Friday, 6 August 2021

452. खून का बदला- प्रकाश भारती

आखिर किसने लिया खून का बदला
खून का बदला- प्रकाश भारती
अजय सीरीज
  'थंडर' का रिपोर्ट अजय एक बार विशालगढ के स्थानीय रिपोर्टर कुलभूषण से मिलने आया था।
बातों में कुलभूषण ने गजल गायक अनिल मोहन की इतनी तारीफ कर दी थी कि गजलें सुनने का शौकीन अजय इस गायक को सुनने का लोभ संवरण नहीं कर सका और उस रात को विशालगढ में ही रुकने का फैसला कर लिया। (पृष्ठ-10) 
     अनिल मोहन एक गजल गायक था।  जो विशालगढ के फूलमून और पैराडाइज क्लब में अपने प्रोग्राम देता था। अनिल मोहन गायन के अतिरिक्त लड़कियों का रसिया और हेरोइन का सेवन करता था। उसकी सारी जमापूँजी इसी में खत्म हो जाती थी। 
होटल फूलमून की संचालक लिलि अनिल मोहन से प्यार करती थी।
      विनोद एक काॅन्ट्रेक्टर था जो अनिल मोहन को को विशालगढ जैसे छोटे  शहर निकाल कर बड़े शहर में प्रोग्राम करवाना चाहता था।
    एक दिन कुछ अज्ञात अपराधी अनिल मोहन को पीट कर चले गये। अनिल मोहन के न चाहते हुये भी पुलिस इस केस में आ पहुंची, क्योंकि पुलिस को शक था अलिन‌ मोहन ड्रग्स का धंधा करने वाले उन लोगों ने पीटा है, जिनका अनिल मोहन की तरफ रुपये बाकी हैं।
   और एक दिन अनिल मोहन का उसके होटल के कमरे में किसी ने कत्ल कर दिया और इल्जाम‌ आया लिलि के सिर।
    लिलि के पास एक ही रास्ता था वह अपने मित्र अजय से संपर्क करें। अजय 'थंडर' नामक समाचार पत्र का खोजी पत्रकार है और लोगों का मददगार भी। वह विराट मगर का निवासी है।
    और अजय मिला लिलि के वकील से।
"लिलि के खिलाफ पुलिस ने जितना तगड़ा केस बनाया है उसे देखते हुये फिलहाल उसके बचने की कोई उम्मीद नहीं की जा सकती।" -हिचकिचाहट भरे स्वर में कहा गया,-"हां, अगर कोई चमत्कार ही हो जाए तो बात दूसरी है।"
"देखिए, वकील साहब, मैं एक क्राइम रिपोर्टर हूँ कोई चमत्कारी पुरुष नहीं।"- अजय बोला,-"लेकिन इतनी निराशाजनक स्थिति में भी क्योंकि लिलि मुझ पर भरोसा करती है इसलिए मैं उसकी मदद जरूर करूंगा और अगर वह सचमुच बेगुनाह है तो उसे बेगुनाह साबित ही करूंगा।" (उपन्यास अंश)
    तो यह है मूलकथानक उपन्यास 'खून का बदला' का। जो एक मर्डर मिस्ट्री आधारित उपन्यास है और इस मर्डर मिस्ट्री को हल करता है रिपोर्टर अजय।
     उपन्यास का कथानक एक आत्महत्या से होता है और उपन्यास में उस भाग को 'प्राक्कथन' शीर्षक दिया गया है। हालांकि बाद में‌ कहीं कोई और शीर्षक नहीं है क्योंकि यह कहानी का आधार है जो बहुत पहले कहीं घटित होता है। इसलिए इसे 'प्राक्कथन' शीर्षक दिया है।
       उपन्यास की कहानी रोचक और मनोरंजक है। कहीं भी नीरसता नहीं है। एक कत्ल और उसके पश्चात कातिल को ढूंढने का सिलसिला आदि से अंत तक दिलचस्प है।
    कत्ल क्यों हुआ यह तो कारण आरम्भ में‌ समझ में आ जाता है, लेकिन यह कत्ल किसने और कैस किया इसे जानने की जिज्ञासा अंत तक बनी रहती है।
    अजय की इन्वेस्टिगेशन और कुछ मनोरंजन घटनाएं उपन्यास को बांधे रखती हैं। हां, उपन्यास के अंत में 'खून‌ का बदला' शीर्षक जब सार्थक होता है तो कथा बहुत आनंददायक हो जाती है।
उपन्यास- खून का बदला
लेखक-    प्रकाश भारती
संस्करण- 1984
प्रकाशन- साधना पॉकेट बुक्स, दिल्ली
पृष्ठ-         216

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