Sunday, 12 November 2023

टापू का शैतान - चंदर (आनंदप्रकाश जैन)

कहानी रहस्यमयी टापू की
टापू का शैतान - चंदर (आनंदप्रकाश जैन)

हिंदी जासूसी कथा साहित्य के प्रसिद्ध लेखक 'चंदर'(आनंद प्रकाश जैन) ने भोलाशंकर शृंखला के काफी उपन्यास लिखे हैं। और नवम्बर माह (2023) में मैं सतत् चंदर के उपन्यास पढ रहा हूँ। इनमें से कुछ रोचक, कुछ मध्यम और कुछ औसत उपन्यास पढने को मिले हैं।
   चंदर द्वारा लिखित 'टापू के शैतान' तात्कालिक समय में लिखे जा रहे उपन्यासों की शृंखला का ही एक उपन्यास है।  इस विषय पर आगे चर्चा करते हैं।
अत्यंत गोपनीय जासूसी संस्था के चीफ पण्डित गोपालशंकर और उ‌नके जासूस पुत्र भोलाशंकर शृंखला के इस प्रस्तुत उपन्यास की बात करते हैं।

स्वीप संस्था के चीफ पंडित गोपाल शंकर कमरे में बेचैनी टहल रहे थे । उनकी उंगलियों में सिगार दबा था, जो न जाने कब का बुझ चुका था। ललाट की रेखायें तनी हुई थी और चेहरा गम्भीर था ।
भोला शंकर ने पर्दा उठाकर कमरे में प्रवेश किया ।
गोपाल शंकर रुककर पलटे !
जब उसने उनके पैर छुये तो मुस्करा कर पंडित जी ने आशिर्वाद दिया । तत्पश्चात उसे बैठने का संकेत करके स्वय भी बैठ गये ।
     अपना बुझा हुआ सिगार सुलगा कर उन्होंने गहरा कश खींचा और उसका नीला धुवा भोलाशंकर के चेहरे की ओर छोड़ते हुए बोले- 'बहुत आराम कर लिया बरखुदार।'
'जी हां कुछ बोरियत भी महसूस करने लगा था ।'
'अब तुम्हारी बोरियत भी समाप्त हो जायेगी, साथ हो कुछ काम भी कर लोगे ।'
'हुक्म कीजिये ।'
'नम्बर वन तुम्हें एक केस साँप रहा हूं ।'
'केस बताइये ।'
'बता रहा हूं।' सिगार का गहरा कश खींच कर उन्होंने कहा-'अंडमान निकोवर द्वीप समूह के दक्षिण पश्चिम में एक गु'जान टापू है । इसका क्षेत्रफल पच्चीस वर्ग मील के लगभग होगा । यह टापू अभी तक इसलिये आबाद नहीं किया गया क्योंकि वहां घना जंगल फैला हुआ है। उस जंगल में बहुत से जंगली जानवर रहते हैं। एक प्रकार से उन्हीं का एक मात्र अधिकार उस टापू पर हैं ।
ग्रह मन्त्रालय से सूचना मिली है कि उक्त टापू पर कुछ  अप्रिय घटनाये जन्म ले रही हैं। कहा नहीं जा सकता कि वह किसका कार्य है।
इस टापू पर अक्सर शिकारी दल जाते रहते हैं । कुछ दिन पूर्व जब एक शिप उस ओर से गुजर रहा था तो उसके नाविकों ने टापू के किनारे के वृक्षों पर कुछ नंगी लाशें लटकी हुई देखी । बाद में खोजबीन की गई तो पता चला कि उन्हें रस्सी के सहारे फांसी दी गई थी। लाशें नंगी थी। एक भी वस्त्र शरीर पर नहीं था । खोजबीन से पता चला कि वे शिकारी थे जिनमें  से पाँच की लाशें वहां पाई गई। इस घटना ने हलचल मचाई  तो अवश्य परन्तु अधिक नहीं, ग्रह मन्त्रालय को तब सोचना पड़ा जब एक छोटा शिप उसी टापू के पास डूब गया । उसमें  कुछ खोजी थे जो टापू की घटनाओं की छानबीन करने जा रहे थे।

