Saturday 11 November 2023

कोहरे में भोलाशंकर- चंदर

स्वीप के गुप्तचर का कारनामा
भोलाशंकर कोहरे में - चंदर

उसके मस्तिष्क में जैसे जबरदस्त शाॅट लगा हो। एक के बाद एक कई दृश्य उसके मस्तिष्क में उभरने लगे। उसके एक हाथ में रिसीवर था जो उसके कान से सटा हुआ था ।
उसकी आँखों के सामने एक चेहरा मंडराने लगा।
एक खूबसूरत चेहरा-
यह चेहरा शीरी के अलावा किसी का नहीं था ।
शीरी - एक खूबसूरत युवती जिसकी मुलाकात लगभग एक सप्ताह पहले हुई थी और तभी से वह उसके साथ ही रहता था ।
लेकिन टेलीफोन पर कहे जाने वाले शब्दों पर उसे विश्वास नहीं हो रहा था। अभी वह कुछ सोच ही रहा था कि चौंक पड़ा ।
'खामोश क्यो हो गये बरखुर्दार ?' उसके कानों से भारी आवाज टकराई। यह आवाज और किसी की नहीं वरन् उसके चीफ पंडित गोपालशंकर की थी।
         अभी वह कुछ कह भी नहीं पाया था कि कानों से फिर वहीं स्वर टकराया-  'तुम्हें उसी शीरी का पीछा करना है जिसके बारे में तुम सोच रहे हो और यह तो तुम जानते हो कि इस समय में तुम वह कहां ठहरी हुई है ।'
'जी हां वह तो जानता हूँ लेकिन।'
उसकी बात काटकर पंडित गोपालशंकर बोले लेकिन वेकिन नहीं चलेगा। तुम्हे ठीक ग्यारह बजे होटल पहुंच जाना है। उसी समय शीरी नाम की वह युवती बाहर निकलेगी तुम्हें बड़ी सतर्कता से उसका अनुसरण करना है।'
     उसके चीफ उसे उसी युवती का अनुसरण करने को कह रहे थे जो उससे खुद सहायता मांग रही थी । उसकी समझ में नहीं था रहा था कि वह क्या करे। वैसे उसके चीफ की कही बात पत्थर की लकीर थी। उसने आज तक अपने चीफ के आदेश का उल्लंघन नहीं किया था।
(कोहरे में भोलाशंकर )
अत्यंत गुप्त भारतीय सीक्रेट सर्विस 'स्वीप' के चीफ का नाम गोपालशंकर हैं। और उनका पुत्र भोलाशंकर इस संस्था का श्रेष्ठ जासूस है।
भोलाशंकर के पास शीरी नामक एक स्त्री मदद मांगने आती है और वह स्वयं को लंगूरगढ रियासत की बताती है।
वहीं पण्डित गोपालशंकर शीरी पर निगरानी रखने के लिए अपने एजेंट सक्रिय करते हैं।
   इन्हीं दिनों एक विशेष भारतीय विमान लंगूरगढ की कोहरे वाली पहाडियों में दुर्घटनाग्रस्त हो जाता है।
पंडित गोपालशंकर  ने अपना बुझा हुआ सिगार सुलगाया एक गहरा कश खींचकर  उन्होंने धुंआ भोलाशंकर की ओर उछाल दिया।
"कल रात एक भयंकर दुर्घटना हुई, इस दुर्घटना में कुछ जिम्मेदार ऑफिसर भी शामिल थे।"-  उन्होंने कहना शुरू किया- "कल एक सरकारी यान बाहर इलाके की ओर जा रहा था । जिसमें चार बड़े ऑफिसर व कुछ अन्य सैनिक सवार थे, खबर मिली है कि वे कुछ सीक्रेट फाइलें ले जा रहे थे। वे बहुत ही कीमती बताते हैं । उन फाइलों में सैनिक चौकियों के नक्शे भी शामिल थे।
   वह सैनिक यान अचानक ही गायब हो गया। एक दूसरा यान उसकी खोज में निकला, लेकिन यह यान कहीं भी नहीं मिला।"

  पण्डित गोपालशंकर के अनुसार इन कोहरे की पहाड़ियों म कुछ तो खतरनाक घटित हो रहा है। और फिर गोपालशंकर के आदेश के अनुसार पण्डित भोलाशंकर अपने साथी शेखर के साथ लंगूरगढ की उन पहाड़ियों में जा पहुंचते हैं।
  वहीं शीरी का पीछा करने वाली सीक्रेट एजेंट 'तूफान नम्बर तीन-लविना' अचानक गायब हो जाती है।
लविना की खोज में स्वीप के दो जासूस 'तूफान नम्बर दो फिरोज' और शेर सिंह उर्फ शेरू भी पठानकोट से एक सौ पचास मील दूर लंगूरगढ की इन कोहने वाली पहाड़ियों में पहुंच जाते हैं।
   लंगूरगढ की कोहरे से भरी उन पहाड़ियों में उनका सामना अंतरराष्ट्रीय अपराधी मादाम लूचिंग से होता है।
मादाम लूचिंग
विश्व विख्यात अपराधनी, जिसकी खोज हर देश को थी। विश्व भर में उसने तहलका मचा दिया था।

