एक पुरुष वेश्या के भयानक अंजाम की दास्तान
प्ले बाॅय- प्रकाश भारती
प्ले बाॅय- प्रकाश भारती
प्रकाश भारती का अब तक का अंतिम उपन्यास
वह हर रात उसे किसी न किसी दौलतमंद औरत का बिस्तर गर्म करना पड़ता था, यही उसका पेशा था लेकिन एक दिन उसका यह मजेदार पेशा खुद उसी के लिए बबाले-जान बन गया।
लोकप्रिय जासूसी साहित्य में ऐसे लेखक बहुत कम हुये हैं जिन्होंने कहानी को वास्तविक धरातल पर लिखा है। अधिकांश लेखकों ने एक काल्पनिक संसार बना कर जासूसों के एक्शन कारनामें लिखे हैं, लेकिन प्रकाश भारती जी ने कभी भी अविश्वसनीय कथानक नहीं लिखा। उनके उपन्यास वास्तविक के करीब होते है, और पात्र भी जीवंत। प्रकाश भारती जी द्वारा लिखा गया 'प्ले बाॅय' भी एक ऐसा ही उपन्यास है जो वास्तविक के बहुत नजदीक है।
यह कहानी है एक प्ले बाॅय की, जिसका नाम है....हालांकि नाम तो उसके समय अनुसार बदलते रहते हैं फिर भी एक नाम है सुदेश चौधरी।
उपन्यास की कहानी प्रथम पुरुष में चलती है और कहानी सुनाता है कथानायक सुदेश चौधरी।
मैं औरतों का रसिया था लेकिन औरतें मेरी कमजोरी कभी नहीं थी। औरतों के साथ हमबिस्तर होना और बिस्तर में अपनी सेवाओं के बदले में उस से पैसा वसूल करना मेरा धंधा था। (पृष्ठ-99) ऐसे ही एक मिशन में नाकाम होकर वह कहीं से सूटकेश चोरी कर लेता है। लेकिन उसे नहीं पता था कि उस सूटकेस में क्या है। यही सूटकेस उसके लिए मुसीबत बन जाता है।
एक होटल में ठहरने पर वह अपने अगले शिकार की तलाश में था। जहाँ उसे मिलती है मोना बिजलानी।
-मोना बिजलानी जिसकी खूबसूरती किसी भी आदमी के होश उड़ा सकती है। पति की दौलत और मुझे हासिल करना चाहती थी और मैं सुदेश चौधरी, यह मेरा असली नाम था, जिसे दर्जनों फर्जी नामों में से निकालना पड़ता है। (पृष्ठ-31)
मोना के साथ मिलकर सुदेश चौधरी एक बड़ा गेम खेलना चाहता है। एक ऐसा गेम जिसमें औरत और पैसा दोनों ही थे। लेकिन चोरी के सूटकेस उसके लिए मुसीबत थे। वह उसका रहस्य खोल सकते थे।
सुदेश चौधरी पहली बार किसी का मर्डर करता है। और इसी चक्कर में उसे बहुत कुछ खोन पड़ता यहां तक की भारत से भागकर माॅरीशस जाना पड़ता है।
माॅरीशस वह सरिता के साथ आता है। सरिता उसका अगला शिकार है। लेकिन भारत से जिस चक्कर से वह भागकर आया वहीं चक्कर उसे यहाँ परेश दीवान के रूप में मिलता है।
वही बिन बुलाये मेहमान की तरह एक नयी मुसीबत उसके गले आ पड़ती है। वह मुसीबत है पासपोर्ट। एक अनजान आदमी का पासपोर्ट उसकी जेब में था, जो उसकी जान की आफत बन गया और वह फंस गया ड्रग्स के धंधेदारों के हाथ।
- मोना से जान छुड़ाने के चक्कर में इण्डिया से माॅरीशस पहुँचा तो यहाँ भी ड्रग एडिक्ट के बखेड़े में फंस गया। बखेड़ा भी ऐसा कि मौत साफ नजर आ रही थी। (पृष्ठ-170)
फिर वही हेरोइन
बिजलानी के सूटकेस से मिली हेरोइन ने तो मेरे हाथों मर्डर कराने से लेकर मोना.....और मुझे इण्डिया से भागने तक मजबूर कर दिया। यहाँ माॅरीशस में हेरोइन एडिक्ट परेश दीवान के लफड़े ने तो बकायादा मौत के मुँह में ही पहुँचा दिया।
यह क्यों मेरे पीछे पड़ी थी?
प्ले बाॅय से मर्डरर बना और अब कुरियर बन रहा था।
अब यह हेरोइन क्या गुल खिलायेगी?
