Friday, 17 April 2020

294. खौफ- देवेन्द्र प्रसाद

नजदीक आ रही है खौफ के कदमों की आहट
खौफ- देवेन्द्र प्रसाद, हाॅरर कहानियाँ

इन दिनों किंडल पर हाॅरर कहानियाँ पढने का आनंद लिया जा रहा है। सम्पूर्ण देश में lockdown है, घर पर रहना है तो किताबें बहुत अच्छा साथ देती हैं।
        हालांकि मुझे हाॅरर रचनाएँ कम‌ पसंद हैं लेकिन अच्छी और तर्कसंगत हो तो पढी जा सकती है। इस क्षेत्र में नये प्रकाशक जैसलमेर से fly dreama publication का काम सराहनीय है। मैं क्रमशः fly dreamsकी यह तृतीय हाॅरर रचना पढ रहा हूँ। इससे पूर्व मनमोहन भाटिया जी की 'भूतिया हवेली' और नितिन‌ मिश्रा जी की 'रैना @ मिडनाइट' पढ चुका हूँ और इसके पश्चात सूरज पॉकेट बुक्स से प्रकाशित मिथिलेश गुप्ता जी की हाॅरर उपन्यास '11:59' पढूंगा‌।
       अब बात करे प्रस्तुत संग्रह की तो इसमें अधिकांश कहानियाँ पहाड़ी क्षेत्र की हैं शायद इसका कारण यह भी है की लेखक देवेन्द्र प्रसाद जी स्वयं उतराखण्ड के हैं, इसलिए कहानियों में उतराखण्ड और वहाँ के पहाडों का अच्छा चित्रण मिलता है।

    इंसानों की भीड़ भरी दुनिया में बसती हैं, कुछ ऐसी खौफनाक हकीकतें, जिनका सामना होने पर ज़िंदगी के मायने बदल जाते हैं। अमूमन, जब तक इंसान इन पारलौकिक शक्तियों से रूबरू नहीं होता, तब तक वह इन्हें नहीं मानता। जिन लोगों को इस प्रकार के डरावने अनुभव से गुज़रना पड़ता है, उनकी ज़िंदगी खौफ़ से भर जाती है।


इसी खौफ की कहानियाँ आपको इस किताब में पढने को मिलेगी।



    इस संग्रह की प्रथम कहानी है 'लाल जोड़े वाली दुल्हन'। यह चार दोस्तों की कहानी है जो एक मकान में ऐसे फंस जाते हैं जहां उन्हें एक भूतिया दुल्हन मिलती है। अपना घर अपना ही होता है, जहाँ सुकून भरी ज़िंदगी जिया जा सकता हैं बिना किसी शिकायत के, लेकिन ये अपना घर न था। ये घर तो एक भूत का था। फिर क्या हुआ उन दोस्तों के साथ यह तो आप कहानी पढकर जानेंगे, और जब पढेंगे तो आपको पता चलेगा की खौफ क्या होता है।

 
शैतान घुड़सवार तीन दोस्तों की कहानी है। कहानी आरम्भ होती है हृदान भगत से।- मेरा नाम हृदान भगत है। तब मेरी उम्र महज़ 17 वर्ष थी और मेरे गाँव का नाम कालिकापुर था, जो कि बंगाल में सिल्लीगुड़ी से 67 कि.मी. की दूरी पर था।
       हृदान, आदित्य और हर्षित के साथ एक रात में दो ऐसी घटनाएं घटित होती हैं की वे अपने होश खो बैठते हैं
एक घटना औरत की और दूसरी शैतान घुड़सवार की ।

वह औरत उतनी सुनसान जगह पर, इतनी रात को क्या कर रही थी?
आखिर वह औरत ऐसा क्यों कह रही थी?
वह हमलोगों को वापिस जाने के लिए क्यों मजबूर कर रही थी? वह किस अंजाम को भुगतने के लिए कह रही थी? आखिर ऐसी क्या बात थी, जो हर्षित के गाल पर तमाचा रसीद करना पड़ गया?

