Monday 20 November 2023

रूस की रसभरी- चंदर

अपराधी संगठन सपेरा और भोलाशंकर
 रूस की रसभरी- चंदर 
प्रथम भाग

प्रसिद्ध बाल पत्रिका 'पराग' के संपादन अच्छे जासूसी उपन्यासकार भी थे। उन्होंने अपने वास्तविक नाम आनंद प्रकाश जैन के अतिरिक्त 'चंदर' नाम से भी उन्होंने उपन्यास रचना की है।
       जेम्स बाण्ड जैसा प्रसिद्ध पात्र पण्डित भोलाशंकर उनका प्रसिद्ध पात्र है।  प्रस्तुत उपन्यास 'रूस की रसभरी' भोलाशंकर का उपन्यास है। जिसका कथानक अंतरराष्ट्रीय संबंधों पर आधारित है। जहाँ कुछ कुख्यात लोग भारत के वैज्ञानिक फार्मूलों को चुराना चाहते हैं और उनके सामने खड़ा है भारतीय जेम्स बाण्ड पण्डित भोलाशंकर ।
भारत की अन्यतम स्पाई-संस्था 'स्वीप' का नंबर वन कार्ड, भोला शंकर अपने पिता तथा 'स्वीप' के अधिष्ठाता कर्णधार पं० गोपालशंकर की प्रायवेट सेक्रेटरी मिस अशरफ की केबिन के पास पहुंचा, तो उसने वहां सुन्दर सिंह ब्रह्मचारी को टहलते पाया उसने भोलाशंकर को देखते ही धीरे से कहा, ''गुरु, जल्दी अन्दर पहुंचो।''
''क्यों, क्या बात है ?''- भोलाशंकर ने पूछा ।
  जब भोलाशंकर अंदर पहुंचा तो उसने जाते ही प्रश्न किया- 'हाँ, तो भई, क्या मसला है । जिसमें हमारी दखलबाजी की जरूरत आ पड़ी ?'
और मसला कुछ यूं था कि विभाग की नयी सदस्या पल्लवी जब एक रेस्टोरेंट में काॅफी पी रही थी तो उसके टेबल पर एक विदेशी युवती आ गयी थी। 'स्वीप' के नियमानुसार पल्लवी को यह जानकारी 'स्वीप'  को देनी पर पल्लवी ने इसे सामान्य घटना मानकर  इग्नोर कर दिया था।
  इस छोटी सी मीटिंग का निर्णय यह निकला की पल्लवी को आज भी कल की तरह उसी रेस्टोरेंट में जाकर काॅफी पीनी है और 'स्वीप' के सदस्य उस पर नजर रखेंगे।
पर आज काॅफी के दौरान जो घटना घटित हुयी उसकी कल्पना तो किसी ने नहीं की थी।
  पल्लवी की नजरे सहसा दरवाजे की ओर गई । 
वहां दौड़कर आया हुआ एक पतला-दुबला दाढ़ी वाला आदमी दिखाई पड़ रहा था। वह खुले दरवाजे की दीवार पर - एक हाथ, और अपनी छाती पर बाई ओर दूसरा हाथ रखे । घबराई हुई नजरों से रेस्तरां के ग्राहकों को घूर रहा था।
अचानक उसकी नजरें पल्लवी की नजरों के साथ टकराई, और वह तुरन्त लड़खड़ाता हुआ उसकी मेज की ओर बढ़ा। 
  उस घायल आदमी ने पल्लवी के मेज पर आकर दम तोड़ दिया पर मरने से पहले वह पल्लवी को एक कागज थमा गया।

  इस कागज के माध्यम से सी. आई. ड़ी के कर्मठ जासूस मिस्टर भोलाशंकर जा पहुंचते हैं एक एड्रेस पर जहां पर  भोलाशंकर की मुलाकात एक रूसी लड़की और भारतीय लड़के प्रकाश से होती है।
   लड़की लड़के से थोड़ी लम्बी थी - कुरती, स्कर्ट और कुरती के ऊपर सफेद सुन्दर ऊन की जाकट, गले में गरम स्कार्फ, केश सुनहरे, बांखें बड़ी-बड़ी, होंठ एकदम गुलाबी, कानों में चमेली के फूल जैसे दो इअर रिंग, हाथ की एक कलाई पर बधी मोटी मर- दानी घड़ी, उम्र वाइस तेइस वर्ष से अधिक नहीं लगती थी । लड़का भी खबसूरत था। कोई पन्द्रह-सोलह साल का था ।
 गौर वर्ण - सफेद झख कमीज फ्लेश कलर का स्वेटर और टांगों में सफेद रंग की पेंट यह भी आंखें फाड़कर बोलाशंकर को देख रहा था ।
भोलाशंकर ने अपना परिचय दिया- 'मेरा नाम शंकर है । सी० आई० डी० से आया  हूँ?'
'मेरा नाम तान्या है।'- रूसी लड़की ने उसकी आंखों में अपनी आंखों की छवि उडेलते हुए कहा - 'प्रकाश मुझे हिन्दी पढ़ाता है । मैं प्रकाश को रूसी पढ़ाता हूं।' 
'पढ़ाता हूं नहीं, पढ़ाती हूं।' लड़के ने तुरन्त भाषा का लिंग सुधारते हुए कहा।

