लाश की हत्या- प्रकाश भारती-1989
मर्डर मिस्ट्री
मर्डर मिस्ट्री
इस माह (अगस्त 2021) में मैंने क्रमशः प्रकाश भारती जी के चार उपन्यास पढे हैं। 'प्ले बाॅय', 'खून का बदला' , 'काली डायरी' और 'लाश की हत्या'।
अब चर्चा करते हैं प्रस्तुत उपन्यास लाश की हत्या की। यह एक मर्डर मिस्ट्री आधारित उपन्यास है। देवराज मेहता की हत्या के वक्त सुधीर और राजेश मौका- ए -वारदात पर मौजूद थे।
सुरेश दुग्गल ने चीख-चीख कर कबूल किया की हत्या उसी ने की थी।
क्राइम ब्रांच के डी.आई. जी. के मुताबिक वो 'ओपन एण्ड शट' केस था।
इंस्पेक्टर विजय कुमार की राय भी यही थी।
सुरेश दुग्गल के हत्यारा होने में शक की कतई कोई गुंजाइश नजर नहीं आती थी।
लेकिन सुधीर की ठोस दलीलों ने, डी. आई. जी. और होम मिनिस्टर के पी. ए. तक की मर्जी के खिलाफ, विजय कुमार को जो एक्शन लेने पर मजबूर किया उसका नतीजा सामने आते ही....? राजेश का बर्थ डे था वह इस बर्थ डे को अपने मित्र सुधीर और सपना के साथ मनाना चाहता था।
आजकल आयातित शराब आसानी से उपलब्ध नहीं थी । इसलिए राजेश हफ्ता भर पहले इस बार के बारमैन से शैेम्पैन अरेंज करने को कह गया था। बारमैन उसका परिचित था। उसने विश्वास दिलाया था कि बोतल मिल जाएगी।
जब बर्थ डे की शाम राजेश वहाँ शैम्पैन लेने गया तो उसे वहाँ सुरेश दुग्गल मिला। शराब और क्रोध में सुरेश दुग्गल ने राजेश से कहा
'मैं वाकई उस हरामजादे को शूट कर दूंगा…..।"
"किसे शूट कर दोगे? किसे जिंदा नहीं छोड़ोगे?"
"उसी कमीने देवराज मेहता को।"
राजेश और सुरेश दुग्गल दोनों ही 'एडवेंचर' नामक एक समाचारपत्र पत्र में नौकरी करते हैं। सुरेश दुग्गल अपनी खूबसूरत पत्नी प्रतिमा से अथाह प्रेम करता है। और वह प्रतिमा के सपनों को पूरा करने के लिए 'एडवेंचर' के अतिरिक्त देवराज मेहता के साप्ताहिक समाचार में पार्ट टाइम जाॅब आरम्भ कर देता है।
देवराज मेहता के विषय में लोगों का ख्याल है की वह एक नंबर का कमीना और औरतों का रसिया है। वह अपने पेपर के माध्यम से लोगों का ब्लैकमेल तक करता है।
सुरेश दुग्गल को शक है की देवराज मेहता उसकी भोली-भाली बीवी प्रतिमा को बहका रहा है।
राजेश ने सोचा कहीं सुरेश दुग्गल जज्बात में कोई गलत कदम न उठा ले। वह अपने मित्र प्राइवेट डिटेक्टिव सुधीर रंजन के पास मदद के लिए पहुँचा। राजेश चाहत
था की सुधीर प्रतिमा को समझाये। वहीं प्रतिमा का फोन आया की सुरेश घर से रिवॉल्वर लेकर देवराज मेहता को मारने निकला है।
क्राइम ब्रांच के डी.आई. जी. के मुताबिक वो 'ओपन एण्ड शट' केस था।
इंस्पेक्टर विजय कुमार की राय भी यही थी।
सुरेश दुग्गल के हत्यारा होने में शक की कतई कोई गुंजाइश नजर नहीं आती थी।
लेकिन सुधीर की ठोस दलीलों ने, डी. आई. जी. और होम मिनिस्टर के पी. ए. तक की मर्जी के खिलाफ, विजय कुमार को जो एक्शन लेने पर मजबूर किया उसका नतीजा सामने आते ही....? राजेश का बर्थ डे था वह इस बर्थ डे को अपने मित्र सुधीर और सपना के साथ मनाना चाहता था।
आजकल आयातित शराब आसानी से उपलब्ध नहीं थी । इसलिए राजेश हफ्ता भर पहले इस बार के बारमैन से शैेम्पैन अरेंज करने को कह गया था। बारमैन उसका परिचित था। उसने विश्वास दिलाया था कि बोतल मिल जाएगी।
जब बर्थ डे की शाम राजेश वहाँ शैम्पैन लेने गया तो उसे वहाँ सुरेश दुग्गल मिला। शराब और क्रोध में सुरेश दुग्गल ने राजेश से कहा
'मैं वाकई उस हरामजादे को शूट कर दूंगा…..।"
"किसे शूट कर दोगे? किसे जिंदा नहीं छोड़ोगे?"
