कैसर हयात निखट्टू का कारनामा
मौत के साये में- आरिफ मारहर्वी
सर सिन्हा की आँखों में सहसा मौत नाचने लगी ।
आगे टेढ़ी-मेढ़ी और ढलवान सड़क थी। लगभग बारह मील तक तो सड़क की दाईं ओर ऊंची पहाड़ी चट्टानें और बाईं ओर खाईयाँ ही थीं। वैसे भाव नगर की सड़क पर अच्छा-खासा ट्रैफिक रहता था । राजकीय परिवहन की बसें चलती थीं प्राईवेट कारें और टैक्सियाँ भी गुजरती थीं, ट्रक भी आते जाते थे ।
सर सिन्हा ने अपनी समस्त शक्ति ब्रेकों पर लगा दी किंतु बेकार, कार की गति किसी तरह भी साठ और सत्तर मील प्रति घंटे से कम न हो सकी, इसके विपरीत कार की गति में बढ़ोतरी होती गई । सर सिन्हा की पूरी देह पसीने से तर हो गई और दिल की धड़कनें कनपटियों पर धमक पैदा करने लगीं। उनका मानसिक संतुलन अभी बिगड़ा न था अन्यथा पहला मोड़ काटते समय ही गाड़ी सीधी गार में चली जाती ।(मौत के साये में - आरिफ मारहर्वी, उपन्यास का प्रथम पृष्ठ)
आज हम बात कर रहे हैं आरिफ मारहर्वी साहब के उपन्यास 'मौत के साये' की जो अक्टूबर 1971 में 'जासूसी पंजा' पत्रिका में प्रकाशित हुआ था । यह C.I.D. ऑफिसर कैसर हयात निखट्टू का उपन्यास है, जो एक केस को हल करता है और उसके साथ देते हैं उसके साथी राना और सोजी ।