Monday, 7 April 2025

लहू और मिट्टी- कर्नल रंजीत

खत्म हो रहे जंगलों की रहस्य गाथा
लहू और मिट्टी- कर्नल रंजीत

"यह कौन हैं ?" डोरा ने लाश की तरफ इशारा करके पूछा ।
"मेरे पिता," मिस नार्मा ने कहा। फिर अपनी भूल को सुधारकर बोली, "यह मेरी मां के पहले पति मिस्टर हार्पर हैं। शादी के कुछ दिनों बाद मेरी मां ने इन्हें छोड़कर मिस्टर जैक्सन से शादी कर ली थी। मेरे जन्म के तीन साल बाद मेरे पिता ने आत्महत्या कर ली थी और फिर कुछ ही वर्ष बाद मेरी मां की मृत्यु हो गई। बाद में मेरी मां के पहले पति मिस्टर हार्पर ने ही मुझे पुत्रीवत् पाला।"
विचित्र आचार-विचार वाले मुट्ठी-भर व्यक्तियों द्वारा शेष सारी मानव-जाति को नष्ट कर डालने वाले भयंकर षड्यंत्र का रोमांचकारी रहस्योद्घाटन ।
मेजर बलवन्त की विलक्षण जासूस-वृद्धि का अद्भुत कौशल ।
सर्वप्रिय लेखक कर्नल रंजीत का लोकहितकारी जासूसी उपन्यास जो न केवल रोंगटे खड़े कर देता है, बल्कि मस्तिष्क की एक-एक नस को झनझना देता है।

 नमस्ते पाठक मित्रो,
अब आपने ऊपर जो पढा वह है कर्नल रंजीत के उपन्यास 'लहू और मिट्टी' से संबंधित है । 'लहू और मिट्टी' एक बेहद रोमांचक कहानी है जो पाठक को काल्पनिक संसार की यात्रा करवाती है।
उपन्यास समीक्षा आरम्भ करने से पहले हम प्रस्तुत उपन्यास का प्रथम दृश्य देखते हैं- जिसका शीर्षक है- सूत्रपात । आपको ज्ञात ही होगा कर्नल रंजीत के उपन्यास में प्रत्येक अध्याय का भी शीर्षक होता है।
सूत्रपात
करगिल के एक हरे-भरे मैदान में हरे रंग के केनवेस का एक खेमा लगा हुआ था । सांझ की वेला थी। घने बादलों के कारण मैदान अंधकार में लिपटा हुआ था । खेमे की छत से लटकी हुई रस्सी में एक लालटेन बंधी हुई थी, जिसकी रोशनी नीचे रखी हुई एक मेज पर पड़ रही थी। मेज पर शीशे की तीन बड़ी बोतलें रखी थीं । शीशे की एक बोतल में भूरे रंग का पाउडर था, दूसरी बोतल में जस्त के रंग का पाउडर था और तीसरी बोतल में सलेटी रंग का पाउडर था। मेज पर मिट्टी के दो गमले भी रखे हुए थे। एक गमले में आम का पौधा था और दूसरे में आड़ का । आड़ के पौधे के पत्ते मुरझाए हुए थे और आम के पौधे के पत्ते हरे और ताजा थे। ऐसा लग रहा था, जैसे आम का पौधा हर पल बढ़ता चला जा रहा हो ।
        मेज के पास एक भारी-भरकम काला भुजंग आदमी बैठा था । वह अफ्रीकन वैज्ञानिक जुलू जायरे था। वह दोनों गमलों के पौधों की ओर टकटकी लगाए देख रहा था। उसकी आंखों में प्रसन्नता की झलक थी। वह थोड़ी-थोड़ी देर बाद कुर्सी से उठता और खेमे के दरवाजे पर जाकर आंखों पर हाथ का साया करके मैदान की और देखता बौर फिर वापस आकर अपनी कुर्सी पर बैठ जाता । कभी वह मेज पर उंगलियां बजाते हुए पौधों की ओर देखता रहता और फिर उठकर खेमे के दरवाजे पर जा खड़ा होता । अंधेरे मैदान में आंखें फाड़-फाड़कर देखता और फिर कुर्सी पर आ बैठता ।
         रह-रहकर वह बड़बड़ाने लगता- 'उनको आज जरूर आना चाहिए। मैंने उनको टेलीग्राम दिया था। निश्चित प्रोग्राम के अनुसार उन्हें यहां कल पहुंच जाना चाहिए था। वे कल नहीं आए। आज उनका आना जरूरी है।'
         अफ्रीकन वैज्ञानिक जुलू जायरे बड़ी बेचैनी महसूस कर रहा था । उसने समय बिताने और मन बहलाने के लिए मेज की दराज में से ताश की गड्डी निकाली और पत्ते फेंटकर ताश की गड्डी में से एक पत्ता निकाला। वह हुकुम का इक्का था। वह कांप उठा । उसे अपनी आंखों पर विश्वास न हुआ। कुछ सोचकर उसने दोबारा पत्ते फेटे और एक पत्ता निकालकर बिना देखे मेज पर दे मारा। पत्ते को देखते ही वह फिर कांप उठा। वह फिर हुकुम का इक्का था। वह आंखें झपकते हुए बड़बड़ाया - 'मुझे तीसरी बार आजमाइश करनी चाहिए ।' उसने ताश की गड्डी में हुकुम का इक्का मिलाकर फिर पत्ते फेंटे। वह अन्तिम बार आजमाइश करना चाहता था । उसने गड्डी में से फिर एक पत्ता कांपती हुई उंगलियों से निकाला, लेकिन अन्तिम बार भी हुकुम का इक्का ही निकला । ताश की गड्डी उसके हाथ से छूटकर मेज पर जा गिरी।
        अफ्रीकन वैज्ञानिक फिर बड़बड़ाया- 'मेरा दिमाग क्यों खराब हो गया ? मैंने ताश की गड्डी क्यों उठाई ? मैंने अपने पारिवारिक अन्धविश्वास पर विश्वास क्यों किया ? मैं एक वैज्ञानिक हूं । हुकुम का इक्का ही तीनों बार निकला, यह एक संयोग था।' यह कहकर उसने ताश की गड्डी मेज की दराज में रख दी और कुर्सी से उठकर फिर खेमे के दरवाजे पर चला गया। वह फिर अपनी आँखों के ऊपर हाथ रखकर अंधेरे मैदान की ओर देखने लगा ।।

