Monday, 25 August 2025

रेत की दीवार - कर्नल रंजीत

समुद्रगुप्त की प्रेयसी मालिनी की रक्तरंजित गाथा
रेत की दीवार- कर्नल रंजीत

जासूसी उपन्यासकार कर्नल रंजीत की कलम से निकली एक रहस्य-रोमांच से परिपूर्ण कहानी जिसका संबंध सदियों  पूर्व की एक ऐसी औरत से है जो वर्तमान में रक्त से कहानी लिख रही है। जिसका प्रेम और प्रतिशोध वासना और हत्याओं में बदल जाता है।
इस रोचक उपन्यास 'रेत की दीवार' का हम आरम्भ करते हैं उपन्यास के प्रथम अध्याय 'चार लाख' से । यह अध्याय एक ऐसे युवक का जिसके पास जैसे ही धन आता है उसी के साथ बिन बुलाये, घर बैठे मुसीबतें आनी आरम्भ हो जाती हैं। जैसे ऊंट चढे को कुत्ता खा गया, जैसे होम करते वक्त हाथ जल गये।

   चार लाख रुपये
रांची के निकट पहुंचकर ट्रेन की गति धीमी हो गई थी। रेल-पटरी की मरम्मत हो रही थी।
पहले दर्जे के कम्पार्टमेण्ट में छब्बीस वर्ष का एक नवयुवक बाई सीट पर बैठा हुआ था। एक पुस्तक उसके घुटनों पर रखी हुई थी। वह पढ़ते-पढ़ते उकता गया था। अब वह सामने की सीट पर बैठे अधेड़ आयु के युगल को देख रहा था। वे सेव काटकर खा रहे थे।


        नवयुवक के टिफिन बॉक्स में खाने को तो बहुत कुछ था, लेकिन उसके मनोमस्तिष्क में कुछ ऐसी खलबली मची हुई थी कि भूखा होने के बावजूद कुछ खाने को उसका जी नहीं मान रहा था। वह दीर्घकाय था, स्वस्थ-सुन्दर था, मगर उसका चेहरा पीला पड़ गया था। गोरे रंग पर पीलापन कुछ और अधिक खिल रहा था। उसने घुटनों पर से पुस्तक उठा ली। वह उसका पहला पृष्ठ देख-कर मुस्करा उठा। यह मुस्कान बहुत फीकी थी। उस पृष्ठ पर उसने अपने हाथों से कुछ आंकड़े और कुछ वाक्य लिखे थे, जिन्हें वह पढ़ने लगा। अभी आधा घण्टा पहले उसने पेंसिल से उस पुस्तक के पहले पृष्ठ पर लिखा था :
'चार लाख रुपया एक बड़ी धनराशि है। किसी के वास्ते यह धनराशि चवन्नी के बराबर है और किसीके वास्ते चार अरब । इच्छा, आवश्यकता और अभिलाषा- ये तीनों रुपये का मूल्यांकन करती हैं। इन तीनों के अनुसार रुपये का मूल्य कम भी रह जाता है और बढ़ भी जाता है। कोई-कोई धन-राशि ऐसी भी होती है कि जिसके पास होती है, उसके जी का जंजाल बन जाती है।
- दौलतराम'

   नमस्ते पाठक मित्रो,
  जैसा की आप ऊपर पढ चुके हैं दौलत राम नामक युवक के पास जैसे ही दौलत आती है वह उसके साथ मुसीबते भी लाती है। उन मुसीबतों से बचने के लिए और बचे हुये धन को बचाने के लिए वह रांची अपने दोस्त केशव चन्द्र के पास आता है और दोनों का विचार था भारत से पेरिस जाने का। पर दौलतराम को यह नहीं पता था की मुसीबतें यहां भी उसका इंतजार कर रही हैं।
      दौलतराम जब अपने दोस्त के काॅटेज पहुंचा तो वहां केशव चन्द्र की लाश थी और सड़क पर एक संदिग्ध-घायल व्यक्ति था। वहां से भागा दौलतराम जब एक होटल में शरण लेता है तो वहां भी एक और मुसीबत उसके गले पड़ जाती है, एक क्या दो मुसीबतें ही कहो।
पहली मुसीबत तो यह की उसे अज्ञात 'नागराज' ने रांची न छोड़ने की धमकी दे दी।
दूसरी मुसीबत यह थी की होटल रंगशाला में सेठ ब्रह्मसरूप की हत्या जिस छुरी से हुयी वह दौलतराम की थी।