    कहते हैं आरम्भ में यहाँ एक वैज्ञानिक गये थे जिनके विषय में कुछ भी पता नहीं चला।  उस टापू कर किनारे लंगी लाशें लटकती पायी गयी। उस टापू कर किनारे जहाज डूब गया।
  आखिर उस टापू में ऐसा क्या रहस्यमयी था। और उस रहस्य को खोजने के लिए स्वीप का जासूस नम्बर वन भोलाशंकर को उस टापू पर जाना पड़ा। जहाँ पग-पग पर मौत विराजमान थी।

तूफान नम्बर वन...
स्वीप संस्था का सबसे खतरनाक एजेन्ट...
द्दर फन का माहिर एक जीनियस इंसान।

         भोलाशंकर  इस अभियान पर एक साथी 'लोफर' के साथ रवाना होता है। 'लोफर' स्वीप का सदस्य न होकर एक बदमाश व्यक्ति था, जो भोलाशंकर को गुरु मानता है। दोनों जब इस अभियान पर रवाना होते हैं तभी उनके साथ कुछ खतरनाक घटनाएं घटित होने लगती हैं।
       जैसे - उनके कमरों में, उ‌नके बिस्तरों पर काले सांप का आना।
       कुछ खतरनाक शिकारी लोगों का एक दल बनाकर भोलाशंकर उस रहस्यमयी टापू पर जा पहुंचता है। लेकिन एक खतरनाक जंग के चलते भोलाशंकर अकेला रह जाता है।
वहीं स्वीप भी भोलाशंकर की मदद के किए अपने दो और जासूस नम्बर दो फिरोज और जासूस नम्बर तीन....को भेजा जाता है।
  अब उस रहस्यमयी टापू पर तीन जासूस हैं और एक है वहां के अज्ञात अपराधी। अब भोलाशंकर को यह समझना है की यहां यह अपराधी एकत्र क्यों हुये हैं और आखिर यह है कौन?
  इस समझ के साथ वह आगे कदम बढाता है और दुश्मनों के जाल में जा फंसता है, जहां पहले से ही तूफान नम्बर दो फिरोज कैद में है।
  आखिर में, आखिरी संघर्ष में अपराधियों (लाल नकाबपोश) के साथ एक जबरदस्त गोलाबारी के पश्चात जासूस वर्ग विजयी होता है।
  उपन्यास का कथानक सामान्य ही है। जासूस वर्ग द्वारा अपराधियों को खोजना और उन्हे समाप्त करना। वहीं भोलाशंकर द्वारा उस टापू पर शिकारियों के साथ अपराधियों को खोजना मुझे रोचक लगा‌। जंगल के दृश्य, जानवरों के आक्रमण, अपराधियों से टक्कर इत्यादि घटनाक्रम रोचक हैं।
  उपन्यास का सबसे कमजोर पक्ष उसका समापन ही है जिसे बहुत जल्दी में समाप्त किया गया है। वहीं कुछ रहस्य तो अधूरे ही रह जाते हैं और उनके लिए लेखक ने एक पंक्ति से काम चला लिया।
उपन्यास की वह पंक्ति देखें-
कुछ रहस्य बाकी थे जिन्हें फुर्सत में सुलझाया जा सकता था।
     फुर्सत में लेखक, कथानायक या फिर पाठक, कौन सुलझायेगा?
       उपन्यास में खलपात्र बिलकुल अंत में आता है‌ और उसे भी एक दो-चार पंक्तियों में समेट दिया गया है। कम से कम खलपात्र की भूमिका का विस्तार करना था।
लोफर एक अच्छा पात्र था, वह भी अंत में उपन्यास में स्थान न पा सका।
प्रस्तुत उपन्यास में तूफान नम्बर 02 फिरोज जिसे ब्रह्मचारी भी कहा गया है हालांकि कुछ उपन्यासों में सुंदर सिंह को ब्रह्मचारी कहा गया है।

