एक स्त्री की दर्द कहानी
विष वृक्ष- बंकिमचंद्र चटर्जी
नगेन्द्र दत्त नौका पर जा रहे थे। ज्येष्ठ का महीना था और तूफानी हवा चल रही थी। उनकी पत्नी सूर्यमुखी ने अपनी कसम देकर कह दिया था,-'तूफान में नाव न खेना। तूफान आए तो नौका किनारे लगा देना और नौका से उतर जाना।' पत्नी की बात स्वीकार करके नगेन्द्र नौका पर सवार हुये थे। उन्हें भय था कि कहीं वह जाने को मना न कर दे। उन्हें कलकत्ता जाना आवश्यक था, क्योंकि कई काम रुके हुये थे। (पृष्ठ-प्रथम) रास्ते में तूफान भी आया, नगेन्द्र बाबू ने अपनी पत्नी सूर्यमुखी का कहना भी माना। नाव को किनारे लगा -आश्रय की खोज में वह गाँव की ओर चल पड़े।
गाँव में जाना और वहाँ की घटना ने एक लम्बे समय पश्चात नगेन्द्र बाबू के जीवन का ऐसा खून चूसना आरम्भ किया कि वह सपना सब कुछ गवा बैठ।
आखिर नगेन्द्र बाबू के जीवन में ऐसा क्या घटित हुआ?
यह जानने के लिए बंकिमचंद्र चटर्जी का उपन्यास 'विष वृक्ष' पढें।
बांग्ला भाषा के प्रसिद्ध रचनाकार और 'वंदे मातरम्' के रचयिता बंकिमचंद्र चटर्जी की परिचय के मोहताज नहीं है। इनका जन्म 27 जून 1838 ई. को बंगाल में हुआ था। इन्होंने बांग्ला भाषा साहित्य में 'कपाल कुण्डला', 'आनन्दमठ' 'दुर्गेशनन्दिनी', 'राज सिंह' और 'विष वृक्ष' (1973) जैसी कृतियों की रचना की है।
अब चर्चा विष वृक्ष उपन्यास की।
नगेन्द्र दत्त धनाढ्य व्यक्ति थे। उनकी बहुत बड़ी जमींदारी थी। वह गोविन्दपुर के रहने वाले थे। नगेन्द्र बाबू की आयु केवल तीस वर्ष थी। (पृष्ठ-प्रथम)
नगेन्द्र बाबू के शादीशुदा जीवन में कुन्दनन्दिनी नामक एक बेसहारा युवती का प्रवेश होता है। नगेन्द्र बाबू की पत्नी सूर्यमुखी अपनी मुँहबोले भाई से शादी करवा देती है। लेकिन विधाता को कुछ और ही स्वीकार था।
देवेन्द्र बाबू गोविन्दपुर के अच्छे परिवार से सम्बन्ध रखते हैं, लेकिन उनकी कुरुपा और कर्कशा पत्नी के कारण उनका जीवन अस्थिर हो जाता है। इसे के चलते वे मद सेवन और चरित्र से भ्रष्ट हो जाते हैं। वे कुन्द पर मोहित हैं और उसे पाना चाहते हैं। वहीं दासी हीरा की आसक्ति देवेन्द्र बाबू के प्रति है।
उपन्यास की कहानी मूलतः कुन्द को केन्द्र में रख कर चलती है। और कुन्द का भाग्य उसका साथ नहीं देता। वह कहीं भी सुखी नहीं रह पाती। किशोरावस्था में बेहसारा हो चुकी कुन्द के प्रति आसक्ति तो सभी की है, लेकिन उसके हृदय की थाह लेना वाला कोई भी नहीं। कुन्द जो भी राह चुनती है वह उसके भाग्य को नहीं बदल सकती। पिता की मृत्यु पर माँ के दर्शन और उसकी कही बातें अंत में सत्य ही साबित होती हैं।
उपन्यास का अंत सुखांत और दुखांत का अजीब मिश्रण है। जिसे प्रसादान्त भी नहीं कह सकते। यह तो एक विष वृक्ष था, जिसने भी उसे लगाया उसकी चुभन उसे महसूस करनी ही पड़ी।