दौलतराम की आंखें सेठ के वक्ष पर पड़ी छुरी पर जम गईं। वह छुरी उसके टिफिन-बॉक्स में थी। छुरी का दस्ता काले हाथी-दांत ती का था और दौलतराम उस छुरी को पहचानता था। उसके पैरों तले से जमीन खिसक गई । हत्या का एक और भयानक अपराध उससे जुड़ चुका था। पुलिस को जब पता चलेगा कि छुरी उसकी है और उसीसे हत्या की गई है, तो निश्चित है कि दौलतराम का नाम पां संदिग्ध हत्यारों की सूची में सबसे ऊपर होगा ।
तब क्या वह रांची से भाग निकले ?
नहीं। इस अवसर पर रांची से भागना और भी संशय पैदा कर सकता था। फिर नागराज की वह धमकी भी तो सत्य हो सकती थी कि भाग निकलने की हालत में उसे रास्ते में ही मौत के घाट उतार दिया जाएगा। रांची से पलायन असम्भव था। वह उस शहर में दो नजरबन्द होकर रह गया था।
(पृष्ठ-16)

आखिर दौलतराम के साथ ऐसा क्यों घटित हो रहा था ?
क्या यह सब दौलत राम की दौलत का चक्कर था या कुछ और ?
दौलतराम के दोस्त केशवचन्द्र की और सेठ ब्रह्मसरूप की हत्या किसने की ?

आप यह सब तो खैर उपन्यास 'रेत की दीवार' पढकर ही जान सकते हैं लेकिन यहां हम कहानी के कुछ और पक्षों पर चर्चा कर लेते हैं।
    जिंदगी से परेशान दौलतराम के लिए दौलत मुसीबत थी और अब उसे जिंदगी ही खतरे में नजर आने लगी थी । कभी वह रांची से भाग जाने की सोचता पर नागराज की धमकी उसके पांव रोक लेती । ऐसे समय में होटल मालिक ने उसे सुझाव दिया-
"आपका दुःख इस देश में सिर्फ एक आदमी दूर कर सकता जो अपराधियों का दुश्मन है और निरपराधों का सहारा।"
"वह कौन है ?" दौलतराम ने उत्सुकता से पूछा ।
"मेजर बलवन्त । उनके नाम की देश के कोने-कोने में धाक है, जब-तब मैंने उनके कारनामे पढ़े हैं। मैं तो कहता हूं कि हम का सौभाग्य है जो मेजर बलवन्त हमारे युग में मौजूद हैं हमारे देश में पैदा हुए। उस व्यक्ति की महानता का आप इतने ही अनुमान लगा सकते हैं कि इस देश में ही नहीं, बल्कि विदेशों भी उन्होंने हजारों घिनौने और वीभत्स अपराधों पर से रहस्य पर्दे उठाए हैं।" होटल-मैनेजर ने कहा ।

मैनेजर ने उसे मुस्कराकर देखा और बोला, "वास्तव में आप मेजर बलवन्त को समझ नहीं पाए। आप मेरी बात पर शायद विश्वास न करें, मगर यह एक सचाई है कि वह हर दुखी की पूरे मन से मदद करते हैं। अगर केस अनोखा और टेढ़ा हो तो वह जरूर उसमें हाथ डाल देते हैं। यहां पुलिस जांच के दौरान आपके बारे में मुझे जो जानकारी मिली है, मैं विश्वास के साथ कह सकता हूं कि मेजर साहब इसे सुनकर जरूर इसमें दिलचस्पी लेंगे । मिस्टर दौलतराम ! आप उनसे सम्पर्क बनाइए, इस बहाने मेरे जीवन की एक पुरानी अभिलाषा भी पूरी हो जाएगी।"
"कौन-सी अभिलाषा ?" दौलतराम ने पूछा ।

