Sunday, 2 June 2019

197. मैं नास्तिक क्यों हूँ- भगत सिंह

भगत सिंह के कुछ विचार
मैं नास्तिक क्यों हूँ- भगत सिंह

           भगत सिंह न केवल भारत के महानतम देशभक्त तथा क्रांतिकारी समाजवादियों में से एक थे, बल्कि भारत के प्रारंभिक मार्क्सवादी विचारकों में भी उनका प्रमुख स्थान था।

        प्रस्तुत पुस्तक 'मैं नास्तिक क्यों हूँ' को दो भागों में विभक्त किया जा सकता है। प्रथम भाग में भगत सिंह द्वारा जेल में लिख गये 'नास्तिकता' पर विचार है। द्वितीय भाग में उ‌नके क्रांतिकारी मित्र लाला रामसरनदास जी की पुस्तक 'द ड्रिमलैण्ड' की भूमिका है। जो भगत सिंह ने लिखी थी।

          ये दोनों आलेख भगत सिंह की तीक्ष्ण बुद्धि, गहन अध्ययन, जटिल विषयों पर उनकी समझ व उन्हें आम लोगों की समझ के अनुरूप भाषा में व्यक्त करने की क्षमता को दर्शाते हैं।


भगत सिंह एक क्रांतिकारी ही नहीं बल्कि उच्च कोटि के विचारक भी रहे हैं। 'मैं नास्तिक क्यों हूँ।' में उनके ईश्वर के प्रति विचार व्यक्त हैं। भगत सिंह का पारिवारिक वातावरण धार्मिक था लेकिन भगत सिंह की चिंतन शक्ति ने उन्हें एक नया रास्ता दिखाया।
            प्रस्तुत पुस्तक में वे विभिन्न उदाहरणों द्वारा अपने नास्तिक होने के विचार को सिद्ध करते हैं। उनके तर्क अकाट्य हैं।
भगत सिंह कहते है की जब ईश्वर ने इस सृष्टि का निर्माण किया है तो इस पर सृष्टि में इतना दुख क्यों है।
- मेरा सवाल है उसने यह दुनिया बनाई ही क्यों है, जो साक्षात नर्क है।
         स्वयं भगत सिंह इस प्रश्न का उत्तर देते हैं, की यह सृष्टि ईश्वर द्वारा निर्मित नहीं है। वे कहते हैं- सृष्टि का निर्माण को ईश्वरीय कृपा नहीं है यह तो स्वयं निर्मित है, यह तो प्राकृतिक घटना है।

         वर्तमान में लोग भगत सिंह के 'FAN' कहलाने में गर्व महसूस करते हैं लेकिन वे भी भगत सिंह के विचारों को पढना नहीं चाहते। भगत सिंह कहते है- अध्ययन करो। स्वयं को विरोधियों के तर्कों का सामना करने लायक बनाने के लिए अध्ययन करो।

     ‌वहीं क्रांति के प्रति विचार व्यक्त करते हुए कहते हैं की- क्रांति की तलवार विचारों के सान पर ही पैनी होती है।
वही एक क्रांतिकारी की की विशेषता का वर्णन करते हुए लिखते हैं-
आलोचना और स्वतंत्र चिंतन एक क्रांतिकारी की दो अनिवार्य विशेषताएँ हैं।


पुस्तक के द्वितीय खण्ड में क्रांतिकारी मित्र लाला रामसरन दास जी की पुस्तक 'द ड्रिमलैण्ड' की भूमिका भगत सिंह ने लिखी है।
क्रांति के संदर्भ में लिखते हैं- क्रांति में, मौजूदा हालात (यानी सत्ता) को पूरी तरह से ध्वस्त करने के बाद, एक नये और बेहतर स्वीकृति आधार पर समाज के सुव्यवस्थित पुनर्निर्माण का कार्यक्रम अनिवार्य रूप से अंतर्निहित रहता है।
वहीं लाला रामसरन दास यह भी अपने काव्य द्वारा यह भी स्पष्ट करते हैं की क्रांतिकारी विनाश में सुख अनुभव करने वाले राक्षस नहीं होते।
वे लिखते हैं।
अगर जरूरत हो, ऊपर से उग्र बनो
लेकिन रहो हमेशा नरम अपने दिल में
अगर जरूरत हो, तो फुफकारो पर डसो मत
दिल में प्यार को जिंदा रखो और लड़ते रहो ऊपरी तौर पर।।


        इस पुस्तक की प्रस्तावना और भूमिका NBT के अध्यक्ष विपिन चन्द्र जी ने लिखी है। जो की कम शब्दों में भगत सिंह के विचारों को व्यक्त करने में सक्षम है।

अगर आप भगत सिंह को समझना चाहते हैं, उनके ईश्वर के प्रति विचारों को पढना चाहते हैं तो यह छोटी पुस्तक आपके लिए उपयोगी होगी।

पुस्तक-   मैं नास्तिक क्यों हूँ
लेखक -   भगत सिंह
पृष्ठ-       29
मूल्य-     40₹
प्रकाशक- राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत (NBT)
एमेजन लिंक- मैं नास्तिक क्यों हूँ






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