बंद कमरे में कत्ल की पहेली
कानून का चैलेंज- सुरेन्द्र मोहन पाठक
कमरा अंदर से बंद था और पूर्णतः, अच्छी तरह से बंद था। उसमें मात्र दो शख्स थे जो अपनी मंत्रणा में व्यस्त थे। एक का कत्ल हो गया और दूसरा कातिल के तौर पर गिरफ्तार हो गया। लेकिन गिरफ्तार व्यक्ति का कहना है कि कत्ल के वक्त वह बेहोश था, उसे नहीं पता की कत्ल किसने किया लेकिन उसका यह भी मानना है की कमरा अंदर से बंद था। मात्र एक व्यक्ति को विश्वास था की गिरफ्तार व्यक्ति सच बोल रहा है और उसी ने 'कानून का चैलेंज' स्वीकार किया कि वह गिरफ्तार व्यक्ति को निर्दोष साबित करेगा?
- क्या यह संभव था?
- दो व्यक्ति कमरे में क्या मंत्रणा कर रहे थे?
- एक व्यक्ति बेहोश कैसे हुआ?
- दूसरे व्यक्ति का कत्ल कैसे हुआ?
- जब कमरा अंदर से बंद था तो कैसे संभव है बाहर से हत्यारा आया?
- आखिर बंद कमरे में हत्या कैसे हुयी?
- किसने संदिग्ध व्यक्ति को निर्दोष साबित करने की सोची?
लोकप्रिय जासूसी उपन्यास साहित्य में आदरणीय सुरेन्द्र मोहन पाठज जी को मर्डर मिस्ट्री उपन्यास लेखन में सिद्धहस्त माना जाता है और प्रस्तुत उपन्यास 'कानून का चैलेंज' इस का उदाहरण है।
सुनील जो की 'ब्लास्ट' नामक समाचार पत्र में एक खोजी पत्रकार के दायित्व का निर्वाह करता है। यूथ क्लब का मालिक रमाकांत उसका परम मित्र है। दोनों प्रेम ओसवाल से मिलने जाते हैं।
प्रेमचंद ओसवाल कोई लगभग पचपन साल का, रोबदार व्यक्तित्व वाला और तन्दुरुस्ती में नौजवानों को शर्मिंदा करने वाला बैंक एग्जिक्यूट था।
प्रेमचंद ओसवाल की एक शाम गजेन्द्र सिक्का से मुलाकात थी।
"साढे छ: बजे एक मेहमान आने वाला है।"- ओसवाल गम्भीरता से बोला -"सिक्का नाम है उसका।"
प्रेमचंद ओसवाल के उस शाम के खास मेहमान, उसके होने वाले दामाद का नाम गजेन्द्र कुमार सिक्का था जो कि अपने होने वाले ससुर की कोठी पर निर्धारित समय से दस मिनट लेट पहुंचा।
इसी मुलाकात के दौरान, जबकी दोनों एक कमरे में बंद थे प्रेमचंद ओसवाल का एक तीर (arrow) से कत्ल हो जाता है।
इसी दौरान इंस्पेक्टर प्रभुदयाल और सुनील भी वहाँ पहुंच जाते हैं। कातिल के तौर पर गजेन्द्र सिक्का को गिरफ्तार किया जाता लेकिन सिक्का स्वयं को कत्ल से अनभिज्ञ बताता है, वह कहता है की वह तो कमरे में बेहोश था।
और मजे की बात है की कमरा अंदर से बंद है। दरवाजा कमरे में दाखिल होने का इकलौता रास्ता था, जो सिक्का खुद कबूल करता है कि भीतर से मजबूती से बंद था। खिड़की के दोहरे दरवाजे भीतर की तरफ से मजबूती से बंद थे और उनके बीच मजबूत ग्रिल थी। इसके अलावा कमरे में कोई झरोखा तक नहीं था, जिससे की कोई परिंदा भी भीतर पर मार सकता हो, कोई छोटा-मोटा सुराख तक नहीं जिससे कि कोई कीडा़-मकोड़ा, काॅकरोच भीतर रेंग सकता हो। दरवाजे में की होल तक नहीं...।
अब कातिल के तौर पर जब गजेन्द्र सिक्का को पकड़ लिया जाता है तो सुनील उसके निर्दोष होने की बात पर विश्वास करता है। इंस्पेक्टर प्रभुदयाल उसे चैलेंज करता है की वह गजेन्द्र सिक्का को निर्दोष साबित कर दे।
"कानून का चैलेंज।" सुनील बोला- "मंजूर है।"
अब कहानी यहीं से आगे बढती है। सुनील और इंस्पेक्टर के सामने एक प्राइम सस्पेक्ट है, जो स्वयं को निर्दोष मानता है। सुनील के सामने बड़ी चुनौती है इस बात का पता लगाना की आखिर कत्ल हुआ कैसे। जब तक कत्ल होने का तरीका न पता चले तब तक सब कुछ रहस्य में है।
इसी समस्या से रमाकांत तक भी जूझता है।
"क्या बात है"- वह बोला " तबीयत तो ठीक है? आज दस बजे ही उठ गये।"
"कहां से उठ गया" रमाकांत भुनभुनाया।
"मेरा मतलब है सोते से इतनी जल्दी जाग गये?"