"उसी कमीने देवराज मेहता को।"
राजेश और सुरेश दुग्गल दोनों ही 'एडवेंचर' नामक एक समाचारपत्र पत्र में नौकरी करते हैं। सुरेश दुग्गल अपनी खूबसूरत पत्नी प्रतिमा से अथाह प्रेम करता है। और वह प्रतिमा के सपनों को पूरा करने के लिए 'एडवेंचर' के अतिरिक्त देवराज मेहता के साप्ताहिक समाचार में पार्ट टाइम जाॅब आरम्भ कर देता है।
देवराज मेहता के विषय में लोगों का ख्याल है की वह एक नंबर का कमीना और औरतों का रसिया है। वह अपने पेपर के माध्यम से लोगों का ब्लैकमेल तक करता है।
सुरेश दुग्गल को शक है की देवराज मेहता उसकी भोली-भाली बीवी प्रतिमा को बहका रहा है।
राजेश ने सोचा कहीं सुरेश दुग्गल जज्बात में कोई गलत कदम न उठा ले। वह अपने मित्र प्राइवेट डिटेक्टिव सुधीर रंजन के पास मदद के लिए पहुँचा। राजेश चाहत
था की सुधीर प्रतिमा को समझाये। वहीं प्रतिमा का फोन आया की सुरेश घर से रिवॉल्वर लेकर देवराज मेहता को मारने निकला है।
लेकिन जब तक सुधीर रंजन और राजेश दोनों देवराज मेहता के घर पहुंचे वहाँ उन्हें देवराज मेहता की लाश और लाश के पास रिवॉल्वर लिये सुरेश दुग्गल मिला जिसने स्वीकार किया की उसने देवराज मेहता की हत्या की है।
देवराज मेहता की हत्या पर किसी को अफसोस नहीं था। उसकी बीवी नीना मेहता, भाई बलराज मेहता, सेक्रेटरी जगमोहन और घर आया एक वकील जयंत नाथ। घर पर उपस्थित एक मात्र नौकर रामलाल को इस सब से कुछ लेना देना नहीं। यह एक सीधा सा 'ओपन एण्ड शट' का केस था। पर प्राइवेट डिटेक्टिव सुधीर रंजन ने जब इस केस की छानबीन आरम्भ की तो कुछ रहस्यमयी बातें उसके सामने आयी जिससे उस लगा की यह मात्र 'ओपन एण्ड शट' का केस नहीं वरन इसके पीछे हकीकत कुछ और ही है।
जैसे दुरेश दुग्गल की बीवी का घर से गायब होना।
घर के सदस्यों का व्यवहार।
देवराज मेहता की हत्या पर किसी को अफसोस नहीं था। उसकी बीवी नीना मेहता, भाई बलराज मेहता, सेक्रेटरी जगमोहन और घर आया एक वकील जयंत नाथ। घर पर उपस्थित एक मात्र नौकर रामलाल को इस सब से कुछ लेना देना नहीं। यह एक सीधा सा 'ओपन एण्ड शट' का केस था। पर प्राइवेट डिटेक्टिव सुधीर रंजन ने जब इस केस की छानबीन आरम्भ की तो कुछ रहस्यमयी बातें उसके सामने आयी जिससे उस लगा की यह मात्र 'ओपन एण्ड शट' का केस नहीं वरन इसके पीछे हकीकत कुछ और ही है।
जैसे दुरेश दुग्गल की बीवी का घर से गायब होना।
घर के सदस्यों का व्यवहार।
एक और सदस्य की मौत।