लेकिन घर से दूर, अमावस्या की रात और फिर मिला इन किशोर दोस्तों को एक शैतान, वह भी घोडे़ पर सवार।
सामने एक शैतान, घोड़े पर सवार था, जिसके हाथ में तलवार जैसा कोई औजार था। सबसे अजीब बात तो यह थी कि उसका सिर तो था ही नहीं। उसका केवल धड़ था, सिर का नामों-निशान नहीं था।
आखिर दोस्त कैसे बचे?

एक कहानी है 'चुड़ैलों का पहाड़'। जिसमें स्वयं लेखक महोदय और उनके मित्र विकास नैनवाल जी उपस्थित हैं। यह भी रोंगटे खड़े करने वाली कहानी है।
     विकास ने बातों ही बातों में कहा, “यहाँ कोई भी इंसान दिन में भी जाने से डरता है। यहाँ चुड़ैलों की काफी कहानियां है, जो प्रचलित हैं। इसे ‘द हिल ऑफ विचेज़ (The Hill of Witches)’ कहते हैं, जिसका मतलब होता है चुड़ैलों का पहाड़। कहते है कि यहाँ दिन के उजाले में भी लोगों को चुड़ैल दिख जाती है। यह चुड़ैलों की मन मुताबिक जगह है।”
लेकिन यायावरी के रसिया दोनों मित्र वहाँ भी पहुँच गये। जहां चेतावनी थी। -उस पर साफ लिखा था, ‘यहाँ से आगे जाना सख्त मना है। यहाँ से आगे का इलाका चुड़ैलों का पहाड़ के नाम से कुख्यात है। जो व्यक्ति इस सीमा से आगे बढ़ता है, वह अपनी तबाही का खुद ज़िम्मेदार होगा।’
     और जब तबाही मची तो पता चला की ये यायावरी बहुत खतरनाक है। लेकिन यह यात्रा का रस 'जाॅज एवरेस्ट' के खतरनाक माहौल में भी दोनों‌ मित्रों को ले जाता है। जहाँ एक सुनहरे बालों वाली लड़की इनके इंतजार में बैठी है।

भूतों का अस्पताल- यह कहानी हाॅरर भी है तो साथ-साथ हास्य का पुट भी लिए हुए है। एक हाॅरर हास्पिटल की ऐसी कहानी जो रोंगटे खड़े कर दे और एक ऐसे युवक की कहानी जिसे अपनी मौत प्रत्यक्ष दिखाई देती है लेकिन वह बेबस है।
आखिर क्यों.... यह तो खैर कहानी पढने पर ही पता चलेगा।

‘जगदीश मेमोरियल हॉस्पिटल’, 1987 में पटना रेलवे स्टेशन से 5 कि.मी. दूर, राजेन्द्र नगर से 2 कि.मी. की दूरी पर, कंकड़बाग नामक जगह पर बने इस अस्पताल के बनने के बाद, होने लगी थीं डराने वाली घटनाएं। कहते हैं कि यह भूतों का अस्पताल है, जहाँ से रात को अक्सर आती हैं खौफनाक आवाजें। दीवारों पर पक्षी तक नहीं बैठते।

     आखिर ऐसा क्या था उस हास्पिटल में?

आप रात को सोये हैं और आपको अहसास हो की आपके बिस्तर पर कोई और भी सोया है तब आपकी क्या हालत होगी, एक बार सोच कर देखें.......मेरे विचार से
यही होता है कथा नायिका के साथ।
बहुत हिम्मत कर वह बिस्तर से उठ कर बैठ गयी,.....लेकिन जब उसकी नजर गद्दे पर पड़ी तो प्रमिला का दिल दहल उठा।
गद्दा नीचे की ओर दबा हुआ था और ऐसा दिख रहा था, जैसे उस पर कोई इंसान लेटा हो।

