Thursday, 31 October 2019

242. किले की रानी- ओमप्रकाश शर्मा

वह खुशबू से गुलाम बनाती थी।
किले की रानी- ओमप्रकाश शर्मा

राजस्थान में, किंतु राजस्थान के प्रतीक रेगिस्तान से दूर सुंदर सुरम्य भूतपूर्व रियासत कांटिया के बारे में आपने अवश्य सुना होगा। उसी की तब की राजधानी और अब का रौनकदार शहर रूपपुर...। (पृष्ठ-06)
      तो यह कहानी है रूपपुर की। रूपपुर के किले की और किले की रानी की। रूपपुर रियासत के दो वारिस बचे हैं। बड़ा भाई सूरज सिंह और छोटा भाई चन्द्र सिंह।
दोनों राजकुमारों की माताएं अलग-अलग थी।....... इसके बावजूद दोनों भाईयों में खूब स्नेह था। (पृष्ठ-06)
सूरज सिंह की पत्नी का नाम है माधवी।
एक थी माधवी। सूरज सिंह की पत्नी। किले की रानी।
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किले की रानी- ओमप्रकाश शर्मा
बहुत ही सुंदर। चेहरे पर सौम्य भाव। आँखें मादक। परंतु कुल मिलाकर एक सभ्य और सुशील महिला का सा चित्र।
- यह इतनी शांत और इतनी सौम्य, इतनी सहज है कि कल्पना भी नहीं की जा सकती कि यह जादूगरनी हो सकती है।
जादूगरनी?
"हां...जादूगरनी ही तो। या जो शब्द आप इसके लिए प्रयोग करना चाहें। जिसकी मधुर सुवास से पुरूष इसके संसर्ग में आता है और धीरे मर जाता है।"
(पृष्ठ-17)
      यह कहानी मुख्यतः इन तीन पात्रों पर आधारित है लेकिन कुछ गौण पात्र जो की महत्वपूर्ण भूमिका में भी हैं उपन्यास के विकास में सहायक हैं।
      सभी एक दूसरे पर संदेश करते नजर आते हैं। चन्द्र सिंह का तो कहना है की माधवी से एक अजीब सी खुशबू आती है और वह गुलाम बना लेती है। जैसे माधवी ने मुझे वशीकृत कर रखा हो। मैं उसके सम्मोहन से केवल प्रातः दो घण्टे के लिए तब मुक्ति पाता हूँ जबकि वह स्नान आदि के लिए जाती है। (पृष्ठ-25)
     महल के अंदर कुछ षड्यंत्र रचे जाते हैं। कारण है धन। चन्द्र सिंह चमनगढ के खुफिया विभाग के चीफ गोपाली को इस रहस्य से पर्दा हटाने के लिए याद करता है। दूसरी तरफ एक मिशन के तहत जगन और बंदूक सिंह भी यहाँ पहुँच जाते हैं।
     उपन्यास मुख्यतः गोपाली सीरिज का ही है, फिर भी जगन और बंदूक सिंह सहायक के रूप में आते हैं यहाँ तक तो ठीक है लेकिन उपन्यास के अंत में जगत का अनावश्यक प्रवेश उपन्यास के पृष्ठ बढाने के अतिरिक्त कहीं तर्कसंगत नजर नहीं आता।
जगन और बंदूक सिंह प्रेमिकाएं मीनू और रीनू भी उपन्यास में बेमतलब की हैं और उनके साथ लंबे-लबे दृश्य भी बेमतलब के हैं।
उपन्यास की कहानी अच्छी है लेकिन अनावश्यक विस्तार और पात्र कहानी को खत्म करते नजर आते हैं।

उपन्यास में एक जगह बंदूक सिंह का हल्का सा परिचय दिया गया है। प्रान्तीय खुफिया विभाग का जासूस बंदूक सिंह सुपुत्र खंजर सिंह। (पृष्ठ-76)

राजतंत्र खत्म हो गया पर राजघराने अब भी कायम थे। यह उपन्यास ऐसे ही राजघराने की कहानी है। जहां दौलत के लिए षड्यंत्र रचे जाते हैं और परिवार के सदस्यों को मौत के घाट उतार दिया जाता है।
      धन और परिवार पर आधारित यह उपन्यास मध्य स्तर का कहा जा सकता है। कहीं-कहीं उपन्यास में बेवजह के संवाद और लंबे दृश्य उपन्यास को उबाऊ बनाते हैं। उपन्यास में कुछ पात्र भी बेवजह के हैं।
कहानी के तौर पर उपन्यास को एक बार पढा जा सकता है।
उपन्यास- किले की रानी
लेखक- ओमप्रकाश शर्मा
प्रकाशक- जनप्रिय लेखक कार्यालय, मेरठ
संपादक, प्रकाशक- महेन्द्र कुमार शर्मा

मूल्य- -5 ₹ (तात्कालिक)

उपन्यास का एक पृष्ठ

1 comment:

  1. उपन्यास की विषय वस्तु तो रोचक लग रही है। एक बार पढ़ूँगा। हाँ, मुझे लगता है लेखक जो अनावश्यक रूप से कथानक में बढ़ोतरी करते हैं उन्हें उससे बचना चाहिए। इससे अच्छे खासे कथानक को पढ़ने का मज़ा किरकिरा हो जाता है। एक और प्रश्न मन में था। आपको ओमप्रकाश शर्मा जी के इतने सारे उपन्यास कहाँ से मिल रहे हैं? इनकी विषय वस्तु मन को लुभा देती है।

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