मैं बुरी तरह से फंस चुका था। (पृष्ठ-195,96)
सुदेश चौधरी एक प्ले बाॅय था, पर लालच और औरत के चक्कर में कातिल बन बैठा। बदला लेने के चक्कर में वहशी बन बैठा था। लेकिन फिर भी वह स्वयं को स्वयं की नजर में अच्छा ही मानता था। लेकिन उसके कर्म अनचाही ड्रग्स के रूप में उसके साथ चलते थे। वह पैसा तो चाहता था, वह औरत तो चाहता था, पर ड्रग्स नहीं चाहता। पर उसे न चाहते हुये भी हर जगह ड्रग्स मिलती थी, वह ड्रग्स का सेवन नहीं करता था, पर ड्रग्स उसका सेवन कर रही थी, उसके गले में फंदा बन कर उसके साथ थी।
पुनः भारत
कहानी का आरम्भ भारत से होता है और फिर माॅरिशस से होती हुयी कथा पुनः भारत आती है। सिर्फ कथा या कथानक ही भारत नहीं आता बल्कि वह उन्हीं मुसीबतों को साथ लाता है जिनके डर से भारत से भागा था, वे मुसीबतें जो माॅरीशस में उसे मिली और एक बार फिर सुदेश चौधरी वहीं खड़ा था जहाँ से जान बचाकर भागा था। एक बार फिर वहीं जान के दुश्मन उसके सामने थे।
उपन्यास का अंत बिलकुल अलग तरह का है। पाठक कल्पना नहीं कर सकता की उपन्यास का यह अंत होगा। पर अंत होता है। एक दर्दनाक अंत, ध्यान दें कहानी कथानक ही सुना रहा है।
उपन्यास के अंतिम दृश्यों में से एक दृश्य है।
"तुम्हारा जख्म बहुत गहरा था। गनीमत है गोली बाहर निकल गयी थी और हड्डी को कोई नुकसान नहीं पहुंचा। लेकिन खून इतना ज्यादा बह गया था कि अगर वक्त पर इलाज शुरु नहीं होता तो तुम हफ्ता पहले ही मर चुके होते।"
"हफ्ता पहले?"
" हां। तुम्हे छह बोलत खून दिया गया है।"(पृष्ठ-307)
मुझे लगता है यह कुछ ज्यादा ही हो गया।
उपन्यास में कथानक एक शहर से दूसरे और दूसरे से तीसरे शहर में भटकता रहता है। यह शहरों का चक्कर कुछ भ्रमित सा कर देता है।
जैसे- कीरतपुर, विराटनगर, करीमगंज, सलीमपुर और विश्वासनगर हालांकि माॅरीशस भी है।
एक नये कथानक पर लिखा गया यह रोचक उपन्यास है। मनुष्य के कर्मों का फल उसे मिलता है। जैसा की कथानक में कुछ पात्रों को मिला। कहानी विस्तृत है और पठनीय भी।
उपन्यास- प्ले बाॅय
लेखक- प्रकाश भारती
प्रकाशक- गौरी पॉकेट बुक्स
पृष्ठ- 316
वह हर रात उसे किसी न किसी दौलतमंद औरत का बिस्तर गर्म करना पड़ता था, यही उसका पेशा था लेकिन एक दिन उसका यह मजेदार पेशा खुद उसी के लिए बबाले-जान बन गया।
लोकप्रिय जासूसी साहित्य में ऐसे लेखक बहुत कम हुये हैं जिन्होंने कहानी को वास्तविक धरातल पर लिखा है। अधिकांश लेखकों ने एक काल्पनिक संसार बना कर जासूसों के एक्शन कारनामें लिखे हैं, लेकिन प्रकाश भारती जी ने कभी भी अविश्वसनीय कथानक नहीं लिखा। उनके उपन्यास वास्तविक के करीब होते है, और पात्र भी जीवंत। प्रकाश भारती जी द्वारा लिखा गया 'प्ले बाॅय' भी एक ऐसा ही उपन्यास है जो वास्तविक के बहुत नजदीक है।
यह कहानी है एक प्ले बाॅय की, जिसका नाम है....हालांकि नाम तो उसके समय अनुसार बदलते रहते हैं फिर भी एक नाम है सुदेश चौधरी।
उपन्यास की कहानी प्रथम पुरुष में चलती है और कहानी सुनाता है कथानायक सुदेश चौधरी।
मैं औरतों का रसिया था लेकिन औरतें मेरी कमजोरी कभी नहीं थी। औरतों के साथ हमबिस्तर होना और बिस्तर में अपनी सेवाओं के बदले में उस से पैसा वसूल करना मेरा धंधा था। (पृष्ठ-99) ऐसे ही एक मिशन में नाकाम होकर वह कहीं से सूटकेश चोरी कर लेता है। लेकिन उसे नहीं पता था कि उस सूटकेस में क्या है। यही सूटकेस उसके लिए मुसीबत बन जाता है।
एक होटल में ठहरने पर वह अपने अगले शिकार की तलाश में था। जहाँ उसे मिलती है मोना बिजलानी।
-मोना बिजलानी जिसकी खूबसूरती किसी भी आदमी के होश उड़ा सकती है। पति की दौलत और मुझे हासिल करना चाहती थी और मैं सुदेश चौधरी, यह मेरा असली नाम था, जिसे दर्जनों फर्जी नामों में से निकालना पड़ता है। (पृष्ठ-31)
