लोकप्रिय जासूसी साहित्य के वटवृक्ष- वेदप्रकाश काम्बोज
काम्बोजनामा- राम पुजारी
लोकप्रिय जासूसी उपन्यास साहित्य में वेदप्रकाश काम्बोज जी उस वटवृक्ष की तरह हैं जिसके नीचे असंख्य जीव- पौधे पनपते हैं और उस से वटवृक्ष अनजान होता है। जासूसी लेखन से साहित्यिक गलियारों तक में कलम चलाने वाले, मंजिल को भुला अपने इस सफर के आनंद में डूबे, लेखन पथ पर आवारगी करने वाले वेदप्रकाश काम्बोज एक ऐसे ही व्यक्तित्व हैं, जिनके पात्रों पर बहुसंख्यक लेखकों ने लिखा पर वेदप्रकाश काम्बोज उस से अलग ही रहे। ऐसे सरल स्वभाव के काम्बोज जी को समर्पित, उन्हीं के जीवन पर आधारित रचना है - काम्बोजनामा ।
' काम्बोजनामा' के लेखक राम पुजारी जी के साथ 17.09.2022, मेरठ |
उसी वटवृक्ष के जीवन और लेखन को युवा लेखक राम पुजारी जी ने 'काम्बोजनामा' में समेटने का जो प्रयास किया है वह उपन्यास साहित्य में एक मील पत्थर है। हजारीप्रसाद द्विवेदी जी के शिष्य ने 'व्योमकेश दरवेश लिखा, कुशवाहा कांत जी के शिष्य ने 'कुशवाहा कांत...' लिखा। ऐसा ही एक प्रयास रामपुजारी जी ने 'काम्बोजनामा' में किया है। एक सत्रह वर्ष का किशोर, जिसका एक उपन्यास 'कँगूरा' 1958 ई. में प्रकाशित हो चुका है। लेकिन घर वाले उसकी बात पर विश्वास नहीं करते की यह किशोर उपन्यास भी लिख सकता है। लेकिन घरवालों को क्या पता था यह किशोर एक दिन जासूसी उपन्यास साहित्य का वटवृक्ष बनेगा।
एक मध्यमवर्गीय परिवार का बच्चा अपनी लेखन क्षमता से अपना नाम लोकप्रिय साहित्य में स्वर्ण अक्षरों में लिखवाने में सक्षम हुआ है। उसके संघर्ष, प्रेरणा का वर्णन बहुत रोचक ढंग से पढने को मिलता है। विजय जैसे हास्य पात्र की रचना करने वाले काम्बोज जी जब नकली उपन्यासों से जूझते हैं तो वहां जवाहर चौधरी जैसे मित्र नयी राह दिखाते हैं। एक ऐसी राह जो सर्वभला चाहनी वाली है। यहीं से प्राप्त विचार काम्बोज जी के साथ आज भी हैं।
वेदप्रकाश काम्बोज जी जहाँ जासूसी साहित्य के वटवृक्ष हैं वहीं इन्होंने इत्तर विधाओं पर भी लेखन किया है। प्रस्तुत रचना में जो उदाहरण है वह काम्बोज जी के लेखन को स्पष्ट करने के लिए काफी हैं। यह भी स्वयं में एक रोचक किस्सा है जासूसी साहित्य लिखने वाले लेखक धीर- गम्भीर साहित्य भी उतनी सहजता और सरलता से रचते हैं जितनी सहजता- सरलता से उन्होने जासूसी साहित्य का सृजन किया है।
काम्बोजनामा एक धरोहर है तात्कालिक उपन्यास साहित्य को समझने की। रचना में जहाँ एक और काम्बोज जी का जीवन वृतांत सामने आता है वहीं दूसरी और उनकी लेखन यात्रा भी। यह लेखन यात्रा ही तात्कालिक उपन्यास साहित्य को रेखांकित करती है, जिसमें वेदप्रकाश काम्बोज जी के साथ जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा जी भी शामिल हैं।
'काम्बोजनामा' पढते वक्त तात्कालिक समय का जो जीवंत चित्रण किया है वह बहुत रोचक है। चाहे वह साहित्यिक घटनाएं हो, तात्कालिक बाजार का दृश्य हो या अन्य कोई भी प्रसंग लेखक महोदय ने मनोयोग से वर्णन किया है।
काम्बोजनामा में बहुत कुछ पहली बार पढने को मिला जो रोचक तो है ही है साथ में ज्ञानवर्धक भी। जैसे- दिल्ली के प्रसंग, प्रथम पॉकेट बुक्स 'सुमन पॉकेट बुक्स', जवाहर चौधरी के गुरुमंत्र, ओमप्रकाश शर्मा जी के संस्मरण, काम्बोज जी का प्रकाशन संस्थान, बब्बन खाँ का 'अदरक के पंजे' इत्यादि।
काम्बोजनामा में बहुत कुछ लिखने के पश्चात भी यह महसूस होता है की अभी बहुत कुछ कहना बाकी है। एक लेखक जिसने अपने जीवन में जासूसी, साहित्यिक, जीवनी और अन्य विधाओं में साहित्य लेखन किया है उसके किस्सों को एक पुस्तक में समेटना सरल कार्य नहीं है। हालांकि राम पुजारी जी ने यह कार्य किया है, उसके लिए वह धन्यवाद के पात्र हैं। पर 'काम्बोजनामा' पढने के पश्चात काम्बोज जी के साहित्य को पढने की जो इच्छा तीव्र हुयी है वह एक पुस्तक से तृप्त होने वाली नहीं है।
कहीं-कहीं समकालिक लेखकों का वर्णन न होना अखरता है लेकिन प्रस्तुत रचना काम्बोज जी का व्यक्तित्व विशेष न होकर कृतित्व विशेष है। राम पुजारी जी का मुख्य ध्येय काम्बोज जी के रचनात्मक को स्पष्ट करना है।
'काम्बोजनामा' के लेखक राम पुजारी जी ने अथक परिश्रम और शोध के पश्चात जो इस कृति का निर्माण किया है वह प्रशंसनीय है। काम्बोजनामा लेखकों और पाठकों के लिए एक मील पत्थर की तरह है।
- गुरप्रीत सिंह (व्याख्याता)
श्रीगंगानगर, राजस्थान
Email- sahityadesh@gmail.com
पुस्तक अंश- काम्बोजनामा
Bahut badhiya
ReplyDeleteराम पुजारी अदभुत लेखक हैं। अनेक पुस्तकें सृजित कर चुके हैं। कंबोजनामा मील का पत्थर हैं।
ReplyDeleteअतुल प्रभा
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