पण्डित भोलाशंकर की चन्द्र यात्रा
चाँद की मल्का- चंदर
वर्तमान उपन्यास साहित्य में जहां मर्डर मिस्ट्री का समय है, वहीं इस क्षेत्र में एक समय ऐसा भी था जहां लेखक पाठकों को काल्पनिक दुनिया की यात्रा करवाते थे। ऐसा ही एक उपन्यास प्रसिद्ध लेखक चंदर का 'चाँद की मल्का' है, जो पाठकों को चांद पर रहने वाले लोगों से मिलाता है।
भारतीय लोगों का विश्वास है की चंद्रमा पर एक बुढिया बैठी चरखा कातती है। और गुप्त भारतीय जासूस संस्था 'स्वीप' का प्रसिद्ध जासूस पण्डित भोलाशंकर जब उस बुढिया से मिला तो....
हिंदी जासूसी साहित्य में चंदर का एक विशेष नाम रहा है। चंदर के उपन्यासों में गोपालशंकर नामक गुप्तचर है। प्रस्तुत उपन्यास इन्हीं गोपालशंकर की चन्द्र यात्रा की कहानी है।
पृथ्वी से दो लाख अड़तीस हजार मील दूर हमारा रहस्यपूर्ण पड़ोसी चांद है | चांद को देखक हमारे क्षेत्र शीतल हो जाते हैं। हमारे बच्चे चांद को मामा कहते हैं। चांद पृथ्वी का मित्र है, उसका अभिन्न सखा है । चाद के प्रकाश के लिए प्रेमियों के हृदय बेचैन रहते हैं और जब उन्हें चांदनी में एक बार एक दूसरे से मिल पाने का सौभाग्य मिल जाता है, तो वे हृदय और भी बेचैन हो जाते हैं। ऐसा इस चांद में क्या है ? मां बच्चों को चांद की ओर संकेत करके कहती है- देखो, चांद में एक बुढ़िया बैठी चरखा कात रही है। लाखों बरसों से यह बुढ़िया काततो जा रही है—न सूत खत्म होता है, न कातना रुकता है, न बुढ़िया मरती है । कैसी रहस्यपूर्ण है यह बुढ़िया।
इस बुढ़िया से भेंट करने के लिये पण्डित गोपालशंकर का राकिट तेजी के साथ चांद के निकटतर आता जा रहा है । (उपन्यास अंश)
पण्डित गोपालशंकर के साथ उसके सौ वैज्ञानिक पुतले भी हैं, जिन्हें गोपालशंकर अपने मस्तिष्क से कंट्रोल करते हैं।चांद की धरा पर उनकी पहली मुलाकात रोमा नामक एक औरत से होती है और जिसका पीछा करते हुये वह जा पहुंचते हैं चांद के एक रहस्यमयी इन्द्र राज्य में, जहां चांद की मलिका वह बुढिया अपनी प्रजा इन्द्राणियों के साथ रहती है और चरखा कातती है।
चांद की इन्द्राणियों के लिए स्पेश सूट वाला यह मनुष्य भी अचरज था। और फिर वैज्ञानिक पण्डित गोपालशंकर को दुश्मन राज्य (चन्द्र राज्य) का व्यक्ति मान कर गिरफ्तार कर लिया गया।
लेकिन गोपालशंकर को गिरफ्तार रखना आसान काम न था, क्योंकि गोपालशंकर के साथ उनके सौ परमाणु पुलते भी थे। (इन अद्भुत पुतलों की बात आगे करते हैं)
यहाँ अभी चांद की मल्का का गोपालशंकर के प्रति संदेह खत्म भी न हुआ था कि इन्द्र राज्य पर चंदेरों नर हमला कर दिया। चंदेरों का उद्देश्य इन्द्राणियों को अपने राज्य में ले जाना था, उनके साथ शारीरिक संबंध बनाना था।
पंडित गोपालशंकर लोमा के बयान से केवल इतना समझ पाये कि यह चांद भी संघर्षो दुःखों और वेदनाओं की कीड़ा भूमि है । यहां भी शत्रु और मित्र रहते हैं । यहाँ भी हिंसा और विनाश उसी प्रकार चलता है जैसा आए दिन पृथ्वी पर होता रहता है । यह भी वह समझ गये कि बुलबुलों के इस चमन में केवल बुलबुलें रहती हैं और ये बुलबुलें विपरीत सेक्स के प्राणियों से उतना ही डरती हैं जितना कोई भी प्राणी दुःखद मृत्यु से डरता है । इस डरने का एक स्पष्ट कारण है कि एक ही बार वासना की शिकार होने पर ये नारियां मोम की तरह गलनी आरम्भ हो जाती हैं और रात ही रात में आधी गलकर खत्म हो जाती हैं।
