भारतीय वैज्ञानिक की अपहरण कथा
चीनी सुंदरी - वेदप्रकाश काम्बोज
इस पहाड़ी इलाके से फूचिन और पोंग अच्छी तरह परिचित थे। किन्तु इसके साथ ही रात में दिखाई देना भी आवश्यक था। मगर वे लोग जीप की हैडलाइट्स नहीं जला सकते थे। क्योंकि इस प्रकार वे स्वयं ही दुश्मन को अपनी स्थिति का पता दे देते ।अनुमानानुसार फूचिन पूरी तेजी के साथ जीप को ड्राईव करता रहा। पीछे से उन पर गोलियां छोड़ी जाने लगी । एक दो हैण्डबम भी फेंके गये । उनसे तो वे बच गये किन्तु उस गड्ढे से न बच सके जो कि जमीन में था और जिसमें जीप का पहिया फस जाने के कारण जीप लुढ़क गई ।
एक बारगी तो उनकी जान सूख गई। किन्तु जब ढलान पर दो तीन पटखनियां खाने के बाद जीप रुक गई तो उन में जान आई। उन चारों को ही मामूली चोट लगी थीं। किन्तु उन चोटों की किसी ने भी परवाह नहीं की। बड़ी तेजी के साथ वे उल्टी हुई जीप में से बाहर निकले। माईक अपने कंधे को दबाये हुये था। शायद उसके कंधे में अधिक चोट लगी थी ।
और वे गोलियों की बौछारों में ही पहाड़ियों की ओर भागे। फूचिन और पोंग उनका पथ-प्रदर्शन कर रहे थे।
फिर वे भागते रहे ।
मार्ग में कई जगह ठोकर खाकर गिरे भी। किन्तु फिर भी वे भागते ही रहे । फायरों की आवाज अब बहुत दूर से आ रही थी।
चारों ओर सन्नाटा छाया हुआ था। सबसे पहले पोंग ने ही हथियार डाले । वह भागते-भागते लड़खड़ाया और फिर जमीन पर गिर पड़ा।
प्रस्तुत उपन्यास अंश वेदप्रकाश काम्बोज जी द्वारा लिखित 'चीनी सुंदरी' का एक अंश है। यह विजय श्रृंखला का अंतरराष्ट्रीय संबंधों पर आधारित एक एक्शन-रोमांच उपन्यास है। जो चीन- भारत के संबंधों और उनके पीछे छिपी चीनी की कुटिलता का चित्रण करता है।
कहानी का आरम्भ चीनी की जमीन से होता है। जहाँ भारतीय जासूस विजय, अमेरिका का जासूस माईक और दो चीनी व्यक्ति अपनी जान बचाते भागते फिरते हैं। एक भारतीय, एक अमेरिकी और दो चीनी यह सब एकत्र कैसे हुये और चीनी सैनिक इनके पीछर क्यों पड़े हैं। जैसे -जैसे हम उपन्यास पढते जाये हैं वैसे- वैसे यह सब प्रश्न होते चले जाते हैं।एक अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक सम्मेलन के दौरान चीन सरकार द्वारा एक भारतीय और एक अमेरिकी वैज्ञानिक का अपहरण कर लिया जाता है। भारतीय वैज्ञानिक के पास एक महत्वपूर्ण फार्मुला था जिसे चीनी हथियाना चाहता है।
इसी घटना के चलते भारतीय सीक्रेट सर्विस का श्रेष्ठ जासूस विजय चीन पहुंच जाता है और अमेरिकी जासूस माईक के साथ मिलकर काम करता है क्योंकि दोनों का उद्देश्य एक ही था।
लेकिन चीन सरकार को शीघ्र ही इनकी उपस्थिति की सूचना मिल जाती है और फिर चीनी सैनिक इनके पीछे पड़ जाते हैं। शेष उपन्यास में माईक, विजय और दो चीनी व्यक्ति अपनी जान बचाते और अपने वैज्ञानिक का पता लगाते घूमते रहते हैं।
उपन्यास का द्वितीय पक्ष है जिसमें एक चीनी जासूस भारत आता है और उस फार्मुले से संबंधित कुछ डाक्यूमेंट को तलाश करता है। यहाँ उसे कुछ मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। यहाँ भारतीय सीक्रेट सर्विस का जासूस अशरफ उसके लिए खतरा बना जाता है।
इस तरह से देखे तो इन दो पक्षों का परस्पर इतना ही संबंध है की की इनके मध्य एक फार्मुले से संबंधित कुछ डाक्यूमेंट है।
न तो अशरफ का विजय से कोई विशेष संपर्क दिखाया है और न ही भारत आये जासूस का विजय से सामना होता है।
वेदप्रकाश काम्बोज जी द्वारा रचित 'चीनी सुंदरी' एक अंतरराष्ट्रीय संबंधों और जासूस वर्ग के कारनामों पर आधारित उपन्यास है। कथा स्तर पर यह एक सामान्य रचना है।
इसी तरह का वेदप्रकाश काम्बोज जी का एक और उपन्यास है 'भगोड़ा' जिसमें एक अपराधी भागता रहता है और जासूस उसे पकड़ने के लिए उसके पीछे भागता रहता है। प्रस्तुत में दो जासूसों के पीछे चीनी सैनिक भागते रहते हैं और भागते रहते हैं।
उपन्यास शीर्षक- उपन्यास का शीर्षक कुछ हद तक
रोचक है, पाठक को आकर्षित करता है की वह चीनी सुंदरी आखिर कौन है? उसका उपन्यास में क्या महत्व है?
मेरे संग्रह में चंदर का उपन्यास 'चीनी सुंदरी (1970) और वेदप्रकाश काम्बोज का 'चीनी सुंदरी' भी है। पढने के क्रम में वेदप्रकाश काम्बोज जी का उपन्यास पहले पढा गया। इस उपन्यास में मैं 'चीनी सुंदरी' को ढूंढता रहा जो मुझे कहीं नहीं मिली।
पता नहीं इस उपन्यास शीर्षक का क्या अर्थ रहा है। यह पूर्णतः एक भ्रमित शीर्षक है।
उपन्यास कथा स्तर पर सामान्य है। उपन्यास में विजय-माईक की भाग दौड़ ही वर्णित है। हाँ, उपन्यास नीरस नहीं है, एक जिज्ञासा निरंतर बनी रहती है कि आगे क्या होगा?
उपन्यास एक बार पठनीय है। इसमें कोई स्मरणीय बात नहीं है।
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