Sunday, 17 September 2023

573. विकास और चीनी दरिंदे- अशोक तरुण

एक फार्मूले की तलाश में भारतीय जासूस
विकास और चीनी दरिंदे - अशोक तरुण
लेखक अशोक तरुण का ‌नाम भी पहली बार सामने आया है और उनका लिखा उपन्यास भी पहली बार ही पढा है। प्रस्तुत उपन्यास 'विकास और चीनी दरिंदे' विजय-विकास सीरीज का अंतरराष्ट्रीय कथानक पर आधारित है। और इसी कथानक पर एक और उपन्यास भी पढा था।

बादल इतनी जोरों से गर्ज मानो आसमान फट पड़ा हो । बिजली की तीव्र चमक ने सम्पूर्ण आसमान को एकबारगी प्रकाशित किया और फिर बादलों में ही लुप्त हो गई । इसके साथ पड़ने बाली वर्षा की बूंदों की मोटाई कुछ और बढ़ गई ।
     सड़कों पर चारों तरफ पानी इस प्रकार से बह रहा था मानो किसी बांध को तोड़ दिया गया हो । चारों तरफ पानी ही पानी नजर आ रहा था । यह मूसलाधार बारिश शाम से ही आरम्भ हो गई थी फिर ज्यों-ज्यों समय बीतता गया वर्षा में निरन्तर तेजी आती चली गई । इस समय रात के दो बजने जा रहे थे। शाम छः बजे से हो रही इस मूसलाधार बारिश ने जल-थल एक कर दिया था। चारों तरफ गहरी खामोशी व सन्नाटे का साम्राज्य छाया हुआ जिसमें तेजी से पड़ती बूंदों और बादलों की गर्ज ने अत्यधिक भयंकर बना दिया था । (उपन्यास के प्रथम पृष्ठ से)