'विष वृक्ष' महिला प्रधान उपन्यास है। जो महिलाओं की विभिन्न स्थितियों का चित्रण करता है। वहीं पुरुष का स्त्री के प्रति व्यवहार भी दर्शाता है। जहाँ कुन्द परिवार विहीन है, वहीं सूर्यमुखी उसे अपनी बहन की तरह मानती है। वही सूर्यमुखी अपने पत्नी के सुख के लिये अपना सर्वस्व अपर्ण कर देती है। जह वह समय था जब पुरुष प्रधान समाज स्त्री को घर की चारदीवारी तक सीमित रखता था। स्त्री का स्वतंत्र अस्तित्व अर्थ नहीं रखता था। तभी सूर्यमुखी अपने पति की सुखी के लिए कुर्बान हो जाती है।
एक और महिला पात्र है हीरा। हीरा कहने को दासी है लेकिन उपन्यास में उसका चरित्र समयानुसार परिवर्तित होता रहता है। कभी वह लोभ में आती है, कभी मात्र अपना स्वार्थ देखती है और अंत में एक अधूरे प्रेम पर न्यौछावर हो जाती है।
यहाँ हर स्त्री की एक दर्द भरी कहानी है। वह चाहे कुंद हो, सूर्यमुखी हो या फिर हीरा।
लेकिन इन सब से अलग एक और स्त्री पात्र है वह है-कमल। कमल का परिवार बहुत ही खुशहाल परिवार है। पति - पत्नी का प्रेम और सानिध्य पठनीय है।
मैंने स्वतंत्रता से पूर्व के कुछ उपन्यास पढे हैं जिनकी कहानी में बहुत सी समानता हैं। पता नहीं क्यों लेखक कुछ घटनाओं को बहुत दोहराते थे। उपन्यास चाहे जयशंकर प्रसाद का 'कंकाल' हो, प्रेमचंद का हो या फिर बंकिमचंद्र चटर्जी का। इन के अतिरिक्त और भी कुछ उपन्यास है। इनके पात्र अक्सर घर से रूठ कर भाग जाते हैं। कुछ पात्रों के माँ-बाप नहीं होते। कुछ पात्र गंगा जाते है, कुछ पात्र बिछड़ जाते हैं।
'विष वृक्ष' उपन्यास एक अच्छा उपन्यास है। जो तात्कालिक समय की पारिवारिक और महिलाओं की स्थिति का यथार्थवादी चित्रण करता है।
उपन्यास - विष वृक्ष
लेखक - बंकिमचंद्र चटर्जी
पृष्ठ- 102
प्रकाशन- 1873 ई.
विष वृक्ष- बंकिमचंद्र चटर्जी
नगेन्द्र दत्त नौका पर जा रहे थे। ज्येष्ठ का महीना था और तूफानी हवा चल रही थी। उनकी पत्नी सूर्यमुखी ने अपनी कसम देकर कह दिया था,-'तूफान में नाव न खेना। तूफान आए तो नौका किनारे लगा देना और नौका से उतर जाना।' पत्नी की बात स्वीकार करके नगेन्द्र नौका पर सवार हुये थे। उन्हें भय था कि कहीं वह जाने को मना न कर दे। उन्हें कलकत्ता जाना आवश्यक था, क्योंकि कई काम रुके हुये थे। (पृष्ठ-प्रथम) रास्ते में तूफान भी आया, नगेन्द्र बाबू ने अपनी पत्नी सूर्यमुखी का कहना भी माना। नाव को किनारे लगा -आश्रय की खोज में वह गाँव की ओर चल पड़े।
गाँव में जाना और वहाँ की घटना ने एक लम्बे समय पश्चात नगेन्द्र बाबू के जीवन का ऐसा खून चूसना आरम्भ किया कि वह सपना सब कुछ गवा बैठ।
आखिर नगेन्द्र बाबू के जीवन में ऐसा क्या घटित हुआ?
