राजेश सीरीज का प्रथम उपन्यास
भयंकर जाल - ओमप्रकाश शर्मा
केन्द्रीय खुफिया विभाग के कार्यालय में आज भीषण एवं भयपूर्ण खामोशी छाई हुई थी।
चीफ आफ स्टाफ श्री नायडू आज कार्यालय में आये हुये थे।
पूरे खुफिया विभाग के कर्मचारियों में श्री नायडू एक सख्त और हृदयहीन अफसर के रूप में विख्यात हैं। नये और पुराने... सभी कर्मचारी इस श्यामवर्ण बूढ़े, पतले-दुबले आदमी के कारण आज भयभीत-से अपने काम में लगे हुए थे।
- 'मिस्टर राजेश, साहब ने आपको बुलाया है।' चपरासी ने आकर कहा।
राजेश चैंक पड़ा... इर्द-गिर्द बैठे कर्मचारी अज्ञात भय से व्हिवल हो सहानुभूतिपूर्ण दृष्टि से राजेश को निहारने लगे।
नवयुवक राजेश की नियुक्ति अभी डेढ़ महीने पूर्व ही केन्द्रीय खुफिया विभाग में हुई थी। पढ़ाई समाप्त करके तीन साल उसने इस काम की ट्रेनिंग ली थी, ये सही है कि ट्रेनिंग के बाद की परीक्षा में उसने प्रथम श्रेणी प्राप्त की थी, किन्तु केन्द्रीय खुफिया विभाग में उसे स्थान मिल जायेगा इसकी तो कल्पना भी उसने न की थी।
एक क्षण के लिये राजेश स्तब्ध हो गया। साहब ने उसे क्यों बुलाया है?
अभी तक तो उसे कोई पूर्ण उत्तरदायित्व का काम भी नहीं सौंपा गया था, फिर... फिर उससे कौन-सी ऐसी गलती हुई जिससे चीफ आफ स्टाफ ने आते ही पहला कोपभाजन उसे बनाया। नौकरी लग जाने के पश्चात् भविष्य के लिये अनेकों सुन्दर सपने उसने संजोये थे, किन्तु बुलावे की जरा-सी बात से उसे ऐसा प्रतीत हुआ मानो दिल का शीशा चूर-चूर हो गया हो।
कठिनतापूर्वक वह उठा। उसे प्रतीत हो रहा था मानो उसके पैर आगे बढ़ने के लिये साफ इन्कार कर रहे हों।
धड़कते हुए हृदय से जैसे ही उसने कमरे के दरवाजे पर लगी चिक को हटाया अन्दर से आवाज आई- 'मिस्टर राजेश, चले आओ।' (भयंकर जाल- प्रथम पृष्ठ)
नमस्ते पाठक मित्रो,
आज प्रस्तुत है जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा जी द्वारा लिखित सभ्य जासूस राजेश शृंखला का प्रथम उपन्यास 'भयंकर जाल' की समीक्षा ।
उपर्युक्त दृश्य में आप देख चुके है की खुफिया विभाग के चीफ ने राजेश को अपने कार्यालय में बुलाया और फिर राजेश को सोना स्मगलरों के विषय में चर्चा की ।
-'एक केस सुनाता हूं तुम्हें।' सिगार सुलगाते हुए नायडू बोले-'ये तो आम बात है कि कस्टम डिपार्टमेन्ट की निगरानी के बावजूद देश की सभी बन्दरगाहों से बिना टैक्स दिए कितना ही माल आता-जाता है, किन्तु विगत साल से बम्बई की बन्दरगाह से गैरकानूनी रूप में जितना सोना आया है वो प्रत्येक अधिकारी की चिंता का कारण बन गया है। दस महीने से सोना लाने वालों को ढूंढने का काम सरकार ने हमारे डिपार्टमेन्ट को सौंप दिया है। किन्तु अभी तक हम लोग तकरीबन कुछ भी नहीं कर पाये हैं। (उपन्यास अंश)
सोना स्मगलिंग का ज्यादा कार्य मुम्बई की एक फर्म द्वारा किया जाता है ।
"देखो, अब तक इस नतीजे पर पहुंचा जा सकता है कि बाहर से सोना लाने के काम में बम्बई की प्रसिद्ध फर्म रामसरन दास सूरजमल के मालिक सेठ श्यामचरण का विशेष हाथ होता है।''(उपन्यास अंश)
