Sunday, 5 October 2025

बारूद की आंधी- अनिल सलूजा

बलराज गोगिया का तीसरा कारनामा
बारूद की आंधी- अनिल सलूजा

"अब क्या ख्याल है ?*
"कैसा ख्याल?"
"भई विदेश जाने का।
"वो तो जाना ही है, यहां रहा तो कभी न कभी पुलिस के हत्थे चढ़ जाऊंगा और अगर में एक बार पकड़ा गया तो इस बार कोई अवतार सिंह या इकबाल बचाने के लिए नहीं आने वाला और अदालत भी जल्द से जल्द फांसी पर चढ़ाने का हुक्मनामा जारी कर देगी।"
"एक जरिया था। एक वही दोस्त था लेकिन यह भी हरामजदगी दिखा गया।" एक लंबी सांस छोड़ते हुए राघव बोला।
"इसमें तेरा क्या कसूर था और फिर तूने उसे उसकी गद्दारी की सजा खुद अपने हाथों से दे दी थी।" बलराज गोगिया रुमाल निकालकर मुंह पौंछते हुए बोला।
     गंगानगर पुलिस के हाथों आते-आते बचे थे बलराज गोगिया और राघव अगर ऐन वक्त पर वे इन्दिरा गांधी नहर में छलांग न मार गए होते तो दोनों की लाशें, वहीं पुल पर हो बिछी नजर आती।
जेब में केवल दस हजार रुपये थे। उनके पास, जिन्हें उन्होंने पच्चीस करोड़ की उस विपुल धनराशि में से तब उठाया या जब वे बिस्तरबंद लेने के लिये गोदाम से मोटर साइकिल द्वारा निकले थे। पच्चीस करोड पाने के लिए इतनी मेहनत करने के वावजूद भी कामयाब होने के बाद, उनके हिस्से में सिर्फ दस हजार ही आये थे और वे दस हजार भी पानी में बुरी तरह से भीग जाने के कारण काफी खस्ता हालत में हो गये थे लेकिन फिर भी अभी वे चलने लायक थे।
इन्दिरा गांधी नहर से निकलकर वे पैदल हाईवे पर पहुंचे और वहां से एक टैक्सी पकड़कर हरियाणा के जिला हिसार में उतर गए।
(प्रथम पृष्ठ से)

   अनिल सलूजा जी लोकप्रिय उपन्यास साहित्य में एक सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके द्वारा रचित पात्र बलराज गोगिया, राघव, सतीश रावण उर्फ भेड़िया, रीमा राठौर और राजा ठाकुर चर्चित रहे हैं। प्रस्तुत उपन्यास बलराज गोगिया सीरीज का तृतीय उपन्यास है। इस से पूर्व 'फंदा' और 'मर्द का बच्चा' उपन्यास हैं।

  बलराज गोगिया वक्त का मारा एक इंसान है जो बुरे समय के चलते गलत राह पर निकल जाता है। फांसी के फंदे से बचा बलराज गोगिया पंजाब और श्री गंगानगर (राजस्थान) में अपने कारनामों का अंजाम देता है लेकिन उसके हाथ कभी कुछ नहीं लगता।

   श्रीगंगानगर से जान बचाकर भागे बलराज गोगिया और राघव हरियाणा के हिसार जिले में पहुंचते हैं लेकिन तब तक उनके विषय में अखबार और टी. वी. पर चेहरे दिखाये जा चुके थे।

   हिसार में उनकी मुलाक़ात होती है रेशम सिंह चौटाला से।

''रेशम सिंह चौटाला नाम है म्हारा ।"-विशुद्ध हरियाणवी भाषा में बोला वह ।
.............
"अर मैं यू भी जानू सू कि पुलिस थम दोनों के पाछे लागी सै। थम दोनों पुलिस तै बचने खातिर ही होटल ते भागे हो।"
(पृष्ठ-14)

 बलराज गोगिया और राघव पुलिस से बचने हेतु रेशम सिंह चौटाला, अजगर सिंह, केसर और किशोर सेठी के साथ वहां से दिल्ली पहुँच जाते हैं। 

