Thursday, 30 December 2021

496. मुजरिमों का अजायबघर - अंजुम अर्शी

ब्रेन‌ मास्टर का कारनामा
मुजरिमों‌ का अजायबघर- अंजुम अर्शी

   लोकप्रिय उपन्यास साहित्य का एक सुनहरा दौर था। और उस दौर में कुछ लेखक और पात्र बहुत प्रसिद्ध हुये हैं। ऐसे ही एक चर्चित नाम थे अंजुम अर्शी और उनका प्रसिद्ध पात्र था मास्टर ब्रेन।
  मेरे पास अंजुम अर्शी के दो-चार उपन्यास उपलब्ध हैं, उनमें से 'मुजरिमों का अजायबघर' उपन्यास पढा। 
   आज चर्चा इसी उपन्यास की।
"वह लाशों‌ का क्या चक्कर था?"- विक्रम ने अपना प्याला अपनी ओर सरकाते हुये वेटर से पूछा।
वेटर अभी-अभी उसके लिए नाश्ता लाया था और फिर उसकी फरमाइश पर चाय भी बना दी थी।
"कौन सी लाशों का जनाब?"- वेटर ने उसे देखते हुये पूछा।
"वही जो अक्सर वृक्षों पर लटकी मिलती हैं।"

'मुजरिमों का अजायबघर' उपन्यास की कहानी आरम्भ होती है राजापुर शहर से। - राजापुर अपने अपराधी वातावरण के लिए एक प्रसिद्ध शहर है। यहाँ के अपराधी अपने शत्रुओं को यातनापूर्ण सजाएं देते हैं और कानून के हाथ इस तरह तराश देते हैं कि उन्हे गिरफ्त में न‌ लिया जाये। (पृष्ठ-07)
   राजापुर शहर के इन स्थितियों के जिम्मेदार है मैडम तुंग, जो की एक विदेशी एजेंट है। तुंग इस शहर को अपराधियों का अड्डा बना देती है, स्थानीय शासन और प्रशासन भी उसके साथ है।
    राजापुर में चारों तरफ अपराध, लूटमार, अपहरण और भी न जाने कैसे घिनौने तथा देश विरोधी कार्य होते हैं। यहाँ मुजरिमों को सजा देने के लिए मैडम तुंग द्वारा विशेष रूप से 'मुजरिमों का अजायबघर' भी बनावाया गया है।
  राजापुर के अपराध से निपटने के लिए केन्द्र से इंस्पेक्टर विक्रम को भेजा जाता है। लेकिन इंस्पेक्टर विक्रम भी मुजरिमों के अजायबघर में पहुँच जाता है, जहाँ उसे भयानक यातनाएँ दी जाती हैं।
       जब ब्रेन मास्टर तक राजापुर और विक्रम की खबर पहुँचती है तो वह इन से निपटने के लिए राजापुर में कदम रखता है। ब्रेन मास्टर का सामना होता है 'डजन बुल्स'। यह मैडम तुंग के अपराधी हैं और इनका मुख्य 'चीफ आॅफ डजन बुल्स' कहलाता है।
और फिर संघर्ष आरम्भ होता है मैडम तुंग और ब्रेन‌ मास्टर के मध्य। जहाँ ब्रेन मास्टर का उद्देश्य है विक्रम को स्वतंत्र करवाना और मैडम तुंग का सफाया करना वहीं मैडम तुंग चाहती है की ब्रेन मास्टर उसका गुलाम बन जाये ताकि उसके मस्तिष्क का उपयोग किया जा सके।
     उपन्यास में मुझे दो दृश्य बहुत रोचक लगे। एक तो जब डी. सी. और विक्रम में बहसबाजी होती है और एक दृश्य है जब उपन्यास के अंत में 'कानून बूढा हो चुका है।' कहकर एक बूढा उठता है।
दोनों दृश्य रोचक और हास्याजनक है।
      उपन्यास साहित्य में एक दौर था जब उपन्यास में खल पात्र विदेशी एजेंट दिखाये जाते थे जो भारत में रहकर देश विरोधी गतिविधियाँ को चलाते थे। यह उपन्यास भी उसी धारा का है। यहाँ देशी विरोधी एक विदेशी स्त्री एजेंट है जो भारत में भारत के विरुद्ध कार्य में संलग्न है।
    उपन्यास का नामक ब्रेन मास्टर है जो अपने पास चैन वाली लोहे की गेद रखता है और उसी से दुश्मनों पर प्रहार करता है। उपन्यास में ब्रेन मास्टर का न तो कहीं वास्तविक नाम दिया गया है और न ही विस्तृत परिचय मिलता है। हाँ, उपन्यास के बीच-बीच में‌ कुछ कथन इस तरफ संकेत करते हैं की ब्रेन मास्टर भी एक अपराधी है पर वह देशभक्त भी है। उसका कार्य कानून सम्मत न हो पर देश के विरुद्ध नहीं होता। ब्रेन मास्टर इंस्पेक्टर विक्रम का मित्र है और उसकी मदद के‌ लिए हर जगह उपस्थित होता है। प्रस्तुत उपन्यास में भी जब ब्रेन मास्टर को पता चलता है की इंस्पेक्टर विक्रम खतरे में है तो वह उसकी मदद करता है।
   यह एक थ्रिलर उपन्यास है जो सामान्य स्तर का है। कहानी में कुछ नयापन नहीं है। उपन्यास एक बार पढा जा सकता है।
उपन्यास- मुजरिमों का अजायबघर
लेखक -    अंजुम अर्शी
प्रकाशक- बुुद्धिमान प्रकाशन
पृष्ठ-         175

अन्य महत्वपूर्ण लिंक
अंजुम अर्शी परिचय

1 comment:

  1. ब्रेन मास्टर रोचक नाम लग रहा है। लेख उपन्यास के प्रति रुचि जगाता है। कभी मिला तो पढ़ने की कोशिश रहेगी।

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