Thursday 17 October 2019

232. सुकून- विक्रांत शुक्ला

 जिंदगी की तलाश में...
सुकून- विक्रांत शुक्ला, हाॅरर उपन्यास

तेज हवा के झोंके से दीवार पर टँगा कलैण्डर फड़फडा़या और उसने अपनी नजर आसमान से हटाकर आज की तारीख पर डाली, 13 अगस्त 1978, उसने तारीख पढी और एक झूठी हँसी हँसा। (पृष्ठ-03)
       'सुकून' उपन्यास की कहानी है सन् 1978 ई. की। दो दोस्त और दोनों की बैचेन जिंदगी। दोनों को तलाश है सुकून की। 
      मुझे हाॅरर कहानियाँ पसंद नहीं है। वह चाहे फिल्म हो या किताब। मुझे बिलकुल भी अच्छी नहीं लगती। लेकिन मेरा स्वभाव विक्रांत शुक्ला जी के उपन्यास 'सुकून' ने कुछ बदला है।
      श्री विकास नैनवाल जी के ब्लॉग पर सुकून उपन्यास की समीक्षा पढी थी। तभी से इस उपन्यास को पढने की इच्छा बलवती हुयी। और जब इस उपन्यास को पढने बैठा तो एक बैठक में ही पढ दिया। हाॅरर उपन्यास होकर भी मुझे बहुत अच्छी लगी।
देव स्थानीय प्रादेशिक फिल्मों का सफल अभिनेता है। लेकिन कुछ समय से उसके जीवन से 'सुकून' गायब है। उसके घर में अजीबोगरीब घटनाएं घटित होती हैं। उन घटनाओं ने देव को परेशान कर रखा है। 


देव की परेशानी भी ऐसी थी की वो वह किसी से कह भी नहीं सकता था। उसकी छवि एक बहादुर अभिनेता की थी और वो जिस समाज का आईना था वहाँ अगर किसी को पता भी चलता कि वो एक भूतिया परेशानी का शिकार है और असामान्य घटनाओं से परेशान है तो उसको कोई भी निर्माता अपनी फिल्मों में नहीं लेता और उसकी छवि खराब हो जाती। (पृष्ठ-10)

इन परिस्थितियों में देव को अपने दोस्त की याद आती है। "दुष्यंत" - देव के दिमाग में एक नाम कौंधा।

    दुष्यंत के जीवन में भी 'सुकून' नहीं है। जीवन से परेशान होकर वह आत्महत्या करने का विचार मन में लाता है। लेकिन तभी उससे देव संपर्क कर लेता है।
दोनों दोस्तों की परिस्थितियों को उपन्यास के निम्न कथन से समझा जा सकता है।
मनुष्य अक्सर यही करता है, जब तक उसके बस में होता है, वह लड़ता है और जब कोई नतीजा हासिल होता नजर नहीं आता, तब खुद को हालात के भरोसे छोड़ देता है। (पृष्ठ-165)

देव और दुष्यंत की जिंदगी में बहुत परेशानियां है।‌ लेकिन इन परेशानियों में भी दुष्यंत अपने मित्र की मदद करने के लिए आगे आता है।‌ लेकिन वहाँ की घटनाएं देख-सुन कर वह भी चकित रह जाता है।

- छत पर लगे पंखे के करीब कृष्णा अपने हाथ-पैरों के बल किसी छिपकली की भांति चिपकी हुयी थी। उसके बाल खुले थे और नीचे की तरफ झूल रहे थे। (पृष्ठ-)

- देवकी और कृष्णा साँस रोक कर वो दृश्य देख रही थी। मोती (कुत्ता) बस दीवार से बस टकराने वाला था। परंतु हुआ कुछ और ही, ....मोती दीवार से टकराने की जगह,उसमें समा गया। दीवार में‌ कोई खरोंच तक नहीं थी और मोती उसमें समा कर गायब हो चुका था। मोती को जैसे दीवार ने निगल लिया। (पृष्ठ-77)

