Friday, 31 May 2019

195. नागाओं का रहस्य- अमीश

शिव रचना त्रय का द्वितीय भाग
नागाओं का रहस्य- अमीश त्रिपाठी

'मेलूहा के मृत्युंजय' ने शिव और सूर्यवंशियों की कहानी का सिरा जहाँ छोड़ा है ठीक वहीं से 'नागाओं का रहस्य' की कहानी आगे बढती है।
नागाओं ने शिव के मित्र बृहस्पति की हत्या की और अब उसकी पत्नी सत्ती की जान के पीछे पड़े हुए हैं। क्रूर हत्यारों की जाति नागाओं के इरादों का विफल करना ही शिव का एकमात्र लक्ष्य बन जाता है। प्रतिशोध की राह पर चलते हुए शिव नागवंशियों के क्षेत्र में पहुंचता है। यहाँ उसे मेलूहा के हमलवार को ढूंढना है। इस रोमांचक और खतरों से भरे सफर में दोस्त कब दुश्मन बन जाते हैं पता ही नहीं चलता।

- क्या शिव चन्द्रवंशियों और नागाओं से जुड़े सत्य तक पहुंच पाएगा?
- आखिर नागाओं का रहस्य क्या है?
- क्या शिव अपनी यात्रा में विजयी हो पायेगा?

रहस्य और रोमांच की दुनियां को जानने के लिए पढें -'नागाओं का रहस्य।'

          इस उपन्यास का आरम्भ नागाओं की खोज से होता है। नागाओं ने सती के अपहरण की कोशिश की, नागाओं पर दूसरा आरोप है बृहस्पति की हत्या का।
      शिव नागाओं की खोज करके उन्हे सजा देना चाहता है। शिव को नहीं पता की आखिर नागा कहां रहते हैं। शिव अपने काफिले के साथ नागाओं की खोज में निकलता है। वह काशी, अयोध्या आदि स्थानों से होता हुआ अनंतः नागाओं को खोज लेता है। यह सफर, यह खोज विभिन पड़ावों से गुजराती है।
     देख जाये तो इस उपन्यास में उन्हीं जगहों का वर्णन है जिन से श्री राम का संबंध रहा है। वह चाहे अयोध्या हो, काशि हो या वंचपटी।
        - सती की माता कई बार जिक्र करती है पंचवटी जाने का, जहाँ नागा रहते हैं।
        - नागा जब चाहे, जहाँ चाहे हमला कर देते हैं।
लेकिन शिव को उन तक पहुंचने में एक साल लग जाता है।‌ तो फिर नागा चंद दिनों में चाहे जहाँ कैसे पहुंच जाते थे...यह कहीं स्पष्ट नहीं।
          शिव पूरे उपन्यास में नागाओं को को खोजता रहता है, जिनका पता किसी को नहीं । फिर सती की माँ वहाँ जानेके बारे में अक्सर जिक्र करती रहती है।
 
      उपन्यास में परशुराम का वर्णन है। जिसे की उपन्यास में एक दस्यु दिखाया गया है, वाह! अजीब कल्पना है। चलो आखिर कल्पना ही तो है। "जी हां, प्रभु। मेरे पिता जमदग्नि एक ब्राह्मण विद्वान थे। मेरी माँ रेणुका क्षत्रिय कुल की थी।" (पृष्ठ-273)
परशु राम 'वासुदेव' थे। वासुदेव, जो की अच्छाई का रास्ते दिखाने वाले होते हैं।
शिव के हाथ से तलवार छूट गयी, "वासुदेव?"
     अब समझ में नहीं आता की स्वयं परशुराम जो की वासुदेव हैं, वे तो अंतर्दृष्टि रखते हैं। उन्हे शिव की वास्तविकता का का पता नहीं चला।
युद्ध के पश्चात जब शिव को और परशुराम को परस्पर एक दूसरे की वास्तविकता का पता चल जाता है तो फिर परशुराम को बंदी बनाने की आवश्यकता कहां रह गयी।
     अगर उपन्यास को ध्यान से पढा जाये तो एक नहीं अनेक त्रुटियाँ नजर आती हैं। लेकिन उपन्यास का अनावश्यक विस्तार इसे ध्यान से पढने ही नहीं देता। (हा...हा..हा...)

उपन्यास में विस्तार बहुत ज्यादा है। एक ही घटना का बहुत ज्यादा विस्तार है, अगर कहीं यात्रा का विवरण आ गया तो उसके आरम्भ से लेकर, रास्तों का वर्णन, दिन -रात का वर्णन चलता रहेगा।
अगर कहानी मूल कथानक से न भटके तो अच्छा था। लेकिन लगता है जैसे लेखक का मंतव्य पृष्ठ की संख्या बढाना रहा है।

उपन्यास के कथन वास्तव में स्मरणीय है। एक उदाहरण देखें
-  विगत पाप जैसा कुछ भी नहीं होता है, सती! केवल एक ही जीवन होता है। एक ही सत्य होता है। इसके अतिरिक्त बाकी सब बस सिद्धांत होते हैं। (पृष्ठ-114)

उपन्यास-     नागाओं का रहस्य
लेखक-       अमीश
प्रकाशक-     वेस्टलैण्ड
पृष्ठ-           403
मूल्य-         225₹

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