अंतर्द्वंद की कहानी
हम फरिश्ते नहीं- धरम राकेश, उपन्यास
अपने समय के चर्चित लेखक द्वय 'धरम-राकेश' का उपन्यास 'हम फरिश्ते नहीं', इन दिनों पढा।
किशोरावस्था में 'धरम-राकेश जी' का उपन्यास 'नये जमाने की बहू' पढा था। उस उपन्यास के बाद इस जोड़ी को पढने की इच्छा जागृत हुयी थी। उस उपन्यास का एक पात्र 'नानक चंद सिक्का' अविस्मरणीय है। किसी महिला द्वारा डकैती को अंजाम देना, मेरे विचार से पहला प्रयोग धरम राकेश जी का ही रहा है।
दीर्घकाल पश्चात आबिद रिजवी जी के माध्यम से राकेश जी से संपर्क हुआ। उन्होंने कुछ उपन्यास पुन:प्रकाशन का आश्वासन भी दिया।
अब बात करते हैं उपन्यास 'हम फरिश्ते नहीं' की। यह एक पारिवारिक उपन्यास है। जो भावनाओं, संवेदनाओं की चादर में लिपटा मार्मिक उपन्यास है।
मनोज और सोनिया का अच्छा और खुशहाल परिवार है। लेकिन उनके जीवन में कमी है तो एक संतान की। दोनों का निर्णय और वे एक अनाथ बच्चे को गोद लेते हैं।
सौरभ उस बच्चे का नाम है। सोनिया उसकी माता है और मोहिनी आया। दोनों ही उसे जान से बढकर चाहती हैं।
लेकिन बदलती परिस्थितियों में सौरभ की जिंदगी मे ऐसे -ऐसे मोड़ लिये की स्वयं सौरभ भी हैरान रह गया।
जहाँ कुछ लोग सौरभ से नफरत करते हैं वहीं कुछ लोगों के लिए सौरभ एक फरिश्ता है।
मानवता और फरिश्ते के बीच में जो अंतर्द्वंद है वह सौरभ ही समझ सकता है।
यह उपन्यास परिवार, परिवार में उपजते आपसी रिश्ते, भावनाएं और भावनाओं से होते खिलवाड़, प्यार और प्यार में होते धोखे और बोझ बनते रिश्तों पर बहुत अच्छा उपन्यास है।
उपन्यास में कोई सस्पेंश आदि नहीं है, पाठक को पहले से अनुमान होता है की आगे कहानी क्या होगी लेकिन पात्रों का जो अंतरद्वंद है वह उपन्यास को रोचक बनाता है।
सौरभ - अपनी मर्जी से अब मैं कुछ नहीं कर सकता....वक्त ने जो शतरंज बिछाई है, मैं उसका इकलौता मोहरा हूँ। (पृष्ठ-176)
उपन्यास का हर पात्र अंदर ही अंदर घुटता है। वह अपना दर्द कहीं भी खुल कर व्यक्त नहीं कर पाता। वह चाहे मनोज हो, सौरभ हो, मोहिनी हो, सारिका हो या करुणा। सभी के अपने -अपने दर्द हैं।
यही परिस्थिति मनोज की है वह खुल कर अपनी बात नहीं कह पाता- कहीं मेरी खामोशी और शांत स्वभाव को मेरा दब्बूपन तो नहीं समझने लगी हो तुम ?(पृष्ठ-152)
और मोहिनी तो कभी अपनी बात भी नहीं कह पाती बस अंदर ही अंदर घुटती रहती और यही घुटन करुणा की है।
उपन्यास में सौरभ का किरदार से पाठक भावनात्मक रूप से जुड़ाव महसूस करता है और वहीं मनोज के साथ सहानुभूति।
सहज और सरल भाषा शैली में लिखित इस उपन्यास में संवाद समान्य स्तर के हैं कोई स्मरणीय कथन नहीं है। लेकिन भाषा पात्रों के अनुकूल है।
उपन्यास पात्र
मनोज - उपन्यास का मुख्य पात्र
सोनिया - मनोज की पत्नी
सौरभ - दत्तक पुत्र
अभय. - मनोज का पुत्र
सारिका - मनोज की पुत्री
मोहिनि - आया माँ
संध्या- सौरभ की प्रेयसी
सेठ कामता प्रसाद - नगर के एक सेठ
बसंत - कामता प्रसाद का पुतत
करूणा- कामताप्रसाद की पुत्री
रामू- मनोज का नौकर
फूलवंती- नौकरानी
मारिया- एक नर्स
मिसेज जोजफ- मारिया की माँ
रागिनी देवी- एक साध्वी
मोती- अभय का मित्र
रीता- अभय की प्रेयसी
निष्कर्ष-
अगर आप सामाजिक उपन्यास पढने में रूचि रखते हैं तो यह उपन्यास आपको अवश्य पसंद आयेगा। एक परिवार के बनते- बिखरते संबधों को परिभाषित करता यह एक मार्मिक उपन्यास है।
उपन्यास- हम फरिश्ते नहीं
लेखक- धरम-राकेश
प्रकाशक- अभिनव पॉकेट बुक्स
संस्करण-
पृष्ठ- 194
हम फरिश्ते नहीं- धरम राकेश, उपन्यास
अपने समय के चर्चित लेखक द्वय 'धरम-राकेश' का उपन्यास 'हम फरिश्ते नहीं', इन दिनों पढा।
