Sunday, 30 March 2025

धरती का शैतान- इब्ने शफी

आओ पढें एक नकली उपन्यास
कर्नल विनोद, कैप्टन हमीद और मूर्ख कासिम का  उपन्यास
धरती का शैतान- इब्ने सफी

कर्नल विनोद ।
एशिया का माना हुआ जासूस-  फादर ऑफ हार्ड स्टोन के नाम से विख्यात कर्नल विनोद इस समय होटल चाचा पाॅल के काउंटर पर खड़ा था । उसने अपनी कुहनी काउन्टर पर टेक रखी थी ओर टेलीफोन रिसीवर कान से लगा रखा था। दूसरे हाथ से उसने अपना दूसरा कान दबा रखा था क्योंकि हॉल में एक क्रिश्चियन डांसर मिस रूबी पूरे जोशो-खरोश से नाच रही थी और वहां बैठे लोग किस्म-किस्म की आवाजें निकालकर अपने दिल की लगी बुझाने की कोशिश कर रहे थे। हॉल का वातावरण पूरी तरह गुण्डागर्दी और अश्लीलता से भरा हुआ था। लोग शराब पी रहे थे। खा रहे थे और सुल्फे को सिगरेटों के कश चल रहे थे।
       फोन के दूसरी ओर से बोलने वाला यकायक रुक गया था । विनोद ऊंची आवाज में हैलो हैलो कहे जा रहा था, लेकिन उसने इसके बाद किसी  जवाब नहीं दिया। आखिर यह हुआ क्या ? साथ ही दूसरी ओर से बोलने वाले ने क्रैडिल पर फोन अभी रखा भी नहीं था ।
   आखिरकार कर्नल विनोद ने डायल पर नम्बर घुमाया और टेलीफोन आपरेटर से पूछा-
'हैलो...आपरेटर !!
'यस सर।' एक जनाना आवाज गूंजी।
'अभी किस नम्बर से बात हो रही थी ?'
'जो किसकी ?' (धरती का शैतान- इब्ने शफी  उपन्यास का प्रथम पृष्ठ)



