नन्हें जासूसों की बड़ी कहानी
पांच जासूस - शकुंतला वर्मा
बच्चों ने मिलकर एक सोसाइटी बनाई - सीक्रेट सोसाइटी इसका उद्देश्य था ईर्ष्या-द्वेष से परे रहकर, बिना किसी भेदभाव के सबकी सहायता करना। इस सोसाइटी के एक सदस्य निखिल का अपहरण, बच्चे पकड़ने वाला एक गिरोह कर लेता है। क्यों ? सीक्रेट सोसाइटी के अन्य सदस्य क्या इस गिरोह के पंजे से निखिल को छुड़ा पाते हैं? आओ, इस रोमांचक अभियान में शामिल हों।
जनवरी 2025 में बाल साहित्य को प्राथमिकता दी गयी है जो की काफी रोचक और पठनीय है। बाल साहित्य की काफी सामग्री मेरे पास उपलब्ध है लेकिन पढने का समय कम मिलता है। प्रस्तुत रचना 'पांच जासूस' लगभग दस सालों से मेरे पास उपलब्ध थी पर अब जाकर पढने का समय मिला है ।
यह कहानी है सातवी-आठवी में पढने वाले कुछ साहसी बालकों की जो अपने साहस और बुद्धि से कठिन परिस्थितियों में हार नहीं मानते और सफलता प्राप्त करते हैं।
"अरे यार निखिल, ये काज़िम और संजय अभी तक नहीं आए? कल तय तो यही हुआ था कि हमारी 'सीक्रेट सोसाइटी' की मीटिंग तीन बजे शुरू हो जाएगी," दीपक ने इधर-उधर देखते हुए कहा।
"हां, तीन तो बज गए हैं। समय भी यही तय हुआ था कि स्कूल से आधे दिन की छुट्टी के बाद हम सब तुम्हारे घर पर मिनी लाइब्रेरी और मीटिंग के लिए इकट्ठे होंगे। मैं तो देखो वक्त से आ गया हूं." निखिल ने अपनी घड़ी पर नज़र डालते हुए कहा।
"संजय में और सब आदतें तो अच्छी है, मगर वह साइकिल के पीछे इतना दीवाना रहता है कि अगर साइकिल साथ हुई तो वह और सब कुछ भूल, बस साइकिल चलाने में मग्न हो जाता है।"
"दीपक, यह भी तो हो सकता है कि संजय की साइकिल में पंक्चर हो गया हो और वह उसे ठीक करवाने में लगा हो। उसका स्कूल दूर है। फिर वह उसी से स्कूल भी जाता है। अरे हां! कल इतवार है। राजू से उसने साइकिल रेस बदी है, यह क्यों भूले जा रहे हो," निखिल ने याद दिलाया।
"यह तो सचमुच मुझे याद ही नहीं रहा। मगर काज़िम को तो अब तक आ जाना चाहिए था। ये हज़रत रह कहां गए? कुछ भी कह लो निखिल, हम लोगों में जब तक समय की पाबन्दी नहीं आएगी हम कुछ नहीं कर सकते। जब एक निश्चित समय पर इकट्ठा नहीं हो सकते तो कोई ठोस काम क्या करेंगे खाक?" दीपक ने थोड़ी नाराज़गी से कहा । (पांच जासूस- प्रथम पृष्ठ से)
जब संजय और काजिम अपने मित्र निखिल और दीपक के पास पहुंचते हैं तो दोनों उन्हें बताने है की साही अंकल का एक महत्वपूर्ण ब्रीफकेस खो गया है जिसमें सरकारी कागज थे। साही अंकल बहुत परेशान हैं उनकी नौकरी भी खत्म हो सकती है।
दीपक और निखिल साही अंकल से मिलते हैं और फिर अपने चातुर्य से ब्रीफकेस चोर को ढूंढ निकालते हैं। कालोनी में बच्चे के साहस की चर्चा होती है और कुछ बच्चे दीपक और निखिल द्वारा बनाई गयी 'सीक्रेट सोसाइटी' और मिनी लाइब्रेरी से जुड़ना चाहते हैं।