यहाँ एक तरफ नर चंदेरे थे तो दूसरी तरफ मादा इन्दराणियां लेकिन दोनों में परस्पर संघर्ष था। दोनों के मिलन के बिना संतान उत्पत्ति संभव नहीं थी और अगर कहीं दोनों में संबंध स्थापित हो गये तो इन्द्राणियां गल-गल कर मरती थी, उनकी मृत्यु अत्यंत पीड़ा दायक थी।चंदेरों और इन्द्राणियों के इस संघर्ष में पण्डित गोपालशंकर भी चंदेरों की पकड़ में आ जाता है। हजार इन्द्राणियों और गोपालशंकर को पकड़ कर चंदेरे अपने राज्य में ले जाते हैं। जहाँ खतरनाक मकड़ा का शासन है।
यहाँ कीटक, लाघा और कामड़ा जैसे खतरनाक योद्धा हैं। कीटक तो विषमानव है। और लाघा का कैदखाना तो और भी खतरनाक है, जहाँ खतरनाक खेंचू प्राणी जेल के रक्षक हैं। पहाड़ियों की दरारों, गुफाओं के नीचे बसे इस कैदखाने से निकलना असंभव है।
उपन्यास के अंतिम संघर्ष में चंदेरों और गोपालशंकर के सामने एक आश्चर्य तब घटित होता है जब चांद की जमीन पर एक और रॉकेट आता है।
गोपालशंकर भी हैरान थे कि चांद पर कौन आया है। वहीं चंदेरों के लिए यह रॉकेट अद्भुत वस्तु थे।
आगे क्या हुआ? यह उस श्रृंखला का द्वितीय उपन्यास 'मकड़ा सम्राट' पढकर जाना जा सकता है। और 'मकड़ा सम्राट' के आगे के भाग का नाम 'पांच पुतले' है।
हिंदी जासूसी साहित्य में चांद, मंगल और अंतरिक्ष को आधार बना कर बहुत से उपन्यास लिखे गये हैं।
जैसे वेदप्रकाश शर्मा जी के 'मंगल सम्राट विकास', परशुराम शर्मा जी का 'चाँद पर हंगामा', खान-बाले सीरीज का 'सालाजार सैक्टर', ओमप्रकाश शर्मा का 'विक्रांत मंगलग्रह में'।
पर ज्यादातर कथानक अंतरिक्ष और पृथ्वी को एक जैसा ही वर्णित करते हैं। लेकिन प्रस्तुत उपन्यास में चांद पर एक अलग दुनिया निवास करती है। वहाँ हवा नहीं है, पानी नहीं और तो और वहाँ खाने को भोजन नहीं है, संतान उत्पत्ति के तरीके अलग हैं। यह सब इस उपन्यास को अन्य उपन्यास से अलग करता है।
एक दृश्य देखें-
'हमें हमारी रानी मातायें उत्पन्न करती हैं ।' लोमा ने उत्तर दिया, 'उनका काम ही केवल सन्तान उत्पन्न करना है । उनसे और कोई काम नहीं लिया जाता और इन्दर राज्य में उन्हें सबसे अधिक सुखी रहने का सौभाग्य प्राप्त है ।'
'और आप लोगों के पिता कहां ये आते हैं ?' पन्डित गोपालशंकर ने बहुत गम्भीर भाव से पूछा ।
'पिता से आपका क्या मतलब है ?' लोमा ने मुस्करा कर पूछा।
पन्डित गोपालशंकर बड़े असमन्जस में पड़े । यहां की तो बातें ही सारी की सारी विचित्र थीं।
यहाँ बातचीत भी मानसिक तरंगों से होती है। भोजन मांगने पर वह लोग गोपालशंकर की बात को नहीं समझते।
उपन्यास में बहुत से वैज्ञानिक तथ्यों का वर्णन है जिसमें से कुछ तर्कसंगत हैं और कुछ तर्कसंगत नहीं हैं और कुछ बातें शायद उपन्यास लेखन के समय संभव न रही होंगी, वह लेखक की कल्पना रही होगी लेकिन आज (सन् 2023) में वह सब संभव है। लेखन की कल्पना को प्रणाम।
पण्डित गोपालशंकर अपने साथ सौ परमाणु शक्ति संपन्न पुतलों को लेकर जाते हैं। यह प्रयोग रोचक है,शायद कभी संभव हो जाये। यह पुतले परमाणुओं में विभक्त हो जाते हैं, और समय आने पर गोपालशंकर की प्रतिरूप भी बन जाते हैं। मुसीबत में यहीं पुतले पण्डित गोपालशंकर की मदद करते हैं। इन्द्र राज्य में 95 पुतले गोपालशंकर की मदद को आते हैं और पांच पुतले (तृतीय उपन्यास का यही नाम है) रॉकेट में रहकर कार्य करते हैं।