मोना के साथ मिलकर सुदेश चौधरी एक बड़ा गेम खेलना चाहता है। एक ऐसा गेम जिसमें औरत और पैसा दोनों ही थे। लेकिन चोरी के सूटकेस उसके लिए मुसीबत थे। वह उसका रहस्य खोल सकते थे।
सुदेश चौधरी पहली बार किसी का मर्डर करता है। और इसी चक्कर में उसे बहुत कुछ खोन पड़ता यहां तक की भारत से भागकर माॅरीशस जाना पड़ता है।
माॅरीशस वह सरिता के साथ आता है। सरिता उसका अगला शिकार है। लेकिन भारत से जिस चक्कर से वह भागकर आया वहीं चक्कर उसे यहाँ परेश दीवान के रूप में मिलता है।
वही बिन बुलाये मेहमान की तरह एक नयी मुसीबत उसके गले आ पड़ती है। वह मुसीबत है पासपोर्ट। एक अनजान आदमी का पासपोर्ट उसकी जेब में था, जो उसकी जान की आफत बन गया और वह फंस गया ड्रग्स के धंधेदारों के हाथ।
- मोना से जान छुड़ाने के चक्कर में इण्डिया से माॅरीशस पहुँचा तो यहाँ भी ड्रग एडिक्ट के बखेड़े में फंस गया। बखेड़ा भी ऐसा कि मौत साफ नजर आ रही थी। (पृष्ठ-170)
फिर वही हेरोइन
बिजलानी के सूटकेस से मिली हेरोइन ने तो मेरे हाथों मर्डर कराने से लेकर मोना.....और मुझे इण्डिया से भागने तक मजबूर कर दिया। यहाँ माॅरीशस में हेरोइन एडिक्ट परेश दीवान के लफड़े ने तो बकायादा मौत के मुँह में ही पहुँचा दिया।
यह क्यों मेरे पीछे पड़ी थी?
प्ले बाॅय से मर्डरर बना और अब कुरियर बन रहा था।
अब यह हेरोइन क्या गुल खिलायेगी?
मैं बुरी तरह से फंस चुका था। (पृष्ठ-195,96)
सुदेश चौधरी एक प्ले बाॅय था, पर लालच और औरत के चक्कर में कातिल बन बैठा। बदला लेने के चक्कर में वहशी बन बैठा था। लेकिन फिर भी वह स्वयं को स्वयं की नजर में अच्छा ही मानता था। लेकिन उसके कर्म अनचाही ड्रग्स के रूप में उसके साथ चलते थे। वह पैसा तो चाहता था, वह औरत तो चाहता था, पर ड्रग्स नहीं चाहता। पर उसे न चाहते हुये भी हर जगह ड्रग्स मिलती थी, वह ड्रग्स का सेवन नहीं करता था, पर ड्रग्स उसका सेवन कर रही थी, उसके गले में फंदा बन कर उसके साथ थी।
पुनः भारत
कहानी का आरम्भ भारत से होता है और फिर माॅरिशस से होती हुयी कथा पुनः भारत आती है। सिर्फ कथा या कथानक ही भारत नहीं आता बल्कि वह उन्हीं मुसीबतों को साथ लाता है जिनके डर से भारत से भागा था, वे मुसीबतें जो माॅरीशस में उसे मिली और एक बार फिर सुदेश चौधरी वहीं खड़ा था जहाँ से जान बचाकर भागा था। एक बार फिर वहीं जान के दुश्मन उसके सामने थे।
उपन्यास का अंत बिलकुल अलग तरह का है। पाठक कल्पना नहीं कर सकता की उपन्यास का यह अंत होगा। पर अंत होता है। एक दर्दनाक अंत, ध्यान दें कहानी कथानक ही सुना रहा है।
उपन्यास के अंतिम दृश्यों में से एक दृश्य है।
"तुम्हारा जख्म बहुत गहरा था। गनीमत है गोली बाहर निकल गयी थी और हड्डी को कोई नुकसान नहीं पहुंचा। लेकिन खून इतना ज्यादा बह गया था कि अगर वक्त पर इलाज शुरु नहीं होता तो तुम हफ्ता पहले ही मर चुके होते।"
"हफ्ता पहले?"
" हां। तुम्हे छह बोलत खून दिया गया है।"(पृष्ठ-307)
मुझे लगता है यह कुछ ज्यादा ही हो गया।
उपन्यास में कथानक एक शहर से दूसरे और दूसरे से तीसरे शहर में भटकता रहता है। यह शहरों का चक्कर कुछ भ्रमित सा कर देता है।
जैसे- कीरतपुर, विराटनगर, करीमगंज, सलीमपुर और विश्वासनगर हालांकि माॅरीशस भी है।
एक नये कथानक पर लिखा गया यह रोचक उपन्यास है। मनुष्य के कर्मों का फल उसे मिलता है। जैसा की कथानक में कुछ पात्रों को मिला। कहानी विस्तृत है और पठनीय भी।
उपन्यास- प्ले बाॅय
लेखक- प्रकाश भारती
प्रकाशक- गौरी पॉकेट बुक्स
पृष्ठ- 316
Jabardast 👍👍
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