अर्जुन -पण्डित का रोमांचक सफर
तिलिस्मी खजाना- नृपेन्द्र शर्मा
Fly Dream Publication द्वारा कुछ अत्यंत रोचक किताबों की श्रृंखला जारी की गयी है। मैंने इन दिनों प्रकाशन की पांच किताबे सतत पढी, और सभी मेरे को अच्छी लगी।
रोबोटोपिया - संदीप अग्रवाल
तिलस्मी खजाना- नृपेन्द्र शर्मा
कुआं- ब्रजेश गौड
छोटू - अरुण गोड़
भूतिया हवेली- मनमोहन भाटिया
पांचों किताबों हाॅरर, फैंटेसी, इलैक्टोनिक युग और मानवीय संवदेना जैसे विषयों पर आधारित हैं।
अब बात करते हैं नृपेन्द्र शर्मा के उपन्यास 'तिलस्मी खजाना' की। सबसे पहले उपन्यास के अंतिम आवरण पृष्ठ पर उपन्यास के बारे में जो जानकारी दी गयी है वह पढ लेते हैं।
बंद खण्डहर के दरवाजों में, तिलस्मी खजाना कर रहा है, सदियों से इंतजार।
आखिर क्या है रहस्य, खण्डहर में बिखरे नर कंकालों का?
और किसको बुला रही हैं खण्डहर से आती आवाजें?
दो वीर युवक 'अर्जुन- पण्डित' निकल पड़े हैं तिलस्मी खजाने की तलाश में।
क्या परियों का नृत्य देखने के बाद, वो उनके मायाजाल से बच पायेंगे?
और क्या राह में आने वाली मुसीबतों से लड़ पायेंगे?
और क्या भेद पायेंगे अपने बल और बुद्धि से खजाने का तिलिस्म का रहस्य....?
जानने के लिए पढें 'अर्जुन-पण्डित' की तिलिस्म, युद्ध और मोहब्बत की दास्ताँ -'तिलिस्मी खजाना'।
सागर पण्डित और अर्जुन सिंह दोनों परम मित्र हैं। अर्जुन जहाँ शारीरिक बल में श्रेष्ठ है वहीं पण्डित बुद्धि का प्रयोग करता है। खतरों से टकराना दोनों की रुचि है। अर्जुन तो यहाँ तक कहता है- "...हम कान भी खुजाते हैं तो चाकू की नोक से।" (पृष्ठ-19)
एक अमावस्या की रात को दोनों तिलस्मी खजाने की तलाश में निकलते हैं। खजाने के बारे में कहते हैं- जिसे खोजने के चक्कर में ना जाने कितने लोग दोबारा घर लौट कर नहीं आए।"(पृष्ठ-06)। लेकिन 'अर्जुन-पण्डित' किसी से डरने वाले नहीं वो तो कहते हैं- हिम्मत करके चलते हैं, परीक्षा दी है तो परिणाम भी लेकर जायेंगे।(पृष्ठ-12)
लेकिन यह यह इतना आसान न था। उनके रास्ते में विभिन्न मायावी जाल बिखरे हुए थे। और निशंक, बिल्लार तथा धाकड़ जैसे लूटेरे सदियों से खजाने को लूटना चाहते हैं।
लेकिन वह खजाना कोई साधारण खजाना नहीं था, वह तो तिलस्मी खजाना था और वह उसके रक्षक भी थे, खजाने के लुटेरे भी थे और सबसे बड़ी बात वह खजाना मिलेगा सिर्फ असली वारिस को।
- क्या अर्जुन-पण्डित खजाने तक पहुंच पाये।
- क्या खजाना उन्हें मिल पाया?
- खजाने का असली वारिस कौन था?
- बाबा तारकेश्वर का क्या रहस्य था?
- निशंक, बिल्लर और धाकड़ आदि का क्या हुआ?
