जातिवाद से उपजी एक हाॅरर कथा
आखिर क्यों?
कोई लौट आया- चन्द्रप्रकाश पाण्डेय
कुटकुट को नहीं पता था कि पुराने तालाब में ऐसी क्या तासीर है कि बच्चों के उधर से गुजरने पर प्रतिबन्ध है मगर इतना जरूर मालूम था कि एक-दो बार रात में उधर से अकेले जा रहे कुछ लोग बुत होकर गिर गये थे, आँखें उलट गयी थीं और मुँह से झाग निकलने लगा था। तालाब के बारे में प्रचलित कहानियाँ और घटनाएं याद करके उसके बदन में भय का संचार होने लगा। ठण्डी हवा से उसका जिस्म पहले ही सिहर रहा था, अब डर से भी सिहरने लगा।
वह ठहरा और मन ही मन हनुमान जी को याद करते हुए कल्पना किया कि वे उसके पीछे-पीछे कंधे पर गदा टिकाये हुए आ रहे हैं। इस ख्याल ने उसे बड़ी राहत दी और वह पुन: अपने हाव-भाव से निडरता दर्शाते हुए आगे बढ़ने लगा। (kindle) वर्तमान लोकप्रिय उपन्यास साहित्य की हाॅरर श्रेणी में चन्द्रप्रकाश पाण्डेय का नाम सबसे ऊपर है। अगर मैं अपनी बात करूं तो मुझे हाॅरर मूवीज और कहानी कभी पसंद नहीं आती लेकिन चन्द्रप्रकाश पाण्डेय जी की रचनाओं में जो आकर्षण होता है वह मुझे सम्मोहित कर लेता है। क्योंकि इनके उपन्यास अन्य हाॅरर रचनाओं की तरह मात्र घटनाएं ना होकर एक व्यवस्थित कहानी वाले होते हैं।
प्रस्तुत उपन्यास 'कोई लौट आया' एक पैरानाॅर्मल कहानी है, और यह कहानी समाज की एक दूषित प्रथा जातिवाद पर भी प्रहार करती है। कहानी का संबंध वर्तमान और सन् 1975 वाराणसी के एक गाँव बलरामपुर से है। जहाँ एक तालाब के किनारे एक रुदाली रहती है। कहते हैं तालाब के पास से गुजरने वाले बच्चों को वह खींच कर तालाब में ले जाती है।
“कौन है ये रुदाली? कहाँ से आयी है? क्या चाहती है?”
वहीं कहानी का वर्तमान केन्द्र बिंदु है एक कस्बा नवलगढ। वह कस्बा जो असंतोष से भरा है, जहाँ एक व्यक्ति ईश्वर से घृणा करता है।
“ये कस्बा असंतोष से भरा हुआ है। यहाँ कोई है, जिसका मन अशांत है। कहीं कुछ सड़ रहा है; शायद...शायद कोई लाश। कोई बेचैन आत्मा रात की अँधेरी सड़कों पर भटक रही है और....और इस कस्बे में एक शख्स तो ऐसा भी है, जो ईश्वर से घृणा तो नहीं करता मगर उससे नाराज बहुत है।”
इसी नवल गढ शहर में आता है इंस्पेक्टर सार्थक। इंस्पेक्टर के जीवन में भी ट्रेजेडी है। सार्थक की पत्नी कृता को 'दिव्य अनुभव' होता है।
एक दृश्य देखें-
“कृता!” सार्थक ने उसे आवाज़ दी- “क्या देख रही हो?”