"सोया कौन है माईयवा।"
"क्या?"
"नींद ही नहीं आयी। सारी रात ये ही सोचते गुजर गई कि कत्ल कैसे हुआ? उस सीलबंद कमरे में कोई कैसे घुसा? कैसे वहाँ से बाहर निकला?"
दोनों के सामने दो प्रश्न हैं कत्ल कैसे हुआ और कत्ल किसने किया ।
सुनील अपनी तीव्र बुद्धि और मस्तमौला दोस्त रमाकांत तथा इंस्पेक्टर प्रभुदयाल के सहयोग से इस रहस्य को सुलझाता है।
और अंत में सुनील को क्या मिला-
प्रभुदयाल ने बकायदा उसकी पीठ थपथपाई "ये शाबाशी मेरी तरफ से और ये" उसने सुनील को एक लिफाफा थमाया "मेरे महकमे की तरफ से।"
"ये क्या है?"
"कमिश्नर साहब का इंटीमेशन लेटर। आज से तुम्हें स्पेशल पुलि ऑफिसर मुकर्रर किया जाता है।
उपन्यास की कहानी बहुत रोचक है। पाठक के लिए भी यह एक चुनौती की तरह है की आखिर कत्ल कैसे हुआ। कहीं कुछ अतिरिक्त संभावनाएं दृष्टिगत नहीं होती। एक बंद कमरा और उसमें कत्ल। दिमाग को चक्करा देने वाली उपन्यास भरपूर रोचक है।
कहानी एक रहस्य के अतिरिक्त पारिवारिक संबंधों, तथाकथित प्रेम को भी परिभाषित करती है। आज के भौतिकवादी युग में संबंध किस तरह बदल जाती हैं यह उपन्यास में पढा जा सकता है।
- उपन्यास में तीर (arrow) की अच्छी जानकारी मिलती है मेरे विचार से तीरंदाजी के अलावा अन्य लोग भी इस विषय में इतनी जानकारी नहीं रखते।
- उपन्यास का कथानक सरल है, रूचिकर है लेकिन कत्ल का जो तरीका दिखाया गया है वह बहुत पेचीदा लगता है।
- इंस्पेक्टर प्रभुदयाल का सुनील के साथ अच्छा सहयोग रहता है।
- शोभना के पास जब महिलायें दुख प्रकट करने आती हैं तो वह औरतों को अंदर लेकर कमरे का गेट बंद कर लेती है। यह बहुत अजीब सा प्रतीत होता है।
एकाएक विलाप करती चार-पांच वृद्धायें वहाँ पहुंची............शोभना और वे तमाम औरतें कमरे के भीतर चली गयी और दरवाजा बंद हो गया।
उपन्यास के प्रमुख पात्र एक नजर में-
प्रेमचंद ओसवाल- एक बैंक एग्जिक्यूट। मृतक।
शोभना- प्रेमचंद की बेटी।
जगमोहन ओसवाल- प्रेमचंद का भाई, डाॅक्टर।
दरशथ प्रसाद शुक्ला- प्रेमचंद पड़ोसी
परमेश्वर - प्रेमचंद का नौकर
मुरली, चन्द्रकला- प्रेमचंद के नौकर, गौण पात्र
सविता खुराना- प्रेमचंद की सेक्रेटरी
सुनील- ब्लास्ट समाचार पत्र का खोजी पत्रकार
रमाकांत- यूथ क्लब का मालिक, सुनील का दोस्त
प्रभुदयाल- पुलिस- इंस्पेक्टर
गजेन्द्र सिक्का- शोभना का प्रेमी
राजेन्द्र सिक्का- गजेन्द्र का भाई-
यह एक मर्डर मिस्ट्री उपन्यास है। कथानक सरल है लेकिन मर्डर का तरीका बहुत कठिन है।
उपन्यास आदि से अंत भरपूर मनोरंजन करने में सक्षम है।
उपन्यास- कानून का चैलेंज
लेखक- सुरेन्द्र मोहन पाठक
कानून का चैलेंज- सुरेन्द्र मोहन पाठक
कमरा अंदर से बंद था और पूर्णतः, अच्छी तरह से बंद था। उसमें मात्र दो शख्स थे जो अपनी मंत्रणा में व्यस्त थे। एक का कत्ल हो गया और दूसरा कातिल के तौर पर गिरफ्तार हो गया। लेकिन गिरफ्तार व्यक्ति का कहना है कि कत्ल के वक्त वह बेहोश था, उसे नहीं पता की कत्ल किसने किया लेकिन उसका यह भी मानना है की कमरा अंदर से बंद था। मात्र एक व्यक्ति को विश्वास था की गिरफ्तार व्यक्ति सच बोल रहा है और उसी ने 'कानून का चैलेंज' स्वीकार किया कि वह गिरफ्तार व्यक्ति को निर्दोष साबित करेगा?
