मानवीय संवेदना और औद्योगीकरण की कहानी
टोडा और टाहर - ई. आर. सी. दावेदार
बाल साहित्य के अंतर्गत प्रस्तुत है एक अनुदित रचना जो एक बालक और उसके जानवर मित्र की रोचक कहानी है।
"कौन है वहां ?" करनोज ने कड़कती आवाज में पूछा। उसका कुत्ता कूच भी गुर्राया। दोनों के कान खड़े हो गए।
बालक करनोज अपने कुत्ते के साथ आसमान की ओर उभरी एक पहाड़ी चट्टान पर खड़ा था। उनके ठीक नीचे एक गहरी डरावनी खाई थी। वे इंतजार में ही थे कि फिर वही आवाज आयी। तड़प भरी चीख अब धीमी पड़ने लगी थी। करनोज को समझते देर नहीं लगी कि दो ऊंची चट्टानों के बीच स्थित जंगल की संकरी पट्टी से वह चीख उभरकर आयी थी। करनोज अपने कुत्ते के साथ उस पहाड़ी की तीखी ढलान पर तेजी से उसी दिशा में पूरी सावधानी के साथ दौड़ पड़ा। एक कदम भी गलत पड़ जाता तो सीधा फिसलकर वह खाई में जा गिरता। उन्होंने छोटे से सीलन भरे और अंधेरे जंगल में प्रवेश किया। करनोज अब धीरे-धीरे बढ़ने लगा और अंधेरे में देखने की कोशिश करने लगा। मंद रोशनी में उसे जाल में फंसा हुआ एक नन्हा नीलगिरि टाहर दिखाई पड़ा। वह आखिरी बार हल्के से मिमियाया और छटपटाना बंद करके एकदम शांत होकर गिर पड़ा। करनोज ने सोचा, वह मर गया है। फंदे के तार से उसकी गर्दन अंदर तक कट गयी थी और वहां से खून बह रहा था। (पुस्तक अंश)
रचना का शीर्षक है 'टोडा और टाहर' और यह दोनों शब्द मेरे लिए नितांत नये थे। हालांकि जैसे जैसे रचना को पढते गया तो अर्थ भी स्पष्ट होते गये और कहानी के संबंध भी जुड़ते चले गये।
जैसा की आपने ऊपर पढा ही होगा एक करनोज नामक का बालक अपने कुत्ते के साथ पहाड़ियों में घूम रहा था और उसे नीलगिरी टाहर दिखाई पड़ा। टाहर पहाड़ी बकरियों की प्रजाति है। और टोडा- ऐसा माना जाता है कि टोडा ही आदिकाल से नीलगिरि के मूल निवासी हैं। उनकी आकृति, प्रकृति और रीति-रिवाज दक्षिण भारत के अन्य आदिवासियों और लोगों से भिन्न हैं। यहां के पुरुष सुगठित, ताकतवर और लंबे होते हैं, ठीक उन पर्वतों की तरह, जिन पर वे रहते हैं। कई बूढ़े लोग अपनी दाढ़ी खास तौर से बढ़ाये रखते हैं, जो उनके भव्य चेहरे की रौनक बढ़ाती हैं। स्त्रियां पतली और सुंदर होती हैं, उनके केश घुंघराले होते हैं और शरीर का अधिकांश भाग गोदा हुआ रहता है। (पुस्तक अंश)
करनोज भी टोडा जाति से है और उसका कार्य भैंसों के कटरों को चराने का है। करनोज घायल टाहर के बच्चे को अपने घर ले आता है और उसकी देखभाल की जिम्मेदार उसकी बहन सिमिल लेती है।
टोडा जाति का कोडन एक बुजुर्ग और समझदार व्यक्ति है करनोज शिशु टाहर के विषय में उसे बताता है और कोडन उसे निराश नहीं करता-"तुमने इसे बचाकर ठीक ही किया है करनोज," वह बोला, "अब इसकी अच्छी तरह से देखभाल करना और जब इसका घाव भर जाए तो इसे वन में छोड़ आना ताकि यह अपने झुण्ड में साथियों से जा मिले ।" (पृष्ठ-10)
