रीमा भारती टकरायी दुश्मनों से
दौलत नहीं दोस्त किसी की- रीमा भारती
जासूसी उपन्यास साहित्य में एक नाम खूब चर्चित रहा है और वह नाम है रीमा भारती।
दिनेश ठाकुर द्वारा स्थापित इस पात्र ने अपनी एक अलग पहचान स्थापित की है और यह पहचान इस हद तक कामयाब रही कि तात्कालिक प्रकाशकों ने इस नाम से मिलते-जुलते नाम से लेखक और पात्र मैदान में उतार दिये।
इस नाम की लोकप्रियता को देखते हुये स्वयं दिनेश ठाकुर ने भी रीमा भारती नामक एक लेखिका को बाजार में उतार दिया।
जहाँ दिनेश ठाकुर द्वारा लिखित उपन्यासों में रीमा भारती मात्र एक नायिका थी वही लेखिका रीमा भारती द्वारा लिखे गये उपन्यासों में वह लेखिका और नायिका दोनों किरदारों में उपस्थित थी।
हां, दोनों के लेखन में एक विशेष अंतर भी रहा है। जहाँ दिनेश ठाकुर द्वारा 'रीमा भारती' सीरीज के उपन्यास लिखे जाते थे, उनमें अश्लीलता होती थी। वही लेखिका रीमा भारती द्वारा लिखित उपन्यासों में अश्लीलता नहीं होती थी, या फिर न के बराबर होती थी।
मुझे लेखिका रीमा भारती द्वारा लिखित उपन्यास 'दौलत नहीं दोस्त किसी की' पढने को मिला। यह एक एक्शन-थ्रिलर उपन्यास है।दौलत नहीं दोस्त किसी की- रीमा भारती
कहानी का आरम्भ दिल्ली से होता है। जहाँ RDX के आरोपित CBI की गिरफ्त में होने के बाद भी अपनी इहलीला समाप्त कर लेते हैं। सब रास्ते बंद होने पर CBI यह केस ISC के माध्यम से रीमा भारती को सौंपती है।
"पिछले दिनों दिल्ली में पचास किलो आर.डी. एक्स. पकड़ी गयी थी। उस सिलसिले में दिल्ली पुलिस ने तीन आतंकवादियों को गिरफ्तार किया था।....भारत सरकार ने यह काम सी.बी. आई. को सौंपा था, लेकिन आतंकवादियों ने की एजेंटों को मार डाला उसके बाद यह काम सी.बी. आई. ने मुझे सौंपा है। मैं उन हरामजादों को चुन-चुन कर मारूंगी, जो आतंकवादियों की मदद कर रहे हैं। (पृष्ठ-145)
कपूरथला जैसे शहर में मात्र एक नाम के आधार पर किसी को तलाशना संभव न था। लेकिन रीमा भारती ने आखिर एक शख्स को ढूंढ ही लिया और फिर वह जा टकरायी कपूरथला के छदमवेशी डाॅन से। जो कहता है-
"मेरा नाम हरनाम सिंह आलूवालिया है, लेकिन लोग मुझे संतजी के नाम से पुकारते हैं। इस शहर में मेरी हुकूमत चलती है। मेरी इजाजत के बिना एक पता भी नहीं खटकता है।" (पृष्ठ-83)
लेकिन कम रीमा भारती भी तो नहीं है।- "मेरा नाम रीमा है...रीमा भारती। भारत की सबसे बड़ी, लेकिन सबसे गुप्त जासूसी संस्था आई.एस. सी. अर्थात् इण्डियन सीक्रेट कोर की नम्बर वन खतरनाक एजेंट। दुश्मनों के लिए रणचण्डी और गद्दारों के लिए चलती-फिरती मौत।(पृष्ठ-120)
फिर टक्कर होती है रीमा भारती और हरनाम सिंह आलूवालिया के मध्य। जहाँ हरनाम सिंह के पास गुण्डों की पूरी ताकत है वहीं रीमा भारती के पास मात्र एक सहायक है।
कई बार वह गुण्डों के जाल फंसती है, शारीरिक और यौन शौषण का शिकार भी होती है लेकिन अनंतः वह अपने उद्देश्य में सफल होती है।
उपन्यास का मुख्यतः एक्शन ही दिखाया गया है। कथानक मध्यम स्तर का है, जैसा की रीमा भारती के उपन्यासों में होता है। कु़छ खलनायक पात्र और उनसे रीमा भारती का टकराना। वैसे यह खलनायक अक्सर आतंकवादी ही होते हैं। जैसा प्रस्तुत उपन्यास में है।
उपन्यास में कोई विशेष, स्मरणीय बात नहीं है।
हाँ, रीमा भारती के कुछ डायलॉग हैं जो पाठकों का अच्छा मनोरंजन कर सकते हैं।
कुछ उदाहरण देखें-
- "आई. एस. सी. की नम्बर वन खतरनाक एजेंट रीमा भारती को कौन नहीं जानता। लोमड़ी से ज्यादा चालाक औत शेरनी से ज्यादा हिंसक मानी जाती है। दुश्मनों के लिए रणचण्डी और गद्दारों के लिए चलती-फिरती मौत है।" (पृष्ठ-10)
- "मैं वो जहरीली नागिन हूँ, जिसका काटा इंसान पानी नहीं मांगता। मैं दुश्मनों के लिए साक्षात् मौत हूँ। मैं वो शै हूँ जिसने बड़े-बड़े सूरमाओं को नाकों चने चबवा दिये।(पृष्ठ-46,47)
- "मैं जब भी किसी मिशन पर निकलती हूँ तो सिर पर कफन बांध कर निकलती हूँ। (पृष्ठ-110)
प्रस्तुत उपन्यास पूर्णतः एक्शन उपन्यास है। कहानी का निर्धारण तो आरम्भ के कुछ पृष्ठ पढने पर ही हो जाता है कि आगे क्या होने वाला है।
अब देखना तो बस यही है की रीमा भारती अपने लक्ष्य तक कैसे पहुंचती है। किन-किन संघर्षों से गुजरते हुये वह अपने काम को अंजाम तक पहुंचाती है।
उपन्यास के दो भाग हैं।
प्रस्तुत भाग 'दौलत नहीं दोस्त किसी की' यह प्रथम भाग है,और 'गद्दार' इसका द्वितीय भाग है।
हालांकि प्रथम भाग का कथानक स्वयं में पूर्ण है। बस बीच में एक अलग प्रसंग बढा कर उपन्यास का द्वितीय भाग बना दिया गया है। अगर आप यह प्रस्तुत भाग भी पढते हैं तो कहानी स्वयं में पूर्ण है।
प्रथम भाग का शीर्षक 'दौलत नहीं दोस्त किसी की' का कथानक से किसी तरह का कोई संबंध नहीं। अगर आप कोई संबंध स्थापित करने में सक्षम हो पाते हैं तो यह आपकी बौद्धिकता और कल्पनाशक्ति का अद्भुत कमाल है।
- एक्शन उपन्यास पाठकों के लिए उपन्यास अच्छा है।
उपन्यास- दौलत नहीं दोस्त किसी की
लेखिका- रीमा भारती
प्रकाशक- माया पॉकेट बुक्स
पृष्ठ- 254
बहुत खूब सर जी ।
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