   उक्त घटना के बीस साल बाद कहानी का आरम्भ पीलीभीत से होता है । जहां के जंगलों में अचानक से पेड़ खत्म होने लगे थे ।
              पीलीभीत के जंगल के लगभग दो लाख पेड़ों में एक विचित्र बीमारी फैल गई थी। वे भुरभुरे शीशे की तरह टूट-टूटकर गिर रहे थे। खतरा यह था कि अगर आंधी चली या तूफान आया तो एक भी पेड़ सही-सलामत न रहेगा। तीन सप्ताह से पेड़ों की इस अनोखी बीमारी को खोजने की कोशिशें की जा रही थीं, लेकिन वन-विभाग के किसी भी विशेषज्ञ और किसी भी केमिकल इंजीनियर की समझ में न आ रहा था कि आखिर यह बीमारी है क्या । सरकार का विचार था कि पेड़ों की यह बीमारी किसी आतंकवादी गुट के किसी भयानक षड्यंत्र का परिणाम है।
           सरकार ने आतंकवादियों के इस षड्यन्त्र का पता लगाने का काम मेजर बलवन्त को सौंप दिया था और मेजर बलवन्त अपनी टीम के साथ कल पीलीभीत पहुंच रहा था। 
     मेजर बलवंत अपनी टीम (सोनिया, डोरा, सुधीर और मालती) के साथ पीलीभीत पहुंच जाता है। जहां पहले से ही कुछ वैज्ञानिक और इंजीनियर उपस्थित थे। जिनमें से एक केमिकल इंजीनियर था सुनील शर्मा ।
सुनील शर्मा का मित्र रविशंकर जो भारतीय आर्मी में था,  शहीद हो चुका है और उसकी जवान विधवा (उपन्यास के द्वितीय अध्याय का शीर्षक है) मीनाक्षी की उसके घर में हत्या कर दी जाती है। 
सुनील शर्मा इस हत्या की जांच की प्रार्थना मेजर बलवंत से करता है और मेजर बलवंत इसे स्वीकार कर लेते हैं। अब मेजर बलवंत को एक तरफ खत्म होते जा रहे पेड़ों की जांच करनी है और दूसरी तरफ मीनाक्षी की हत्या की । हालांकि बाद में यह दोनों केस एक साथ संबंध हो जाते हैं।
मेजर बलवंत जैसे ही मीनाक्षी के केस पर कार्य आरम्भ करते हैं तो कुछ और घटनाएं सामने आती हैं। मीनाक्षी के एकमात्र पुत्र के अपहरण की कोशिश की जाती है और मीनाक्षी से संबंधित कुछ व्यक्तियों की हत्या भी कर दी जाती है। मेजर बलवंत जिसे मात्र हत्या का केस समझ रहा था वह अपहरण और हत्याओं की एक शृंखला बन गया वहीं दूसरी और देश के विभिन्न भागों में जंगल खत्म होने की खबरें आने लगी ।
इन बढती घटनाओं के मध्यनजर सुबह चाय पर मेजर ने अपने साथियों से हत्या के वर्तमान केस पर विचार-विमर्श किया ।
मेजर ने कहा, "पेड़ों और उनकी पत्तियों की बीमारी का यह केस विचित्र ढंग से आरम्भ हुआ है। हमारे यहां पहुंचने से पहले युद्ध में वीरगति पाने वाले एक सैनिक की विधवा पत्नी मीनाक्षी की हत्या कर दी गई। वह भयभीत थी । उसने अपने मन का भेद बताने के लिए केमिकल इंजीनियर सुनील को बुलाया था, लेकिन सुनील के पहुंचने से पहले ही मीनाक्षी को मार डाला गया ।
  मीनाक्षी अपने बेटे पिकू के बारे में भयभीत थी। उसकी सहेली तृप्ता ने मीनाक्षी की मृत्यु के बाद उसके बेटे पिकू को बचाने की कोशिश की और पिकू को डाक्टर चावला के पास छिपा दिया । लेकिन दुश्मन ने तीन लफंगों दीनू, मज्जू और शर्फ की सहायता से तृप्ता की हत्या करा दी और पिकू का अपहरण करा लिया । डाक्टर चावला ने हिम्मत की और दीनू को पकड़ लिया । दुश्मन अपना काम निकालने के बाद मज्जू और शर्फ को भी अपने साथ ले गया। कुछ कहा नहीं जा सकता कि मज्जू और शर्फ का अन्तिम परिणाम क्या होगा ।"

