Saturday, 18 December 2021

487. काले नाग- इब्ने सफी

कहानी क्वार्टर नम्बर 18 की
काले नाग- इब्ने सफी

जासूसी उपन्यास साहित्य में इब्ने सफी का विशिष्ट स्थान है‌। इब्ने सफी अपने समय के लोकप्रिय उपन्यासकार रहे हैं। वे मूलतः उर्दू के लेखक थे, उनके उपन्यास जितने उर्दू में चर्चित रहे हैं उतने ही अनुवादित होकर हिंदी में भी।
    इब्ने सफी जी का एक उपन्यास है 'काले नाग'। उपन्यास का शीर्षक रोचक है और इसी रोचकता के चलते यह पढा गया।
    कथा नायक इंस्पेक्टर विनोद है और उसके साथ है सार्जेंट हमीद। दोनों मिलकर 'काले नाग' रहस्य को सुलझाते हैं। 

सन् 1832 के दिसंबर माह की आठ तारीख थी।
रात के लगभग ग्यारह बज रहे थे, ठण्ड अपने यौवन पर थी।

  विनोद और हमीद इस ठण्डी रात में रूपनगर का सफर करते हैं। दोनों को क्वार्टर नम्बर 18 तक पहुंचना होता है। ज्वर से पीडित विनोद इस ठण्ड में भी अपने कर्तव्य से विमुख नहीं होता। बस उसे किसी भी हालत में क्वार्टर नम्बर 18 तक पहुंचना था।
फिर अचानक चौंक कर उसने कलाई घड़ी की‌ ओर देखा और बोला-
"जल्दी करो। हमें दस-पांच मिनट पहले ही पहुंचना चाहिये।"  


      बुखार से पीड़ित विनोद को जिस हाॅस्पिटल में भर्ती करवाया जाता है। वहाँ भी कुछ हैरतजनक घटित होता है। नर्स रजनी की रहस्यमय परिस्थितियों में मौत हो जाती है। हालांकि हमीद के हाथ कुछ तथ्य लगते हैं। पर हमीद और इंस्पेक्टर जगदीश के साथ एक ऐसी घटना घटित होती है की दोनों चकित रह जाते है।
  रतनपुर में राजकुमार का शासन था। वह अपने क्षेत्र का शासक था और उसकी गवर्नर के साथ दोस्ती थी। रतनपुर का प्रसिद्ध होटल है -फ्लेटी।
जिस समय हमीद रतनपुर पहुंचा तो उसके नेत्र फैल गये। वह सोच भी नहीं सकता था  कि रतनपुर इतना दिलचस्प स्थान होगा। फ्लेटी यहाँ का सबसे शानदार होटल था।
   हमीद को यहाँ कुछ 'काले नाग' के चिह्न मिलते हैं। लेकिन वह उनका अर्थ नहीं समझ पाता। वहीं होटल में भी कुछ रहस्यमयी घटित होता है।
     इसी चक्कर में और चक्कर को सुलझाने के लिए वह एक खतरनाक अपराधी से जा टकराते हैं। और इस टकराहट का अंत होता है 'काले नाग' के रहस्य के खुलासे के साथ।
विनोद अनंत काले नाग का रहस्य हल कर लेते हैं।
     विनोद जो की एक इंस्पेक्टर है और सार्जेंट हमीद उसका साथी है। विनोद जहाँ गंभीर किस्म का व्यक्ति है वहीं हमीद हास्य प्रवृत्ति का है। दोनों की बातें हास्य पैदा करती है। कभी-कभी तो कुछ लोगो को हमीद का चरित्र समझ में ही नहीं आता की वह कब क्या कर जाते और क्या बोल जाये।
     उपन्यास में कथा नायक विनोद है। लेकिन विनोद का प्रत्यक्ष किरदार कम है और नेपथ्य में ज्यादा है। इंस्पेक्टर जगदीश का किरदार भी कम ही है।
  उपन्यास कथा की बात करें तो यह समझ में ही नहीं आता की आखिर चल क्या रहा है। बस हमीद की वार्तालाप है। कुछ रहस्यमयी घटनाएं है। और अंत में सब को मिलाकर. विनोद एक कहानी सुनाता है और उपन्यास खत्म।
      कुछ घटनाएं तो ऐसी है बस विनोद को पता है। बाकी उनका कुछ कहीं विवरण ही नहीं है। विनोद कब क्या कर रहा है कुछ पता ही नहीं चलता। और विनोद को किस घटना की कैसे जानकारी हो जाती कुछ कहा नहीं जा सकता।
      उपन्यास की कहानी बस....अब क्या कहें। कहीं कोई तार्किक कथा है ही नहीं। पहले क्वार्टर नम्बर 18 की कहानी, फिर काले नाग और अंत में राजकुमार का किस्सा और उपन्यास खत्म।
  यह इब्ने सफी साहब का औसत से भी कमतर स्तर का उपन्यास है।
उपन्यास- काले नाग
लेखक-    इब्ने सफी
जासूसी दुनिया अंक- 87

 

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