फिरोज की भूमिका ठीक है और विशेषकर जब वह खलपात्र के जाल‌ में होता है, तब उसका साहस देखने योग्य है।
खल पात्र के साथ फिरोज का एक रोचक संवाद, उसकी हाजिरजवाबी देखें-

"बहुत खूब,  शेर की मांद में फंसने के बाद भी तुम चहक रहे हो ।"
"शेर की माँद में सवा सेर भी तो या सकता है, यह बात क्यों भूलते हो।"

  तूफान नम्बर एक भोलाशंकर स्वीप के श्रेष्ठ जासूस हैं। वह समय और परिस्थितियों के अनुसार स्वयं को बदल लेते हैं, यह एक अच्छे जासूस की पहचान है।
पंडित पुत्र होने पर भी वह किसी चीज से अछूता नहीं बचा था, हर शौक पूरा करता था । उसका कहना था कि दुनिया में जो चीज पैदा होती है और जिसका इस्तेमाल किया जा सकता है वह बुरी नहीं है । समयानुसार किसी भी वस्तु का इस्तेमाल किया जा सकता है ।
भुने हुए गोश्त का शौकीन वह भी था।

अब उपन्यास के प्रथम पृष्ठ का अवलोकन कर लीजिए-
वह इस तरह भाग रहा था मानों उसके पीछे सैकड़ों प्रेत पड़े हों। इस समय उसकी हालत बड़ी दयनीय थी। वस्त्र फट कर तार-तार हो चुके थे। जो उसके शरीर पर चीथड़ों के रूप में झूल रहे थे। पसीने में वह बुरी तरह भीग चुका था। उसकी आंखों में भय समाया हुआ था। बीच-बीच में वह पलट कर पीछे देखता फिर सामने देखता हुआ दौड़ता। इसी चक्कर में कई बार वह ठोकर खाकर गिर चुका था ।
घने जंगल का क्रम लगभग समाप्त हो चुका था ।
     अब घनेरी झाड़ियां यत्र-तत्र फैली हुई थीं। जब कभी कोई जंगली जानवर उसके सामने से गुजरता तो उसके जेहन में सिहरन सी दौड़ उठती थी। पल भर वह ठिठकता फिर दौड़ लगा लेता, परन्तु अब उसमें इतनी शक्ति नहीं रही थी कि वह दौड़ पाता । अब वह हांफता सा लड़खड़ाती चाल से बढ़ रहा था ।
         आगे चल कर वह एक पथरीली चट्टान पर बैठ गया।अपनी उखड़ी सांसों को काबू में करता हुआ वह आस-पास का निरीक्षण करने लगा। उसने अपने सूखे अधरों पर जुबान फिराई, सहसा उसे भूख और प्यास दोनों का अहसास हुआ ।
      उसे ठीक से अन्दाजा नहीं था कि वह कब से भाग रहा है। उसे तो इतना ही याद था कि वह अपनी जान बचा कर भाग निकला था । उसके बाकी सभी साथी शायद मर चुके थे । वह अकेला ही बच कर भाग पाया था ।

          चंदर द्वारा लिखित टापू का शैतान एक मध्यम स्तर का उपन्यास है। यह एक खोजी या साहसिक यात्रा उपन्यास कहा जा सकता है। जहाँ कथा नायक एक रहस्यमयी टापू पर कुछ रहस्य खोजने जाता है।
उपन्यास अंत में अत्यंत कमजोर साबित होता है।

उपन्यास-  टापू का शैतान
लेखक-     चंदर
प्रकाशक-   अजय प्रकाशन, मेरठ
पृष्ठ-          128

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