       देव की जिंदगी में कुछ ट्रेजड़ी है। एक ऐसी ट्रेजड़ी, देव को ऐसा लगता है की इसके लिए वह खुद जिम्मेदार है।- "मैंने एक सफल अभिनेता बनने के लिए क्या कर दिया, मुझे पता भी नहीं चला और आज मैं इस कगार पर खड़ा हो गया हूँ। अभी तो एक तरफ कुआं है दूसरी तरफ खाई। मुझे समझ आ चुका है की मेरे अभिनेता बने रहने का समय खत्म हो चुका है और बाकी की जिंदगी मुझे आम आदमी बन कर ही गुजारनी होगी।"- (पृष्ठ-149)

इन पात्रों अलावा भी कुछ विशेष पात्र हैं जो उपन्यास को एक हाॅरर रूप प्रदान करते हैं। एक है कर्ण पिशाचिनी।- कर्ण पिशाचिनी माया का एक रूप है। वो बहुत सुंदर और शक्तिशाली है और उसके करोड़ों रूप है। कलयुग में कर्ण पिशाचिनी ही एक ऐसी शक्ति है जिसकी साधना आसन है और फायदेमंद भी,क्योंकि वही एक ऐसी शक्ति है जो बिना कोई सवाल पूछे साधक की हर इच्छा पूरी करती है। (पृष्ठ-97)
असफलता को सफलता में बदलने वाली, सब कुछ संभव करने वाली और 'सुकून' प्रदान भी कर देती है।
कर्ण पिशाचिनी कलयुग में सर्व समुद्र पाने का सबसे सरल रास्ता है। ये एक यक्षिणी है जो कुबेर देवता की सेवा रहती है। सारे धन्य-धान्य, सफलता इसके आशीर्वाद से प्राप्त हो सकते हैं। (पृष्ठ-127)
और एक तांत्रिक निंरकुश। इसके बारे में तो उपन्यास पढ कर जाने तो ज्यादा अच्छा है। 
जब दुष्यंत अपने मित्र के घर आया तो उसने महसूस किया की घर में वास्तुशास्त्र के अनुसार बहुत कुछ गड़बड़ है। अपने वास्तु ज्ञान के आधार पर दुष्यंत जैसे रहस्य के नजदीक पहुंचता गया वैसे-वैसे उसे ऐसे खौफनाक नजारे देखने को मिले की उसकी रूह कांप उठी।
- दूर कब्रिस्तान वाली सड़क पर एक खूबसूरत लड़की घूम रही थी। कुछ दूर चलने के बाद वो कब्रिस्तान के दरवाजे के पास पहुंची, कुछ पल ऐसे ही खड़ी रही और फिर कब्रिस्तान के अंदर दाखिल हो गयी। (पृष्ठ-143)
- - रसोई में रखे बर्तन एक-एक कर गिरने लगे और नल अपने आप खुल गया और पानी बहने लगा जो देखते ही देखते लाल रंग में बदल गया। (पृष्ठ-68)

- क्या कारण था की दुष्यंत की जिंदगी में से 'सुकून' गायब था।
- किन कारणों से देव की जिंदगी नरक बन गयी?
- कर्ण पिशाचिनी ने क्या कहर ढाया?
- तांत्रिक निरंकुश के क्या किरदार था?
- कब्रिस्तान वाली लड़की का क्या रहस्य था?
- आखिर इन सब परेशानियों से किसको कैसे सुकून मिला?
             उपन्यास का कथानक है ही इतना डरावना के पाठक सिहर उठता है। प्रत्येक घटनाक्रम अपने आप में अनूठा महसूस होता है। हर घटना एक नया रहस्य लेकर आती है। वास्तु के ज्ञाता दुष्यंत के लिए समझना मुश्किल हो जाता है की यह वास्तु दोष है या भूत-प्रेत की घटनाएं।
उपन्यास में कुछ शाब्दिक गलतियाँ भी हैं। जिस पर आगामी संस्करण में ध्यान देना चाहिए। कथा के स्तर पर उपन्यास प्रशंसा के योग्य है।

भूत-प्रेत गाथा पर लिखा गया यह रोचक होने के साथ-साथ डरावना भी है। यही डरावपनापन उपन्यास की विशेषता है। 
उपन्यास का अंत आश्चर्यजनक है। अगर आप हाॅरर उपन्यास पढना पसंद करते हैं तो यह उपन्यास अवश्य पढें, आपको पसंद आयेगा।

उपन्यास- सुकून
लेखक- विक्रांत शुक्ला
प्रकाशक- redgrab
पृष्ठ- 192 
मूल्य- 150


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