और फिर राजेश इस कार्य को अपने हाथ में लेते हैं और रवाना होते हैं मुम्बई की ओर । जहां वह 'फर्म रामसरन दास सूरजमल' की छानबीन करते हैं और एक दिन उन्हें सफलता मिलती है की यह सोना अमेरिका से भारत लाया जाता है। और फर्म के चार व्यक्ति जब अमरीका जाते हैं तो राजेश भी उसी हवाई जहाज में उनका साथी बन जाता हैं। यहां राजेश अपना परिचय एक जादूगर के रूप में देता है।
फर्म के चार व्यक्ति क्रमश देवराज, तारा, तेज सिंह, सूर्यप्रकाश जो फर्म के मैनेजर, सेक्रेटरी इत्यादि पदों से यात्रा करते हैं।
सर्वप्रथम हवाई यात्रा में राजेश का इनसे परिचय होता है, फिर परिचय घनिष्ठता में बदलता है और देवराज अपना एक साथी खोने के पश्चात राजेश को अपना साथी बनाना चाहता है। और यह काम वह सौंपता है तारा को।
तारा एक वक्त की मारी लड़की है और परिस्थितियों के चलते वह देशराज के संपर्क में 'अर्द्ध वेश्या' की भूमिका अदा करती है। वही तारा राजेश से प्रभावित होती है और दोनों का संपर्क शीघ्र घनिष्ठता में बदल जाता है।
-आप विश्वास करें, मेरी मजबूरियों का फायदा उठाकर उसने मुझे अपने शिंकजे में जकड़ लिया है। मुझे इसलिये ये अपने साथ रखता है कि जहां पर कोई विपत्ति आये वहां मुझे ढाल बनाकर इस्तेमाल करे। अधिक स्पष्ट तरीके से कहूं कि मुझे अपना उल्लू सीधा करने के लिये लोगों के हाथों सौंप देता है।
अमेरिका से देशराज टीम जब जलमार्ग से वापस लौटती है तो वह राजेश को भी अपने साथ चलने को सहमत कर लेते हैं।
यह यात्रा 23 दिन की है और यही समय था जब राजेश को यह पता लगाना था कि आखिर सोना है कहां । इसी दौरान दो और पात्र उपन्यास में या कहें की जलयान में प्रवेश करते हैं, बूढा जफर और उसका पुत्र दोनों पात्र रोचक हैं।
अब राजेश सोने की स्मगलिंग का रहस्य को कैसे सुलझाता और असली अपराधियों को कैसे कानून के हवाले करता है यह सब पठनीय और रोचक है।
उपन्यास की कुछ और बातें
- यह राजेश सीरीज का प्रथम उपन्यास है।
- इस उपन्यास में राजेश का तारा से संपर्क होता है ।
- खुफिया विभाग के चीफ ऑफ स्टाफ नायडू हैं।
संवाद:-
बुराई और अच्छाई हर इन्सान में होती है। ये परिस्थितियों पर निर्भर है कि मनुष्य में बुराई अधिक प्रविष्ट हो अथवा भलाई ।
- 'मैं अमेरिकन नहीं, हिन्दुस्तानी हूं... कपड़े पहनकर नहाती हूं। चलो, जरा सिर से साबुन लगा देना।'
पात्र:-
तारा उपन्यास की महत्वपूर्ण पात्र है उसका जीवन दुख से परिपूर्ण है।
मैं तो एक अभागी स्त्री हूं। क्या जाने भगवान ने इसी प्रकार लोगों की वासना-पूर्ति के लिये मुझे जन्म दिया हो, किन्तु और जो व्यक्ति इस संसार में आनन्द और सम्मान का जीवन बिता रहे हैं... अच्छा है ऐसे कमीने आदमी के साथ अपराध के दलदल में फंसने से बचे रहें।'
प्रस्तुत उपन्यास 'भयंकर जाल' एक रोचक उपन्यास है। कहानी सामान्य है पर प्रस्तुतीकरण अच्छा है। राजेश - सीरीज का प्रथम होने के कारण पढा जा सकता है।
उपन्यास- भयंकर जाल
लेखक- ओमप्रकाश शर्मा
पृष्ठ- 150