    और इस प्रकार होटल मालिक की बात को स्वीकार कर दौलतराम प्रसिद्ध जासूस मेजर बलवंत को अपना केस सौंपता है।
     पुलिस विभाग से इंस्पेक्टर बख्तावर इस के को देखते है। शहर में दो हत्याएं और हत्यारे का पता नहीं, इंस्पेक्टर परेशान है। जब इंस्पेक्टर को मेजर बलवंत के आने की सूचना मिलती है तो वह भी प्रसन्न होता है क्योंकि उसे विश्वास था मेजर बलवंत रेलवे कार्मिक केशवचन्द्र और सेठ ब्रह्मसरूप के हत्यारे को पकड़ लेंगे ।
जहां पुलिस केशवचन्द्र के कॉटेज पर कोई सबूत न जुटा सकी वहीं मेजर ने आते ही कमाल कर दिया- केशवचन्द्र से कोई ऐसा आदमी मिलने आया, जिसके पास कुत्ता था और जिसे केशव अच्छी तरह जानता था।
  फिर कहानी में कुछ और पात्र प्रवेश करते हैं । एक देव कुमार और दूसरी अंगदा ।
मिस अंगदा ! आप मीना की सहेली हैं, पर आपको शायद पता नहीं कि मीना अब मेरी मंगेतर नहीं रही। आठ दिन हुए, उसने मेरी दी हुई अंगूठी लौटा दी थी।
    मीना कभी देवकुमार की मंगेतर थी और अंगदा की सहेली लेकिन अब मीना गायब है। और अंगदा का मानना है मीना किसी मुसीबत में है।
    देवकुमार को यह भी खबर थी की शहर में प्रसिद्ध जासूस मेजर बलवंत आया हुआ है तो देवकुमार मीना के गायब होने का केस लेकर मेजर बलवंत के पास पहुँच जाता है।
मीना के केस के साथ एक नाम और शामिल हो जाता है वह रघुवर दयाल, जिसकी उपस्थिति पहले भी दर्ज हो चुकी है जबकि पुलिस रिपोर्ट के अनुसार जालसाल रघुवरदयाल की मृत्यु हो चुकी है। तो फिर यह रघुवर दयाल का क्या किस्सा था ।
    इंस्पेक्टर और मेजर बलवंत दोनों ही इस केस काम करते हैं लेकिन हत्याएं हैं की रुकने का नाम ही नहीं ले रही ।
इंस्पेक्टर अपनी जगह हैरान था। वह बोला, "यह सब हो क्या रहा है ? इतने लोग मौत के घाट क्यों उतारे जा रहे हैं ?"
"अभी तो इस केस के सिर-पैर का ही पता नहीं लग रहा। यह केस शुरू से ही बड़ा पेचदार रहा है।" मेजर ने कहा।
इस समय तक रांची में चार हत्याएं हो चुकी है रेलवे इंजीनियर केशवचन्द्र, सेठ ब्रह्मसरूप मीना और राधा कं ठिकाने लगाया जा चुका है। हत्या की ये चारों घटनाएं अद्भुत हैं।" ...