उपन्यास में दो नायक हैं 'अर्जुन-पण्डित' और दोनों मायवी शक्तियों से टकराते हैं। उनका सहयोगी है साधु तारकेश्वर शास्त्री पत्र श्री व्योमकेश्वर जी और अप्सराएँ रतिका तथा कामायनी।
अर्जुन के संवाद पाठक के चेहरे पर एक हास्य बरकरार रखते हैं। जैसे-
"अब शैतान से दोस्ती की ही है तो मरने से भी डरना बंद ही करना पड़ेगा न।"- अर्जुन बुदबुदया।
" क्या कहा तुमने?"
"कुछ नहीं यार....।"
कुछ खामियां सी-
अचानक पण्डित की पीठ पर एक धारदार प्रहार हुआ। मुड़ कर देखा तो, धाकड़ तलवार लिए अपना दूसरा प्रहार करने वाला था। (पृष्ठ-91)
मेरे विचार से तलवार का एक ही धारदार वार काफी है। पण्डित को पीछे मुड़ कर देखने का वक्त ही नहीं मिलता।
पृष्ठ पन्द्रह पर एक अप्सरा का नाम 'स्वर्णवल्लरी' है, लेकिन वह बाद में कहीं दृष्टिगोचर नहीं होती।
उपन्यास का एक महत्वपूर्ण पात्र है सूरज सिंह। उपन्यास में सूरज सिंह का 'मौखिक' किरदार बहुत कम है, हालांकि इसका विस्तार होना था। वह उपन्यास में एक मूक प्राणी सा नजर आता है, बस अंतिम समय को छोडकर।
उपन्यास को छोटे-छोटे खण्डों में विभक्त किया गया है और सभी के रोचक शीर्षक भी हैं। जैसे- तिलिस्मी मिनार, तिलिस्मी युद्ध आदि।
लेखक में कहानी में जो भाषा शैली प्रयुक्त की है वह रोचक है। किसी भी घटना के लिए जो शब्द प्रयुक्त हुये हैं वे शब्द बहुत उचित ढंग से कथा को परिभाषित करने में सक्षम हैं।
चर्रर्र! खररर! खटक! चट! की आवाज हुयी और हवा एकदम से बहुत तेज होकर सांय-सांय करने लगी। सारे मैदान में उस तेज हवा में सैंकड़ों दिए जलने बुझने जैसा आभास होने लगा। (पृष्ठ-07)
उपन्यास में जो तिलिस्म का जादू है वह अगर कुछ और कठिन होता तो पढने का आनंद और बढ जाता। हालांकि वह भी बहुत रोचक और दिलचस्प है। कथा को कहीं न्यूनतम रूप नहीं देता बल्कि रोचकता बढाता ही है।
उपन्यास में शाब्दिक गलतियों का आरम्भ प्रथम पृष्ठ से ही हो जाता है। जैसे परींदे, हिदयात आदि। लेकिन बाद में ऐसा कुछ नजर नहीं आता। यह अच्छी बात है।
तिलिस्मी दुनियां पर आधारित यह रोचक उपन्यास है। उपन्यास के आरम्भ से ही रोचकता बन जाती है और वह अंत तक बरकरार रहती है। सभी पात्र पाठक का मनोरंजन करने में सक्षम हैं।
अगर आप तिलिस्मी उपन्यास पसंद करते हैं तो यह उपन्यास आपको अवश्य पसंद आयेगा।
निष्कर्ष-
नृपेन्द्र शर्मा द्वारा लिखित 'तिलिस्मी खजाना' एक बेहतरीन रचना है। मायावी चमत्कार और उनको असफल करते दो नायक हैं। वहीं सदियों से खजाने को लूटने को बैठे कुछ शैतान भी हैं।
एक्शन, मायावी चमत्कार और बुद्धिबल के संयुक्त मिश्रित से रचित यह उपन्यास पठनीय है।
उपन्यास- तिलस्मी खजाना
लेखक- नृपेन्द्र शर्मा
