Saturday 18 April 2020

296. तांत्रिक का बदला- राजीव श्रेष्ठ

जब प्रेतों ने बोला गाँव पर हमला...
तांत्रिक का बदला- राजीव श्रेष्ठ, हाॅरर उपन्यास

       पढने के क्रम में यह मेरी किंडल पर क्रमशः पांचवी हाॅरर रचना है। इस उपन्यास के विषय में कहूं तो यह बरसात के पश्चात चलने वाली शीतल हवा की तरह है।
इससे पूर्व में मनमोहन भाटिया जी का 'भूतिया हवेली', नितिन मिश्रा का 'रैना @ मिडनाइट', देवेन्द्र प्रसाद का 'खौफ...कदमों की आहट' और मिथिलेश गुप्ता का '11:59- दहशत का अगला पड़ाव' पढा ये चारों रचनाएँ सस्पेंश और हाॅरर से इतनी उलझी हुयी थी की दिमाग की नसें तक इनको पढकर सनसना रही थी। और फिर राजीव श्रेष्ठ का उपन्यास 'तांत्रिक का बदला' पढा तो इसने कुछ राहत प्रदान की।

           यह कहानी है तांत्रिक प्रसून की‌, एक सभ्य तांत्रिक जिसके बारे में लोग कहते हैं कि - कितना अच्छा और सच्चा इंसान है, एकदम भगवान के जैसा। मुझे तो इसमें ही साक्षात भगवान नजर आता है।
        प्रसून चाँऊ बाबा के पास एक मन्दिर में अस्थायी रूप से विश्राम कर रहा है लेकिन एक रात कुछ अजीब घटनाएं घटित होती है और न चाहते हुए भी प्रसून को उसमें शामिल होना पड़ता है।- प्रसून चुपचाप लेटा हुआ था, उसकी आँखों में नींद नहीं थी। जबकि वह गहरी नींद सो जाना चाहता था, बल्कि अब तो वह हमेशा के लिये सो जाना चाहता था। जाने क्यों जिन्दगी से यकायक ही उसका मोहभंग हो गया था, और वह इस जीवन से ऊब चुका था।    




         लेकिन कोमल हृदय प्रसून भावनावश असहाय लोगों की चीख-पुकार को नजर अंदाज न कर सका और दुष्ट लोगों को सजा देने के लिए या न्याय के लिए मैदान में उतर गया।
शालिमपुर गाँव का एक और घटनाक्रम है जहां प्रेतों ने पूरे गाँव पर हमला बोल दिया। लोग हत्प्रभ रह गये कि आखिर यह हो क्या रहा है- अगले कुछ ही क्षणों में अदृश्य प्रेतों की पूरी सेना किसी आतंकवादियों की भांति गाँव के एक-एक आदमी को कवर किये खङी थी। पूरा गाँव प्रेतों की घेरेबन्दी में आ चुका था। सभी सम्मोहित से गाँव वालों को कुछ अजीब सा महसूस हो रहा था।
एक और घटना का विवरण देखिएगा-
- फ़िर वह कंपकंपाती सी बेहद धीमी प्रेतक आवाज में बोली - "अ आप भगवान हो क्या, मनुष्य रूप में।"
........
उसने एक निगाह उन मासूम बच्चों पर डाली, और भावहीन स्वर में बोला - नहीं।
- वह कुछ चकित सा होकर बोली - "आप मुझे देख सकते हो, और इन..।'' उसने बच्चों की तरफ़ उँगली उठाई - "दो बच्चों को भी।"
प्रसून ने बेहद स्नेह भाव से सहमति में सिर हिलाया। लेकिन उस औरत के चेहरे पर अभी भी हैरत थी। इसलिये वह बोली - "फ़िर और सब..क्यों नहीं देख पाते?"
- कौन था प्रसून?
- वह लोगों की मदद क्यों करता था?
- प्रेत मण्डली ने गाँव पर हमला क्यों किया?
- वह औरत कौन थी, जिसे कोई देख नहीं सकता था?
- आखिर क्या था 'तांत्रिक का बदला'?

