क्ली टापू पर रोमांच- तुनका भौमिक एंडो
लीशा समय-चक्र से बाहर निकल आई थी। वह अपने खयालों में इतनी खोई थी कि अपने आसपास की चकाचौंध पर भी उसकी नजर नहीं गई। 15 साल की उम्र के हिसाब से लीशा की लंबाई ज्यादा थी। उसके काले बालों की चोटी बनी थी। उसने चमकीले रंग का जो स्पेस सूट पहन रखा था, वह उसके दुबले शरीर पर एकदम सही बैठ गया था। वह एक परिसर में दाखिल हुई, जहां मधुमक्खी के विशाल छत्ते की तरह मकान बने थे। परिसर में हजारों छोटे-छोटे अपार्टमेंट बने थे। वह अपने घर के दरवाजे की ओर बढ़ी। उसने दरवाजे पर अपनी हथेली रखी, दरवाजा खुल गया और वह अंदर दाखिल हुई। गोलाकार बैठक मद्धिम, नारंगी रोशनी से रोशन हो गई और लीशा का पसंदीदा संगीत बजने लगा। स्पेस सूट उतार कर लीशा ने सूती कुर्ती पहनी और आराम से कमरे में चहलकदमी करने लगी।
उसने दीवार पर लगा एक बटन दबाया और दीवार एक विशाल पर्दे में बदल गई। डिजिटल वालपेपर सक्रिय हो गया था। घर के दूसरे कमरों की तस्वीर पर्दे पर दिखने लगी। लीशा ने देखा कि घर एकदम खाली था। डिजिटल पर्दा बंद कर वह मैसेज डेस्क पर गई। उसके सामने तुरंत उसकी मां की तस्वीर आ गयी । (प्रथम पृष्ठ से)
'क्ली टापू पर रोमांच' भविष्य की कहानी है हमें आने वाले खतरे की प्रति सचेत भी करती है। अपने कलवर में चाहे यह लघु है पर इसका संदेश का दायरा विस्तृत है। आप कल्पना कीजिए उस भविष्य की जहां आधुनिक और अति आधुनिक संयंत्र, कम्प्यूटर-इंटरनेट, भव्य बिल्डिंग और युद्ध सामग्री तो हमारे पास होगी पर हम से हमारा पर्यावरण और शुद्धता छीन ली जायेगी ।
आप कल्पना कीजिए एक ऐसे समय की जहाँ पक्षी अतीत की बात होंगे, जहां रोबोट तो होंगे, जहां टाइम ट्रेवल्स तो संभव होगा पर 'हम' सब तकनीक के अधीन होंगे।
प्रस्तुत रचना 'क्ली टापू पर रोमांच' अपने शीर्षक के अनुसार रोमाच कथा तो है ही साथ-साथ में यहें पर्यावरण के प्रति भी सचेत करती है, हमें अपने दायित्व निर्वाह के प्रति जागरुक भी करती है।
यह कहानी है तीन बच्चों की जिनके नाम हैं लिशा(15 वर्ष), नील (13 वर्ष) और आरन की । उनके साथ होता है इनका मित्र रोबोट 'के' ।
यह साल 2070 था और धरती पूरी तरह सड़कों, पुलों, फ्लाईओवर, अंतरिक्ष यान, विमान हैंगर और विशाल इमारतों से ढकी हुई थी।
लगातार बढ़ती आबादी धरती के कोने-कोने में फैल चुकी थी। ब्रह्मांड के ज्यादातर ग्रहों का लगभग पूरा हिस्सा रहने लायक नहीं रह गया था। इसलिए धरती पर भीड़ बढ़ती ही जा रही थी। हरियाली तो बस राष्ट्रीय उद्यानों और वन क्षेत्रों तक में ही सिमट कर रह गई थी। मीटियोर, ग्रानाडा और ऑडी-1 जैसे नए ग्रहों में धरती की आबादी के बहुत छोटे हिस्से को बसाया गया था।
लिशा एक बार टाइम ट्रेवल्स यात्रा के द्वारा सन् 1985 में जाती है और वहां की हरियाली और पशु पक्षियों को देखकर हैरान रह जाती है और लिशा जब टाइम ट्रेवल्स से वापस आकर नील और आरव को इस विषय में बताती है तो तीनों अपने आधुनिक कम्प्यूटर की मदद से यह जानने का प्रयास करते हैं की अब यहाँ कितने पक्षियों का अस्तित्व बचा है।
आरव ने सुझाव दिया,-"क्यों न 'के' की मदद से पता लगाएं कि क्या धरती पर सभी पक्षियों का वजूद आज कायम है ?''
