये- नये पात्रों का सामने आना व सभी का खलनायक होना भी काफी रोचक है।
       उपन्यास पढने योग्य है, मिले तो अवश्य पढें।

उपन्यास- जेल से फरार (देवराज चौहान सीरीज)
लेखक- अनिल ‌मोहन
प्रकाशक- रवि पॉकेट बुक्स- मेरठ
पृष्ठ- 208
मूल्य- 80₹
संस्करण - 2017 (द्वितीय संस्करण)

6 comments:

  1. मैंने हाल में ही इसे खरीदा था। जल्द ही पढूँगा। आपका लेख उपन्यास पढने को प्रेरित करता है।
    duibaat.blogspot.com

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  2. ब्लाॅग पर अपनी प्रतिक्रिया देने के लिए धन्यवाद।

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  3. उपन्यास 'जेल से फरार' की यहाँ जो समीक्षा दी गयी है, उपन्यास उससे भी अच्छा है, अगर लेखक दस-बीस पृष्ठ की और मेहनत करता तो ज्यादा अच्छा लगता।
    उपन्यास में कई जगह लेखन ने कम‌लिखा है, मेरे विचार से क ई ऐसी जगह हैं जहां सस्पेंश को बढाया /पैदा किया जा सकता था। हालांकि अभी जो कहानी है वह किसी तरह से कम नहीं पत उसनें कुछ अतिरिक्त जोङा जा सकता था।
    बाकी आप स्वयं पढ लीजिएगा, उपन्यास अच्छा है।
    आपके ब्लाॅग पर इस उपन्यास की समीक्षा का इंतजार रहेगा।

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  4. गजब का उपन्यास।
    ये हमे देवराज चौहान के स्टार्ट अप को याद दिलाता है।

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    1. ब्लॉग पर अपनी प्रतिक्रिया देने के लिए धन्यवाद।

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