भयंकर जाल - ओमप्रकाश शर्मा
केन्द्रीय खुफिया विभाग के कार्यालय में आज भीषण एवं भयपूर्ण खामोशी छाई हुई थी।
चीफ आफ स्टाफ श्री नायडू आज कार्यालय में आये हुये थे।
पूरे खुफिया विभाग के कर्मचारियों में श्री नायडू एक सख्त और हृदयहीन अफसर के रूप में विख्यात हैं। नये और पुराने... सभी कर्मचारी इस श्यामवर्ण बूढ़े, पतले-दुबले आदमी के कारण आज भयभीत-से अपने काम में लगे हुए थे।
- 'मिस्टर राजेश, साहब ने आपको बुलाया है।' चपरासी ने आकर कहा।
राजेश चैंक पड़ा... इर्द-गिर्द बैठे कर्मचारी अज्ञात भय से व्हिवल हो सहानुभूतिपूर्ण दृष्टि से राजेश को निहारने लगे।
नवयुवक राजेश की नियुक्ति अभी डेढ़ महीने पूर्व ही केन्द्रीय खुफिया विभाग में हुई थी। पढ़ाई समाप्त करके तीन साल उसने इस काम की ट्रेनिंग ली थी, ये सही है कि ट्रेनिंग के बाद की परीक्षा में उसने प्रथम श्रेणी प्राप्त की थी, किन्तु केन्द्रीय खुफिया विभाग में उसे स्थान मिल जायेगा इसकी तो कल्पना भी उसने न की थी।
एक क्षण के लिये राजेश स्तब्ध हो गया। साहब ने उसे क्यों बुलाया है?
अभी तक तो उसे कोई पूर्ण उत्तरदायित्व का काम भी नहीं सौंपा गया था, फिर... फिर उससे कौन-सी ऐसी गलती हुई जिससे चीफ आफ स्टाफ ने आते ही पहला कोपभाजन उसे बनाया। नौकरी लग जाने के पश्चात् भविष्य के लिये अनेकों सुन्दर सपने उसने संजोये थे, किन्तु बुलावे की जरा-सी बात से उसे ऐसा प्रतीत हुआ मानो दिल का शीशा चूर-चूर हो गया हो।
कठिनतापूर्वक वह उठा। उसे प्रतीत हो रहा था मानो उसके पैर आगे बढ़ने के लिये साफ इन्कार कर रहे हों।
धड़कते हुए हृदय से जैसे ही उसने कमरे के दरवाजे पर लगी चिक को हटाया अन्दर से आवाज आई- 'मिस्टर राजेश, चले आओ।' (भयंकर जाल- प्रथम पृष्ठ)
नमस्ते पाठक मित्रो,
आज प्रस्तुत है जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा जी द्वारा लिखित सभ्य जासूस राजेश शृंखला का प्रथम उपन्यास 'भयंकर जाल' की समीक्षा ।
उपर्युक्त दृश्य में आप देख चुके है की खुफिया विभाग के चीफ ने राजेश को अपने कार्यालय में बुलाया और फिर राजेश को सोना स्मगलरों के विषय में चर्चा की ।
-'एक केस सुनाता हूं तुम्हें।' सिगार सुलगाते हुए नायडू बोले-'ये तो आम बात है कि कस्टम डिपार्टमेन्ट की निगरानी के बावजूद देश की सभी बन्दरगाहों से बिना टैक्स दिए कितना ही माल आता-जाता है, किन्तु विगत साल से बम्बई की बन्दरगाह से गैरकानूनी रूप में जितना सोना आया है वो प्रत्येक अधिकारी की चिंता का कारण बन गया है। दस महीने से सोना लाने वालों को ढूंढने का काम सरकार ने हमारे डिपार्टमेन्ट को सौंप दिया है। किन्तु अभी तक हम लोग तकरीबन कुछ भी नहीं कर पाये हैं। (उपन्यास अंश)
सोना स्मगलिंग का ज्यादा कार्य मुम्बई की एक फर्म द्वारा किया जाता है ।
"देखो, अब तक इस नतीजे पर पहुंचा जा सकता है कि बाहर से सोना लाने के काम में बम्बई की प्रसिद्ध फर्म रामसरन दास सूरजमल के मालिक सेठ श्यामचरण का विशेष हाथ होता है।''(उपन्यास अंश)