शीघ्र उनके सामने जो परिणाम आते हैं वह उनको चौंकाने वाले थे । क्योंकि बढते आधुनिकीकरण ने पक्षियों को खत्म कर दिया । अब पशु- पक्षी और हरियाली दुर्लभ वस्तु हो गये ।
और छानबीन से पता चला कि डॉ. एलेना मीका दास एक द्वीप पर रहती थीं। वहां रहने वाले कई लोगों की तरह वह भी काफी रईस थीं। उनके घर के पास बड़ा-सा मैदान था, जहां वह कृत्रिम रूप से अनुकूल वातावरण तैयार कर सैकड़ों प्रजातियों के हजारों पक्षी रखती थीं।
लीशा चिल्ला उठी, "अरे वाह! जरा नाम तो देखो-हंस, बतख, सारस, हमिंगबर्ड, पाराकीट, उल्लू, कबूतर, कोयल, बाज... इनकी तस्वीरें भी दी गई हैं।"
डाक्टर एलेना दास जिस द्वीप पर रहती है उसका नाम है क्ली टापू और फिर तीनों किशोर डाक्टर एलेना दास से मिलने के लिए चल दिये क्ली द्वीप ।
क्ली टापू आकार में छोटा था और वहां अंगुलियों पर गिने जाने लायक लोग ही रहते थे। सारे अमीर लोग रहते थे, जो भीड़ से अलग, एकांत जीवन पसंद करते थे। वहां कुछ होटल थे, जिनमें से एक में बच्चों ने एक कमरा किराये पर ले लिया। वे वहां रुके, सामान रखा और नहाने-धोने के बाद डॉ. मीका दास से मिलने के लिए तैयार हो गये।
डाक्टर एलेना दास अपनी हवेली में दो रोबोट के साथ बच्चों से मिलती है और बच्चों को पक्षियों के विषय में जानकारी देती है।
- "तुम्हें मालूम होना चाहिए कि 2030 के बाद धरती पर शहरों का विस्तार शुरू हुआ और पक्षियों की संख्या धीरे-धीरे कम होने लगी। कारण यह रहा कि शहरी इलाकों में पक्षियों को खाने के लिए नहीं मिल रहा है। उसके बाद बर्ड फ्लू आया। दसियों लाख पक्षी एक साथ इस बीमारी की भेंट चढ़ गए। इसके अलावा हम बढ़ती आबादी के लिए मकान की जरूरत पूरी करने के लिए ज्यादा से ज्यादा पेड़ काट रहे हैं। इस तरह धीरे-धीरे जंगल कम होते गए, धरती पर इतनी गर्मी हो गई कि पक्षियों के लिए जीना मुश्किल होने लगा। सच तो यह है कि बहुत कम प्रजातियां बच पाईं और इनमें से भी ज्यादातर उन इलाकों में हैं, जहां कुदरती तरीके से वातावरण को नियंत्रित कर रखा गया है।"
लेकिन डाक्टर एलेना दास की मुलाकात स्वाभाविक प्रतीत नहीं होती और यही बात बच्चों को विचलित करती है और पक्षियों के विषय में जानने निकले बच्चे डाक्टर एलेना के इस विचित्र स्वभाव के विषय में जानने को भी उत्सुक हो उठते हैं। और यहीं से कहानी रहस्य और रोमांच कॆ मरुस्थल में घूमती है। पाठक भी चकित हो उठता की डाक्टर एलेना का व्यवहार क्यों बदला और बच्चे आगे क्या करते हैं।
बच्चों की यह जिज्ञासा हमें एक और सत्य की तरफ लेकर जाती है और वह सत्य है सरकार का पर्यावरण के प्रति दृष्टिकोण । यह रचना का महत्वपूर्ण पक्ष है।
इस रचना का समापन भी अच्छा है और प्रेरणादायक भी ।
आज बढते प्रदूषण के कारण जीव- जंतुओं की बहुत सी प्रजातियां विलुप्त हो गयी और कुछ विलुप्ति की कगार पर हैं ।
सन् 2000 के लगभग जब में दसवीं में पढता था तब गिद्ध खत्म होने लगे थे। उस समय से हम एक साल भी पीछे जाये तो आसमान गिद्धों से भरा होता था और फिर देखते- देखते गिद्ध खत्म हो गये और वर्तमान बच्चे गिद्ध विषय में जानते तक नहीं ।
आंगन का पक्षी कहे जाने वाली गौरेया दिन प्रति दिन कम होती जा रही है। इसके अतिरिक्त बहुत से पक्षियों की प्रजातियाँ खत्म हो रही है। जिसका एकमात्र कारण है बदलता पर्यावरण या बढता प्रदूषण । हमारा भविष्य क्या होगा ? कल्पना कर मन सिहर उठता है। इस विषय पर सरकार मौन है।
शासन का पर्यावरण के प्रति दृष्टिकोण भी प्रस्तुत किया गया है।
" जो भी हो, पक्षियों और जानवरों को बचाए रखना निश्चित रूप से सरकार की प्राथमिकता में होना चाहिए ! धरती का मतलब यह नहीं है कि यहां बस इमारतों, सड़कों, पुलों और फ्लाईओवर की भरमार हो । आज जिस तरह धरती कंक्रीट के जंगल में तब्दील हो चुकी है, हमें इसे इस हाल में नहीं आने देना चाहिए था।"
धरती अब भी कंक्रीट का जंगल बन रही है, सरकारें चुप है और आमजन परेशान । सरकान औद्योगीकरण को ही विकास मान लिया है और औद्योगीकरण ने हमेशा पर्यावरण का विनाश किया है ।
मैं कभी- कभी सोचता हूँ आज (2025) में स्वयं को शिक्षित और आधुनिक मानते हैं लेकिन मुझे लगता है भविष्य की पीढियां हमें नासमझ/ मूर्ख/ स्वार्थी समझेगी, क्यों ? क्योंकि हमनें संशाधन होते हुये भी पर्यावरण की रक्षा नहीं की, क्योंकि हम सक्षम होते हुये भी अपने कर्तव्य का निर्वाह नहीं कर पाये । हमने पृथ्वी को जीव के रहने लायक नहीं छोड़ा । (और हां,मैं तो अपने हिस्से का कार्य कर रहा हूँ। हर साल बरगद और अन्य पेड़ लगा रहा हूँ।)
प्रस्तुत रचना रहस्य, रोमांच और जासूसी-एक्शन वाली यो है ही है साथ-साथ में हमें भविष्य के प्रति जागरुक भी करती है। बच्चों के लिए आवश्यक पुस्तक है।
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