कृता की ओर से जब कोई प्रतिसाद नहीं आया तो वह उसके करीब पहुँचा, हौले से उसके कंधे पर हाथ रखा।
“श..श..श...।” कृता ने आहिस्ता से उसकी ओर गर्दन घुमाई और होठों पर तर्जनी उंगली रखकर उसे खामोश रहने का संकेत करते हुए बोली- “काली माता बात कर रही हैं मुझसे।”
वहीं शहर में बच्चों के गायब होने की घटनाएं सतत बढ रही हैं। नवागंतुक इंस्पेक्टर सार्थक के हिस्से आती है इन घटनाओं को रोकने की जिम्मेदारी।
कहानी दो स्तर पर चलती है। एक - बलरामपुर, वाराणसी, उत्तर-प्रदेश, सन 1975। द्वितीय वर्तमान एक कस्बे नवलगढ की।
दोनों कहानियों के मध्य है कौस्तुम्भ शाण्डिल्य। जिसका प्रथम परिचय इस प्रकार दिया गया है-
उसका पूरा नाम कौस्तुभ शांडिल्य है। दलितों और गरीबों के हक की लड़ाई लड़ने के लिए एक पैर पर खड़ा रहता है। फ्रीलांसर के रूप में समाज-सेवा करता है, फ्रीलांसर इसलिए क्योंकि ये न तो किसी राजनीतिक पार्टी से जुड़ा है और न ही किसी एनजीओ से। जो करता है, अपने दम पर करता है। हालाँकि जाति से खुद भी ब्राह्मण है मगर सोशल मीडिया पर खुलेआम ये लिखता है कि सनातन धर्म का जितना नाश ब्राह्मणों ने किया, उतना विदेशियों ने भी नहीं किया। इसकी कलाई में मौली धागा और माथे पर तिलक देखकर कोई भी इसके कट्टर हिन्दू होने का मुगालता पाल सकता है मगर हकीकत ये है कि ये हर दम हिन्दू कस्टम्स पर निशाना साधता रहता है। इसके आचरण में आपको न तो पूरी तरह से लेफ्ट विंग नजर आयेगा और न ही राईट विंग। ये बन्दा अपने आप में एक अलग ही विंग है। बहुत ही ढीठ और जीवट शख्सियत है ये।
वहीं नवलगढ़ में हो रही बच्चों के गायब होने की घटनाओं को सुलझाने का कार्य इंस्पेक्टर सार्थक को दिया जाता है। इंस्पेक्टर की मुलाकात कौस्तुम्भ शाण्डिय से होती है और इंस्पेक्टर को पता चलता है कौस्तुम्भ शाण्डिय उच्च जाति ब्राह्मण का होने के पश्चात भी उच्च जाति के प्रति घृणित भाव रखता है। वह दलित बच्चों के उत्थान के लिए संघर्ष करता है।
उपन्यास आरम्भ में जितना रोचक प्रतीत होता है अंत में वह उस स्तर पर कायम नहीं रहता। इसका एक कारण यह भी हो सकता है कथा मूल हाॅरर से हटकर जातिवादी प्रथाओं की स्थिति का चित्रण करने लग जाती है। कुछ घटनायें ऐसी भी हैं जो कहीं तर्कसंगत नजर नहीं आती। उपन्यास चन्द्रप्रकाश पाण्डेय जी के अन्य उपन्यासों की तुलना में निम्नतम है।
उपन्यास में कुछ रोचक कथन हैं जो उपन्यास की कहानी को प्रभावी बनाते हैं।
- जब आग पूरे मोहल्ले में लगी हो तो समझदारी अपने घर की आग बुझाने में है, न कि पड़ोसी के घर की।
-क्रान्ति खून से नहाती है, मगर वह खून हमेशा गरीबों का होता है।
- दुखों की पराकाष्ठा जब बढ़ जाती है तो मनुष्य के मन में आध्यात्म के प्रति अनुराग पनपने लगता है।
'कोई लौटा आया' एक सामाजिक बुराई पर आधारित हाॅरर उपन्यास है। उपन्यास साहित्य में ऐसा न के बराबर देखने को मिला है जहाँ सामाजिक व्यवस्था पर चोट हो और वह भी हाॅरर (पैरानार्मल) उपन्यास में। इस विशेष प्रयोग के लिए लेखक महोदय धन्यवाद के पात्र हैं।
एक उदाहरण देखें-
कौस्तुम्भ शाण्डिल्य- “कितना आसान है न इंस्पेक्टर साहब; सामाजिक शान्ति, सद्भावना, भाई-चारा, मेल-मिलाप, प्यार-मोहब्बत, अंट-बंट-शंट का हवाला देकर समाज में धर्म के नाम पर व्याप्त बुराई पर मौन साध लेना, आँखें बंद करके तटस्थ हो जाना...।
'कोई लौट आया' उपन्यास शीर्षक उपन्यास के साथ न्याय करता नजर नहीं आता। वह लौट आया, उसके लौटने का कारण तो है पर लौटने के बाद उसने क्या किया? यह कहीं कुछ स्पष्ट नहीं।
मेरी दृष्टि में प्रथम बार किसी हाॅरर उपन्यास में किसी सामाजिक कुरीति पर चर्चा हुयी है, या संपूर्ण उपन्यास लिखा गया है। यह एक सराहनीय प्रयास है, धन्यवाद लेखक महोदय।
उपन्यास - कोई लौट आया
लेखक- चन्द्रप्रकाश पाण्डेय
किंडल लिंक - कोई लौट आया- चन्द्रप्रकाश पाण्डेय
आखिर क्यों?