 दरअसल पल्लवी को दिये कागज पर अंतरराष्ट्रीय अपराधी संगठन 'सपेरा' का चिह्न था जो कि प्रकाश का अपहरण करना चाहता था, लेकिन भोलाशंकर की सूझबूझ से प्रकाश का अपहरण होते-होते बच गया।
       प्रकाश का भाई विजय अरोड़ा एक अंतर्राष्ट्रीय प्रयोगशाला में कार्यरत है, जो एक विशेष फार्मूला बनाना चाहता है और अंतरराष्ट्रीय अपराधी संगठन 'सपेरा' उस फार्मूले को हथियाना चाहता है।
    उपन्यास का मूल कथानक सपेरा नामक संगठन और भारतीय वैज्ञानिक द्वारा निर्मित फार्मूले पर आधारित है। जहाँ एक तरफ वह संगठन अपनी हर एक कुचाल चलता है वहीं 'स्वीप' के सदस्य उसकी हर एक चाल का विफल करने का प्रयास करते हैं।
   उपन्यास का कथानक सामान्य है। कुछ विशेष प्रभावित करनी वाली कोई बात नहीं है। इस तरह के बहुत से उपन्यास लिखे जा चुके हैं। कोई विशेष ट्विस्ट भी नहीं जो पाठक को प्रभावित कर सके।हालांकि उपन्यास के दो भाग हैं जब तक द्वितीय भाग 'हथकड़ियों की आँखें' नहीं पढा जाता, तब तक कहानी के विषय में कुछ ज्यादा नहीं कहा जा सकता।
'स्वीप' - एक अत्यंत गुप्त भारतीय जासूस संस्था है। जिसकी स्थापना पण्डित गोपालशंकर ने की है। गोपालशंकर का पुत्र भोलाशंकर इस संस्था का विशेष गुप्तचर है, जिसे 'कार्ड नम्बर वन' कहा जाता है।
इस संस्था के पांच रत्न है।
भोलाशंकर, सुंदर सिंह ब्रह्मचारी, रचना( सुंदर सिंह की पत्नी), मेनका, मिस अशरफ। 
(उपन्यास में स्वीप के 'पंच रत्न' शब्द कई बार आया है।वह पंचरत्न कौनसे हैं, कहीं स्पष्ट नहीं है। उक्त पांच नाम मेरे विचारानुसार हैं)
संवाद-
उपन्यास में विशेष संवाद तो नहीं है, पर फिर भी एक संवाद जो मुझे रोचक लगा, वह प्रस्तुत है।
-जासूसी संसार में अनायास संयोगों को तरजीह नहीं दी जाती, उनके पीछे अर्थ ढूंढने की कोशिश की जाती है ।
  प्रस्तुत उपन्यास एक मध्य स्तर की कथा पर आधारित है, जिसमें नया तो कुछ नहीं है, पर उपन्यास एक बार पढा जा सकता है।
प्रस्तुत उपन्यास का द्वितीय भाग 'हथकड़ियों की आँखें' हैं, जो उपलब्ध नहीं हो पाया। 

उपन्यास- रूस की रसभरी
लेखक-    चंदर
प्रकाशक- कंचन पॉकेट बुक्स, मेरठ
पृष्ठ-          184
द्वितीय भाग- हथकड़ियों की आँखें

No comments:

Post a Comment

आयुष्मान - आनंद चौधरी

अमर होने की चाह.... आयुष्मान- आनंद चौधरी ये अजीबोगरीब दास्तान मोर्चरी के पोस्टमार्टम रूम में पोस्टमार्टम टेबल पर रखी गई एक लाश से शुरू होती...