और फिर राजेश इस कार्य को अपने हाथ में लेते हैं और रवाना होते हैं मुम्बई की ओर । जहां वह 'फर्म रामसरन दास सूरजमल' की छानबीन करते हैं और एक दिन उन्हें सफलता मिलती है की यह सोना अमेरिका से भारत लाया जाता है। और फर्म के चार व्यक्ति जब अमरीका जाते हैं तो राजेश भी उसी हवाई जहाज में उनका साथी बन जाता हैं। यहां राजेश अपना परिचय एक जादूगर के रूप में देता है।
फर्म के चार व्यक्ति क्रमश देवराज, तारा, तेज सिंह, सूर्यप्रकाश जो फर्म के मैनेजर, सेक्रेटरी इत्यादि पदों से यात्रा करते हैं।
सर्वप्रथम हवाई यात्रा में राजेश का इनसे परिचय होता है, फिर परिचय घनिष्ठता में बदलता है और देवराज अपना एक साथी खोने के पश्चात राजेश को अपना साथी बनाना चाहता है। और यह काम वह सौंपता है तारा को।
तारा एक वक्त की मारी लड़की है और परिस्थितियों के चलते वह देशराज के संपर्क में 'अर्द्ध वेश्या' की भूमिका अदा करती है। वही तारा राजेश से प्रभावित होती है और दोनों का संपर्क शीघ्र घनिष्ठता में बदल जाता है।
-आप विश्वास करें, मेरी मजबूरियों का फायदा उठाकर उसने मुझे अपने शिंकजे में जकड़ लिया है। मुझे इसलिये ये अपने साथ रखता है कि जहां पर कोई विपत्ति आये वहां मुझे ढाल बनाकर इस्तेमाल करे। अधिक स्पष्ट तरीके से कहूं कि मुझे अपना उल्लू सीधा करने के लिये लोगों के हाथों सौंप देता है।
अमेरिका से देशराज टीम जब जलमार्ग से वापस लौटती है तो वह राजेश को भी अपने साथ चलने को सहमत कर लेते हैं।
यह यात्रा 23 दिन की है और यही समय था जब राजेश को यह पता लगाना था कि आखिर सोना है कहां । इसी दौरान दो और पात्र उपन्यास में या कहें की जलयान में प्रवेश करते हैं, बूढा जफर और उसका पुत्र दोनों पात्र रोचक हैं।
अब राजेश सोने की स्मगलिंग का रहस्य को कैसे सुलझाता और असली अपराधियों को कैसे कानून के हवाले करता है यह सब पठनीय और रोचक है।
उपन्यास की कुछ और बातें
- यह राजेश सीरीज का प्रथम उपन्यास है।
- इस उपन्यास में राजेश का तारा से संपर्क होता है ।
- खुफिया विभाग के चीफ ऑफ स्टाफ नायडू हैं।
संवाद:-
बुराई और अच्छाई हर इन्सान में होती है। ये परिस्थितियों पर निर्भर है कि मनुष्य में बुराई अधिक प्रविष्ट हो अथवा भलाई ।
- 'मैं अमेरिकन नहीं, हिन्दुस्तानी हूं... कपड़े पहनकर नहाती हूं। चलो, जरा सिर से साबुन लगा देना।'
पात्र:-
तारा उपन्यास की महत्वपूर्ण पात्र है उसका जीवन दुख से परिपूर्ण है।
मैं तो एक अभागी स्त्री हूं। क्या जाने भगवान ने इसी प्रकार लोगों की वासना-पूर्ति के लिये मुझे जन्म दिया हो, किन्तु और जो व्यक्ति इस संसार में आनन्द और सम्मान का जीवन बिता रहे हैं... अच्छा है ऐसे कमीने आदमी के साथ अपराध के दलदल में फंसने से बचे रहें।'
प्रस्तुत उपन्यास 'भयंकर जाल' एक रोचक उपन्यास है। कहानी सामान्य है पर प्रस्तुतीकरण अच्छा है। राजेश - सीरीज का प्रथम होने के कारण पढा जा सकता है।
उपन्यास- भयंकर जाल
लेखक- ओमप्रकाश शर्मा
पृष्ठ- 150
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