कोई लौट आया- चन्द्रप्रकाश पाण्डेय
कुटकुट को नहीं पता था कि पुराने तालाब में ऐसी क्या तासीर है कि बच्चों के उधर से गुजरने पर प्रतिबन्ध है मगर इतना जरूर मालूम था कि एक-दो बार रात में उधर से अकेले जा रहे कुछ लोग बुत होकर गिर गये थे, आँखें उलट गयी थीं और मुँह से झाग निकलने लगा था। तालाब के बारे में प्रचलित कहानियाँ और घटनाएं याद करके उसके बदन में भय का संचार होने लगा। ठण्डी हवा से उसका जिस्म पहले ही सिहर रहा था, अब डर से भी सिहरने लगा।
वह ठहरा और मन ही मन हनुमान जी को याद करते हुए कल्पना किया कि वे उसके पीछे-पीछे कंधे पर गदा टिकाये हुए आ रहे हैं। इस ख्याल ने उसे बड़ी राहत दी और वह पुन: अपने हाव-भाव से निडरता दर्शाते हुए आगे बढ़ने लगा। (kindle) वर्तमान लोकप्रिय उपन्यास साहित्य की हाॅरर श्रेणी में चन्द्रप्रकाश पाण्डेय का नाम सबसे ऊपर है। अगर मैं अपनी बात करूं तो मुझे हाॅरर मूवीज और कहानी कभी पसंद नहीं आती लेकिन चन्द्रप्रकाश पाण्डेय जी की रचनाओं में जो आकर्षण होता है वह मुझे सम्मोहित कर लेता है। क्योंकि इनके उपन्यास अन्य हाॅरर रचनाओं की तरह मात्र घटनाएं ना होकर एक व्यवस्थित कहानी वाले होते हैं।
प्रस्तुत उपन्यास 'कोई लौट आया' एक पैरानाॅर्मल कहानी है, और यह कहानी समाज की एक दूषित प्रथा जातिवाद पर भी प्रहार करती है। कहानी का संबंध वर्तमान और सन् 1975 वाराणसी के एक गाँव बलरामपुर से है। जहाँ एक तालाब के किनारे एक रुदाली रहती है। कहते हैं तालाब के पास से गुजरने वाले बच्चों को वह खींच कर तालाब में ले जाती है।
“कौन है ये रुदाली? कहाँ से आयी है? क्या चाहती है?”
वहीं कहानी का वर्तमान केन्द्र बिंदु है एक कस्बा नवलगढ। वह कस्बा जो असंतोष से भरा है, जहाँ एक व्यक्ति ईश्वर से घृणा करता है।
“ये कस्बा असंतोष से भरा हुआ है। यहाँ कोई है, जिसका मन अशांत है। कहीं कुछ सड़ रहा है; शायद...शायद कोई लाश। कोई बेचैन आत्मा रात की अँधेरी सड़कों पर भटक रही है और....और इस कस्बे में एक शख्स तो ऐसा भी है, जो ईश्वर से घृणा तो नहीं करता मगर उससे नाराज बहुत है।”
इसी नवल गढ शहर में आता है इंस्पेक्टर सार्थक। इंस्पेक्टर के जीवन में भी ट्रेजेडी है। सार्थक की पत्नी कृता को 'दिव्य अनुभव' होता है।
एक दृश्य देखें-
“कृता!” सार्थक ने उसे आवाज़ दी- “क्या देख रही हो?”
