Thursday, 2 July 2020

341. काली करतूत- इब्ने सफी

दस कत्ल और बागोटा का रहस्य
काली करतूत- इब्ने सफी, जनवरी-1975

जासूस एक्स टू अली इमरान को जब होश आया तो वह एक अनजान औरत के साथ एक कार में था। और उस औरत का दावा था की वह अली इमरान की पत्नी है। और वह अली इमरान को उसके घर भी ले गयी।
    होटल का मालिक ठाकुर एक बदमाश व्यक्ति है। अली इमरान के घर से निकली वह औरत ठाकुर के होटल में आती है। और अली इमरान का एक शागिर्द सफदर जब उस औरत तक आशा नामक लड़की के माध्यम से पहुंच  बनाता है तो वह औरत अपने कमरे में मृत पायी जाती है।  और न तो होटल मालिक ठाकुर बचता है और न ही आशा।

Kali kartoot ibne safi

अली इमरान सोचता है-
एक व्यक्ति उससे लिफ्ट मांगता है। फिर वह व्यक्ति उसे धोखा देकर बेहोश कर देता है। होश आने पर एक लड़की उसके साथ होती है जो उसे अपना पति बताती है। जब वह अपने होटल में पहुंचती तो उसे मार डाला जाता है। फिर ठाकुर जैसे आदमी की हत्या ? ठाकुर के बारे में तो यह कहा जाता था कि उसका दूसरा नाम-मौत है ?
वह लड़की क्या चाहती थी ? 
 (उपन्यास अंश)
एक-एक कर सब मारे जाते हैं।
आखिर क्यों?


           अली इमरान कॆ दिमाग में यही प्रश्न आता है। इस केस की जांच सी. बी आई. सुपरिन्टेन्डेन्ट फैयाज भी करता है।
        और फिर शुरु होता है हत्याओं का सिलसिला। एक के बाद एक हत्याएं होती जाती हैं‌ और हत्यारा अली इमरान से फोन पर बात भी करता रहता है। कभी वह कहता है मेरे रास्ते से हट जाओ और कभी कहता है मुझे पकड़ कर दिखाओ।
वही अली इमरन सोचत है- बड़ा खतरनाक केस है। वह कातिल जानवरों के समान इन्सानों को मार रहा है और हम कुछ नहीं कर पा रहे। (उपन्यास अंश)
    वहीं उपन्यास में एक और ट्विस्ट आता है और वह ट्विस्ट है बागोटा का। उस रहस्यमयी हत्यारे का कहना है वह सिर्फ बागोटा संगठन के लोगों को ही मार रहा है क्योंकि वह देश के लिए खतरनाक लोग हैं।
हत्यारे से बातचीत करने के पश्चात भी अली इमरान साहब क्या करे, क्योंकि वह जिस संदिग्ध व्यक्ति तक पहुंचते हैं उसकी हत्या कर दी जाती है और सबूत के नाम पर कुछ भी नहीं मिलता।
  और इस तरह, हत्या और हत्यारे की तलाश में उपन्यास अपने समापन की ओर बढता है। तो आप सोच रहे होंगे फिर हत्यारा कैसे पकड़ा गया।
    और एक दिन हत्यारा अली इमरान साहब के टेबल पर उनके साथ बैठकर खाना खाता है और अपनी हकीकत बता देता है। अरे यार, यह क्या बात हुयी? हो जाती है, कभी-कभी ऐसा भी हो जाता है। क्योंकि किसी कहानी का समापन पक्ष बहुत महत्वपूर्ण होता है, इसलिए कभी-कभी लेखक चाहकर भी अच्छा समापन नहीं लिख पाता।
    अच्छा और बातें तो रहने दीजिए, अली इमरान साहब हत्यारे के गोली भी मार देते हैं। क्यों, बस यार मूड हो गया और गोली ठोक दी। इमरान साहब यह अच्छी बात नहीं है। 