संस्करण- मार्च, 2019
पृष्ठ - 100
मूल्य- 150₹
प्रकाशक- flyDreams Publication
शृंखला- #अर्जुन-पण्डित सीरिज
तिलिस्मी खजाना- नृपेन्द्र शर्मा
Fly Dream Publication द्वारा कुछ अत्यंत रोचक किताबों की श्रृंखला जारी की गयी है। मैंने इन दिनों प्रकाशन की पांच किताबे सतत पढी, और सभी मेरे को अच्छी लगी।
रोबोटोपिया - संदीप अग्रवाल
तिलस्मी खजाना- नृपेन्द्र शर्मा
कुआं- ब्रजेश गौड
छोटू - अरुण गोड़
भूतिया हवेली- मनमोहन भाटिया
पांचों किताबों हाॅरर, फैंटेसी, इलैक्टोनिक युग और मानवीय संवदेना जैसे विषयों पर आधारित हैं।
अब बात करते हैं नृपेन्द्र शर्मा के उपन्यास 'तिलस्मी खजाना' की। सबसे पहले उपन्यास के अंतिम आवरण पृष्ठ पर उपन्यास के बारे में जो जानकारी दी गयी है वह पढ लेते हैं।
बंद खण्डहर के दरवाजों में, तिलस्मी खजाना कर रहा है, सदियों से इंतजार।
आखिर क्या है रहस्य, खण्डहर में बिखरे नर कंकालों का?
और किसको बुला रही हैं खण्डहर से आती आवाजें?
दो वीर युवक 'अर्जुन- पण्डित' निकल पड़े हैं तिलस्मी खजाने की तलाश में।
क्या परियों का नृत्य देखने के बाद, वो उनके मायाजाल से बच पायेंगे?
और क्या राह में आने वाली मुसीबतों से लड़ पायेंगे?
और क्या भेद पायेंगे अपने बल और बुद्धि से खजाने का तिलिस्म का रहस्य....?
जानने के लिए पढें 'अर्जुन-पण्डित' की तिलिस्म, युद्ध और मोहब्बत की दास्ताँ -'तिलिस्मी खजाना'।
सागर पण्डित और अर्जुन सिंह दोनों परम मित्र हैं। अर्जुन जहाँ शारीरिक बल में श्रेष्ठ है वहीं पण्डित बुद्धि का प्रयोग करता है। खतरों से टकराना दोनों की रुचि है। अर्जुन तो यहाँ तक कहता है- "...हम कान भी खुजाते हैं तो चाकू की नोक से।" (पृष्ठ-19)
एक अमावस्या की रात को दोनों तिलस्मी खजाने की तलाश में निकलते हैं। खजाने के बारे में कहते हैं- जिसे खोजने के चक्कर में ना जाने कितने लोग दोबारा घर लौट कर नहीं आए।"(पृष्ठ-06)। लेकिन 'अर्जुन-पण्डित' किसी से डरने वाले नहीं वो तो कहते हैं- हिम्मत करके चलते हैं, परीक्षा दी है तो परिणाम भी लेकर जायेंगे।(पृष्ठ-12)
लेकिन यह यह इतना आसान न था। उनके रास्ते में विभिन्न मायावी जाल बिखरे हुए थे। और निशंक, बिल्लार तथा धाकड़ जैसे लूटेरे सदियों से खजाने को लूटना चाहते हैं।
लेकिन वह खजाना कोई साधारण खजाना नहीं था, वह तो तिलस्मी खजाना था और वह उसके रक्षक भी थे, खजाने के लुटेरे भी थे और सबसे बड़ी बात वह खजाना मिलेगा सिर्फ असली वारिस को।
- क्या अर्जुन-पण्डित खजाने तक पहुंच पाये।
- क्या खजाना उन्हें मिल पाया?
- खजाने का असली वारिस कौन था?
- बाबा तारकेश्वर का क्या रहस्य था?
- निशंक, बिल्लर और धाकड़ आदि का क्या हुआ?