     और भोलाशंकर और फिरोज दोनों की टीमें लूचिंग के जाल में फंस गयी थी। वहीं तूफान नम्बर तीन लविना पहले से ही उसके कब्जे में थी।
  और अंत में एक संघर्ष, खतरनाक बमबारी, टूटती- उड़ती पहाड़ियों के मध्य अपराधीवर्ग और जासूसवर्ग के बीच लड़ाई होती है और कथानक समाप्त होता है।
   चंदर (आनंद प्रकाश जैन) द्वारा लिखित 'भोलाशंकर कोहरे में' जासूस वर्ग के कारनामों का प्रदर्शन है। कथा स्तर पर यह एक सामान्य उपन्यास है। एक समय था जब उपन्यास स्थापित पात्रों पर आधारित होती थी, जिनमें अधिकांश अपराधी अंतरराष्ट्रीय होते थे। और उपन्यास के अंत में अपराधी फरार हो जाते थे। यहाँ भी सब यही कुछ है।
   उपन्यास में अपराधी मादाम लूचिंग का किरदार अंत में आता है और वह भी बहुत कम। मादाम लूचिंग के दो साथी 'डाक्टर तान ली, टाइगर' का बस नाम आता हैं। मादाम लूचिंग चीन के अपराधी की पुत्री है, जिसका उद्देश्य विश्व विजेता बनना है।
  उपन्यास में खजाने का वर्णन आता है।
लगभग तीस वर्ष पहले जबकि हिन्दुस्तान में ब्रिटिश हकूमत थी, लंगूरगढ़ रियासत में एक जबरदस्त डाका पड़ा था। इस डाके में कुछ बदमाश व कुछ अंग्रेज ऑफिसर शामिल थे ।
दोनों के सहयोग से यह डाका रियासत में पड़ा था। यह ठीक उस समय पड़ा था जब आजादी के लिए देशभक्तों ने अंग्रेज हकूमतों को भगाने का प्रयत्न किया। उस समय रियासत में जबरदस्त हंगामा हुआ था । खैर, मेरा कहने का मतलब यह है कि रियासत का सारा खजाना लूट लिया गया। इस खजाने में रियासत के राजा का मुकुट व हीरे जवाहरात भो शामिल थे।'

  यह खजाना किसी के हाथ नहीं लगा था। ऐसा माना जाता है वह खजाना उन कोहरे से भरी पहाडियों में ही कहीं दफन है, इसकिए अपराधी वर्ग अक्सर वहाँ खजाने की खोज में पहुंच जाते हैं।
    इससे पूर्व मैंने चंदर के जो उपन्यास पढे हैं उनमें 'स्वीप' के जासूसों को 'कार्ड' कहा गया है और इस उपन्यास में उनको 'तूफान' कहा गया है। गत उपन्यास में 'स्वीप' के पात्र भी अलग हैं।
'स्वीप' की स्थापना पण्डित गोपालशंकर ने की है। जो एक सफल जासूस और वैज्ञानिक भी हैं। भोलाशंकर इन्हीं गोपालशंकर का पुत्र है। उपन्यास में एक जगह वर्णन जहाँ गोपालशंकर अपने पुत्र को देश को समर्पित करते कहते हैं- आज से यह देश ही तुम्हारी माता है, यह देश ही पिता है।
  उपन्यास में जासूस वर्ग अपने चेहरे पर प्लास्टिक झिल्ली लगाकर चेहरा परिवर्तन कर लेते हैं।
- एक प्लास्टिक की झिल्ली उसके चेहरे पर फिट की ।
भोलाशंकर जासूस है। वह समय परिस्थिति अनुसार ही नहीं बल्कि मनोरंजन के शराब और शबाब का सहारा ले लेता है।
- वैसे तो भोलाशंकर कर कोई भी नशा नहीं करता था लेकिन कभी कभी समय आने पर थोड़ी बहुत पी लेता था ।
प्रस्तुत उपन्यास कथास्तर पर एक सामान्य उपन्यास है। जिसे एक बार पढा जा सकता है।

उपन्यास- भोलाशंकर कोहरे में
लेखक-    चंदर (आनंद प्रकाश जैन)
पृष्ठ-         136
प्रकाशक- अमर पॉकेट बुक्स, मेरठ

चंदर के अन्य उपन्यासों की समीक्षा

1 comment:

  1. चंदर के उपन्यास पढ़ने का अवसर मुझे नहीं मिल सका है। उम्मीद है भविष्य में कभी मिलेगा।

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