रेशम सिंह चौटाला और उसके साथी ढींगड़ा के संपर्क में हैं।

"ढींगड़ा कौन?"
"कैलाश नाथ ढींगड़ा! दिल्ली अण्डरवर्ल्ड के प्रधान सतपाल डोंगिया के बाद उसी का नम्बर आता है। एक नम्बर का हरामजादा है वो।" अजगर सिंह बोल पड़ा- "एक ऊंचे गैंगस्टर की कोई काबलियत नहीं उसमें। छोटे-छोटे काम, जैसे किसी के हाथ-पैर तोड़ने हों का ही ठेका लेता है वो।
"(पृष्ठ-25)

   यहां एक चाल के तहत कैलाश नाथ ढींगड़ा और उसके चारों सिपहसालार बलराज गोगिया को मजबूर कर के दिल्ली के डाॅन सतपाल डोंडिया के विरुद्ध खड़ा कर देते हैं और बलराज गोगिया की मजबूरी थी की वह ढींगड़ा की बात माने।

ढींगड़ा ने बलराज गोगिया के सामने दो शर्ते रखी थी।

एक अपने भाई शिवनाथ को सतपाल डोंगिया के कब्जे से मुक्त करवाना दूसरी पुलिस के कब्जे में सतपाल डोंगिया की तीस करोड़ की हेरोइन को प्राप्त कर कैलाश नाथ ढींगड़ा तक पहुंचाना ।

  बलराज गोगिया एक बार फिर मजबूर होकर अपराध की दुनिया के ताकतवर डाॅन सतपाल डोंगिया से जा टकराया।

           सतपाल डोंगिया पचास साल का चूसे आम जैसे चेहरे वाला शख्स था। पेट बाहर को निकला हुआ ऐसे लग रहा था जैसे कि बांस के बीचो-बीच कोई तरबूज बांध दिया गया हो। एक पेट के अलावा शेष सारा जिस्म ही किसी कांगड़ी पहलवान जेतसा था। जिस्म कमजोर होने के बावजूद भी सतपाल डोंगिया की आंखों में एक ऐसी चमक थी कि सामने वाले का दिल दहल जाए। कालिया पठान के सामने तो वह बिल्कुल ऐसे लगता था जैसे हाथी के सामने गधा। और ताज्जुब वाली बात थी कि गधा हाथी पर हावी था। हाथी का बाॅस था वह।(पृष्ठ- 85)

    बलराज गोगिया अपने पहले चरण में कालिया पठान की माशूका मारथा और मारथा के प्रेमी विक्की को फांसता है। विक्की भी सतपाल डोंगिया का ही कार्यकर्ता है।

  बलराज गोगिया एक-एक कर के सतपाल डोंगिया के सिपहसालार और अड्डों को तबाह करता चला जाता है। और सतपाल डोंगिया को पहले तो यह भी पता नचलता की आखिर उसका एकाएक कौन दुश्मन पैदा हो गया। और जब उसे बलराज गोगिया का पता चलता है तो वह बलराज गोगिया को धमकी देता है-

"तुम आग से खेल रहे हो बलराज गोगिया- बेहतरी इसी में है, तुम फौरन दिल्ली छोड़कर कहीं और चले जाओ बना इस आग में तुम्हारी हड्डियां तक जल जाएंगी और तुम्हें पछताने का मौका भी नहीं मिलेगा ।"(95)

   कठिन से कठिन परिस्थितियों में विक्की बलराज गोगिया का साथ देता है और उसका पासपोर्ट और विजा बनवाने के लिए वह विक्टर बनर्जी से संपर्क करता है। (विक्टर बनर्जी के भविष्य के बारे में जानने के लिए उपन्यास 'शूटर' पढें)

    यहां दिल्ली में हो रही खतरनाक गैंगवार से पुलिस भी अनजान नहीं है। उसे भी सूचना मिल चुकी है की बलराज गोगिया दिल्ली में प्रवेश कर चुका है और दिल्ली पुलिस बलराज गोगिया को पकड़ने के लिए सक्रिय है।

 अब देखना यह है की दिल्ली पुलिस और डाॅन सतपाल डोंगिया से बलराज गोगिया मुकबला कैसे करता है ?