- क्या यह संभव था?
- दो व्यक्ति कमरे में क्या मंत्रणा कर रहे थे?
- एक व्यक्ति बेहोश कैसे हुआ?
- दूसरे व्यक्ति का कत्ल कैसे हुआ?
- जब कमरा अंदर से बंद था तो कैसे संभव है बाहर से हत्यारा आया?
- आखिर बंद कमरे में हत्या कैसे हुयी?
- किसने संदिग्ध व्यक्ति को निर्दोष साबित करने की सोची?
लोकप्रिय जासूसी उपन्यास साहित्य में आदरणीय सुरेन्द्र मोहन पाठज जी को मर्डर मिस्ट्री उपन्यास लेखन में सिद्धहस्त माना जाता है और प्रस्तुत उपन्यास 'कानून का चैलेंज' इस का उदाहरण है।
सुनील जो की 'ब्लास्ट' नामक समाचार पत्र में एक खोजी पत्रकार के दायित्व का निर्वाह करता है। यूथ क्लब का मालिक रमाकांत उसका परम मित्र है। दोनों प्रेम ओसवाल से मिलने जाते हैं।
प्रेमचंद ओसवाल कोई लगभग पचपन साल का, रोबदार व्यक्तित्व वाला और तन्दुरुस्ती में नौजवानों को शर्मिंदा करने वाला बैंक एग्जिक्यूट था।
प्रेमचंद ओसवाल की एक शाम गजेन्द्र सिक्का से मुलाकात थी।
"साढे छ: बजे एक मेहमान आने वाला है।"- ओसवाल गम्भीरता से बोला -"सिक्का नाम है उसका।"
प्रेमचंद ओसवाल के उस शाम के खास मेहमान, उसके होने वाले दामाद का नाम गजेन्द्र कुमार सिक्का था जो कि अपने होने वाले ससुर की कोठी पर निर्धारित समय से दस मिनट लेट पहुंचा।
इसी मुलाकात के दौरान, जबकी दोनों एक कमरे में बंद थे प्रेमचंद ओसवाल का एक तीर (arrow) से कत्ल हो जाता है।
इसी दौरान इंस्पेक्टर प्रभुदयाल और सुनील भी वहाँ पहुंच जाते हैं। कातिल के तौर पर गजेन्द्र सिक्का को गिरफ्तार किया जाता लेकिन सिक्का स्वयं को कत्ल से अनभिज्ञ बताता है, वह कहता है की वह तो कमरे में बेहोश था।
और मजे की बात है की कमरा अंदर से बंद है। दरवाजा कमरे में दाखिल होने का इकलौता रास्ता था, जो सिक्का खुद कबूल करता है कि भीतर से मजबूती से बंद था। खिड़की के दोहरे दरवाजे भीतर की तरफ से मजबूती से बंद थे और उनके बीच मजबूत ग्रिल थी। इसके अलावा कमरे में कोई झरोखा तक नहीं था, जिससे की कोई परिंदा भी भीतर पर मार सकता हो, कोई छोटा-मोटा सुराख तक नहीं जिससे कि कोई कीडा़-मकोड़ा, काॅकरोच भीतर रेंग सकता हो। दरवाजे में की होल तक नहीं...।
अब कातिल के तौर पर जब गजेन्द्र सिक्का को पकड़ लिया जाता है तो सुनील उसके निर्दोष होने की बात पर विश्वास करता है। इंस्पेक्टर प्रभुदयाल उसे चैलेंज करता है की वह गजेन्द्र सिक्का को निर्दोष साबित कर दे।
"कानून का चैलेंज।" सुनील बोला- "मंजूर है।"
अब कहानी यहीं से आगे बढती है। सुनील और इंस्पेक्टर के सामने एक प्राइम सस्पेक्ट है, जो स्वयं को निर्दोष मानता है। सुनील के सामने बड़ी चुनौती है इस बात का पता लगाना की आखिर कत्ल हुआ कैसे। जब तक कत्ल होने का तरीका न पता चले तब तक सब कुछ रहस्य में है।
इसी समस्या से रमाकांत तक भी जूझता है।
"क्या बात है"- वह बोला " तबीयत तो ठीक है? आज दस बजे ही उठ गये।"
"कहां से उठ गया" रमाकांत भुनभुनाया।
"मेरा मतलब है सोते से इतनी जल्दी जाग गये?"