दरअसल यहाँ का नियम है बिना बड़ों की अनुमति के कोई कार्य नहीं किया जाता। शीघ्र ही शिशु टाहर पूरे कबीले का प्रिय बन जाता है और उसका नामकरण होता है- मोज (कुहासा) ।
शिशु से व्यस्क होते टाहर की जिंदगी में बहुत परिवर्तन आते है। वह कभी टोडा क्षेत्र से बाहर निकाला जाता है तो कभी वह सर्वप्रिय हो जाता है। कभी वह टोडा जाति के पशुओं को बचाता है तो कभी स्वयं उसकी जान पर बन आती है ।
व्यस्क टोडा का सौन्दर्य सभी को प्रभावित करता है और शिकारी उसकी जान के दुश्मन बन जाते हैं। यहां लेखक महोदय मार्मिक शब्दों में टोडा के दुख को व्यक्त किया है- मोज़ जान गया था कि चीतों और तेंदुओं जैसे परभक्षी जानवर भी मनुष्यों से अधिक शैतान नहीं होते।
मनुष्य और पशु के मध्य प्रेम का अति सुंदर चित्रण इस रचना में किया गया है। वहीं मनुष्य के लालची स्वभाव और उसके अंधे आधुनिकीकरण का विवरण भी प्रभावित करता है।
यह रचना मात्र करनोज और टाहर की ही नहीं बल्कि इसमें टोडा जाति का इतिहास, सभ्यता और संस्कृति को समझने में भी मदद मिलती है। उनमें समय के साथ होने वाले बदलावों का चित्रण है।
शिकारियों द्वारा किये जा रहे शिकार का वर्णन और जानवरों के खतरे को भी रेखांकित किया गया है। वहीं बदलते समय और आधुनिकीकरण ने कैसे टोडा जाति को प्रभावित किया और उन्हें अपने मूल स्थान से कैसे उखड़ना पड़ा उसका भी मार्मिक चित्रण है। प्रसिद्ध लेखक निर्मल वर्मा ने अपने रचना 'जहां कोई वापसी नहीं' में औद्योगीकरण से होने वाले विस्थापित होने वाले लोगों को 'आधुनिक युग के शरणार्थी' कहा है ।
पर्यावरण में आ रहे परिवर्तन को देखें यह परिवर्तन हर जगह विनाश ही ला रहा है।
पठार पर यत्र-तत्र बबूल, गंध सफेदा और चीड़ के वृक्ष इतनी अधिक संख्या में उग आये थे कि इन टाहरों के झुंडों को विचरण करने में में दिक्कतें आने लगीं और उनके उनके चरने के क्षेत्र सिकुड़ने लगे। यही नहीं, वहां एक विशाल पनबिजलीघर के निर्माण की योजना भी उनके हित में नहीं थी। परंतु टोडा लोग जो स्वभाव से ही आशावादी होते हैं, सोचते रहे कि सब कुछ अच्छा ही होगा।
अरावली पर्वतमाला पर पनप रही विदेशी बबूल ने स्थानीय वनस्पति को खत्म कर दिया है जिसका प्रभाव वहां के पर्यावरण और जीव जंतुओं पर पड़ रहा है। यही स्थिति नीलगिरी क्षेत्र की इस पुस्तक के माध्यम से दर्शायी गयी है।
यह पुस्तक अनुवादित है । यह मूलतः किस भाषा की रचना है यह कहीं भी वर्णित नहीं है।
चित्रकार गीता गंगोपाध्याय का कार्य प्रशंसनीय है।
मनुष्य और जानवर के संबंधों के साथ-साथ यह कहानी मनुष्य के लालच और अंधे औद्योगीकरण को भी रेखांकित करती है।
यह एक पठनीय रचना है और बच्चों के लिए इसलिए भी आवश्यक है वह पशु के प्रति उनमें संवेदना जगाती है।

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