Sunday, 17 August 2025

चीखती चट्टानें- कर्नल रंजीत

क्या था तूफानी रात में हत्याओं का रहस्य ?
चीखती चट्टानें- कर्नल रंजीत

तूफानी रात
अमावस की काली बरसाती रात । चारों और घटाटोप अंधकार छाया हुआ था।
      बम्बई के मुख्य सागर-तट से लगभग आठ मील दूर, जहां समुद्र के किनारे किनारे दूर तक किसी मराठा दुर्ग के ध्वंसावशेष फैले हुए थे, अमावस की काली बरसाती रात का अंधेरा और सन्नाटा और भी गहरा तथा भयानक लग रहा था। कभी-कभी बारिश की तेज बौछारें, बिजली की बादलों की गरज और सागर की लहरों की गर्जन बरसाती अंधियारी रात के उस सन्नाटे को भंग कर देते थे।
         अचानक सन्नाटे को चीरती हुई किसी राइफल की गोली की आवाज समुद्र तट पर दूर तक बिखरी चट्टानों और प्राचीन मराठा दुर्ग के ध्वंसावशेषों से टकराकर गूंजती चली गई। गोली की आवाज के साथ ही किसी व्यक्ति की हृदयबेधी चीख उभरी; लेकिन वह चीख बिजली की कड़क और घटाओं की गरज में दबकर रह गई।

      राइफल की गोली की आवाज और उसके साथ ही उभरने वाली मानवीय चीख को सुनकर चैकपोस्ट पर तैनात सब-इंस्पेक्टर यशवंत खांडेकर और उसके साथी गुमटी में से निकलकर दौड़ते हुए बाहर आ गए। उन्होंने आंखें फाड़-फाड़कर इधर-उधर नजरें दौड़ाई; लेकिन उन्हें कहीं कुछ न दिखाई दिया। और न किसी प्रकार की आहट ही सुनाई दी। कोई यह तक अनुमान न लगा सका कि गोली और चीख की आवाज किस ओर से आई थीं। घटाटोप अंधियारे और मूसलाधार वर्षा की बूंदों की तनी हुई चादर को चीरकर यह देख पाना असंभव था कि गोली किसने चलाई और किस पर चलाई?
         सब इंस्पेक्टर यशवंत खांडेकर अपने साथियों के साथ गुमटी के बाहर बरामदे में खड़े आहट लेने की चेष्टा करते रहे ; लेकिन वर्षा के शोर, बादलों की गरज और बिजली की कड़क तथा सागर की लहरों और तूफानी हवा के शोर के कारण कोई आवाज सुन पाना कठिन था। निराश होकर वे गुमटी में लौट आए।
       तीन दिन से मूसलाधार बारिश हो रही थी। इन तीन दिनों में कई बार बड़े-बड़े आकार के ओले गिर चुके थे। जिनके कारण सागर-तट के समशीतोष्ण मौसम के तापमान में काफी गिरावट आ गई थी
(उपन्यास के प्रथम पृष्ठ से)
   नमस्ते पाठक मित्रो,
कर्नल रंजीत के उपन्यासों की निरंतर समीक्षाएं लिखी जा रही हैं। अब यह क्रम संभवतः सन् 2025 के समापन तक चले । कोशिश तो यही रहेगी की सन् 2025 में कर्नल रंजीत के उपन्यासों को पढा जाये, बाकी कुछ कहा नहीं जा सकता ।
इसी क्रम में उपन्यास 'चीखती चट्टानें' की समीक्षा आपके सामने प्रस्तुत है। यह एक मर्डर मिस्ट्री उपन्यास है जिसे मेजर बलवंत हल करता है।
      मुम्बई की एक बरसाती रात में ग्यारह पुलिस वालों की हत्या हो जाती है और उसी रात शहर के प्रसिद्ध व्यवसायी युवा व्यवसायी अरविन्द पारिख की हत्या हो जाती है। दो और हत्याएं होती है जिनमें से एक अरविन्द पारिख की सेक्रेटरी लिजी स्मिथ की माँ की हत्या भी शामिल है।
उपन्यास में जो मुख्य घटनाक्रम है वह अरविन्द पारिख से ही संबंधित है। और उन घटनाएं कहीं न कहीं इसी परिवार से संबंध रखती हैं।
इन बढती हत्याओं की घटनाओं को देखते हुये पुलिस प्रशासन मेजर बलवंत को याद करता है।
  "दुख की तो बात है, मेजर साहब! लेकिन मुझे अपने जवानों पर गर्व है। उन्होंने अपने कर्तव्य का पालन करते हुए अपने प्राण दिए हैं।" आई.जी. देशपांडे ने दूसरी ओर से कहा, "लेकिन मेजर साहब, अब हमारा भी कर्तव्य हो जाता है कि हम उनके हत्यारों को खोजकर उन्हें समुचित दंड दिलाने का प्रयल करें। इस सम्बन्ध में हमें आपकी सेवाओं की आवश्यकता है। आशा है आप हमें पूरा-पूरा सहयोग देंगे।"
"सर, अपराधियों को उनके अपराध का दंड दिलाने में मुझे ही क्या देश के प्रत्येक शान्तिप्रिय नागरिक को पुलिस और शासन को यथाशक्ति सहयोग देना चाहिए। मैं अभी आधे घंटे में आपके पास पहुंच रहा हूं।" मेजर बलवंत ने कहा।

