Wednesday 9 October 2019

229. कानून का बेटा- वेदप्रकाश शर्मा

केशव पण्डित बना कानून का बेटा।
कानून का बेटा- वेदप्रकाश शर्मा
केशव पण्डित सीरीज का द्वितीय उपन्यास

'कानून का बेटा' वेदप्रकाश शर्मा द्वारा लिखित बहुचर्चित उपन्यास 'केशव पण्डित' का द्वितीय भाग है। अगर आपने केशव पण्डित उपन्यास पढा है तो आपको पता ही होगा की केशव पण्डित के जीवन में क्या परिस्थितियाँ आयी और वह उन परिस्थितियों में कहां से कहां पहुंच गया।
केशव पण्डित उपन्यास की समीक्षा के लिए इस लिंक पर जायें- केशव पण्डित समीक्षा
    कानूूून का बेेेटा उपन्यास आरम्भ होता है केशव पण्डित के जीवन में घटित दुखपूर्ण घटनाओं के इक्कीस वर्ष पश्चात। तब,जब की केशव पण्डित बन चुका होता है 'कानून का बेटा'।
तो अब चर्चा करते हैं 'केशव पण्डित' उपन्यास के द्वितीय और अंतिम भाग 'कानून का बेटा' की।
शिक्षक मित्र श्यामसुंदर दास, सुरेश कुमार। नक्की झील माउंट आबू
इक्कीस साल बाद इलाहाबाद का बेटा 'कानून का बेटा' बनकर लौटा। (पृष्ठ-115) तो दुश्मनों में खलबली मच जाती है।
"यहां वह खुद को बेगुनाह ही तो साबित करने आया है?"
"कहता तो यही है मगर...।"
"मगर?"
"मुझे नहीं लगता कि वह सच बोल रहा है।"

आखिर वह कानून का ज्ञाता है। वह अपने दुश्मनों को इस तरह से खत्म करता है की स्वयं दुश्मन भी उसकी प्रशंसा करते हैं।



कई दुश्मन इतने चालाक होते हैं मिस्टर जुनेजा कि अपने प्रतिद्वंद्वी को वे ऐसे जाल में फंसा लेते हैं कि उसके सामने अपने दुश्मन की साजिश में फंसने के अलावा कोई चारा नहीं रह जाता। केशव ऐसा ही एक शख्स है...।"(पृष्ठ-301)

पुलिस वालों से दुश्मनी लेना आज के समाज में तलवार की धार पर चलने के समान है...।(पृष्ठ-117) और एक दिन केशव पण्डित अपने दुश्मन एस.पी. दूबे से भी जा टकराया। और दूबे को भी चुनौती दे दी- आज वही शख्स तुम्हारे सामने, तुम्हारी कोठी में खड़ा कह रहा है कि मैं मुजरिम हूं और तुम मुझे गिरफ्तार करने की हिम्मत नहीं जूटा पा रहे हो। (पृष्ठ-98)

एक तरफ हैं केशव के दुश्मन जुनेजा, कुकरेजा, बब्बन, दूबे (एस.पी.) और वकील मनु नारंग। वहीं कोबरा नामक खतरनाक संगठन भी केशव के खिलाफ खड़ा हो जाता है। लेकि‌न दिमाग का जादूगर कहीं भी हार नहीं मानता। वह तो कोबरा को भी धमकी दे देता है।- "...अगर समूचा कोबरा संगठन मेरे रास्ते में आया तो .......अंडरवर्ल्ड से आपके साम्राज्य को नेस्तानाबूद ही नहीं कर दूंगा बल्कि जड़े उखाड़कर मट्ठा झोंक दूंगा उनमें।" (पृष्ठ-201)
      केशव पण्डित जिस प्रकार से अपने दुश्मनों से बदला लेता है कोई भी अदालत उसे अपराधी साबित नहीं कर पाती। उसकी कार्यशैली से तो कोबरा संगठन भी प्रभावित होता है। इसलिए फिल्ड कोबरा डफरिन को भी कहना पड़ता है -"स..सचमुच तुम बेहद चालाक हो, ऐसा सांप हो जिसका काटा पानी नहीं मांगता, सिर्फ छटपटा सकता है, तड़प सकता है।"(पृष्ठ-298)
       केशव नाम का यह शख्स एक ऐसी हस्ती है जो सबकुछ करता है मगर इसके किसी कृत्य को अदालत में जुर्म साबित नहीं किया जा सकता। कानून की दफाओं के बीच सुरंग बनाकर यह जुर्म करता है इसलिए इसे जानने वाले इसको कहते हैं 'कानून का बेटा'। (आवरण पृष्ठ से)
उपन्यास का आवरण पृष्ठ

      कानून का बेटा उपन्यास जहां एक तरफ थ्रिलर और बदला प्रधान कथानक है वही भारतीय कानून में व्याप्त कुछ कमियों की ओर भी इशारा करती है।‌ जहां लूट तो होती है लेकिन कोई लूटेरा नजर नहीं आता। बस लूटने वाला तेज दिमाग होना चाहिए।- "लूटो...सारी जिंदगी लूटते रहो, ऐसा कोई कानून नहीं जो तुम्हें रोक सके, पब्लिक लुटने को तैयार बैठी है, कानून उसे लूटवाने को, जरूरत है सिर्फ लूटने के टैक्ट की- आप इस तरह लूटें कि कानून की कोई धारा न टूटे।" (पृष्ठ-48)
    इस का कारण क्या है। वह भी उपन्यास में दृष्टिगत होता है।‌ केशव पण्डित कहता है- जो कानून सौ वर्ष पहले बने थे, वही आज भी हैं। भले ही इन सौ वर्षों में हमारे समाज का ढांचा चाहे कितना बदल गया हो...।(पृष्ठ-90)
      कानून मुख्यतः निर्णायक हो गया है। निर्णय तो दे सकता है पर न्याय नहीं कर पाता। जब तक न्याय नहीं होगा तब तक अपराधी लूटते रहेंगे और नासमझ जनता लुटती रहेगी। प्रस्तुत उपन्यास भी इन्हीं विसगंतियो का जिक्र उपन्यास में करता है।

कानून का बेटा उपन्यास मूलतः केशव पण्डित द्वारा अपने दुश्मनों से लिए गये बदले पर आधारित है। लेकिन यह बदला कानून की धाराओं में लेकर लिया गया है। जहां जुर्म तो होता है लेकिन कोई अपराधी साबित नहीं होता। और सच तो ये है कि- कोई सोच भी नहीं सकता कि किसी से बदला लेने के‌ लिए इस तरह भी 'कानून का इस्तेमाल' किया जा सकता है। (पृष्ठ-190)

उपन्यास- कानून का बेटा
लेखक-    वेदप्रकाश शर्मा
प्रकाशक- राजा पॉकेट बुक्स
पृष्ठ-       320         

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