Thursday, 20 February 2025

सुनहरे बाल नीली आँखें- ओमप्रकाश शर्मा

कहानी एक गायब हुये बच्चे की
 सुनहरे बाल नीली आँखें- ओमप्रकाश शर्मा


लोकप्रिय उपन्यास साहित्य के सितारे ओमप्रकाश शर्मा जी के उपन्यास का पुनः प्रकाशन होना एक सराहनीय कार्य है । उनके पाठक के लिए एक अनमोल उपहार है । जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा जी जासूसी उपन्यास होते हुये भी अपनी जासूसी कहानियों में मानवीय मूल्यों को महत्व देते थे । 
इनका प्रसिद्ध पात्र राजेश अपने मानवीय मूल्यों के कारण ही अन्य जासूसी कथा पात्रिं से एक अलग पहचान स्थापित कर पाया है । प्रस्तुत उपन्यास उन्हीं राजेश महोदय का है ।
यह कहानी एक एक ऐसी युवती की जो अत्यंत सुंदर थी । जिसके बाल सुनहरे और आँखें नीली थी । जिसे देखकर हर कोई उस पर मोहित हो जाता था और यही खूबसूरती उसके जीवन के लिए अभिशाप सिद्ध हुयी और उस पर आरोप था एक बच्चे को चुराने का।
पूरा एक सप्ताह बीत गया ।
नई दिल्ली के विशाल 'चन्द्र भवन' में श्मशान जैसी उदासी छाई हुई थी... इसलिए कि इस भवन की खुशी, इस भवन का कुलदीपक कोई चुरा कर ले गया था।
      पूरे बावन वर्ष की आयु में 'चन्द्र भवन' के स्वामी चन्द्रमोहन को पुत्र-लाभ हुआ। पहली और दूसरी पत्नी निस्सन्तान मरीं, तीसरी पत्नी ने आकर उनके कुलदीप को प्रज्ज्वलित किया था और वह भी न जाने कहाँ है ? कौन जाने मिलेगा अथवा नहीं मिलेगा ?
     चन्द्रमोहन से अधिक व्याकुल थी उनकी तीसरी पत्नी वनमाला। उन्नीस वर्ष की कुमारी वनमाला चन्द्रमोहन की फर्म के साधारण क्लर्क की पुत्री थी। कुछ दवाब था और कुछ गरीबी, अधेड़ चन्द्रमोहन को जमाता बना कर वनमाला के पिता ने उसे राज रानी बना दिया। न कोई सास न ननद, करोड़ों की सम्पत्ति... ढेरों नौकर-चाकर और स्वामिनी अकेली वनमाला।
परन्तु मन की कौन कहे कि वनमाला के सपने, उसके हृदय का रोमांच और जीवन-साथी सम्बन्धी कल्पना की उड़ानें... रेत की दीवार की भांति ढह गईं। पति मन का नहीं मिला इसलिए उसे समस्त वैभव निस्सार-सा लगा। (उपन्यास के प्रथम पृष्ठ से)
 सेठ चन्द्रमोहन के अपहृत पुत्र का कुछ भी पता न चला । जब यह केस केन्द्रीय खुफिया विभाग के पास पहुंचा तो इस केस की जांच के लिए प्रसिद्ध जासूस राजेश को लगाया गया ।
राजेश जो अपनी अनोखी शैली के लिए विख्यात है। जो दुश्मन से भी मोहब्बत से पेश आता है । जो अपने उच्च आदर्शों के कारण शत्रुओं में भी सम्मान पाता है । जो बुराई को खत्म करना चाहता है, बुरे व्यक्ति को नहीं ।
और मिस्टर राजेश इंस्पेक्टर शंकर के साथ जा पहुंचने हैं चन्द्रमोहन के घर । जहां उन्हें कुछ तथ्य महाराजिन (खाना बनाने वाली) राधा से मिलते हैं। राधा के अनुसार एक सुनहरे बाल और नीली आँखों वाली लड़की उस रात घर आयी थी ।
वह कौन थी ? 
घर क्यों आयी थी ? 
क्या सच में बच्चा उसी ने चुराया था ?
और अब वह लड़की कहां पर मिलेगी ?
इन प्रश्नों की तलाश में राजेश अपने सहयोगी जयंत की मदद लेता है और फिर खोज लेता है सुनहरे बाल और नीली आँखों वाली लड़की को । जो एक प्रसिद्ध डॉक्टर मुकुल की पत्नी है ।
क्या एक डॉक्टर की पत्नी ऐसा कदम उठायेगे ?
स्वयं डाॅक्टर मुकुल भी अपनी पत्नी को यही कहता है - अगर जाने-अनजाने तुमसे कुछ गलत हो गया हो तो निस्संकोच कह डालो।
पर सुनहरे बाल नीली आँखों वाली डाक्टर की‌ पत्नी आशा का उत्तर था-
- 'नहीं प्रिय, कुछ भी तो नहीं हुआ है। जिस तारीख की यह घटना है, उस दिन तो हम दोनों घर से बाहर भी नहीं निकले हैं।'
तो फिर बच्चे के गायब होने का क्या रहस्य था ?
 जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा जी द्वारा रचित लघु आकार का यह उपन्यास पढने में रोचक है और कहानी के साथ तारतम्य बना रहता है।
उपन्यास में मुख्य पात्र राजेश का किरदार बहुत अच्छे से दिखाया गया है, और उसकी अपराधी को पकड़ने की कोशिशें भी अलग ही होती हैं।
उपन्यास की एक पात्र 'राधा' का आत्महत्या का कारण समझ में नहीं आया और न ही कहीं कुछ स्पष्ट किया गया है।
प्रस्तुत उपन्यास एक अच्छे कथा विषय पर लिखा गया पठनीय उपन्यास है। उपन्यास चाहे तेज प्रवाह वाला नहीं है पर इसमें तारतम्यता निरंतर बनी रहती है।
उपन्यास-   सुनहरे बाल नीली आँखें
लेखक-     ओमप्रकाश शर्मा- जनप्रिय लेखक
प्रकाशन-   नीलम जासूस कार्यालय
पृष्ठ-      -  111

 

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