.............. महत्त्वपूर्ण प्रश्न यह है कि मीनाक्षी और तृप्ता की हत्या और पिकू के अपहरण का पेड़ों की बीमारी और देश की वन-सम्पदा को नष्ट करने के भयानक षड्यंत्र से क्या सम्बन्ध हो सकता है?"- डोरा ने कहा ।
         जैसे जैसे कहानी आगे बढती है वैसे-वैसे कुछ और हत्याएं होती है जिनका संबंध ऐसे वैज्ञानिक और डाक्टरों से है जो पेड़-पौधों पर अध्ययन कर रहे थे ।
मेजर बलवंत भी आखिर समझ गया कि मीनाक्षी की हत्या से आरम्भ यह सिलसिला और जंगलों की समस्या का कहीं न कहीं परस्पर गहरा संबंध है।
वह संबंध क्या था ? 
और मेजर बलवंत ने उसे कैसे हल किया । यह आप उपन्यास पढकर जान सकते हैं। हां, उपन्यास रोचक और पठनीय है।
अब बात कर लेते हैं उपन्यास के खलपात्र की। वह शख्स आखिर था कौन और क्या चाहता था। हम खलपात्र की ज्यादा चर्चा तो नहीं करेंगे पर मेजर बलवंत जे कुछ शब्द आपको यहाँ पढने के लिए मिल जायेंगे जो खलपात्र के विषय में ही हैं।
- मेजर हैरान रह गया । अपने जासूसी जीवन में मेजर को पहली बार ऐसे दुश्मन से वास्ता पड़ा था जो उसका स्वागत कर रहा था और जो उसे इस बात का कायल करना चाहता था कि उसने किसी उच्च आदर्श के लिए कुछ खून किए हैं और वह अपराधी नहीं है।
दुश्मन उन्हें अपनी गुफा में आने का निमंत्रण दे रहा था।

अब कुछ और बातें- 
           कर्नल रंजीत के उपन्यास में आपको शे'र मिलेंगे। जिनकी प्रशंसा उनके साथी खूब करते हैं, हालांकि यह शे'र कहानी से संबंधित नहीं होते, कुछ शे'र तात्कालिक समय को अवश्य व्यक्त करते हैं।
शे'र
- उठा है जो शोर आई है हल्दी बाजार में,
देखा तो खानदान खड़ा था कतार में ।।