चांद की जमीन पर दो राज्य हैं एक नर चंदेरों का चन्द्र राज्य, जिसका शासक मकड़ा है। (हालांकि प्रस्तुत उपन्यास में मकड़ा के नाम की दहशत है पर स्वयं उपस्थित नहीं)
द्वितीय राज्य मादा इन्द्राणियों का इन्द्र राज्य है। यहाँ की शासक 'चांद की मल्का' नाम से जानी जाती है। यहीं चांद की मल्का चांद पर चरखा कातती है।
अब अगर कोई कहे की चांद की बुढिया एक कल्पना मात्र है तो उन्हें यह उपन्यास पढना चाहिए।
एक नर राज्य और एक मादा राज्य पर दोनों के मध्य अत्यंत संघर्ष चलता है। चंदेरों की प्रवृत्ति हमलावर की है और वह इन्द्र राज्य से इन्द्राणियों को उठाकर ले जाये हैं। चंदेरों में सोचने-समझने की शक्ति नहीं । स्वयं शासक मकड़ा में भी नहीं । वहाँ सोचने का कार्य वहाँ का न्यायाधीश नेमक ही करता है। चंदेरों का एक ही उद्देश्य है इन्द्राणियों को पकड़ कर अपने राज्य में ले जाना है। मकड़ा के एक आदेश पर वह यह सब करते हैं, हालांकि लाखों की संख्या में रहने वाले चंदेरों को इन्द्राणियों प्राप्त नहीं होती, लेकिन फिर भी वह खतरनाक हमलावर बनते हैं।
वहीं इन्द्राणियां भी इनको अपना प्रबल शत्रु मानती हैं। वह भी इनको खत्म करने से चूकती नहीं । इनका युद्ध बहुत खतरनाक होता है। हवा में उछलकर एक दूसरे पर वार करते हैं। निर्वात में उछलते हुये युद्ध करते हैं और उछलते हुये ही चलते हैं।
इन दोनों के मध्य है भारतीय वैज्ञानिक और स्वीप नामक संस्था का जासूस पण्डित गोपालशंकर। जो कभी इन्द्र राज्य में गिरफ्तार होता है तो कभी चन्द्र राज्य के लोग उसे पकड़ कर ले जाते हैं।
उपन्यास का भाषा पक्ष
जैसे- राकिट, मल्का इत्यादि
उपन्यास का कमजोर पक्ष-
- मुझे उपन्यास में कोई विशेष ऐसा बिंदु नजर नहीं आया जो कथा को कमजोर करे।
- चन्द्रराज्य के स्वामी का नाम मकड़ा है। पर वह कहीं नजर नहीं आया। चन्द्रराज्य के एक के बाद एक शक्तिशाली सदस्य समाने आते जाते हैं। तब कहीं-कहीं ऐसा प्रतीत होता है कहीं मैंने 'मकड़ा' नाम गलततो नही पढ लिया। पर समापन से पूर्व एक बार फिर मकड़ा नाम सामने आता है तो लगता है हम सही हैं।
- उपन्यास में गैस सिलेंडर में गैस ठूंस-ठूंस कर भरने का वर्णन है, गैस तो सिलेंडर में तय मात्रा में ही भरी जा सकती है। ठूंस-ठूंस कर भरना तर्कसंगत नहीं।
उपन्यास पात्र-
गोपालशंकर- कथा नायक
चंद्र राज्य के पात्र
चांद की मल्का- इन्द्र राज्य की शासिका
रोमा- एक इन्द्राणी
चन्द्रानी- चांद की मल्का की बेटी
लोमा- इन्द्र राज्य की शक्तिशाली इन्द्राणी
इन्द्र राज्य के पात्र
मकड़ा- खतरनाक चन्द्रराज्य का स्वामी
कामड़ा- एक खतरनाक चंदेरा
थोरक- चंदेरों का सेनापति
कीटक- चन्द्रराज्य का मंत्री
नेमक- चन्देरों का न्यायधीश
लाघा- चंदेरों का जेलर
चंदर द्वारा लिखित 'चांद की मल्का' पण्डित गोपालशंकर की चन्द्र यत्रा और वहाँ दो राज्यों के मध्य संघर्ष की रोचक कहानी है।।उझे यह उपन्यास बहुत ही रोचक लगा। पठनीय और मनोरंजन से परिपूर्ण रचना है।
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