एक भ्रष्ट नेता की रोचक कथा
तरकीब- आलोक सिंह खालौरी
एक अकेली लड़की बदला लेना चाहती है अपने उस सौतेले बाप से जिसने ना सिर्फ उसके बाप और माँ की हत्या की थी वरन उसके ऊपर भी जुल्म ढाया था और एक अरबपति बाप की इकलौती बेटी को दरबदर भटकने के लिए मजबूर कर दिया था। एक वकील, जिसे जीने के लिए कोई काम करने की जरूरत ही नहीं थी, मगर अपने बल बूते पर अपनी हैसियत बनाने का वो पुरजोर तमन्नाई था। एक साधारण से केस में हाथ डालने के बाद हालात जिस तेजी से करवट बदले, उसे पता ही नहीं चला। एक सांसद, माफिया, धन कुबेर व्यापारी, जिसकी ताकत का कोई ओर छोर नहीं। राजनीतिक पैंतरों में सिद्धहस्त सारे दाँव-पेंच अपनाकर सरकार को भी बैक फुट पर ले जाने वाला बाहुबली नेता, जिस पर पलटवार करने के लिए सरकार की ओर से नियुक्त एन. सी. बी. और आई. बी. की संयुक्त टीम के भी पसीने छूट जाते हैं। सांझा मंजिल के लिए अलग-अलग रास्तों पर चले जब कई मुसाफिर एक ही पड़ाव पर आकर मिले, तो उनके सामने एक ही चुनौती थी किस तरह उस माफिया का अंत हो सके। और फिर निकाली गई एक -तरकीब..
लेखक श्री आलोक सिंह खालौरी जी से मेरा परिचय नया है। हालांकि आलोक जी को मैं लेखक के रूप में जानता था, उनके रचनाएं 'राजमुनि' और 'वो' काफी चर्चित रही हैं लेकिन 17 सितंबर 2022 को मेरठ में एक लेखक सम्मेलन में उनसे पहली बार मुलाकात हुयी। तब ही यह तय कर लिया था की आलोक जी की रचना पढनी है। किंडल पर 'तरकीब' उपन्यास मिला तो पढना आरम्भ करना किया। तो आलोक जी की कहानी मन को छू गयी।
'तरकीब' कहानी है एक भ्रष्ट पूर्व केन्द्रीय मंत्री और गुप्तचर विभाग के मध्य की। किस तरकीब से गुप्तचर विभाग एक भ्रष्ट नेता को दबोचते हैं।
कहानी के केन्द्र में है एक भ्रष्ट नेता रणविजय। रणविजय कोई पचपन साल का औसत क़दकाठी का आदमी था। सिर पर घने काले बाल थे, जो वक़्त के साथ सफेद हो चले थे। गोरा रंग, सुंदर नैननक़्श, आँखों पर सुनहरी फ्रेम का नज़र का चश्मा लगाए, वह बहुत ही संभ्रांत और पढ़ा लिखा नज़र आता था, जबकि पढ़ाई-लिखाई के नाम पर वह दसवीं फेल था, और सभ्रांत दिखने का, उसके इस ऊँचाई तक पहुँचने में बहुत बड़ा रोल था।
रणविजय भ्रष्ट है, ड्रग्स का कारोबार करता है, हत्यारा है और कुछ लोगों के कारोबार पर उसने कब्जा जमा लिया है। ऐसे आदमी एक नहीं अनेक दुश्मन होते हैं। ऐसी ही एक दुश्मन है उसकी कथित पुत्री पूजा।
वहीं सरकारी एजेंसियां एन.सी.बी.और आई. बी. को पता चलता है की रणविजय ड्रग्स के धंधे के अतिरिक्त आतंकवादियों से संबंध भी रखता है। इसलिए एन.सी.बी.और आई. बी. रणविजय को पकड़ने के लिए एक योजना बनाती है। लेकिन तेजतर्रार रणविजय के समक्ष वह कुछ नहीं कर पाती। विपक्षी नेता को पकड़ा पाना इतना आसान काम भी नहीं है। प्रथम प्रयास में तो सब योजनाएं भी ध्वस्त हो जाती हैं और रणविजय का एक कथन है- “साले ठुल्लों भूला मत करो कि सामने रणविजय है।”
लेकिन भारतीय एजेंसियां भी इतनी जल्दी हार मानने वाली नहीं है। एजेंसी सदस्य आरिफ, युगल, किशोर और अमित तथा प्राइवेट वकील अर्जुन- पूजा मिलकर पुनः प्लान बनाते हैं।
“फिर क्या करें ?”