अब उपन्यास के विषय में कुछ और बातें-

बलराज गोगिया सीरिज उपन्यासों में ज्यादातर एक तरफा कार्यवाही ही होती है और बलराज गोगिया दुश्मन को चोट पर चोट पहुंचाता है और दुश्मन उसे छू भी नहीं पाता। प्रस्तुत उपन्यास में बलराज गोगिया सतपाल डोंगिया के सिपहसालार के जाल में इस कदर फंस जाता है की उसे साक्षात मौत नजर आने लगती है।

  बलराज गोगिया सीरीज के प्रथम उपन्यास 'फंदा' को संदर्भ रूप में क ई जगह प्रयोग में लिया जाता है।
जैसे
"यानि तुम मुझे जानती हो?"
"हां, कालिया के होठों से सुना था तुम्हारे बारे में, पहले लुधियाना में मूर्ति चुराई । । अवतार सिंह नाम के गैंगस्टर का कत्ल किया, फिर गंगानगर में पच्चीस करोड़ का डाका डाला।"
"काफी कुछ जानती हो।"(56)

बलराज गोगिया की विशेषताएँ -

 स्वयं बलराज गोगिया के मुँह से सुन लें-

"बलराज गोगिया की एक आदत यह भी है कि वह दुश्मन पर वार करने से पहले उसे सचेत कर देता है। ताकि मरने वक्त उसके दिल में यह बात ने रह जाए कि सामने वाले ने उसे धोखे से मारा है। (82)

बलराज गोगिया का दर्द भी बलराज गोगिया के मुँह से सुन लें-

"तकदीर मुझ पर मेहरबान होकर भी मेहरबान नहीं है मेरे दोस्त । तकदीर ने मुझे मौत के पंजे से तो बाहर निकाल दिया लेकिन जब से मौत से छुटकारा पाया है एक पल भी चैन से नहीं बिता पाया। दुर-दुर करते कुत्ते की भांति इधर से उधर, उधर से इधर भटक रहा हूं। पता नहीं कौन-सा मजाक खेल रही है तकदीर मेरे साथ । सोचता था कि इण्डिया से भागकर विदेश में बस जाऊंगा और बाकी की जिन्दगी वहां अमन और चैन से गुजारूंगा लेकिन, लगता है तकदीर मुझे यहीं रखना चाहती है। दो बार कोशिश कर चुका हूं लेकिन दोनों ही बार उलझ अब आगे देखते हैं क्या होता है?"(140-41)

राघव की विशेषताएँ-

कमाल की खूबी थी राघव में भी। कद में बेशक चूहा था लेकिन हाथी से टक्कर लेने की ताकत रखता था। ऊंचे मामलों में उसका छोटा कद कभी भी आड़े नहीं आया। कंगारू की भांति छलांग मारता था वह। (पृष्ठ-07)

संवाद

उपन्यास एक्शन प्रधान है लेकिन फिर भी कुछ जगह पठनीय संवाद हैं जो प्रभावित करते हैं।

औरत सच उगलवाने की, फौलाद को पिघलाने की, स्वामी भक्त को गद्दार बनाने की एक ऐसी मशीन होती है जिसमें प्रवेश करके आदमी के होठों से झूठ की बजाये सच निकलना शुरू हो जाता है, फौलाद पिघलना शुरू हो जाता है और कुत्ते जैसा स्वामी भक्त भी गद्दारी पर उतर आता है।(169)

"अण्डरवर्ल्ड से वह रूल है कि यहां हमेशा छोटी मछली बड़ी गडली का शिकार बनती है और जब दों बराबर की महनियां आमने-सामने आ जायें तो फिर समझो कि तूफान आया कि गया।(पृष्ठ-45)

 नकारात्मक पक्ष

- उपन्यास में दिल्ली पुलिस की कस्टडी में रखी हेरोइन और उसकी कीमत को लेकर अलग-अलग जगह अलग-अलग बातें लिखता है।

