मुख्य पृष्ठ पर जायें

Tuesday, 12 March 2019

177. चौरासी- सत्य व्यास

दर्द से गुजरती एक प्रेम कथा

     सन् 1984 के दंगे कौन भूल सकता है और दंगे चाहे कोई भी हो, सन् 1947, 1984 या मेरठ हो या गोधरा। साम्प्रदायिक की आग जहाँ भी लगी है या लगाई गयी है उसके दाग अमिट हैं। समय- समय पर यही दाग टीसते हैं। बस उस दर्द की अभिव्यक्ति अलग-अलग होती है। दर्द तो दर्द है, वह कभी धर्म या जाति नहीं देखता। इस दर्द को वही अनुभव कर सकता है जो संवेदनशील है, जिसमें इंसानियत बाकी है। ऐसी ही दंगों की कथा 'चौरासी' लेकर उपस्थित हुये है सत्य व्यास।
                 सन् 1984 के 'हिन्दू- सिख' दंगों में उपजी एक प्रेम कथा है 'चौरासी'। कहने को चाहे यह प्रेमकथा है लेकिन इसके पीछे जो कहानी है वह इंसानी रक्त में डूबी हुयी है।
         इंसान चाहे कितना भी सभ्य हो जाये लेकिन समय मिलते है उसमें बैठा शैतान जाग जाता है। हजारी प्रसाद द्विवेदी लिखते हैं 'नाखून क्यों बढते हैं?', क्योंकि वह हमारी आदिम प्रवृति के प्रतीक हैं। यह आदिम‌ प्रवृत्ति समय मिलते ही जाग जाती है, जैसे चौरासी उपन्यास में लोगों की जागी।
            हर बार यही लगता है की हम एक गलती से सबक लेकर अच्छे इंसान बनेंगे लेकिन हर बार अच्छे बनने की बात को कुछ समय बाद भूल जाते हैं और हम पर धर्म, जाति और राजनीति हावी हो जाती है और इंसानियत भूल जाते हैं।

           इंसान से शैतान बनने की कहानी को सत्य व्यास जी ने अपने उपन्यास 'चौरासी' के माध्यम से जिस ढंग से अभिव्यक्त किया है वह पठनीय है।
         चौरासी कहानी है दो मासूम प्रेमियों की जो अपनी एक मासूम सी जिंदगी जीना चाहते हैं। लेकिन एक रात को उनके जीवन की दिशा बदल जाती है। पंजाब में उठा आतंकवाद और उससे निकली आग में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या और इस हत्या से नफरत ने पूरे सिख समुदाय को झुलसा जाती है। इसी नफरत का साक्षी बना झारखंड का शहर बोकारो।
       बोकारो शहर का एक हिन्दू लड़का ऋषि अपने मकान मालिक पजांबी परिवार की लड़की मनु से प्रेम करता है। प्रेम कोई प्रमेय नहीं जो निश्चित साँचे में ही सिद्ध होता है। प्रेम अपरिमेय है। दोनों के कुछ सपने थे। लेखक ने लड़कियों के संदर्भ में बहुत अच्छा लिखा है। लड़की जब अपने सपनों के साथ निकलती है तो सबसे ज़्यादा सुरक्षा अपने सपनों की ही करती है।

          अभी प्रेम परवान चढा भी न था की 'हिन्दू-सिख' दंगे फैल गये। लोग इंसान से शैतान‌ बनने में समय नहीं लगाया। ऐसे समय में उपजी अफवाहें हमेशा जानलेवा साबित होती हैं।
अफवाहों का बाजार गर्म था। अफ़वाह की सबसे विनाशकारी बात यह होती है कि यह नसों में लहू की जगह नफ़रत दौड़ाती है और वह नफरत महज़ दिल तक जाती है। अफ़वाह दिमाग़ तक किसी भी संकेत के जाने के सारे रास्ते बंद कर देती है। घृणा हुजूम का सबसे मारक हथियार है।
इस घृणा ने भारत की एकता, प्रेम, भाईचारे में ऐसी आग लगाई जो दशकों बाद बुझ न पायी।
‌‌
          उपन्यास एक कहानी मात्र नहीं है यह तो हमारे काले इतिहास से परिचित करवाता है। उस काले इतिहास से उपजी नफरत हमेशा हारती रही है और विजयी हमेशा प्रेम होता है, भाई चारा होता है।
प्रेम को लेकर लेखन ने जो पंक्तियाँ रची हैं वे प्रशंसनीय हैं।


- प्रेमी एकाध सदियाँ तो इशारों में ही जी लेते हैं।

- किताबों से किसी को कोई प्रेम नहीं था। किताबों से प्रेम ही होता तो दंगे ही क्यों होते! सो, किताबों को आग का कच्चा माल मानकर उसी तरह उपयोग किया गया।

- प्रेम दरअसल तरह-तरह के आँसुओं का समुच्चय है। ख़ुशी, ग़म, ग़ुस्सा, ख़ला, डर और बिछोह। यह सारी भावनाएँ एक ही गुण को संतुष्ट करती हैं और वही गुण प्रेम है।
- मूर्खताओं की एक परिणति प्रेम और प्रेम की एक परिणति मूर्खता भी है।

        उपन्यास में कुछ एक बातें ऐसी भी हैं जो लेखक स्पष्ट नहीं कर पाये। ऋषि का दंगों के लोगों के साथ या तथाकथित नेता जी का आदेश मानना क्यों आवश्यक था।
एक पंक्ति है- रमाकांत ठाकुर ने आज पहली बार जाना कि सिख, हिंदू नहीं होते। (पृष्ठ-) अब पता नहीं इस पंक्ति का क्या अर्थ है।


निष्कर्ष-
सत्य व्यास द्वारा लिखित उपन्यास 'चौरासी' सन् 1984 ई. के 'हिन्दू-सिख' दंगों के दौरान झारखण्ड के एक शहर 'बोकारो' की घटना को व्यक्त करती है। यह एक प्रेमकथा होने के साथ-साथ सिख समाज पर हुए सामूहिक नरसंहार का मार्मिक चित्रण है।
संवेदनशील पाठक को यह रचना अवश्य पढनी चाहिए।

उपन्यास- चौरासी
लेखक- सत्य व्यास
प्रकाशक- हिन्द युग्म
पृष्ठ- 160
मूल्य- 125₹
उपन्यास लिंक- चौरासी



No comments:

Post a Comment