- देश के बहुत सारे भागों में अचानक अराजकता और आतंक की काली छाया मंडराने लगी।
- बेरोजगार नौजवान भटककर उस भयानक गिरोह की जकड़ में आने लगे।
- तटस्थ लोकतांत्रिक देशों के सर्वनाश के लिए अंतर्राष्ट्रीय गिरोह का फैलता हुआ जाल ।
- चंगुल में फंसकर छटपटाती हुई जुड़वां बहनों के संघर्ष की दुःख भरी कहानी ।
- मादक गंध वाले सुंदर केसरिया फूलों की जहरीली कहानी, जिनके सेवन से मनुष्य का शरीर जिंदा लाश बन जाता है।
- एक ऐसा पिता जो धन-दौलत और विलासिता को संतान से बड़ा समझता है।
- एक ऐसा डॉक्टर जिसे वासना इंसान से शैतान बना देती है।
- कदम-कदम पर धड़कनें बढ़ाने और रोंगटे खड़े कर देने की शक्ति से भरा हुआ सनसनीखेज, दिल दहला देने वाला कर्नल रंजीत का एक अनमोल उपन्यास
हांगकांग के हत्यारे
विमान में हत्या
मेजर बलवंत का बंगला आज दुल्हन की तरह सजा हुआ था। बंगले के सामने से गुजरने वाली सड़क पर लगभग एक-एक फर्लांग की दूरी पर जे.जे. स्कूल ऑफ आर्ट्स के छात्र-छात्राओं ने कलात्मक स्वागत द्वार बनाए थे। उन्हीं लोगों ने फिल्म-जगत और महानगर मुम्बई के विख्यात आर्टिस्टों की सहायता से बंगले को कलात्मक ढंग से सजाया था। जो भी उस सजावट को देखता था दंग रह जाता था। यूं तो बम्बई में आए दिन ही करोड़पति और अरबपति सेठों के यहां शादियां होती रहती थीं। सजावट पर आंख मूंदकर पैसा पानी की तरह बहाया जाता था, लेकिन जिस सुंदरता से मेजर बलवंत के बंगले को सजाया गया था वह अद्वितीय थी। मेहमान स्वागत द्वार पर कदम रखते ही फूलों, रंगों और रोशनियों की दुनिया में इस तरह खो जाता था कि वह यह तक भूल जाता था कि यहां किसलिए आया है।
महानगर मुम्बई के लगभग गण्यमान्य व्यक्ति, पुलिस तथा प्रशासन के उच्च पदाधिकारी, पत्रकार, सिने-जगत की विख्यात हस्तियां, साहित्यकार, कलाकार और प्रांतीय मंत्रिमंडल तथा विधानसभा के अनेक सदस्य बंगले के दायीं ओर बनाये गए सुसज्जित पंडाल में मौजूद थे। आमंत्रित मेहमानों के अलावा बंगले के चारों ओर दूर-दूर तक लोगों का अपार जनसमूह एकत्रित था। मालती तथा सुनील के इस बहु प्रतीक्षित विवाह-समारोह को देखने के लिए लोग दूर-दूर से आए थे, मेजर बलवंत की तो इच्छा थी कि सुनील और मालती के विवाह समारोह को एक सार्वजनिक रूप दिया जाए लेकिन स्थानीय पुलिस के उच्च पदाधिकारियों ने समारोह में एकत्र भीड़ को नियंत्रित कर पाने में अपनी असमर्थता स्पष्ट शब्दों में व्यक्त कर दी थी क्योंकि वे लोग अच्छी तरह जानते थे कि इस समारोह में इतनी भीड़ इकट्ठा हो जाएगी कि महानगर मुम्बई की सारी प्रशासनिक और यातायात व्यवस्थाएं ठप्प हो जाएंगी। इसके साथ ही वे उन असामाजिक तत्वों की ओर से भी आशंकित थे जो उस स्थिति का लाभ बड़ी आसानी से उठा सकते थे।
आज हम चर्चा कर रहे हैं कर्नल रंजीत के रोमांचक उपन्यास 'हांगकांग के हत्यारे' की । यह एक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विस्तृत, उलझाव वाली कहानी है, जिसमें आतंकवाद, मनुष्य का लालच समाहित है। कहते हैं जहाँ बुराई है वहाँ अच्छाई भी है, प्रस्तुत उपन्यास को पढकर यह विचार भी पुख्ता होता है।
पहले हम मुख्य कहानी को समझ लेते हैं, बाकी चर्चा उसके के पश्चात् करते हैं।
