Friday 10 March 2023

557. काला जादू- इश्तियाक खान

प्रेम, प्रतिशोध और जादू
काला जादू- इश्तियाक खान (अनुवादक)

....शौकत स्कूल से आया और खाना खा कर उठा ही था कि गिर पड़ा। उसकी हालत वैसी हो गई जैसी दो दिन पहले हुई थी। यह देखने में वैसा ही मिर्गी का दौरा लगता था। उसके हाथ और पांव मुड़ गए। शरीर जोर-जोर से कांपने लगा और उसके मुंह से हल्के हल्के खर्राटे निकलने लगे। इसके साथ ही आंगन में एक पत्थर गिरा जो टेनिस की गेंद जितना बड़ा था। नसीमा इतनी डरी कि उसने बाहर जाकर ना देखा और कमरे का दरवाजा बंद कर लिया।
Kala jadu
           दूसरा पत्थर धमाके से दरवाजे को लगा। इतनी तेज़ आवाज आई कि नसीमा सर से पांव तक हिल गई और उस पर बेहोशी जैसीछाने लगी। उसमें इतनी-सी हिम्मत भी नहीं थी कि शौकत को उठाकर पलंग पर लिटा देती। आंगन में तीन चार और पत्थर एक दूसरे के बाद गिरे। नसीमा ने 'जल तू जलाल तू' -पढ़ना शुरू कर दिया।           कमरे में कहीं से धुआं उठ रहा था। नसीमा ने इधर-उधर देखा । उसका पर्स तिपाई पर रखा था। धुआं उसमें से निकल रहा था। नसीमा ने दौड़ कर पर्स उठाया। खोलकर देखा तो उसमें सारे नोट जल चुके थे। यह पाँच और दस के नोट थे। अजीब बात यह थी कि पर्स को आग ने जरा सा भी नहीं झुलसाया था।
नसीमा पर्स को देख रही थी कि आंगन में फिर से पत्थर गिरने की आवाज सुनाई दी। नसीमा अब अकेली वहां नहीं ठहर सकती थी। शौकत का कांपता हुआ शरीर उसका अजीब तरह से मुड़ा हुआ चेहरा, खुली हुई आंखें, जो लाल हो गई थी और उसके मुड़े हुए हाथ नसीमा को डरा रहे थे। वह इस तरह अचानक बाहर को दौड़ पड़ी जैसे किसी ने उसे पीछे से धक्का दिया हो।.....
     काला जादू -  उपन्यास अंश
   मिस्टर इश्तियाक खान से सोशल मीडिया के माध्यम से जुड़ाव हुआ था। जब इन्होंने ने बताया की 'काला जादू' नाम से एक इनका एक उपन्यास आ रहा है, तब से ही पढने की इच्छा थी।
     फरवरी -2023 को जब दिल्ली में 'विश्व पुस्तक मेले' में नीलम जासूस के स्टाॅल पर काला जादू उपन्यास देखा तो खरीद लिया। विश्व पुस्तक मेले में से खरीदी गयी दस रचनाओं में से काला जादू को पढने का क्रम जल्द ही आ गया था। बहुत बार ऐसा भी होता है कोई किताब पसंद आ जाती है, खरीद ली जाती है पर पढने का समय नहीं मिलता। खैर, काला जादू पढने का समय फरवरी माह में ही मिल गया था।
   काला जादू की कहानी नसीमा नामक एक महिला पर केन्द्रित है। 'नसीमा के घर में जब पहला पत्थर गिरा तो किसी ने कहा कि यह जिन्नात(प्रेतों) ने फेंका है। (प्रथम पृष्ठ, प्रथम पंक्ति)  और यहीं से नसीमा के बुरे दिनों की शुरुआत हो जाती है। जैसे ही घर में पत्थरों की बरसात होती है, उसी के साथ ही नसीमा के सौतेले पुत्र शौकत को दौरे पड़ने लग जाते हैं और वहीं घर में रखे कपड़ों में आग लगनी आरम्भ हो जाती है।
      नसीमा का पति उमर एक सीदा-सादा और समझदार आदमी है। वह अपनी दुकान चलाता है और परिवार का पालन करता है लेकिन उसके घर में होने वाली ऐसी हैरतजनक घटनाओं से वह अत्यंत परेशान रहने लग जाता है।
   नसीमा जब ऐसी घटनाओं से डर जाती है तो उमर कहता है- ‘दो ही बातें हैं।' उमर ने कहा -'किसी ने हम पर यह काला जादू कराया है या यह जिन्नात का हमला है। काला जादू दुश्मन कराया करते हैं लेकिन मेरे साथ किसी की क्या दुश्मनी? मैं दोस्त बनाया करता हूँ। आज तक किसी को दुश्मन नहीं बनाया, और अगर यह जिन्नात हैं तो फिर इस जादू के किसी आमिल (तांत्रिक) को बुलाएंगे। पहले तो यह देखेंगे कि ऐसा दोबारा होता है या नहीं।' (पृष्ठ-13)
   लेकिन काले जादू का यह दौर रखने वाला नहीं था। उनके घर में पत्थरों की बरसात, बेटे को दौरे पड़ने और कपड़ों में आग लगने का सिलसिला निरंतर चलने लगा तो यह परिवार 'काले जादू' को रोकेने वाले कथित तांत्रिक, मौलवी आदि के पास जाने लगे।
    और फिर खेल आरम्भ होता है कथित तांत्रिक-मौलवियों का काले जादू को रोकने के उपाय करने का।
