Saturday, 25 January 2025

चमकदार गुफा- अरूप कुमार दत्त

नमक की तलाश में साहसी बालक
चमकदार गुफा- अरूप कुमार दत्त

चलो आज चलते हैं अरुणाचल प्रदेश के नोक्ते नामक कबीले के दो साहसी बच्चों के साथ एक रोचक और साहसी यात्रा पर...

   "लो...चखो," दादी मां कैमलांग ने कहा।
चूल्हे पर उफनती हुई कड़ाही से उसने एक करछुल भर शोरबा निकाला। बड़ी अच्छी महक उठ रही थी। घेन्याक और छंगुन के मुंह में पानी आ आया। वे तो इसी इंतजार में बठ थे। दादी मां कैमलांग ने बांस की करछुल में फूंक मारकर शोरबे को ठंडा किया। फिर उसने थोड़ा-थोड़ा करके दोनों के खुले हुए ललचाए मुंह में डाल दिया।
"धू !" थेन्याक ने मुंह बिचकाया, "बड़ा गंदा स्वाद है।"
छंगुन कुछ न बोली। लेकिन उसके भी हाव-भाव बता रहे थे कि उसे वह अच्छा नहीं लगा।
"अच्छा नहीं लगा न ?" दादी कैमलांग पोपले मुंह से हंसकर बोली, "लेकिन अब देखना ।" उसने लकड़ी की नमकदानी में से करछुल से थोड़ा-सा नमक लेकर शोरबे में डाल दिया। फिर उसे हिलाते हुए वह नोक्ते गीत गाने लगी। साथ ही रहस्यमय ढंग से मुस्करा भी रही थी।
दादी कैमलांग की यही सब बातें तो मजेदार लगती थीं। वह छोटी से छोटी चीज को भी कितना जानदार और दिलचस्प बना देती थी !
गांव में उससे अधिक बूढ़ा और कोई न था-वह लोवांग यानी अपने नोक्ते कबीले के मुखिया से भी अधिक बूढ़ी थी। उसकी स्लेट-सी काली देह, पतझड़ की किसी मुड़ी हुई पत्ती की तरह झुर्रियों से भरी हुई थी। उसके बाल चूने की तरह सफेद थे। उसकी आंखें छोटी और उजली थीं और किसी चिड़िया की आंखों सी चमक थी ।
(प्रथम पृष्ठ)
  यह कहानी है दो छोटे बच्चों की जो नमक की खोज में एक साहसी यात्रा करते हैं। थेन्याक और छंगुन नोक्ते आदिवासी कबीले के थे। यह अरुणाचल जैसे सुंदर प्रदेश में कई जनजातियों में से ही एक जनजाति है। नोक्ते लोग तिरप जिले के हैं। यह पहाड़ों और नदियों वाला इलाका है।
नमक हमारे खाने को मजेदार बनाता है और इस नमक के बिना स्वाद अधूरा है।
दादी कैमलांग और अन्य जगहों से प्राप्त जानकारी से भाई बहन थेन्याक और छंगुन को यह पता चलता है पहले उनके गांव के पास नमक का झरना था और अब वह बंद हो गया । और उसी नमक से जहां भोजन का स्वाद बढता था वहीं वह व्यापार का साधन भी था । कबीले के लोग नमक बेचकर अपना जीवन यापन करते थे ।
"हमारे पास खूब नमक होता होगा।” थेन्याक ने कहा।
"हां, बहुत ज्यादा। गांव को जितने की जरूरत होती थी उससे कहीं ज्यादा। हमारे आदमी उन्हें बांस के पीपों में भर लेते थे और हर जाड़ों में उन्हें मैदानी इलाकों में ले जाते थे। वे नमक के बदले कपड़े, कौड़ियां और जरूरत की दूसरी चीजें ले आते थे।"