   और फिर मेजर बलवंत अपनी टीम (सुधीर, सोनिया, डोरा, सुनील और मालती) के साथ सक्रिय होता है। (उपन्यास क्रोकोडायल नहीं है।)
    मेजर बलवंत के लिए यह केस पेचीदा है। वह अपने साथियों से विमर्श भी करता है-
"... यह केस बहुत ही विचित्र केस है। पुलिस के जवानों की सामूहिक हत्या में तो स्पष्ट रूप से स्मगलरों का ही हाथ हो सकता है। इसका प्रमाण हमें मिल भी चुका है। पिछली रात ही हम जहाज में नावों द्वारा माल आते और फिर जहाज से उन्हीं नावों द्वारा माल जाते अपनी आंखों से देख चुके हैं। अरविन्द पारिख की हत्या के संबंध में मेरा विचार है कि उसकी हत्या उसके किसी व्यावसायिक प्रतिद्वंद्वी ने की है। लेकिन मैं अभी तक यह नहीं समझ पाया कि हितेंद्र देसाई की हत्या क्यों हुई? उसकी पत्नी सुरेखा बिना कोई सूचना दिए कहां और क्यों चली गई? लिजी स्मिथ की मां मार्था स्मिथ को हत्यारों ने क्यों मार डाला और फिर लिजी स्मिथ को रात फोन करके क्यों बुलाया जा रहा है? उसे फोन करने वाली वह औरत और वह आदमी कौन थे?"
  उपन्यास के अंत तक आते-आते मेजर बलवंत पुलिस और अपने सहयोगियों की मदद से केस हल कर ही लेता है और होंठ गोलकर सीटी बजाता है।
मेजर बलवंत कभी कभार उपन्यास में कुछ शे'र भी बोलते हैं और उनके साथी मेजर बलवंत की भरपूर प्रशंसा करते हैं। तो वह शे'र आपके लिए यहाँ प्रस्तुत है।
- जिंदगी भर मांग कर वह बीड़ियां पीते रहे,
   फिर भी अपने यारों की कंजूसी पै रोते रहे।

एक और शे'र भी पढ लीजिए-
नेल पालिश और लिपस्टिक इस कदर बनने लगीं
सुर्ख रंग ढूंढ़े से भी मिलता नहीं बाजार में।"