  यह उपन्यास मित्र रतन चौधरी ने भेजा था और वह भी Xerox करके । लेकिन पढने का समय मिला भी लम्बे समय पश्चात यानि लगभग तीन-चार वर्षों बाद । और जब इब्ने शफी साहब का उपन्यास 'धरती का शैतान' पढना आरम्भ किया तो पहले तो यह भी समझ में नहीं आया की आखिर चल क्या रहा है ?
          बस पात्र हैं, उनके अर्थहीन संवाद और तर्कहीन हरकते हैं और असंगत कहानी है। और पढते पढते जब खीझ गया तो उपन्यास को कर दिया। और बंद कर के Telegram को खोला और इब्ने सफी साहब का उपन्यास 'धरती का शैतान' खोजा, डाउनलोड किया और प्रथम पृष्ठ पढा और फिर.... अपना सिर पीट लिया।
   नमस्ते पाठक मित्रो,
आप स्वस्थ होंगे और साहित्य का आनंद ले रहे होंगे। आप इन दिनों क्या पढ रहे हैं कमेंट में अवश्य बताये ताकि बाकी पाठक मित्रों तक सूचना प्रेषित होती रहे।
  अब बात करते हैं प्रस्तुत उपन्यास 'धरती के शैतान' की यह इब्ने शफी द्वारा लिखित कर्नल विनोद, कैप्टन हमीद और मूर्ख कासिम का उपन्यास है। उपन्यास की कहानी.... चलो कहानी को रहने देते हैं।
अपने चलते हैं होटल चाचा पाॅल में जहां सेमसन का पीछा करते हुये कर्नल विनोद को एक कार द्वारा बेहोश कर पकड़ लिया जाता है।
कैप्टन हमीद ।
चाचा पाॅल के ही होटल में था, लेकिन जानबूझकर वह नाम बदलकर ठहरा हुआ था । इतना ही नहीं वह मेकअप में था। कोई भी परिचित यदि उसके हुलिये से पहचानना चाहता तो नामुमकिन था । वह यहाँ कर्नल विनोद से पहले पहुंचा था
। (उपन्यास अंश)
      कर्नल विनोद और कैप्टन हमीद के पश्चात उपन्यास का मुख्य और खलपात्र कालिया आता है। यह एक अंतरराष्ट्रीय अपराधी और हैवान है। जिसका इंसानियत से कोई संबंध नहीं है।
उनकी नजरों में औरत एक ऐसी चीज है जिसे जितना भोया जाए कम है। यह जवान और खूबसूरत जिस्म को तबियत्त के साथ नोचना खरोंचना और भोग कर सूखी हड्डी की तरह फेक देना ही उचित समझता है।
उसने जिस देश की जमीन पर अपने नापाक कदम डाले हैं-वहां तहलका मचा दिया है। जलजला ला दिया है।
       वही कालिया-जो पता नहीं कितने दुश्मन देशों के हाथ की कठपुतली है। वह बड़े से बड़ा अपराध हीरे और सोने के लिये कर सकता है।
       अब तक वह अन्य अनेक देशों में कोहराम मचा चुका था । वहां की सरकारों की तौबा की थी और अब वह भारत में आया था । आते हो उसने राजधानी दिल्ली में प्रोफेसर अनन्त शेवड़े को अपना निशाना बनाया था। उसने पहले डंके की चोट पर अनंत शेवड़े का अपरहण किया था। उसने इस सारी कारगुजारी के लिये एक घंटे का समय दिया था। पुलिस ने नाके बन्दे की थी । लेकिन फिर भी वह प्रोफेसर अनत शेवड़े को ले उड़ा था ।
(उपन्यास अंश)
जब कर्नल विनोद को इसकी सूचना मिली तो वह सक्रिय हुआ। और फिर संघर्ष बढता है कालिया और कर्नल विनोद के मध्य ।
वही मूर्ख कासिम को साथ मिलता है गुलमोहर का जो एक होटल में काम करती है
और कहानी घूमती फिरती जा पहुंचती है एक जंगल के मध्य बनी एक खूबसूरत इमारत तक । जब कर्नल विनोद और कैप्टन हमीद वहा पहुंचते हैं तो कर्नल विनोद यही सोचता है।
कुछ देर तक वह सोचता रहा।
खड़ा खड़ा इमारत को देखता रहा।
कुछ भी हो... कोई तो होगा ही। वरना इस इमारत का यहा क्या महत्व ?
यहाँ मुलाकात होती है  राॅबर्ट से।
"मैं राॅबर्ट हूँ.... फादर टाॅम का खास व्यक्ति, मैं इस इमारत की देखभाल के लिए हूँ ।"
  और फिर विभिन्न पात्रों के माध्यम से कहानी इधर-उधर निरर्थक घूमती हुयी आगे बढती है और अंततः अपने गंतव्य तक जा पहुंचती है। वास्तविक अपराधी सामने आते हैं और कहानी मूर्ख कासिम के हो..हो..हो पर खत्म हो जाती है।
    कहानी इतनी व्यर्थ थी की इस पर लिखना भी समय व्यर्थ गवाना था। वास्तव में यह उपन्यास इब्ने सफी साहब का था ही नहीं ।
जब उनका नहीं था तो फिर यह उपन्यास किस लेखक का था। यह उपन्यास था इब्ने शफी का।
प्रसिद्ध उपन्यासकार इब्ने सफी साहब का उपन्यास 'धरती का शैतान' आया तब संगीता पॉकेट बुक्स ने एक काल्पनिक लेखक 'इब्ने शफी' खड़ा कर दिया । बस, 'सफी' को 'शफी' किया और 'धरती का शैतान' नाम से ही उपन्यास बाजार मेञ उतार दिया । आखिर नकली तो नकली  ही होता । यह इस उपन्यास के आरम्भिक पृष्ठ पढते ही पता चल जायेगा। और जब आरम्भिक पृष्ठ मुझे नीरस और निरर्थक लगे तो telegram से असली उपन्यास डाउनलोड किया और उसका प्रथम पृष्ठ पढा तो अपना सिर पीट लिया... क्योंकि पहले Xerox काॅपी में जिसे पढ रहा था वह नकली उपन्यास था और उसी नकली उपन्यास की समीक्षा यहाँ प्रस्तुत है।
कभी असली उपन्यास भी पढेंगे।
तो यह थी नकली उपन्यास की असली समीक्षा । क्या आपने कभी ऐसे उपन्यास पढे हैं। अगर पढें हैं तो कमेंट कर अवश्य बतायें।
धन्यवाद
अब चलते- चलते उपन्यास का एक अच्छा संवाद जो जाये-
संवाद-
जासूसी के क्षेत्र में जासूस के साथ भाग्य एक अहम रोल अदा करता है । यह बड़े से बड़े खतरे का सामना साहस के साथ करता है और भाग्य उसकी रक्षा करता है।

उपन्यास- धरती का शैतान
लेखक-    इब्ने शफी
प्रकाशन- संगीता पॉकेट बुक्स, मेरठ
पृष्ठ-       176

No comments:

Post a Comment