निखिल और रंजान बहन भाई हैं । इनके पापा दीपांकर जी पुलिस विभाग में अधिकारी हैं। एक दिन विद्यालय में अभिभावक अध्यापन बैठक (PTM) में निखिल अपनी मम्मी सुहासिनी के साथ जाता है और वहीं पर चालाकी से बच्चों का अपहरण करने वाले गिरोह के लोग निखिल का अपहरण कर लेते हैं तुरंत ही यह खबर चारों तरफ फैल जाती है।
एस. एस. पी. चक्रवर्ती साहब ने उसी समय लखनऊ भर के सभी थानों और कोतवालियों को सूचना भिजवा दी कि एस. पी. दीपांकर साहब के लड़के निखिल का स्कूल से अपहरण हो गया है। उसकी उम्र कोई 12 साल है। रंग गोरा है। है। नाक-नक्शा दीपांकर साहब से मिलता-जुलता है। बिना एक भी क्षण खोए उसे खोजने के हर सम्भव प्रयास किए जाएं। (उपन्यास अंश)
जहां एक तरफ पुलिस विभाग निखिल को खोजने का प्रयास करता है वहीं 'सीक्रेट सोसाइटी' भी सक्रिय होती है।
जब अपराधियों द्वारा फिरोती के लिए निखिल से दीपांकर सर की बात करवायी जाती है तो वह कोडवर्ड में कुछ बातें बता देता, यह इस कोडवर्ड को 'डिकोड' करती है सीक्रेट सोसाइटी और फिर तपन, निखिल, दीपक और काजिम विभिन्न प्रकार के वेश बनाकर निखिल की खोज में निकलते पड़ते हैं।
सीक्रेट सोसाइटी का निखिल को खोजने का तरीका बहुत जबरदस्त है। छोटे-छोटे बच्चे, सातवीं-आठवीं में पढने वाले नन्हें जासूस अपने बुद्धिबल से हैरत करने वाले तरीकों से निखिल को खोजते हैं।
वह सिर्फ खोजते ही नन्हीं बल्कि अपराधी के अड्डे तक पहुँच कर उसे निखिल को मुक्त भी करवाते हैं। बच्चों का साहस और बुद्धिमत्ता पठनीय है। बीच-बीच में आने वाली नोकझोक भी काफी रोचक है।
काजिम का छोटी छोटी बातों पर रूठना, तपन का खाने पर ध्यान देना, दीपक और रंजना का सोचने का तरीका काफी प्रभावित करता है।
अपने अपहृत मित्र की खोज में निकले सीक्रेट सोसाइटी के नन्हें जासूसों का यह कारनामा रोचक और पठनीय है।
उपन्यास के आरम्भ मॆं जो घटनाक्रम दिया गया है वह भी काफी अच्छा और कहानी की भूमिका प्रस्तुत करने वाला है।
वहीं अध्याय तीन और चार के लगभग बीस पृष्ठ थोड़े से इसलिए अखरते हैं की वहां सीक्रेट सोसाइटी की बैठक को लेकर होने वाली बातचीत को विस्तार दिया गया है।
वहीं पुस्तक के शीर्षक की बात करें तो पांच जासूस नाम इसलिए सार्थक नहीं है की पहली ब्रीफकेस वाली घटना को 'दीपक और निखिल' हल करते हैं। बाद में सीक्रे सोसाइटी के सदस्य छह: हो जाते हैं । उपन्यास नामकरण 'नन्हें जासूस' भी हो सकता था।
प्रस्तुत रचना को -चिल्ड्रन्स बुक ट्रस्ट द्वारा आयोजित हिन्दी बाल-साहित्य लेखक प्रतियोगिता में पांच जासूस को उपन्यास वर्ग में द्वितीय पुरस्कार मिला था।
लेखिका आकाशवाणी, लखनऊ की अवकाश प्राप्त कार्यक्रम-निर्मात्री हैं और आजकल स्वतंत्र रूप से लेखन कार्य करती हैं।
चित्रकार महोदय बी. जी. वर्मा जी का कार्य भी प्रशंसनीय है।
बच्चों में साहस पैदा करने वाली यह रचना पठनीय और रोचक है।
धन्यवाद
पुस्तक के प्रति उत्सुकता जगाती रोचक टिप्पणी। मैंने भी ये पढ़ी है। ऐसी पुस्तकों का प्रचार-प्रसार होना चाहिए।
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