"मेजर साहब, अभी-अभी जापान एयरवेज का एक बोइंग विमान यहां पहुंचा है। उस विमान में विभिन्न देशों के लगभग सौ यात्री हैं। विमान के चालक दल में आठ आदमी हैं, जो लोग काकपिट के अंदर हैं वे तो सामान्य स्थिति में हैं। लेकिन विमान के यात्रियों और अन्य कर्मचारियों की हालत बहुत विचित्र दिखाई दे रही है। सभी यात्री अपनी-अपनी सीट पर ठीक ढंग से बैठे हुए हैं। उनकी आंखें भी खुली हैं। लेकिन वे न तो अपने हाथ-पांव ही हिला पा रहे हैं, न ही किसी की आवाज सुन पा रहे हैं और न स्वयं ही बोल पा रहे हैं। वे बोलने की कोशिश करते हैं तो उनके होंठों पर एक अजीब-सी मुस्कराहट उभरकर रह जाती है। यही हाल अन्य कर्मचारियों और एयर होस्टेस का है।" सिक्योरिटी ऑफिसर अनन्त सीतलवाड़ ने बताया ।
आपने विभिन्न youtube चैनलों पर ऐसे रहस्यमयी हवाईजहाजों के विषय में अवश्य सुना होगा, जिसमें कभी कोई हवाई जहाज 'समय यात्रा' (time travel) से लौटा है, किसी जहाज के समस्त यात्री मृत्यु पाये गये या कभी किसी जहाज में कोई पायलेट/यात्री तक न था और वह यात्रा कर रहा था। ऐसे अनेक रोचक किस्से आपको सुनने को मिल जायेंगे। प्रस्तुत उपन्यास का कथानक भी एक ऐसी ही घटना से संबंध रखता है। जब मुम्बई एयरपोर्ट पर एक हवाई जहाज पहुँचता है और उसके समस्त यात्री विचित्र अवस्था में मिलते हैं।
जापान से चला यह जहाज हांगकांग से होते हुये मुम्बई शांताक्रुज एयरपोर्ट पर पहुंचता है। इस विचित्र घटना की जानकारी जब मेजर बलवंत को प्राप्त होती है तो वह इस केस की जांच की जिम्मेदारी लेता है।
वहीं जापान एयरवेज की तरफ से भी मेजर बलवंत को इस अनोखी घटना की जांच के लिए निवेदन किया जाता है।
वहीं मेजर बलवंत के पास इंस्पेक्टर रंगनाथ पाण्डुरंग एक और केस लेकर आता है जिसका संबंध गोवा आतंकवादी गतिविधियों से है। इंस्पेक्टर पाण्डुरंग की बात भी सुन लीजिए जो मेजर बलवंत को कह रहे हैं-"शायद आपने दो सप्ताह पहले अखबारों में पढा हो कि आधुनिक हथियारों से भरा एक हेलिकाॅप्टर गोवा के पास घने जंगलो के बीच घाटी में उतरा था और हथियारों से भरी पेटियां उतारकर चला गया था...।"(पृष्ठ-39)
अब मेजर बलवंत के पास दो केस हैं। एक जापान एयरवेज का और द्वितीय गोवा आतंकवाद का। मेजर दोनों कार्य एक साथ करने के लिए इंस्पेक्टर पाण्डुरंग से कहता है-""इंस्पेक्टर साहब, क्या आप अपने विभाग के ऐसे दो इंस्पेक्टर मुझे दे सकते हैं, जो बहुत ही दिलेर, और समझदार हों और जो मेरे साथ काम करने में रुचि ले सकें।"
यहाँ मेजर बलवंत को दो योग्य व्यक्ति सब इंस्पेक्टर राजीव और संजीव मिलते हैं। जो इस केस में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं।
इंस्पेक्टर रंगनाथ पांडुरंग कुछ देर चुपचाप बैठा सोचता रहा, फिर सहसा उसके चेहरे पर एक चमक उभर उठी। उसने कहा, "मेजर साहब, अभी हाल ही में जब मैं गोआ गया था, अपने साथ दो सब-इंस्पेक्टर ले गया था। वे दोनों हाल ही में पुलिस विभाग में भर्ती हुए हैं। उनमें से एक का नाम है राजीव और दूसरे का संजीव। दोनों बहुत ही साहसी, बुद्धिमान, दूरदर्शी, पक्के निशानेबाज और कर्तव्यपरायण हैं। उनमें कमाल की सूझबूझ भी है, जो एक सफल और कुशल जासूस के लिए जरूरी होती है। मुझे पूरा-पूरा विश्वास है कि वे दोनों आपके लिए काम के आदमी साबित होंगे। वे दोनों गुप्तचर विभाग में ही जाना चाहते थे, लेकिन फिलहाल सिविल पुलिस में चले आए हैं। वैसे उन दोनों का लक्ष्य गुप्तचर विभाग में जाने का ही है।"
"तब ठीक है। आप उन दोनों को मेरे पास भेज दीजिए।" मेजर बलवंत ने कहा।