अब उपन्यास के प्रथम पृष्ठ पर एक नजर डाल लेते हैं। यह वही दृश्य है जब अली इमरान एक अज्ञात कार में अज्ञात महिला के साथ होता है। स्वभाव से हास्य इमरान कठिन परिस्थितियों में भी सहज रहता है।
इमरान ने ऊंघते हुए कहा।
'अशोका होटल।'
' वहीं चल रहे हैं प्यारे'' - यह सुरीली आवाज इमरान के कान में पड़ी ही थी कि वह चौंक कर उठ बैठा । आँखें फाड़- फाड़ कर वह उस हसीना को देख रहा था जो कार ड्राईव कर रही थी। इस समय वह उस युवती की पीठ पर बिखरे हुए घने स्याह बालों को ही देख सकता था। बालों की सुन्दरता और आवाज की मधुरता से वह सहज में अनुमान लगा सकता था कि वह कितनी सुन्दर होगी ।
'आप आश्चर्य में पड़ गये प्यारे इमरान।' - युवती खनकदार स्वर में हँसते हुए बोली ।
'हां मेरी प्यारी हेमामालिनी । आश्चर्य से मेरे प्राण पानी भरने लगे हैं । सारी - प्राण तो बेहद शरीफ आदमी है लेकिन तुम्हारी तारीफ...।'
'हाय - लगता है आपने मुझे पहचाना नहीं...।'
'मेरे दिल के अलबम में फिलहाल कोई ऐसी फोटो नहीं जो पीछे की और से खेंची गई हो | अपना चोखटा दिखाओ तो शायद।' इमरान ने सहज में यह बात कही थी । यद्यपि वह कदापि सामान्य नहीं था वह तो एकदम अनहोनी परिस्थिति में उलझा हुआ था।
(उपन्यास-काली करतूत का एक अंश)
  

उपन्यास के महत्वपूर्ण संवाद-
- वह औरत बड़ी खतरनाक होती है जो किसी मर्द के लिये अपना सब कुछ लुटा देती है और बदले में वह उस से बेवफाई करता है।'
उपन्यास में ठाकुर का किरदार बहुत कम है पर जितना भी है वह प्रभावशाली है। ठाकुर का सफदर से एक संवाद देखें, जो उसके व्यक्तित्व को परिभाषित करता है।
- तुम जानते हो कि मेरा नाम ठाकुर है और मुझे खुफिया विभाग वालों की सूरत तक से नफरत है।

           वह हर चुन-चुन कर कुछ लोगों के कत्ल कर रहा था और अपने स्पष्टीकरण में कहता था- वह कुछ लोगों को उनकी काली करतूत की सजा दे रहा है। और इसी काली करतूत के चक्कर में उसने दस लोगों को मारा या मरवा दिया।
आखिर वह था कौन? जो लोग को मार रहा था?
आखिर किस काली करतूत की वह सजा दे रहा था?
यह जानने के लिए आपको इब्ने सफी द्वारा लिखित और फारूख अर्गली साहब द्वारा अनुदित उपन्यास 'काली करतूत' पढना होगा।

इब्ने सफी द्वारा रचित 'काली करतूत' एक मर्डर मिस्ट्री रचना है। उपन्यास का आरम्भ बहुत अच्छे ढंग से होता है लेकिन अंत तक आते-आते उपन्यास अपना प्रभाव खत्म लेता है। अंत कुछ भी तार्किक नहीं है। जितना उपन्यास आरम्भ विस्तृत है उतना ही संक्षिप्त इसका अंत है।
उपन्यास मात्र इब्ने सफी साहब के नाम पर पढा जा सकता है, इसके अतिरिक्त उपन्यास की कोई विशेषता नहीं है।

उपन्यास- काली करतूत
लेखक -   इब्ने सफी
अनुवाद-   फारूख अर्गली
प्रकाशक- जासूसी फंदा कार्यालय, दिल्ली
पत्रिका-    तारा जासूसी सीरीज
पृष्ठ-         130
तिथि-      जनवरी- 1975



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