यह जानने के लिए बंकिमचंद्र चटर्जी का उपन्यास 'विष वृक्ष' पढें।
बांग्ला भाषा के प्रसिद्ध रचनाकार और 'वंदे मातरम्' के रचयिता बंकिमचंद्र चटर्जी की परिचय के मोहताज नहीं है। इनका जन्म 27 जून 1838 ई. को बंगाल में हुआ था। इन्होंने बांग्ला भाषा साहित्य में 'कपाल कुण्डला', 'आनन्दमठ' 'दुर्गेशनन्दिनी', 'राज सिंह' और 'विष वृक्ष' (1973) जैसी कृतियों की रचना की है।
अब चर्चा विष वृक्ष उपन्यास की।
नगेन्द्र दत्त धनाढ्य व्यक्ति थे। उनकी बहुत बड़ी जमींदारी थी। वह गोविन्दपुर के रहने वाले थे। नगेन्द्र बाबू की आयु केवल तीस वर्ष थी। (पृष्ठ-प्रथम)
नगेन्द्र बाबू के शादीशुदा जीवन में कुन्दनन्दिनी नामक एक बेसहारा युवती का प्रवेश होता है। नगेन्द्र बाबू की पत्नी सूर्यमुखी अपनी मुँहबोले भाई से शादी करवा देती है। लेकिन विधाता को कुछ और ही स्वीकार था।
देवेन्द्र बाबू गोविन्दपुर के अच्छे परिवार से सम्बन्ध रखते हैं, लेकिन उनकी कुरुपा और कर्कशा पत्नी के कारण उनका जीवन अस्थिर हो जाता है। इसे के चलते वे मद सेवन और चरित्र से भ्रष्ट हो जाते हैं। वे कुन्द पर मोहित हैं और उसे पाना चाहते हैं। वहीं दासी हीरा की आसक्ति देवेन्द्र बाबू के प्रति है।
उपन्यास की कहानी मूलतः कुन्द को केन्द्र में रख कर चलती है। और कुन्द का भाग्य उसका साथ नहीं देता। वह कहीं भी सुखी नहीं रह पाती। किशोरावस्था में बेहसारा हो चुकी कुन्द के प्रति आसक्ति तो सभी की है, लेकिन उसके हृदय की थाह लेना वाला कोई भी नहीं। कुन्द जो भी राह चुनती है वह उसके भाग्य को नहीं बदल सकती। पिता की मृत्यु पर माँ के दर्शन और उसकी कही बातें अंत में सत्य ही साबित होती हैं।
उपन्यास का अंत सुखांत और दुखांत का अजीब मिश्रण है। जिसे प्रसादान्त भी नहीं कह सकते। यह तो एक विष वृक्ष था, जिसने भी उसे लगाया उसकी चुभन उसे महसूस करनी ही पड़ी।
'विष वृक्ष' महिला प्रधान उपन्यास है। जो महिलाओं की विभिन्न स्थितियों का चित्रण करता है। वहीं पुरुष का स्त्री के प्रति व्यवहार भी दर्शाता है। जहाँ कुन्द परिवार विहीन है, वहीं सूर्यमुखी उसे अपनी बहन की तरह मानती है। वही सूर्यमुखी अपने पत्नी के सुख के लिये अपना सर्वस्व अपर्ण कर देती है। जह वह समय था जब पुरुष प्रधान समाज स्त्री को घर की चारदीवारी तक सीमित रखता था। स्त्री का स्वतंत्र अस्तित्व अर्थ नहीं रखता था। तभी सूर्यमुखी अपने पति की सुखी के लिए कुर्बान हो जाती है।
एक और महिला पात्र है हीरा। हीरा कहने को दासी है लेकिन उपन्यास में उसका चरित्र समयानुसार परिवर्तित होता रहता है। कभी वह लोभ में आती है, कभी मात्र अपना स्वार्थ देखती है और अंत में एक अधूरे प्रेम पर न्यौछावर हो जाती है।
यहाँ हर स्त्री की एक दर्द भरी कहानी है। वह चाहे कुंद हो, सूर्यमुखी हो या फिर हीरा।
लेकिन इन सब से अलग एक और स्त्री पात्र है वह है-कमल। कमल का परिवार बहुत ही खुशहाल परिवार है। पति - पत्नी का प्रेम और सानिध्य पठनीय है।
मैंने स्वतंत्रता से पूर्व के कुछ उपन्यास पढे हैं जिनकी कहानी में बहुत सी समानता हैं। पता नहीं क्यों लेखक कुछ घटनाओं को बहुत दोहराते थे। उपन्यास चाहे जयशंकर प्रसाद का 'कंकाल' हो, प्रेमचंद का हो या फिर बंकिमचंद्र चटर्जी का। इन के अतिरिक्त और भी कुछ उपन्यास है। इनके पात्र अक्सर घर से रूठ कर भाग जाते हैं। कुछ पात्रों के माँ-बाप नहीं होते। कुछ पात्र गंगा जाते है, कुछ पात्र बिछड़ जाते हैं।
'विष वृक्ष' उपन्यास एक अच्छा उपन्यास है। जो तात्कालिक समय की पारिवारिक और महिलाओं की स्थिति का यथार्थवादी चित्रण करता है।
उपन्यास - विष वृक्ष
लेखक - बंकिमचंद्र चटर्जी
पृष्ठ- 102
प्रकाशन- 1873 ई.
अन्य समीक्षा
उपन्यास के प्रति रुचि जगाता आलेख। जल्द ही पढ़ने की कोशिश रहेगी।
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