अगर आप इन प्रश्नों के उत्तर चाहते हैं तो राजीव श्रेष्ठ का उपन्यास 'तांत्रिक का बदला' पढें।

उपन्यास में संवादों की संभावना बहुत कम है। लेकिन कुछ कथन यादगार भी हैं,
- मौत कभी ये नहीं देखती कि कोई सो रहा है, या जाग रहा है।
- इंसान सत्य नहीं, सपना देखना अधिक पसन्द करता है। वह जीवन भर सपने में जीता है, सपने में ही मर जाता है।
मनुष्य के कर्म के विषय में बहुत अच्छे विचार दिये गये हैं-
'कभी किसी को, किसी बात का दण्ड इसलिये नहीं मिलता कि वह किसी से जुङा है, या उसका परिचित है, या उसके साथ है। सबको अपने-अपने कर्मगति से ही विधान अनुसार दण्ड मिलता है। विधि के संयोग से, ऐसा समय आने पर, सब इकठ्ठे हो जाते हैं, और स्वतः ही मृत्युपथ पर चल देते हैं। और कभी ये भ्रम मत पालो कि ये सब आपने किया है, या मैंने किया है। हम सब बस निमित्त हैं, कठपुतलियाँ हैं, जिसकी डोर ऊपर वाले के हाथ है। वह जैसा चाहता है, नचाता है।'

उपन्यास में हालांकि ज्यादा पात्र नहीं है। फिर भी कुछ पात्र है जैसे तांत्रिक प्रसून, चाँऊ बाबा, महावीर, इतवारी और सुरेश और इनके परिवार के सदस्य आदि।
उपन्यास में कुछ प्रेतों के रोचक नाम भी पढने को मिलते हैं, जैसे- कुलच्छणी, मेरुदण्डिका, कपालिनी, कामारिका और कंकालिनी। इनके अलावा एक और पात्र है सिल्विया।

कुलच्छणी एक ब्लू मिक्स ब्लैक कलर बाडी वाली भयंकर गण होती है। वह फ़ुलन्यूड होती है। उसकी हाइट लगभग चार फ़ुट होती है, और शरीर किसी गठीले आदमी जैसा। अगर उसके अबाउट टवेंटी एट साइज ब्रेस्ट न हो, तो वह मेल जैसा ही फ़ील देती है।

सुरेश इनमें से एक ऐसा पात्र है जो पूर्णतः कमीनगी से भरा हुआ है। उसका चरित्र इतना निकृष्ट है की उससे पाठक को घृणा हो जाती है।
उपन्यास में प्रसून का कहीं कोई परिचय नहीं मिलता, वह कौन है, कहां से आया है आदि। लेकिन उपन्यास पढने पर एक सहज अनुमान लगता है कि यह उपन्यास प्रसून के जीवन का एक भाग है, एक श्रृंखला का उपन्यास है। हालांकि इस उपन्यास में कहानी पूर्ण है पर प्रसून को जानने के लिए शायद उनके पूर्व उपन्यास पढने होंगे।
आगरा निवासी आध्यात्मिक मनोवृति के लेखक राजीव जी इससे पूर्व कई हाॅरर उपन्यास लिख चुके है पर सभी eBook के रूप में ही है।
चाँऊ बाबा नाम रोचक है पर उपन्यास में भूमिका नगण्य है।
उपन्यास में कहीं कहीं आवश्यक विवरण की कमी महसूस होती है।

प्रस्तुत उपन्यास हाॅरर और थ्रिलर का मिश्रण है। उपन्यास का मध्यम प्रवाह और कहानी की रोचकता सहजता के साथ पाठक को प्रभावित करती है।
अगर आप हाॅरर श्रेणी की रचनाएँ पढकर मानसिक रूप से डिस्टर्ब महसूस कर रहे हैं तो यह उपन्यास पढे और हां, यह उपन्यास तभी ज्यादा रोचक लगेगा।

उपन्यास- तांत्रिक का बदला
लेखक- राजीव श्रेष्ठ (राजीव कुलश्रेष्ठ)
पृष्ठ-
फाॅर्मेट- ebook - kindle
किंडल लिंंक-- तांत्रिक का बदला

आप अन्य हाॅरर रचनाओं के बारे में इस लिंक पर जाकर पढ सकते हो।- हाॅरर साहित्य

1 comment:

  1. रोचक लेख। उपन्यास के प्रति मन में यह उत्सुकता जगाता है। मौका लगते ही पढ़ता हूँ।

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