उपन्यास का आरम्भ प्रसिद्ध वैज्ञानिक अय्यर के सहयोगी मोहन के कत्ल से होता है। मोहन एस.पी. रघुनाथ और जासूस विजय का सहपाठी रहा है।
  जब विजय-विकास को इस कत्ल की जानकारी मिलती है तो उनका प्रथम टारगेट वैज्ञानिक अय्यर की प्रयोगशाला होता है। लेकिन यहाँ सब कुछ तहस-नहस हो चुका था और अय्यर साहब का मृत्यु शरीर प्रयोगशाला में पड़ा था।
  एस.पी. रघुनाथ को डी. आई. जी. ठाकुर साहब डांटते हैं की उनके क्षेत्र में दो कत्ल हो गये। अभी रघुनाथ साहब इन कत्लों का रहस्य सुलझा ही नहीं पाते की उनके क्षेत्र में दो और लाशें बरामद हो जाती हैं।
  वहीं सीक्रेट सर्विस का चीफ ब्लैक ब्वाय इसलिए परेशान था की प्रसिद्ध वैज्ञानिक अय्यर के यहाँ से चीनी लोग एक महत्वपूर्ण फार्मूला चुरा कर ले गये और दूसरी तरफ विजय-विकास भी गायब हैं।
  अब उस  फार्मुले को चीन से वापिस लाने और विजय-विकास को भी खोजने का काम मिलता है अशरफ को।-
ब्लैक ब्वाय ने उसके हाथ को थामते हुए कहा- 'अशरफ ! विजय के बाद तुम ही सीक्रेट सर्विस के एक योग्य आफीसर हो । विजय धौर विकास दोनों ही भारत के अमूल्य रत्न हैं। अगर वह जिन्दा हैं तो उन्हें वापिस लाने की जिम्मेदारी तुम्हारी है ।'
अशरफ को और उसके साथ होता है इंस्पेक्टर फन्ने खाँ तातारी। और दोनों जा पहुंचते हैं चीन।
   चीन के सैन्य अधिकारियों के जाल से जब विजय-विकास भाग निकलते हैं तो कर्नल त्यासेन और मेजर पोंग, जिन्हें चीन में जल्लाद समझा जाता था, दोनों हाथ धोकर विजय-विकास की खोज में निकलते हैं। लेकिन असफल होने पर इन दोनों को खोजने का काम मेजर चांगली के जिम्मे आता है।
वहीं अशरफ और तातारी को दो चीनी भारतीय जासूस लिन और शाओ का सहयोग मिलता है जो इस पूरे अभियान में उनके साथ रहते हैं। एक और पात्र जोंग है जो इनकी विशेष मदद करता है।
और फिर आरम्भ होता एक चीन की धरती पर भारतीय जासूसों का खेल आरम्भ । जहाँ एक ओर उन्हें चीन दरिंदे सैन्य अधिकारियों से स्वयं को बचाना है वहीं वैज्ञानिक अय्यर का फार्मूला भी खोजना है।
  इस भाग दौड़ और खोज के मध्य जो घटनाएं होती हैं वह काफी रोचक हैं।
जैसे लिन और शाओ के चाचा तानली का व्यवहार ।
जैसे जोंग का चीन की तानाशाही पर व्यंग्य।
जैसे अशरफ द्वारा तानली को घोड़ा गाड़ी में जोतना।
विजय और रघुनाथ दोनों पात्रों के निर्माता वेदप्रकाश काम्बोज जी हैं, वहीं इन पात्रों को लेकर वेदप्रकाश शर्मा जी ने भी उपन्यास लिखे और अपना एक पात्र विकास भी उन्होंने सृजित किया।
वहीं अशोक तरुण जी ने 'विजय-विकास और रघुनाथ' तीनों को एकत्र कर दिया। हालांकि यह तीनों पात्र वेदप्रकाश शर्मा जी के उपन्यासों में भी है पर वेदप्रकाश काम्बोज जी के तीन और पात्र 'मदारी, तातारी और कबाड़ी भी उपन्यास में हैं, हालांकि मदारी और कबाड़ी एक ही दृश्य में नजर आते है, यहाँ एक और पात्र गुलफाम भी उपस्थित है।
मदारी- गोकुल मदारी
तातारी- फन्ने खाँ तातारी
कबाड़ी- कुंदन कबाड़ी
मैं जब 'विकास और चीनी दरिंदे' पढ रहा था तो उपन्यास के लगभग मध्य भाग में जाकर मुझे ऐसा प्रतीत होने लगा कि यह उपन्यास पहले भी कहीं पढा है। फिर सोचा हो सकता है इसी उपन्यास के बीच के कुछ पृष्ठ कभी पढ लिये हों, लेकिन जैसे -जैसे आगे बढता गया तो यह भ्रम टूट गयट और यह स्थापित हो गया की यह कहानी किसी और उपन्यास में पहले भी पढी हुयी है।
        वेदप्रकाश काम्बोज का चीनी सुंदरी और अशोक तरुण का 'विकास और चीनी दरिंदे' एक ही कथानक पर आधारित उपन्यास है। कथानक ही एक नहीं बल्कि दोनों के शब्द तक समान है। हां, दोनों उपन्यास का first half बिलकुल अलग है लेकिन second half दोनों का बिलकुल एक जैसा ही है। कुछ पात्रों के नाम परिवर्तन हैं।
  दोनों का तुलनात्मक अध्ययन करें तो अशोक तरुण जी का उपन्यास ज्यादा कसावट लिये हुये है और कथा के साथ न्याय भी करता है।
कमियां- उपन्यास एक अंतरराष्ट्रीय कथानक पर और जासूस वर्ग के कारनामे पर आधारित एक्शन उपन्यास है और इस दृष्टि से यह खरा भी उतरता है।
वहीं उपन्यास में विकस को मात्र पन्द्रह वर्षीय किशोर दिखा रहा है और वह खतरनाक अभियानों में शामिल होता है, चीन के खतरनाक सैन्य अधिकारियों से जा टकराता है। यह सब अतार्किक प्रतीत होता है। अगर यहाँ विकास की उम्र ज्यादा दिखा दी जाती तो उचित रहता।
पहली बार किसी उपन्यास में विजय-विकास को शराब पीते देखा है, अशरफ और तातारी को भी।
- एक दृश्य में विजय घुड़सवारी से थक जाता है। यह स्वाभाविक बात है। ज्यादातर उपन्यासों में ऐसा नहीं दिखाया जाता। विजय को हर काम में इतना एक्सपर्ट दिखाया जाता है कि वह किसी भी काम से थकता नहीं।
एक रोचक कथन-
समय रहते तो जासूस अपने पर भी संदेह करने से नहीं चूकता। (पृष्ठ-89)
  इस उपन्यास में विजय- विकास की भूमिका बहुत कम है। मुख्य भूमिका में अशरफ और तातारी ही हैं। वहीं उपन्यास का समापन एक संयोग की तरह घटित होता है। जिसे कुछ तार्किक बनाया जाना चाहिए था।
'अशोक तरुण द्वारा लिखित 'विकास और चीनी दरिंदे' एक एक्शन उपन्यास है। जो चीन की पृष्ठभूमि पर आधारित रोचक उपन्यास है।

उपन्यास- विकास और चीनी दरिंदे
लेखक-    अशोक तरुण
प्रकाशक-
पृष्ठ -         144

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1 comment:

  1. उपन्यास के प्रति उत्सुकता जगाता आलेख। अभी हाल में वेद प्रकाश कांबोज जी का उपन्यास खोए शहर की खोज पढ़ा। उसमें अशरफ और ब्लैकबॉय दोनों किरदार भी मौजूद थे। मदारी, तातारी और कबाड़ी तो कुछ सीन के लिए थे ही।

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