Thursday, 22 December 2016

08. तीन गायब- ओमप्रकाश शर्मा

जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा का जासूसी उपन्यास है 'तीन गायब'।
  'यूँ मामला महत्वपूर्ण भी था, और महत्वहीन भी था। एक तस्वीर .....मानो ऐसी तस्वीर जिसके दो रुख हों, एक और देखने से मानों तस्वीर में खरगोश दिखाई पङता हो और दूसरी और देखने पर शैतान और घृणित लकङबग्घा।'
ये है 'तीन गायब' उपन्यास का एक दृश्य।
छोटा सा शहर है गणेश नगर, जिसमें से एक ही परिवार के एक-एक कर के तीन सदस्य गायब हो जाते हैं।
और इल्जाम आता है भूतपूर्व वनमंत्री अजयश्री  पर। इल्जाम लगाने वाला है एक वर्तमान वनमंत्री सूरज सिंह।
विधानसभा अध्यक्ष के आगे वर्तमान मंत्री सूरज सिंह ने अपने क्षेत्र के एक नीलकण्ठ व्यक्ति का प्रार्थना पत्र रखा, जिसमें वर्णन था की उसकी बहन का अपहरण हो गया।
विधानसभा अध्यक्ष ने उक्त व्यक्ति नीलकण्ठ को स्वयं उपस्थित होने के लिए कहा।
वर्तमान मंत्री ने अागामी दिवस उक्त व्यक्ति को उपस्थित करने का वादा किया।
अागामी दिन।
वह व्यक्ति तो नहीं आया पर वनमंत्री सूरज सिंह पुनः एक पत्र के साथ प्रस्तुत हुये।
नये पत्र में वर्णन था वासुदेव नामक व्यक्ति का, पत्र में आरोप था कि पहले उसकी पत्नी, फिर उसके साले का अपहरण हो गया।
विधानसभा अध्यक्ष ने पुनः रस्म अदा करते हुये कहा की वासुदेव नामक व्यक्ति को कल यहां उपस्थित किया जाये।
पर अगले दिन वनमंत्री सूरज सिंह उसे भी विधानसभा अध्यक्ष के आगे उपस्थित नहीं कर पाये क्योंकि उसका भी अपहरण हो गया।
एक छोटा सा शहर गणेश नगर, एक-एक कर के तीन व्यक्ति गायब, पर पुलिस और प्रशासन कुछ नहीं कर पाया।
और तब तीन माह बाद आगमन होता है केन्द्रीय खूफिया विभाग के दो युवा जासूस बंदूक सिंह और जगन का।
तीन माह पुराने 'तीन गायब' केस को हल करने का उनका अपना अलग तरीका है।
तीन व्यक्तियों को गायब करने का आरोप है भूतपूर्व वनमंत्री अजयश्री पर और आरोप लगाने वाले हैं वर्तमान वनमंत्री सूरज सिंह।
क्या वास्तव में कोई तीन गायब हुये थे?
या यह एक राजनैतिक षङयंत्र था?
कौन था वास्तविक अपराधी?
सूरज सिंह या अजयश्री?
क्या वो तीन गायब वापस लौट पाये?
जिंदा या मुर्दा?
बंदूक सिंह और जगन क्या इस केस को हल कर पाये?
तीन गायब.......तीन माह बाद.......दो जासूस.......
इस रहस्य को कैसे हल करते हैं यह तो इस रोचक उपन्यास को पढ कर ही जाना जा सकता है।
पूरे उपन्यास में दोनों जासूस न तो कोई गोली चलाते हैं और न ही कोई मारपीट करते हैं, वह तो मात्र अपने अनुभव और दिमाग से जा पहुंचते है असली अपराधी तक।
उपन्यास में रोचकता है की दोनों जासूस एक-एक कङी को हल करते हुये असली अपराधी तक पहुंचे है।
तोप सिंह से कालिदास, कालिदास से रसीली, रसीली से कुंदन, कुंदन से सरोज, सरोज से मलखान सिंह और मलखान सिंह से असली अपराधी........तक।
एक लंबा जाल बिछा था तीन गायब से लेकर असली अपराधी के बीच लेकिन केन्द्रीय खूफिया विभाग के बंदूक सिंह और जगन भी आखिर अपराधी तक पहुंच ही गये।
आखिर क्यों तीन गायब हुये?
आखिर किसने तीन व्यक्ति गायब किये?
एक जासूसी उपन्यास के साथ-साथ दोनों जासूस मित्रों के कथन और कार्यशैली भी बहुत रोचक है जो पाठक को बाँधे रखती है।
ओमप्रकाश शर्मा की भाषा शैली की बात करें तो यह काफी सरल व रोचक है।
कथोपकथन भी संक्षिप्त व रोचक हैं।
रोचकता आप स्वयं पढ लीजिए -
"उसका नाम मिट्ठूराम हो या तोताराम अलबता उसे गंगाराम बोलना ही पङेगा।"
"दौलत का नशा शराब के नशे को काटता है।"
"राजनीतिज्ञ चाहे गली में बसता हो चाहे चौराहे पर, उसकी जङ नई दिल्ली में होती है।"
कहीं -कहीं संवाद सूक्ति बन गये हैं, जो उपन्यास की रोचकता को बढाते हैं
उपन्यास का समापन पाठक के समक्ष एक प्रश्न छोङ जाता है।
जगन के शब्दों में-
"गुरु कोई मजबूर अपराध करता है बात समझ में आती है, आवेश में झगङे, फौजदारी और हत्या हो जाती है, यह बात भी समझी जा सकती है, परंतु संपन्न व्यक्ति क्यों अपराध करते हैं.....।"

उपन्यास - तीन गायब

लेखक - ओमप्रकाश शर्मा
पृष्ठ -       192
प्रकाशक- जनप्रिय लेखक कार्यालय।

1 comment:

  1. अत्यंत सराहनीय प्रयास।
    शर्मा जी के उपन्यास देश की यथार्थ स्थिति पर आधारित होते थे। उन्होंने अपने उपन्यासों में भारतीय मूल्यों को बढ़ावा दिया। उन्होंने अनावश्यक हिंसा से सदैव दूरी रखी। इसीलिए उनके अधिकांश उपन्यासों में रक्तपात देखने को नहीं मिलता। शर्माजी ने लोकप्रियता की जिन ऊंचाइयों को छुआ उन्हें आज तक कोई न पा सका।
    आपके इस प्रयास हेतु साधुवाद।

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