- उनके मिनी स्कर्ट पर सूझी हमें दलील, 
किल्लत ने कर दिया है लिबासों को भी कलील ।"
थोड़ा सा अलग-
मेजर बलवंत एक जासूस हैं,निरंतर खतरों से जूझते हैं लेकिन उनके जीवन में जोश, उत्साह बना रहता है। उत्साह,हिम्मत कहां से आती है। 
आप मेजर बलवंत के शब्दों में ही पढ लीजिए-
''सोनिया, मुझे तुमसे हमेशा उत्साह और प्रेरणा मिलती रही है । तुम न हो तो मैं बिलकुल निकम्मा हो जाऊंगा ।"
कर्नल रंजीत के कुछ उपन्यासों में आपको समसामयिक समस्याएं देखने को मिलती हैं, हालांकि अत्यंत संक्षिप्त रूप में होती हैं, मात्र थोड़ा सा वर्णन या संकेत मात्र ।
उदाहरण देखें-
ट्रेंड नागा बागी । हर देश में कुछ ऐसे लोग भी होते हैं जो अपने देश को अपना देश नहीं समझते, वे अपनी डेढ़ ईंट की मस्जिद अलग बनाना चाहते हैं । ऐसे लोग बड़ी आसानी से बड़ी ताकतों के हाथों बिक जाते हैं। वे यह नहीं जानते कि बड़ी ताकतें उनका उन्हीं के देश के विरुद्ध उपयोग करेंगी । कोई भी बड़ी ताकत उनकी सहायता इस सीमा तक नहीं कर सकती कि उनके देश में उनके लिए एक-एक अलग राज्य बनवा दे ।" यह कहकर मेजर ने मृत नागा बागी के पास पड़ी टामीगन उठा ली ।
टामीगन पर स्पष्ट अक्षरों में एक बाहरी देश का नाम खुदा हुआ था । एक शक्तिशाली देश का नाम, जिसकी गणना संसार......

कर्नल रंजीत के उपन्यासों की एक विशेषता यह भी है की वहां कुछ आवाजें जरूर सुनाई देती हैं। कभी -कभी तो यह सामान्य आवाजें होती हैं और कभी-कभी अचरज भरी ।
होटल के पिछवाड़े से शोर सुनाई दिया, "पकड़ो...पकड़ो... जाने दो ।" और फिर दौड़ते हुये कदमों और दो फायरों की आवाज सुनाई आई ।

उपन्यास का विषय मुझे बहुत अलग हटकर लगा। कैसे पूरे-पूरे के जंगल भुरभुरा कर खत्म हो रहे हैं, ऐसी कौनसी बीमारी पेड़ो को खा रही है। और मान लीजिए कभी भविष्य में ऐसी समस्या आ जाये जहाँ पूरे के पूरे जंगल घण्टों में खत्म हो जाये तो हम क्या समाधान कर सकते हैं।
वहीं उपन्यास का दूसरा पक्ष है तेजी से पौधों का बढना जो चाहे अप्राकृतिक है लेकिन वर्तमान समय जिस तरह से मनुष्य जंगल को खत्म कर रहा है हमें ऐसी विधि की आवश्यक महसूस होती है।

आज कर्नाटक में हैदराबाद युनिवर्सिटी के पास कांचा गचीबावली के पास चार सौ एकड़ क्षेत्र में फैले जंगल को सरकार विकास के नाम खत्म कर रही है। यह मानव सभ्यता और पर्यावरण के अत्यंत दुखद घटना है।

मेरा समस्त पाठक मित्रों से निवेदन है ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाये और पर्यावरण संरक्षण में सहयोगी बने, अन्यथा आने वाली पीढ़ियाँ कमजोर हो जायेंगी और फिर कोई 'लहू और मिट्टी' उपन्यास के खलपात्र जैसा पात्र पैदा होगा उनको खत्म करने के लिए।
उपन्यास रोचक है और पठनीय है।

उपन्यास- लहू और मिट्टी
लेखिक-   कर्नल रंजीत
प्रकाशक- हिंदी पॉकेट बुक्स, दिल्ली

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मृत्यु भक्त ।।  खामोश मौत आती है !

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