यहीं से सुधीर रंजन को लगता है की कहानी कुछ और ही है और वह अपने स्तर पर अन्वेषण आरम्भ करता है। वहीं सुरेश दुग्गल की बीवी का गायब होना एक नयी पहेली थी। लेकिन इंस्पेक्टर विजय के साथ सुधीर रंजन एक-एक कड़ी को जोड़ता हुआ अंत में सत्य तलाश कर ही लेता है।
उपन्यास कहानी के स्तर बेहद कमजोर है। क्योंकि अधिकांश घटनाक्रम का आभास पूर्व में हो जाता है। सर्वप्रथम तो उपन्यास शीर्षक ही यह पता चल जाता है की जो व्यक्ति कातिल के तौर पर पकड़ा गया है उसने 'लाश की हत्या' की है।
द्वितीय अब वास्तविक कातिल कौन है यह कुछ सस्पेंश है पर इतना ज्यादा नहीं की कातिल का अनुमान न लगाया जा सके।
उपन्यास में एक जगह वर्णन है की पोस्ट आफिस का डाक टिकट काउंटर चौबीस घण्टे खुला रहता।
मुझे नहीं लगता यह संभव है।
उपन्यास का अंत उपन्यास को एक कहानी न बना कर मात्र एक घटना बना देता है। क्योंकि उपन्यास का अंत किसी अंजाम तक नहीं पहुँच पाता। अधिकांश पाठक यहीं चाहते है की बुराई का अंत होता दिखाया जाये पर यहाँ ऐसा कुछ नहीं है।
उपन्यास कुछ हद रोचक कहा जा सकता है, कहीं नीरस नहीं लगता। मनोरंजक की दृष्टि से एक बार पढा जा सकता है।
उपन्यास- लाश की हत्या
लेखक- प्रकाश भारती
प्रकाशन- 1989
यहीं से सुधीर रंजन को लगता है की कहानी कुछ और ही है और वह अपने स्तर पर अन्वेषण आरम्भ करता है। वहीं सुरेश दुग्गल की बीवी का गायब होना एक नयी पहेली थी। लेकिन इंस्पेक्टर विजय के साथ सुधीर रंजन एक-एक कड़ी को जोड़ता हुआ अंत में सत्य तलाश कर ही लेता है।
उपन्यास कहानी के स्तर बेहद कमजोर है। क्योंकि अधिकांश घटनाक्रम का आभास पूर्व में हो जाता है। सर्वप्रथम तो उपन्यास शीर्षक ही यह पता चल जाता है की जो व्यक्ति कातिल के तौर पर पकड़ा गया है उसने 'लाश की हत्या' की है।
द्वितीय अब वास्तविक कातिल कौन है यह कुछ सस्पेंश है पर इतना ज्यादा नहीं की कातिल का अनुमान न लगाया जा सके।
उपन्यास में एक जगह वर्णन है की पोस्ट आफिस का डाक टिकट काउंटर चौबीस घण्टे खुला रहता।
मुझे नहीं लगता यह संभव है।
उपन्यास का अंत उपन्यास को एक कहानी न बना कर मात्र एक घटना बना देता है। क्योंकि उपन्यास का अंत किसी अंजाम तक नहीं पहुँच पाता। अधिकांश पाठक यहीं चाहते है की बुराई का अंत होता दिखाया जाये पर यहाँ ऐसा कुछ नहीं है।
उपन्यास कुछ हद रोचक कहा जा सकता है, कहीं नीरस नहीं लगता। मनोरंजक की दृष्टि से एक बार पढा जा सकता है।
उपन्यास- लाश की हत्या
लेखक- प्रकाश भारती
प्रकाशन- 1989
रोचक.. मौका लगा तो एक बार पढ़ने की कोशिश रहेगी...
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