और साथ में पढ लीजिए मेजर बलवंत के लिए प्रशंसात्मक शब्द-
"वाह-वाह, कितने हसीन अंदाज में सुर्ख रंग की कमी का कारण बयान किया है। वाकई मेजर साहब, अब तो आपकी शायरी दिन-ब-दिन जवान और हसीन होती जा रही है।" सुनील ने कहा।
         कर्नल रंजीत के उपन्यासों में कुछ विशेषताएँ आपको अवश्य मिलेंगी। उन विशेषताओं का वर्णन हम पिछले उपन्यासों में भी करते आये हैं और यहाँ भी चर्चा करेंगे।
चीख- कर्नल रंजीत के उपन्यासों में कहीं न कहीं कोई रहस्यमयी चीख सुनने को अवश्य मिलती है। यहाँ तो उपन्यास का नाम ही 'चीखती चट्टानें' हैं और यहां प्रथम घटना भी चीखों के कारण होती है ।
- हर मंगलवार और शुक्रवार को लगभग साढ़े नौ और दस बजे के बीच राइफल की गोली चलने की आवाज के साथ ही किसी आदमी की दर्द भरी चीख सुनाई देती थी। और हफ्ते के बाकी दिनों में कभी लोगों की मारपीट की आवाज, कभी नाचते हुये घुंघरुओं की आवाज और कभी हंसी की भयानक आवाजें और कहकहे सुनाई दिया करते थे। हम लोग उन आवाजों का पीछा करते हुए उस और दौड़ते थे। लेकिन हमें एक भी दिन न तो कहीं कोई लाश मिली और न ही कोई घायल आदमी ही मिला।"
रहस्यमयी बंगला- इनके उपन्यासों में रहस्यमयी बंगले, तहखाने भी देखने को मिलते हैं और यह बंगले ज्यादातर बहुत पुराने होते हैं।
प्रस्तुत उपन्यास में एक अध्याय है 'रहस्यमय बंगला' और यह बंगला भी काफी पुराना है।
- यह बंगला शायद उस समय बनवाया गया था जब बम्बई आबाद हुई थी। क्योंकि इस बंगले की स्थापत्य कला बम्बई महानगर की उन गिनी-चुनी इमारतों से मिलती-जुलती थी जिनका निर्माण 1857 में भारत में अंग्रेजी साम्राज्य की स्थापना से भी पच्चीस-तीस वर्ष पूर्व हुआ था।
सीटी बजाना- मेजर बलवंत किसी महत्वपूर्ण सुराग के मिलजाने पर अक्सर अपने होंठ गोल कर लेता है या फिर होंठ गोल कर सीटी बजाता है।
          उपन्यास का आरम्भ काफी रोचक ढंग से होता है और पाठक भी एक बड़ी दुर्घटना से चकित रह जाता है। बाद में जैसे कहानी अन्य हत्याओं की तरफ घूमती है तो उपन्यास की प्रथम बड़ी घटना गौण हो जाती है। और अंत तक आते-आते प्रथम दुर्घटना प्रभावहीन हो जाती है। अगर वह घटना न  होती तो कहानी ज्यादा अच्छी बनती ।
- उपन्यास में स्मग्लर पुलिस को गुमराह के लिए अजीबोगरीब तरीके इस्तेमाल करते हैं और उन तरीकों के कारण पुलिस स्मगलिंग के स्थान की तरफ आकृष्ट होती है। होना तो यह चाहिए की स्मग्लर शांति से बिना किसी की नजर में आये काम करें पर यहाँ स्मग्लर शोर मचा-मचा कर काम करते हैं।
- उपन्यास में कुछ उलझाव वाली घटनाएं हैं जिनको बाद में क्रमशः स्पष्ट भी किया गया है लेकिन हत्या की घटनाओं के तर्क ठोस प्रतीत नहीं होते।
- मेजर बलवंत को कुछ सुराग मिलते हैं। लेकिन कहां से और कैसे कहीं स्पष्ट नहीं होता । जैसे मेजर बलवंत का 'गोवा टूर' ।
  ज्यादातर उपन्यासों में खलपात्र दो तरह के होते हैं। एक तो वह जो कहानी के आरम्भ से अंत तक साथ चलते हैं लेकिन छुपे रहते हैं और उनका पता उपन्यास के अंत में चलता है।
दूसरे खलपात्र वह होते है जो उपन्यास के अंत में ही आते हैं और वह भी जासूस महोदय उन्हें खोजकर लाते हैं। इनका कहानी के आरम्भ में कहीं कोई वर्णन नहीं होता, इन्हे तो अंत में बरसाती मेंढक की तरह दिखाया जाता है।
  प्रस्तुत उपन्यास का खलनायक भी एक ऐसा ही पात्र है जो मेजर बलवंत द्वारा उपन्यास के अंत में सबके सामने लाया जाता है। इस पात्र का उपन्यास के ज्यादातर पात्रों से किसी भी प्रकार का कोई संबंध नहीं है। अगर कहीं संबंध स्थापित होता है तो उसे मात्र संयोग माना जाये। (हां, संयोग से ही खलपात्र से दो पात्र टकरा जाते हैं)
कर्नल रंजीत द्वारा मेजर बलवंत सीरीज का उपन्यास 'चीखते चट्टानें' मर्डर मिस्ट्री आधारित उपन्यास है, जो ज्यादा उलझाव और ज्यादा घटनाओं के चलते अंत में अपना प्रभाव खो देता है।
उपन्यास- चीखती चट्टानें
लेखक-     कर्नल रंजीत
पृष्ठ      -   156
प्रकाशक- मनोज पब्लिकेशंस, दिल्ली
कर्नल रंजीत के अन्य उपन्यासों की समीक्षा

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