Monday, 3 March 2025

636. गोल आँखें- दत्त भारती

एक प्रेम कहानी
गोल आँखें- दत्त भारती

रेस्टोरों की भीड़ घंटती जा रही थी। सिनेमा का शो शुरू होने वाला था-इसलिए लोग धीरे-धीरे रेस्टोरां खाली कर रहे थे। कोने की एक मेज पर एक पुरुष और एक लड़की बैठे बातचीत में मग्न थे ।
'ज्योति !' पुरुष की भारी आबाज उभरी- 'तुम चाहो तो अपने फैसले पर एक बार फिर विचार कर सकती हो ।'
'यादो ! मैं खूब समझती हूँ। मैं तुम्हारी भावनाओं का सम्मान करती हूँ।'
'फिर वही शब्द... सम्मान।' यादो ने जोर का ठहाका लगाया, 'यदि तुम इश्क शब्द का प्रयोग नहीं करतीं तो प्रेम या प्यार कह सकती हो ।'
'मैं जानती हूँ- मैं जानती हूँ- मैं तुम्हें बहुत पसन्द करती हूँ।' ज्योति ने कहा ।
'फिर वही धोखा-पसन्द - पसन्द- आदर- क्या मैं शो-केस में पड़ा हुआ सूट का कपड़ा हूं जो तुम्हें पसन्द आ गया है ?' यादो ने गुर्रा कर कहा ।
'क्या तुम्हें ये शब्द भी पसन्द नहीं ?'
'नहीं ।'
'ओह!' ज्योति ने गहरा साँस खींचा ।

यह अंश दत्त भारती जी द्वारा लिखित उपन्यास 'गोल आँखें' के प्रथम पृष्ठ से हैं । दत्त भारती जी का मेरे द्वारा पढा जाने वाला यह द्वितीय उपन्यास है। राजस्थान के हनुमानगढ जिले के संगरिया तहसील के एक छोटे से गांव से संबंध रखते हैं श्रीमान मनीराम जी सहारण, उम्र 80 साल । और पढना पसंद करते हैं दत्त भारती जी को । उन्हीं के लिए यह उपन्यास लिखा था, उनको भेजने से पहले मैं भी पढने का लोभ संवरण न कर पाया । मुझे उपन्यास पसंद आया, हालांकि मैं प्रेम कहानियाँ कम पढता है, पर इस उपन्यास को पढने में आनंद आया ।
अब बात करते हैं उपन्यास के कथानक की ।
उपन्यास में मुख्यतः चार पात्र हैं। एक है प्रसिद्ध लेखक जीवन और द्वितीय पात्र है उसकी सेक्रेटरी ज्योति तृतीय पात्र है जीवन का प्रकाशक 'यादो' और चतुर्थ पात्र है प्रसिद्ध फिल्म अभिनेत्री और जीवन की पूर्व प्रेयसी माधवी ।
  कभी अभिनेत्री माधवी और लेखक जीवन प्रेमी थे, दोनों में घनिष्ठ प्रेम था पर किसी कारण से माधवी अपने प्रेमी जीवन से अलग हो गयी थी और जीवन मृत्यु को प्राप्त होने वाला था, तब जीवन का जीवन उसकी सेक्रेटरी ज्योति और नौकर श्याम ने बचाया था । जीवन का जीवन तो खैर बच गया पर जीवन के जीवन से माधवी की याद नहीं गयी वह आज भी माधवी से प्रेम करता था उसके लौट आने की उम्मीद करता था ।
   जीवन अपने नये उपन्यास के लेखन के लिए कश्मीर जाना चाहता था अपनी सेक्रेटरी ज्योति के साथ और वहीं जीवन का प्रकाशक 'यादो' जीवन के सेक्रेटरी ज्योति से प्रेम करता है और उसके सामने प्रणय निवेदन करता है।
और ज्योति यादो से एक महीने का समय मांगती है क्योंकि यह एक महीना उसे कश्मीर में जीवन के साथ बीताना था और क्योंकि ज्योति जीवन से प्रेम करती थी और वह सोचती / चाहती थी कि जीवन के जीवन में उसके प्रेम अंकुर खिल जायें ।
अगर एक महीने में जीवन और ज्योति एक न हो सके तो ज्योति कश्मीर से लौट कर यादो से विवाह कर लेगी ।
अब एक तरफ जीवन और माधवी का प्रेम है।
एक तरफ ज्योति जीवन का चाहती है।
एक तरफ यादो ज्योति को चाहता है।
अब किस का प्रेम सफल होता है और कैसे यही पठनीय है।
   अब लघु आकार है और कहानी तीव्र गति से चलती है तो पाठक एक ही बैठक में इस उपन्यास को आसानी से पढ सकता है। जब उपन्यास लघु आकार का है तो इसमें कोई अनावश्यक प्रसंग नहीं है जो भी है वह कहानी, पात्र और संवाद हैं।
वैसे मैं प्रेम कहानियाँ नहीं पढता और वह भी त्रिकोणीय प्रेम कहानियाँ, वह तो बिलकुल भी नहीं । पर इस उपन्यास की कहानी में रोचकता और सजावट है जिसके चलते मुझे उपन्यास अच्छा लगा ।
कहानी समय समय पर बदलती रहती है। कभी इस करवट तो कभी उस करवट । और जब उपन्यास में माधवी का प्रवेश होता है तो कहानी में और रोचकता बढ जाती है और जब कहानी में एक और पात्र 'राॅबर्ट' अपने पिस्तौल के साथ प्रवेश करता है कहानी में थोड़ा थ्रिल बढ जाता है।
कहानी का अंत सुखद और मन को छुने वाला है।
अगर आप प्रेम कहानियाँ पसंद करते हैं तो यह छोटी सी प्रेम कहानी भी पढ लीजिएगा, हालांकि ऐसे विषयों पर फिल्मों का बहुत निर्माण हो चुका है फिर भी कहानी आपको अच्छी लगेगी ।
  पॉकेट बुक्स की एक बात जो मुझे बहुत अखरती है और वह बात है उपन्यासों पर प्रकाशन वर्ष का विवरण न होना ।

उपन्यास- गोल आँखें
लेखक-    दत्त भारती
प्रकाशक- राजीव पॉकेट बुक्स, कोर्ट रोड- सहारनपुर
पृष्ठ-       98

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