उपन्यास में दो नायक हैं 'अर्जुन-पण्डित' और दोनों मायवी शक्तियों से टकराते हैं। उनका सहयोगी है साधु तारकेश्वर शास्त्री पत्र श्री व्योमकेश्वर जी और अप्सराएँ रतिका तथा कामायनी।
अर्जुन के संवाद पाठक के चेहरे पर एक हास्य बरकरार रखते हैं। जैसे-
"अब शैतान से दोस्ती की ही है तो मरने से भी डरना बंद ही करना पड़ेगा न।"- अर्जुन बुदबुदया।
" क्या कहा तुमने?"
"कुछ नहीं यार....।"
कुछ खामियां सी-
अचानक पण्डित की पीठ पर एक धारदार प्रहार हुआ। मुड़ कर देखा तो, धाकड़ तलवार लिए अपना दूसरा प्रहार करने वाला था। (पृष्ठ-91)
मेरे विचार से तलवार का एक ही धारदार वार काफी है। पण्डित को पीछे मुड़ कर देखने का वक्त ही नहीं मिलता।
पृष्ठ पन्द्रह पर एक अप्सरा का नाम 'स्वर्णवल्लरी' है, लेकिन वह बाद में कहीं दृष्टिगोचर नहीं होती।
उपन्यास का एक महत्वपूर्ण पात्र है सूरज सिंह। उपन्यास में सूरज सिंह का 'मौखिक' किरदार बहुत कम है, हालांकि इसका विस्तार होना था। वह उपन्यास में एक मूक प्राणी सा नजर आता है, बस अंतिम समय को छोडकर।
उपन्यास को छोटे-छोटे खण्डों में विभक्त किया गया है और सभी के रोचक शीर्षक भी हैं। जैसे- तिलिस्मी मिनार, तिलिस्मी युद्ध आदि।
लेखक में कहानी में जो भाषा शैली प्रयुक्त की है वह रोचक है। किसी भी घटना के लिए जो शब्द प्रयुक्त हुये हैं वे शब्द बहुत उचित ढंग से कथा को परिभाषित करने में सक्षम हैं।
चर्रर्र! खररर! खटक! चट! की आवाज हुयी और हवा एकदम से बहुत तेज होकर सांय-सांय करने लगी। सारे मैदान में उस तेज हवा में सैंकड़ों दिए जलने बुझने जैसा आभास होने लगा। (पृष्ठ-07)
उपन्यास में जो तिलिस्म का जादू है वह अगर कुछ और कठिन होता तो पढने का आनंद और बढ जाता। हालांकि वह भी बहुत रोचक और दिलचस्प है। कथा को कहीं न्यूनतम रूप नहीं देता बल्कि रोचकता बढाता ही है।
उपन्यास में शाब्दिक गलतियों का आरम्भ प्रथम पृष्ठ से ही हो जाता है। जैसे परींदे, हिदयात आदि। लेकिन बाद में ऐसा कुछ नजर नहीं आता। यह अच्छी बात है।
तिलिस्मी दुनियां पर आधारित यह रोचक उपन्यास है। उपन्यास के आरम्भ से ही रोचकता बन जाती है और वह अंत तक बरकरार रहती है। सभी पात्र पाठक का मनोरंजन करने में सक्षम हैं।
अगर आप तिलिस्मी उपन्यास पसंद करते हैं तो यह उपन्यास आपको अवश्य पसंद आयेगा।
निष्कर्ष-
नृपेन्द्र शर्मा द्वारा लिखित 'तिलिस्मी खजाना' एक बेहतरीन रचना है। मायावी चमत्कार और उनको असफल करते दो नायक हैं। वहीं सदियों से खजाने को लूटने को बैठे कुछ शैतान भी हैं।
एक्शन, मायावी चमत्कार और बुद्धिबल के संयुक्त मिश्रित से रचित यह उपन्यास पठनीय है।
उपन्यास- तिलस्मी खजाना
लेखक- नृपेन्द्र शर्मा
संस्करण- मार्च, 2019
पृष्ठ - 100
मूल्य- 150₹
प्रकाशक- flyDreams Publication
शृंखला- #अर्जुन-पण्डित सीरिज
गुरप्रीत सिंह (व्याख्याता-हिन्दी) |
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