कभी हेरोइन की कीमत पच्चीस करोड़ है तो कभी तीस करोड़ और ऐसा ही हेरोइन की मात्रा को लेकर है।

पृष्ठ-46 पर देखें

- अपने भाई की लाश देखने की हिम्मत नहीं रखता तो मैं उसकी पच्चीस करोड़ की हेरोइन वापस कर दूं।

  उपन्यास में बलराज गोगिया की कार्यवाही एक तरफा ही है। चाहे सतपाल डोंगिया दिल्ली का डाॅन है पर वह पूरे उपन्यास में कुछ भी नहीं कर पाता और बलराज गोगिया उसे चोट पर चोट पहुंचाता है।

              धीरज पॉकेट बुक्स से प्रकाशित यह उपन्यास सच में लुगदी कागज का प्रतिनिधित्व करता दिखाई देता है।  आरम्भ के अधिकांश पृष्ठों पर से शब्द ही नहीं पूरा पृष्ठ ही धुंधला चुका है,जो पढने में परेशानी पैदा करता है।

  उपन्यास में इसका प्रकाशन वर्ष अंकित नहीं और यह पता लगना कठिन हो जाता है की उपन्यास कब प्रकाशित हुआ था। प्रकाशक महोदय हमेशा प्रकाशन वर्ष लिखने में स्याही बचाते रहे हैं।

 बलराज गोगिया और राघव का यह उपन्यास काफी रोचक और मनोरंजक है। कहानी पाठक को बांधती है । उपन्यास विस्तृत है तो इसे दो भागों में प्रकाशित किया गया है। द्वितीय भाग का नाम 'खूंखार' है ।

  शेष हम खूंखार में पढेंगे।

  • क्या इन्सपेक्टर शिन्दे बलराज गोगिया को गिरफ्तार कर पाया?
  • क्या बलराज गोगिया सतपाल डोंगिया की कैद से आजाद हो पाया?
  • क्या बलराज गोगिया सतपाल डांगिया को खत्म कर पाया?
  • क्या वह शिवनाथ को आजाद करा पाया?
  • पच्चीस करोड़ की उस हिरोइन का क्या हुआ जो कि पुलिस के कब्जे में थी। क्या बलराज गोगिया उसे उड़ाने में सफल हो पाया?
  • राघव का क्या हुआ?
  • क्या वह कैलाशनाथ ढींगड़ा की कैद से आजाद हो पाया या ढींगड़ा ने उसे ऊपर की दुनिया में पहुंचा दिया?
  • क्या कैलाश नाथ ढींगड़ा अपनी शैतानी चाल में सफल हो पाया?
  •  अजगर सिंह, रेशम सिंह, किशोर सेठी और केसर का क्या हुआ? 
  • क्या विक्टर बनर्जी उनके पासपोर्ट बनाने में कामयाब हुआ ?
  • क्या बलराज गोगिया और राघव हिन्दुस्तान की सरहदों को पार करने में कामयाब हो पाये ?
  • विक्की का क्या हुआ?

ऐसे ही और कई पश्न पाठकों के दिमाग में कौंध रहे होंगे।

लेकिन पाठक स्वयं देख रहे हैं कि इतने वृहद कथानक को एक ही पार्ट में समेटना न केवल पाठकों के बल्कि बलराज गोगिया के प्रति भी नाइंसाफी होगी।

इसलिए पाठक बंधुओं आपको ज्यादा नहीं बस थोड़ा-सा इंतजार करना पड़ेगा और इन तमाम प्रश्नों के उत्तर अनिल सलूजा के आगामी उपन्यास 'खूखार' में प्राप्त हो जायेंगे।

धन्यवाद ।

उपन्यास- बारूद की आंधी
लेखक-   अनिल सलूजा
प्रकाशक- धीरज पॉकेट बुक्स
पृष्ठ-         237

बलराज गोगिया- राघव सीरीज
बलराज गोगिया का प्रथम उपन्यास- फंदा
द्वितीय उपन्यास- मर्द का बच्चा
तृतीय उपन्यास-  बारूद की आंधी
चतुर्थ उपन्यास-  खूंखार

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