  लेकिन समय के साथ नमक का झरना बंद हो गया और लोग अब बिना नमक के थे, उनका व्यापार बंद हो गया था ।
"हमारा गांव अब इस मामले में गरीब है। हमने एक बहुमूल्य धरोहर खो दी है। हम आत्मनिर्भर नहीं रह गए हैं। नमक का भंडार होना तो दूर की बात है, अब तो हमारे नौजवानों को नमक खरीदने के लिए भी शहर तक चलकर जाना पड़ता है।"
आखिर क्या कारण रहा था कि नमक का झरना बंद हो गया ? यह स्वाभाविक सा प्रश्न बच्चों के दिमाग में आना भी था और आया भी था । तभी तो थेन्यांक ने पूछा।
"पर वह सूख क्यों गया ?"
  दोनों बहन भाई ने संकल्प लिया की वह नमक के झरने को खोजेंगे। खैर, झरना जहां था आज भी वहीं था पर अब वह झरता नहीं था, बंद था।  और झरना बंद क्यों था ? इसके पीछे क्या कारण था ? और जो झरना बंद हो सकता है वह फिर से चल भी सकता है। बस यही सोच कर छंगुन ने तय किया की वह वह झरने के बंद होने ने कारण को खोजेगा । जबकि थेन्याक नहीं चाहती थी वह जंगल में जाये । लेकिन छंगुन‌ चाहता था वह झरने के बंद होने का कारण खोजे और लोग उसे साहसी वीर माने ।
"अगर हम नमक के झरने को वापस ला सके तो हमें सब साहसी वीर मान लेंगे... उसी तरह के साहसी वीर जैसे पहले हुआ करते थे।"(पृष्ठ)
छंगुन और थेन्याक का बड़ा भाई यांगसेन 'मोरंग' में रहता था । नोक्ते समाज में यह प्रथा है कि जैसे ही लड़के नौजवान हो जाते हैं, उन्हें अपने माता-पिता का घर छोड़कर मोरंग में रहना ही पड़ता है।
लेकिन दोनों बहन भाई को अपने बड़े भाई से भी झरना बंद होने की कोई ठोस वजह न पता चली । जब चारों तरफ से झरना बंद होने की कोई तार्किक बात पता न चली तो...
"बस हो गया पक्का," उसने पूरे बल से कहा, "मैं कल पहाड़ पर जाऊंगा। छंगुन, तुम मेरे साथ चलोगी या नहीं ?"
"हां," उसकी बहन छंगुन बोली, "चलूंगी।"

और अपने प्रण को सत्य साबित करने के लिए-
दूसरे दिन, नाश्ता करने के बाद सुबह-सुबह ही थेन्याक और छंगुन अपनी खोज में निकल पड़े। गांव से उन्हें चुपचाप निकलने में कोई कठिनाई नहीं हुई। सबसे महत्वपूर्ण नोक्ते उत्सव लोकू में तीन दिन ही बाकी थे। गांव के लोग उसकी तैयारियों में इतना ज्यादा जुटे हुए थे कि थेन्याक और छंगुन की ओर किसी का ध्यान ही नहीं गया।
  दोनों बहन भाई बिना किसी को बताये घने जंगल में झरने के बंद होने के कारण को खोजने निकल पडे़ । इस पुस्तक यह सबसे रोचक अंश है । जहां जंगल है और खतरनाक जंगली जानवर भी और उनके मध्य है दो किशोर । दोनों कैसे मुसीबतों का सामना करते हैं, कैसे स्वयं को बचाते हैं और कैसे अपनी खोज को पूर्ण करते हैं। यह अत्यंत रोचक और दिलचस्प है।
  कहानी पढते -पढते दोनों बच्चों के साथ पाठक का तारतम्य हो जाता है और वह भी बच्चों के साथ साहसी खोज पर निकल पड़ता है। बच्चों को खतरों से घिरा देखकर पाठक भी सिहर उठता है ।
   कहानी न सिर्फ नमक की खोज और बच्चों के साहस का वर्णन करती है बल्कि कबीले विशेष की सभ्यता और संस्कृति का भी अच्छा ज्ञान देती है।
यह अनुदित रचना है पर किस भाषा से है यह कहीं वर्णित नहीं है।
पुस्तक- चमकदार गुफा
लेखक-अरूप कुमार दत्त
चित्रांकन- पुलक विश्वास
प्रकाशक- नेशनल बुक ट्रस्ट- दिल्ली
ISBN- 978-81-237-2096-8

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