"सोया कौन है माईयवा।"
"क्या?"
"नींद ही नहीं आयी। सारी रात ये ही सोचते गुजर गई कि कत्ल कैसे हुआ? उस सीलबंद कमरे में कोई कैसे घुसा? कैसे वहाँ से बाहर निकला?"
दोनों के सामने दो प्रश्न हैं कत्ल कैसे हुआ और कत्ल किसने किया ।
सुनील अपनी तीव्र बुद्धि और मस्तमौला दोस्त रमाकांत तथा इंस्पेक्टर प्रभुदयाल के सहयोग से इस रहस्य को सुलझाता है।
और अंत में सुनील को क्या मिला-
प्रभुदयाल ने बकायदा उसकी पीठ थपथपाई "ये शाबाशी मेरी तरफ से और ये" उसने सुनील को एक लिफाफा थमाया "मेरे महकमे की तरफ से।"
"ये क्या है?"
"कमिश्नर साहब का इंटीमेशन लेटर। आज से तुम्हें स्पेशल पुलि ऑफिसर मुकर्रर किया जाता है।
उपन्यास की कहानी बहुत रोचक है। पाठक के लिए भी यह एक चुनौती की तरह है की आखिर कत्ल कैसे हुआ। कहीं कुछ अतिरिक्त संभावनाएं दृष्टिगत नहीं होती। एक बंद कमरा और उसमें कत्ल। दिमाग को चक्करा देने वाली उपन्यास भरपूर रोचक है।
कहानी एक रहस्य के अतिरिक्त पारिवारिक संबंधों, तथाकथित प्रेम को भी परिभाषित करती है। आज के भौतिकवादी युग में संबंध किस तरह बदल जाती हैं यह उपन्यास में पढा जा सकता है।
- उपन्यास में तीर (arrow) की अच्छी जानकारी मिलती है मेरे विचार से तीरंदाजी के अलावा अन्य लोग भी इस विषय में इतनी जानकारी नहीं रखते।
- उपन्यास का कथानक सरल है, रूचिकर है लेकिन कत्ल का जो तरीका दिखाया गया है वह बहुत पेचीदा लगता है।
- इंस्पेक्टर प्रभुदयाल का सुनील के साथ अच्छा सहयोग रहता है।
- शोभना के पास जब महिलायें दुख प्रकट करने आती हैं तो वह औरतों को अंदर लेकर कमरे का गेट बंद कर लेती है। यह बहुत अजीब सा प्रतीत होता है।
एकाएक विलाप करती चार-पांच वृद्धायें वहाँ पहुंची............शोभना और वे तमाम औरतें कमरे के भीतर चली गयी और दरवाजा बंद हो गया।
उपन्यास के प्रमुख पात्र एक नजर में-
प्रेमचंद ओसवाल- एक बैंक एग्जिक्यूट। मृतक।
शोभना- प्रेमचंद की बेटी।
जगमोहन ओसवाल- प्रेमचंद का भाई, डाॅक्टर।
दरशथ प्रसाद शुक्ला- प्रेमचंद पड़ोसी
परमेश्वर - प्रेमचंद का नौकर
मुरली, चन्द्रकला- प्रेमचंद के नौकर, गौण पात्र
सविता खुराना- प्रेमचंद की सेक्रेटरी
सुनील- ब्लास्ट समाचार पत्र का खोजी पत्रकार
रमाकांत- यूथ क्लब का मालिक, सुनील का दोस्त
प्रभुदयाल- पुलिस- इंस्पेक्टर
गजेन्द्र सिक्का- शोभना का प्रेमी
राजेन्द्र सिक्का- गजेन्द्र का भाई-
यह एक मर्डर मिस्ट्री उपन्यास है। कथानक सरल है लेकिन मर्डर का तरीका बहुत कठिन है।
उपन्यास आदि से अंत भरपूर मनोरंजन करने में सक्षम है।
उपन्यास- कानून का चैलेंज
लेखक- सुरेन्द्र मोहन पाठक
Nice story।
ReplyDeleteWho done it aur how done it ka Sangam h kya?
ReplyDeleteयह 'who done it' और 'how done it' का बहुत अच्छा संगम है।
Deleteपढ़ने की जिज्ञासा जगाती 👌👌
ReplyDeleteफिर पढ ही लो।
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