कृता की ओर से जब कोई प्रतिसाद नहीं आया तो वह उसके करीब पहुँचा, हौले से उसके कंधे पर हाथ रखा।
“श..श..श...।” कृता ने आहिस्ता से उसकी ओर गर्दन घुमाई और होठों पर तर्जनी उंगली रखकर उसे खामोश रहने का संकेत करते हुए बोली- “काली माता बात कर रही हैं मुझसे।”
वहीं शहर में बच्चों के गायब होने की घटनाएं सतत बढ रही हैं। नवागंतुक इंस्पेक्टर सार्थक के हिस्से आती है इन घटनाओं को रोकने की जिम्मेदारी।
कहानी दो स्तर पर चलती है। एक - बलरामपुर, वाराणसी, उत्तर-प्रदेश, सन 1975। द्वितीय वर्तमान एक कस्बे नवलगढ की।
दोनों कहानियों के मध्य है कौस्तुम्भ शाण्डिल्य। जिसका प्रथम परिचय इस प्रकार दिया गया है-
उसका पूरा नाम कौस्तुभ शांडिल्य है। दलितों और गरीबों के हक की लड़ाई लड़ने के लिए एक पैर पर खड़ा रहता है। फ्रीलांसर के रूप में समाज-सेवा करता है, फ्रीलांसर इसलिए क्योंकि ये न तो किसी राजनीतिक पार्टी से जुड़ा है और न ही किसी एनजीओ से। जो करता है, अपने दम पर करता है। हालाँकि जाति से खुद भी ब्राह्मण है मगर सोशल मीडिया पर खुलेआम ये लिखता है कि सनातन धर्म का जितना नाश ब्राह्मणों ने किया, उतना विदेशियों ने भी नहीं किया। इसकी कलाई में मौली धागा और माथे पर तिलक देखकर कोई भी इसके कट्टर हिन्दू होने का मुगालता पाल सकता है मगर हकीकत ये है कि ये हर दम हिन्दू कस्टम्स पर निशाना साधता रहता है। इसके आचरण में आपको न तो पूरी तरह से लेफ्ट विंग नजर आयेगा और न ही राईट विंग। ये बन्दा अपने आप में एक अलग ही विंग है। बहुत ही ढीठ और जीवट शख्सियत है ये।
वहीं नवलगढ़ में हो रही बच्चों के गायब होने की घटनाओं को सुलझाने का कार्य इंस्पेक्टर सार्थक को दिया जाता है। इंस्पेक्टर की मुलाकात कौस्तुम्भ शाण्डिय से होती है और इंस्पेक्टर को पता चलता है कौस्तुम्भ शाण्डिय उच्च जाति ब्राह्मण का होने के पश्चात भी उच्च जाति के प्रति घृणित भाव रखता है। वह दलित बच्चों के उत्थान के लिए संघर्ष करता है।
उपन्यास आरम्भ में जितना रोचक प्रतीत होता है अंत में वह उस स्तर पर कायम नहीं रहता। इसका एक कारण यह भी हो सकता है कथा मूल हाॅरर से हटकर जातिवादी प्रथाओं की स्थिति का चित्रण करने लग जाती है। कुछ घटनायें ऐसी भी हैं जो कहीं तर्कसंगत नजर नहीं आती। उपन्यास चन्द्रप्रकाश पाण्डेय जी के अन्य उपन्यासों की तुलना में निम्नतम है।
उपन्यास में कुछ रोचक कथन हैं जो उपन्यास की कहानी को प्रभावी बनाते हैं।
- जब आग पूरे मोहल्ले में लगी हो तो समझदारी अपने घर की आग बुझाने में है, न कि पड़ोसी के घर की।
-क्रान्ति खून से नहाती है, मगर वह खून हमेशा गरीबों का होता है।
- दुखों की पराकाष्ठा जब बढ़ जाती है तो मनुष्य के मन में आध्यात्म के प्रति अनुराग पनपने लगता है।
'कोई लौटा आया' एक सामाजिक बुराई पर आधारित हाॅरर उपन्यास है। उपन्यास साहित्य में ऐसा न के बराबर देखने को मिला है जहाँ सामाजिक व्यवस्था पर चोट हो और वह भी हाॅरर (पैरानार्मल) उपन्यास में। इस विशेष प्रयोग के लिए लेखक महोदय धन्यवाद के पात्र हैं।
एक उदाहरण देखें-
कौस्तुम्भ शाण्डिल्य- “कितना आसान है न इंस्पेक्टर साहब; सामाजिक शान्ति, सद्भावना, भाई-चारा, मेल-मिलाप, प्यार-मोहब्बत, अंट-बंट-शंट का हवाला देकर समाज में धर्म के नाम पर व्याप्त बुराई पर मौन साध लेना, आँखें बंद करके तटस्थ हो जाना...।
'कोई लौट आया' उपन्यास शीर्षक उपन्यास के साथ न्याय करता नजर नहीं आता। वह लौट आया, उसके लौटने का कारण तो है पर लौटने के बाद उसने क्या किया? यह कहीं कुछ स्पष्ट नहीं।
मेरी दृष्टि में प्रथम बार किसी हाॅरर उपन्यास में किसी सामाजिक कुरीति पर चर्चा हुयी है, या संपूर्ण उपन्यास लिखा गया है। यह एक सराहनीय प्रयास है, धन्यवाद लेखक महोदय।
उपन्यास - कोई लौट आया
लेखक- चन्द्रप्रकाश पाण्डेय
किंडल लिंक - कोई लौट आया- चन्द्रप्रकाश पाण्डेय
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