   नसीमा की माँ का स्वभाव बहुत अलग है। वह चाहती है उसकी पुत्री से जो भी संतान हो वह जायदाद की मालिक बने और उसके लिए उमर के पुत्र (नसीमा का सौतेला बेटा-शौकत) का खत्म होना आवश्यक है।  वह इसके लिए मौलवी की मदद लेती है।
   वहीं शहर का एक शिक्षित युवा धारक है। 'धारक' उस कस्बे का मशहूर आदमी था। उसकी उम्र छब्बीस-सत्ताईस साल थी। उसके घर वाले उसे इसलिए पसंद नहीं करते थे कि वह निकम्मा और निखडू था और शहर के लोगों को वह इसलिए पसंद नहीं था कि फ़िलासफ़ी की बात बहुत करता था।
     धारक इन सूफी,मौलवी, तांत्रिक आदि की वास्तविकता को जानता है। वह जानता है की यह सब जनता को भ्रमित करने वाले लोग हैं। और वह इन का पर्दाफाश करने के लिए और उमर की मदद के लिए सक्रिय होता है।   
   उपन्यास में एक प्रेम कथा भी चलती है, एक अधूरी प्रेम कथा। प्रेम कथा प्रतिशोध पर आधारित है जो जादू जैसे माध्यमों से आगे बढती है।
        उपन्यास में एक मस्ताना नाम का कथित तंत्र ज्ञाता है जिसका किरदार काफी रोचक है। ऐसे कथित लोग हर जगह पाये जाते हैं, जिनका कार्य जनता को डरा कर अपना कार्य सिद्ध करना होता है। आपने हरिशंकर परसाई जी की कहानी 'टाॅर्च बेचने वाले' पढी है तो आपको याद होगा, धर्म के नाम पर धंधा कैसे चलता है।
  एक और पात्र है जोगी। वह भी कथित धर्म का धंधा चलाने वाला व्यक्ति है। यहाँ एक और रोचक बात है। नसीमा की माँ मस्ताने और जोगी दोनों के पास जाती है और दोनों उमर के घर पर होनी वाली घटनाओं का अलग-अलग कारण बताते हैं।
    और जब दोनों के स्वार्थ परस्पर टकराते हैं दोनों कथित धर्मगुरु अपने बदमाशों का सहयोग लेते हैं।
कहानी यह दर्शाने का प्रयास किया गया है की लोग धर्म के नाम पर किस तरह जनता को मूर्ख बनाते हैं और अपनी स्वार्थसिद्धि करते हैं।
  वहीं 'स्वामी जी' जैसे पात्र भी हैं जो निस्वार्थ भाव से जनसेवा करते हैं। धारक जैसे लोग जन जागरुकता फैलाते हैं।
उपन्यास में अच्छे और बुरे दोनों तरह के ही पात्र उपस्थित हैं।
'काला जादू' उपन्यास को पाठक किसी हाॅरर, डरावनी कहानी की दृष्टि से न देखें। कहीं उपन्यास शीर्षक देखकर आपको लगे की यह वर्तमान हाॅरर उपन्यासों की तरह है। अगर आपको 'मित्र प्रकाशन- इलाहाबाद' से प्रकाशित होने वाली 'मनोहर कहानियाँ' पत्रिका याद है और उसमें प्रकाशित काल्पनिक रोमांच कहानियाँ याद है तो 'काला जादू' उसी श्रेणी की रचना है। जिसमें काले जादू के आतंक से त्रस्त एक परिवार है और कथित मौलवी,सूफी और तांत्रिक का भ्रष्ट जाल है और विभिन्न तरीकों से पीड़ित परिवार को डराकर आर्थिक शोषण तो करते ही हैं साथ-साथ में परिवार को मानसिक परेशान भी करते हैं। ऐसे कथित लोगों का पर्दाफाश करता है 'काला जादू'।
    और हाँ, आप कहीं यह भी मत मान लेना की उपन्यास के अंत में 'काला जादू' कुछ नहीं होता ऐसा वर्णित किया गया है। उपन्यास में काला जादू है और उसके प्रभाव भी है और उसका समाधान करने वाले लोग भी उपस्थित हैं।
   अब प्रश्न है की 'उमर-नसीमा' के परिवार पर काला जादू किसने किया और क्यों किया?
इन दोनों प्रश्नों के पीछे सारा घटनाक्रम उपस्थित है। इन्हीं दो प्रश्नों को पाने के लिए आप उपन्यास काला जादू पढे।
    मूलतः यह उपन्यास उर्दू से अनुवादित है और अनुवाद किया है इश्तियाक खान ने। अनुवाद का स्तर बहुत अच्छा है, बिलकुल सरल और सहज शब्दावली का प्रयोग किया गया है। 
   अगर आप रोमांच उपन्यास पसंद करते हैं तो यह उपन्यास आपको पसंद आयेगा।

उपन्यास - काला जादू
प्रस्तुति-     इश्तियाक खान
प्रकाशक-  नीलम जासूस कार्यालय, दिल्ली
पृष्ठ-         147
मूल्य-       200₹

उपन्यास लिंक- काला जादू

2 comments:

  1. Totally bakwas

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  2. उपन्यास के अनुवाद होने की बात की है लेकिन मूल रूप से ये किसकी रचना है इसका जिक्र नहीं है। जिक्र होता तो अच्छा होता। वैसे उपन्यास रोचक लग रहा है। पढ़ने की कोशिश रहेगी।

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