Thursday 26 January 2017

14. अपने कत्ल की सुपारी- वेदप्रकाश शर्मा

अपने कत्ल की सुपारी- वेदप्रकाश शर्मा।
------------------
  वर्तमान लोकप्रिय उपन्यास के क्षेत्र में वेदप्रकाश शर्मा का वर्चस्व है। सस्पेंश स्थापित करने का जैसा कार्य वेदप्रकाश शर्मा करते है वैसा अन्यत्र कम ही देखने को मिलता है। पाठक की सांस भी सस्पेंश दृश्य पर रुक सी जाती है और वह एक ही सांस में पूरा दृश्य पढ जाना चाहता है।
  प्रस्तुत उपन्यास 'अपने कत्ल की सुपारी' तो अपने शीर्षक में ही भरपूर संस्पेश समाये हुये है की क्यों कोई अपने कत्ल  सुपारी किसी को देगा।
  आखिर क्या वजह रही होगी उसे अपनी सुपारी देने की। अगर वह मरना ही चाहता है, आत्महत्या जैसे असंख्य रास्ते उसके सामने हैं फिर सुपारी देने जैसा कार्य कोई क्यों करेगा।
 इस सस्पेंश का रहस्य को उपन्यास पढने के बाद ही खुलता है।
   उपन्यास का विस्तार ज्यादा नहीं है, उपन्यास ज्यादातर नायक के इर्द-गिर्द ही घूमता है, क्योंकि पूरा कथानक नायक से ही जुङा है।
  इस उपन्यास का नायक है त्रिवेन्द्रम। एक साधारण परिवार का शादीशुदा व नौकरी पेशा आदमी। जिसके परिवार में नायक के अतिरिक्त उसके माँ-बाप, पत्नी व युवा लङका-लङकी हैं।
  कहानी प्रारंभ होती है उपन्यास के नायक त्रिवेन्द्रम के घर से जहाँ एक रात उसके घर से पाँच लाख रुपये चोरी हो जाते हैं, और हैरानी की बात ये है  की ये चोरी स्वयं नायक त्रिवेन्द्रम करता है।
  यहाँ से उपन्यास में प्रवेश होता है इंस्पेक्टर बजरंगी का, जो की उपन्यास का एक दमदार पात्र है। हर पात्र पर भारी है।
जैसे की वेदप्रकाश शर्मा के उपन्यासों में इंस्पेक्टर को दिखाया जाता है, वैसा ही है बजरंगी।
  इन चोरी के रुपयों से त्रिवेन्द्रम जट्टाशंकर नामक सुपारी किलर को अपने कत्ल की सुपारी देता है, पर अपना चेहरा व परिचय छुपा कर।
 जट्टाशंकर, जिसके बारे में प्रसिद्ध है की एक बार वह जिसकी सुपारी ले लेता है, उसे खुद भगवान भी अवतरित होकर नहीं बचा सकता।
पर यह क्या?
एक...दो....।
त्रिवेन्द्रम तो नहीं मरा पर उसके चक्कर में दो और व्यक्ति मारे गये।
और त्रिवेन्द्रम....।
त्रिवेन्द्रम घर से गायब है।
 कहां है!
न घर वाले जानते हैं, न पुलिस। त्रिवेन्द्रम- अपने कत्ल की सुपारी तो मैं दे चुका था लेकिन उस वक्त, मुझे लग रहा था किसी तरफ से गोली आकर मेरा हमेशा के लिए काम तमाम कर सकती तो दिमाग पर मौत का खौफ सवार होने लगा।

ब्लैकमैन- उपन्यास का यह एक रहस्यपूर्ण पात्र है, जिसके बारे में कोई नहीं जानता।
पर जैसा वेद जी के उपन्यासों में कोई न कोई ऐसा पात्र अवश्य होता है।
पर इस उपन्यास का यह पात्र इतना दमदार नहीं है। पाठक थोङे से प्रयास से इस पात्र को समझ जाता है।
त्रिदेव- त्रिवेन्द्रम का भाई। एक शरीफ आदमी का बदमाश भाई।
 क्या त्रिदेव अपने भाई को बचा पाया।
कथन - आमतौर पर जो आदमी जितने बङे नजर आते हैं, ठीक से खंगालो तो ठीक उससे भी ज्यादा छोटे नजर आते हैं।
  - संस्पेंश उपन्यास के पाठकों के लिए यह उपन्यास काफी रोचक है, कथानक काफी तेज है जो पाठक को अपने में बांधे रखने में भी सक्षम है।
पाठक पृष्ठ दर पृष्ठ यह जानने को उत्सुक रहता है की नायक ने अपनी सुपारी क्यों दी और फिर अपनी मौत से क्यों भागता फिर रहा है।
क्यों नायक के चक्कर में दो अन्य लोग मारे गये?
कौन था ब्लैकमैन, उसका नायक से क्या संबंध था?
क्या इंस्पेक्टर बजरंगी इस रहस्य को सुलझा सका?
क्या त्रिवेन्द्रम बच गया या मारा गया?
इन सब रहस्यमयी प्रश्नों के उत्तर तो पाठक को वेदप्रकाश शर्मा के उपन्यास 'अपने कत्ल की सुपारी' पढकर ही मिल सकते हैं।
      उपन्यास को पढने के पश्चात कहीं-कहीं यह आभास होता है की यह उपन्यास वेदप्रकाश शर्मा की उस सशक्त लेखनी से नहीं निकला जिसके पाठक प्रशंसक हैं। 

उपन्यास- अपने कत्ल की सुपारी
लेखक- वेदप्रकाश शर्मा
प्रकाशन-  राजा 
पॉकेट बुक्स

3 comments:

  1. बढ़िया समीक्षा, कृपया विजय-विकास सीरीज के उपन्यासों की लिस्ट दीजिए।

    ReplyDelete
  2. उपन्यास रोचक लग रहा है। मौका मिलते ही पढूँगा। वेद जी को पढ़ने के बाद मैंने ये जाना है कि वो ट्विस्ट्स तो तगड़े डालते हैं लेकिन जब रहस्य उजागर होता है तो वह उतना प्रभावित नहीं कर पाता है। क्या इसके साथ भी ऐसा ही है?

    ReplyDelete
  3. वेद जी का खलीफा और दूर की कौड़ी पढियेगा बहुत ही जबरदस्त उपन्यास है यह दोनों मतलब इतने चक्कर है इतने मोड़ इतने ट्विस्ट है कि पढ़ने वाला भी पागल हो जाए। जरूर पढियेगा इन दो को तो

    ReplyDelete

आयुष्मान - आनंद चौधरी

अमर होने की चाह.... आयुष्मान- आनंद चौधरी ये अजीबोगरीब दास्तान मोर्चरी के पोस्टमार्टम रूम में पोस्टमार्टम टेबल पर रखी गई एक लाश से शुरू होती...