जापान एयरवेज विचित्र केस की खोज के लिए मेजर बलवंत अपने साथियों के साथ जा पहुंचता है हांगकांग ।
और फिर आरम्भ होता है मेजर बलवंत और एक अनोखे अपराधी के मध्य संघर्ष । जो अंततः जा पहुंचता है गोवा के आतंकवाद तक और मेजर बलवंत अपनी टीम के साथ हांगकांग से गोवा पहुंचता है और आतंकवाद को खत्म करता है।
इस आलेख को अगर चाहते तो हांगकांग की कार्यवाही से विस्तृत रूप दे सकते थे लेकिन मुझे यह उचित नहीं लगा। एक तो हांगकांग प्रवास के समय कहानी और पात्र बहुत ज्यादा उलझाव पैदा करते हैं, कौन किसका रिश्तेदार है,कौन किस से कब बिछड़ गया, कौन कब किसको छोड़ गया, कौन किसका पुत्र/पुत्री है, कौन किस देश का निवासी है, कौन किस से प्रेम करता है, कौन कब गलत राह पर चल दिया।
यहां कौन और कब इतना ज्यादा विस्तार में है की आप पात्रों और कहानी में ऐसे उलझ जाओगे की कुछ भी समझ में नहीं आयेगा। यहाँ संयोग से मेजर बलवंत को टकराने वाले पात्र भी कब महत्वपूर्ण हो जाते हैं पता ही नहीं चलता।
जापान, भारत, चीन और हांगकांग के अतिरिक्त अन्य एशियाई देशों के पात्रों की भरमार है। और मेजर साहब अपने स्वभाव के अनुसार हर अच्छे पात्र को अपना मेहबान बना लेते हैं। एक तो स्वयं मेजर के पास अच्छी खासी टीम है, इस बार दो सब इंस्पेक्टर भी हांगकांग में साथ हैं और फिर यहाँ भी कुछ पात्रों को साथ ले लिया जाता है। ठहरो, यही नहीं, जब यह टीम गोवा आती है तो हांगकांग के साथी भी साथ आते हैं, क्योंकि मेजर बलवंत ने उनको अंतिम कहानी भी सुनानी थी।
दरअसल जापान एयरवेज को जहाज जब हांगकांग ठहरता है तो वहां जहाज की दो में से एक एयर होस्टेस मीशा के साथ एक दुर्घटना घटित होती है और वह हांगकांग में ही ठहर जाती है, द्वितीय होस्टेस यामा हवाई जहाज के भारत पहुंचने पर एक हवाई जहाज द्वारा फरार हो जाती है।
वहीं हांगकांग से भारत के लिए रवाना होने वाले दो भारतीयों की इसी विमान में हत्या हो जाती है, शेष यात्री बेहोश हो जाते हैं। इसलिए मेजर बलवंत को हांगकांग आना पड़ा था।
उपन्यास के कुछ और महत्वपूर्ण तथ्य।
- हांगकांग में मेजर को पुलिस कमिश्नर राबर्ट मिलते हैं। जिनसे मेजर बलवंत ने ट्रेनिंग ली थी।
- मालती और सुनील की शादी इसी उपन्यास में होती है और दोनों मेजर बलवंत की टीम से अलग हो जाते हैं।
- मेजर बलवत को एक नया कुत्ता स्कोर्पियन मिलता है।
- इसी उपन्यास में मेजर को बचाते हुये क्रोक्रोडायल की मृत्यु हो जाती है।
- मेजर बवलत के घर पर काम करने वाली दो युवतियां डेजी और कल्याणी इसी उपन्यास में उनकी खोजबीन में सहयोगी बनती हैं।
कर्नल रंजीत द्वारा मेजर बलवंत सीरीज का प्रस्तुत उपन्यास जहाँ रोचक है वहीं उलझाव से भरपूर है। कहानी में पात्रों की ज्यादा संख्या कहानी को बोझिल करती है । मैंने कर्नल रंजीत के जो भी उपन्यास पढे हैं उनमें पृष्ठ संख्या लगभग 150 होती है लेकिन यह एक विस्तृत उपन्यास है और पृष्ठ संख्या 300+ है।
अगर आप मेजर बलवंत के कारनामे पसंद करते हैं तो यह मेजर बलवंत मार्का उपन्यास आपको पसंद आ सकता है।
उपन्यास- हांगकांग के हत्यारे
लेखक- कर्नल रंजीत
प्रकाशक- मनोज पॉकेट बुक्स, दिल्ली
पृष्ठ- 311
कर्नल रंजीत के अन्य उपन्यासों की समीक्षा
लहू और मिट्टी ।। खामोश ! मौत आती है ।। वह कौन था ।। मृत्यु भक्त ।। हत्या का रहस्य ।। सांप की बेटी
Nice review
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