किशोरावस्था में 'धरम-राकेश जी' का उपन्यास 'नये जमाने की बहू' पढा था। उस उपन्यास के बाद इस जोड़ी को पढने की इच्छा जागृत हुयी थी। उस उपन्यास का एक पात्र 'नानक चंद सिक्का' अविस्मरणीय है। किसी महिला द्वारा डकैती को अंजाम देना, मेरे विचार से पहला प्रयोग धरम राकेश जी का ही रहा है।
दीर्घकाल पश्चात आबिद रिजवी जी के माध्यम से राकेश जी से संपर्क हुआ। उन्होंने कुछ उपन्यास पुन:प्रकाशन का आश्वासन भी दिया।
अब बात करते हैं उपन्यास 'हम फरिश्ते नहीं' की। यह एक पारिवारिक उपन्यास है। जो भावनाओं, संवेदनाओं की चादर में लिपटा मार्मिक उपन्यास है।
मनोज और सोनिया का अच्छा और खुशहाल परिवार है। लेकिन उनके जीवन में कमी है तो एक संतान की। दोनों का निर्णय और वे एक अनाथ बच्चे को गोद लेते हैं।
सौरभ उस बच्चे का नाम है। सोनिया उसकी माता है और मोहिनी आया। दोनों ही उसे जान से बढकर चाहती हैं।
लेकिन बदलती परिस्थितियों में सौरभ की जिंदगी मे ऐसे -ऐसे मोड़ लिये की स्वयं सौरभ भी हैरान रह गया।
जहाँ कुछ लोग सौरभ से नफरत करते हैं वहीं कुछ लोगों के लिए सौरभ एक फरिश्ता है।
मानवता और फरिश्ते के बीच में जो अंतर्द्वंद है वह सौरभ ही समझ सकता है।
यह उपन्यास परिवार, परिवार में उपजते आपसी रिश्ते, भावनाएं और भावनाओं से होते खिलवाड़, प्यार और प्यार में होते धोखे और बोझ बनते रिश्तों पर बहुत अच्छा उपन्यास है।
उपन्यास में कोई सस्पेंश आदि नहीं है, पाठक को पहले से अनुमान होता है की आगे कहानी क्या होगी लेकिन पात्रों का जो अंतरद्वंद है वह उपन्यास को रोचक बनाता है।
सौरभ - अपनी मर्जी से अब मैं कुछ नहीं कर सकता....वक्त ने जो शतरंज बिछाई है, मैं उसका इकलौता मोहरा हूँ। (पृष्ठ-176)
उपन्यास का हर पात्र अंदर ही अंदर घुटता है। वह अपना दर्द कहीं भी खुल कर व्यक्त नहीं कर पाता। वह चाहे मनोज हो, सौरभ हो, मोहिनी हो, सारिका हो या करुणा। सभी के अपने -अपने दर्द हैं।
यही परिस्थिति मनोज की है वह खुल कर अपनी बात नहीं कह पाता- कहीं मेरी खामोशी और शांत स्वभाव को मेरा दब्बूपन तो नहीं समझने लगी हो तुम ?(पृष्ठ-152)
और मोहिनी तो कभी अपनी बात भी नहीं कह पाती बस अंदर ही अंदर घुटती रहती और यही घुटन करुणा की है।
उपन्यास में सौरभ का किरदार से पाठक भावनात्मक रूप से जुड़ाव महसूस करता है और वहीं मनोज के साथ सहानुभूति।
सहज और सरल भाषा शैली में लिखित इस उपन्यास में संवाद समान्य स्तर के हैं कोई स्मरणीय कथन नहीं है। लेकिन भाषा पात्रों के अनुकूल है।
उपन्यास पात्र
मनोज - उपन्यास का मुख्य पात्र
सोनिया - मनोज की पत्नी
सौरभ - दत्तक पुत्र
अभय. - मनोज का पुत्र
सारिका - मनोज की पुत्री
मोहिनि - आया माँ
संध्या- सौरभ की प्रेयसी
सेठ कामता प्रसाद - नगर के एक सेठ
बसंत - कामता प्रसाद का पुतत
करूणा- कामताप्रसाद की पुत्री
रामू- मनोज का नौकर
फूलवंती- नौकरानी
मारिया- एक नर्स
मिसेज जोजफ- मारिया की माँ
रागिनी देवी- एक साध्वी
मोती- अभय का मित्र
रीता- अभय की प्रेयसी
निष्कर्ष-
अगर आप सामाजिक उपन्यास पढने में रूचि रखते हैं तो यह उपन्यास आपको अवश्य पसंद आयेगा। एक परिवार के बनते- बिखरते संबधों को परिभाषित करता यह एक मार्मिक उपन्यास है।
उपन्यास- हम फरिश्ते नहीं
लेखक- धरम-राकेश
प्रकाशक- अभिनव पॉकेट बुक्स
संस्करण-
पृष्ठ- 194
मैंने सामाजिक उपन्यास नहीं के बराबर ही पढ़े हैं। एक वेद जी का एक मुट्ठी दर्द और हॉनर किलिंग पढ़ा था। खैर, रोचक लेख। उपन्यास पढ़ने की लालसा जगाता है।
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