   आखिर कौन था पति- पत्नी के बीच उपस्थित?
यह कहानी 'भूत' मुझे बहुत रोचक लगी।
इतनी ही रोचकता से परिपूर्ण कहानी है 'डायन'।

      लेखक को यात्राएँ को बहुत शौक है वे अपने मित्रों के साथ घूमते रहते हैं और इस कहानी संग्रह में यह बखूबी देखा जा सकता है। हाॅरर कहानियों में यात्रा वृतांत का अनोखा संगम भी दिलचस्प है। हालांकि यह वर्णन कहीं कहीं कहानी का अंग न होकर अतिरिक्त विस्तार प्रतीत होता है जैसे कहानी- 'लाल जोड़े वाली दुल्हन' में पाताल भुवनेश्वर का वर्णन है।
      इस संग्रह की एक दो कहानियाँ को छोड़ कर बाकी सब कहानी खौफ की कहानियाँ है, हाॅरर है। हां, अधिकांश कहानियों में विस्तार बहुत है वह भी कथा की मूल विषय वस्तु से अलग प्रतीत होता है।
इस किताब का आवरण पृष्ठ बहुत अच्छा है। मन को आकृष्ट करने वाला और कहानियों को अनुरुप है। रचनाकार को धन्यवाद।
अगर आप हाॅरर कहानियाँ पसंद करते हो तो यह कहानी संग्रह आपको रूचिकर लगेगा।

कहानी संग्रह- खौफ
लेखक- देवेन्द्र प्रसाद
प्रकाशक- fly dreams

पृष्ठ-  198
किंडल लिंक- खौफ- कदमों की आहट

7 comments:

  1. गुरप्रीत जी मैं आपका तहदिल से शुक्रिया करता हूँ। मुझे अत्यंत खुशी हुई कि मेरी नॉवेल खौफ़ कंदमों की आहट... आपको भी बेहद पसंद आई। अपने न केवल मेरी कहानियों को पढ़ा बल्कि उसका सूक्ष्म अवलोकन करते हुए वाज़िब टिप्पणी भी की। मैं आशा करता हूँ कि भविष्य में मेरी दूसरी नॉवेल्स भी आपका भरपूर मनोरंजन करेगी। आपका बहुत बहुत आभार। 🙏

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  2. खौफ़...कदमों की आहट ☠️
    यह Novel अपने नाम के अनुरूप कसौटी पर खरी उतरती है। लेखक 'देवेन्द्र प्रसाद' की यह दूसरी Horror Novel है जिसमें उन्होंने कहानी में ऐसा समा बांधा है कि इसे बिना खत्म किए जी उठने का जी नहीं करता। उन्होंने यात्रा वृतांत को horror activities के साथ जोड़कर औरों से हट कर नया करने की कोशिश की है और मुझे लगता है कि यह style बहुत ज्यादा प्रभावशाली रही है। मैं उम्मीद करती हूँ कि आपकी तीसरी book जल्दी आए और वह भी एक horror novel ही हो। इनकी horror कहानियों पर बढ़ती पकड़ को देखते हुए मैं इन्हें "Ruskin Bond of Dehradun" (RBD) के नाम से उपाधि देना चाहूंगी।
    -अंकिता ग्रोवर

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  3. बढ़िया समीक्षा की है ।एकदम सटीक

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  4. किताब के प्रति उत्सुकता जगाता आलेख। आभार।

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  5. बहुत सूक्ष्म समीक्षा, समीक्षक का आभार और लेखक को बधाई

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  6. खौफ़ कदमों की आहट वाकई हॉरर में अलग शैली में लिखा गया है। जिसे पढ़ना वाकई मज़ेदार होता है। कहानियां आंखों के सामने घूमती नज़र आती है। बहुत बढ़िया समीक्षा गुरप्रीत भाई।

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  7. किताब पढ़ी है, यात्रा वृतांत में खौंफ उत्पन्न करना वाकई एक कला है

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