       मेजर बलवंत देश के प्रसिद्ध जासूस है और वह देश- विदेश में बहुत से उलझे हुये केस हल कर चुके हैं । यह केस चाहे कितना भी कठिन नजर आता हो लेकिन मेजर बलवंत अपने बुद्धिकौशल से इसको भी हल करते हैं। और जब हत्याओं से आरम्भ हुयी यह कहानी आगे बढती है तो यह वासना की उस अंधी आंधी की तरफ मुड़ जाती है जहां सदियों से वासना की प्यासी एक औरत सामने आती है।
       भारतीय इतिहास में सम्राट चन्द्रगुप्त किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। और इस उपन्यास की कहानी का मूल भी चन्द्रगुप्त से संबंध रखता है।
   यह हत्याकाण्ड इंसानी जिन्दगी के एक दुःखदायी पहलू से सम्बन्ध रखता है। जब मनुष्य की इच्छाओं, वासनाओं और  अभिलाषाओं की भूख नहीं मिटती, तो उसका असन्तोष एक भयानक बीमारी का रूप धारण कर लेता है। भोग-विलास की यह प्यास हिंसा, हत्या और जघन्य अपराधों को जन्म देती है। तब वह खून बहा-कर और खून बहता देखकर सन्तुष्ट होता है। मालिनी एक ऐसी औरत थी, जो सम्राट समुद्रगुप्त की चहेती नर्तकी थी। वह भी इसी रोग का शिकार थी, क्योंकि उसकी कामवासना कभी तृप्त नहीं होती थी।"
  कर्नल रंजीत वैसे तो भूत- प्रेत, अंधविश्वास में यकीन नहीं रखते लेकिन कभी- कभी उनके उपन्यासों में कथानक सदियों पूर्व किसी घटना से संबंधित अवश्य होते हैं। जैसे प्रस्तुत उपन्यास, जैसे उपन्यास 'वह कौन था' का कथानक चार सौ साल पूर्व एक घटना से संबंधित है।

उपन्यास शीर्षक:- उपन्यास का शीर्षक रेत की दीवार क्यों है ? रेत की दीवार का अर्थ होता है जो ठोस न हो, जो जल्दी भुरभुरा कर गिर जाये। लेकिन यहां रेत की दीवार शीर्षक का अर्थ कुछ समझ में नहीं आता ।
शे'र
मेजर बलवंत का एक शे'र भी पढ लीजिए-
"घर में इक मेहमान है, मेहमां के हैं मेहमान सात । गिड़गिड़ाती रहती है बीवी कि- भगवन् दे निजात ।"

संवाद-
उपन्यास में स्मरणीय संवाद तो कम हैं लेकिन जो हैं वह यहां प्रस्तुत हैं।
"दौलत भी खूब चीज बनाई है खुदा ने ! फकीर भी दौलत के बगैर जिन्दा नहीं रह सकता। वह जमाना और था जब दूसरों के टुकड़ों पर फकीर खुश रह सकता था और रुपये-पैसे को खाक समझता था ।"
प्रशंसा मेजर बलवंत की-
मेजर बलवंत की लोग अक्सर प्रशंसा करते हैं क्योंकि वह रहस्यमयी केसों को सुलझाने में समर्थ हैं।
"मेजर साहब ! मान गया ! आप सूझबूझ के धनी हैं। आप जैसा जासूस सदियों बाद ही पैदा हो सकता है।
कुछ रोचक:-
मेजर बलवंत का उपन्यास हो और कुछ रोचक न मिले यह तो संभव ही नहीं । यहां भी 'प्यूमा' का किस्सा रोचक है। मेरे लिए यह शब्द नया था।
"प्यूमा !" मेजर के मुंह से निकला ।
"क्या कहा आपने ?" मालती ने चौंककर पूछा ।
"मालती ! प्यूमा एक जानवर होता है। कभी-कभी कुदरत भी ऐसे इंसान पैदा कर देती है जो जानवर जैसे होते हैं।"

  बात करें उपन्यास 'रेत की दीवार' की यह एक मर्डर मिस्ट्री उपन्यास है। कहानी बहुत ही रोचक ढंग से आरम्भ होती है।  उपन्यास का पात्र दौलतराम दौलत मिलने के बाद से अजीब परिस्थितियों में घिरता है और फिर खून के इल्जाम में । कथानक रांची शहर से संबंधित है और यहां और भी कई कत्ल होते हैं‌। कत्ल करने का तरीका भी, कातिल कुत्ते की मदद लेना वास्तव में दिलचस्प है।
   कहानी का संबंध एक वासना और खून की प्यासी औरत से जुड़ना और उसका संबंध सम्राट चन्द्रगुप्त से होना कहानी को मनोरंजक और रहस्यमयी बनाता है।
   उपन्यास पठनीय है।

उपन्यास- रेत की दीवार
लेखक-   कर्नल रंजीत

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