“सोचना पड़ेगा सर। दिमाग़ की सारी ताक़त लगा कर सोचना पड़ेगा। कोई तो ऐसी तरकीब होगी, जिससे इसे इसके अंजाम तक भी पहुँचा दें और किसी के कान पर जूँ तक ना रेंगे।”
“ऐसी क्या तरकीब हो सकती है ?”
“निकलेगी सर। कोई न कोई तरकीब तो ज़रूर ही निकलेगी।”
........कोई तरकीब सोचनी पड़ेगी। कोई ऐसी तरकीब जो बिना शोरशराबे के, बिना किसी हंगामे के नेता जी का चैप्टर क्लोज़ कर दे।”–अमित उसे समझाता हुआ बोला।
और फिर एक शानदार तरकीब द्वारा भ्रष्ट नेता रणविजय के साथ एक बेहतरीन खेल खेल खेला जाता है। एक ऐसा खेल जहाँ उसके साथियों तक को भी अंत तक खबर नहीं होती की क्या खेल खेला जा चुका है।
नेता जी जिसे उपन्यास में 'मुर्गा' बोला जाता है। एक भ्रष्ट चरित्र और देशद्रोही व्यक्ति है, लेकिन विपक्ष में होने के कारण उस पर हाथ डालना बहुत मुश्किल है।
नेता रणविजय का औरतों के प्रति दृष्टिकोण बहुत ही निकृष्ट है। औरतों को मानसिक टाॅर्चर करने पर उसे शांति मिलती है। पल- पल उसका व्यवहार बदलता रहता है।वहीं रणविजय हरपल सतर्क रहने वाला व्यक्ति है। वह कहता है- “मैं युद्ध में हार की प्रतीक्षा नहीं करता। युद्धभूमि से किसी सुरक्षित जगह भाग जाता हूँ। अगर जीत निन्यानवे प्रतिशत पक्की हो, और हार केवल एक प्रतिशत हो, तो भी मैं सुरक्षित स्थान पर भाग जाने में यक़ीन रखता हूँ। साला एक पर्सेंट का भी रिस्क क्या लेना ? और जब पूर्ण विजय हो जाती है, तभी लौटता हूँ। अरे जब सैनिकों को ही लड़ना है, तो मैं क्यों ख़तरा उठाऊँ ? इस मामले में मेरे अंदर कोई अहंकार नहीं है।”
ज्यादातर उपन्यासों में यह देखने को मिलता है की जासूस वर्ग अपराधी पर हमला बोलते हैं और अपराधी को खत्म कर देते हैं, जो की तर्कसंगत नहीं होता। इस उपन्यास की यही विशेषता है की सरकारी एजेंसी एन. सी. बी. और आई. बी. की जो कार्यशैली दिखायी गयी है वह तर्कसंगत है। दोनों एजेंसियां योजना के अन्तर्गत कार्य करती हैं।
'तरकीब' उपन्यास की कहानी वास्तव में सत्य के बहुत करीब नजर आती है। वास्तव में गुप्तचर एजेंसियां जिस तरीके से कार्य करती हैं। उसका इस उपन्यास में बहुत अच्छे ढंग से वर्णन किया गया है।
उपन्यास में अनावश्यक विस्तार कहानी को बहुत धीमा करता है। कुछ पात्र और दृश्य उपन्यास में अगर न होते तो भी काम चल सकता था। उपन्यास में 'अर्जुन-पूजा' और वृंदा जैसे पात्र मेरे विचार से कथा में अनावश्यक विस्तार ही पैदा करते हैं। वहीं वृंदा से संबंधित बहुत से प्रश्न अधूरे रह जाते हैं।
अगर आप गुप्तचर विभाग की कार्यशैली को समझना चाहते हैं तो यह उपन्यास अवश्य पढें।
उपन्यास- तरकीब
लेखक- आलोक सिंह खालौरी
प्रकाशक- शब्दगाथा
तरकीब- आलोक सिंह खालौरी
एक अकेली लड़की बदला लेना चाहती है अपने उस सौतेले बाप से जिसने ना सिर्फ उसके बाप और माँ की हत्या की थी वरन उसके ऊपर भी जुल्म ढाया था और एक अरबपति बाप की इकलौती बेटी को दरबदर भटकने के लिए मजबूर कर दिया था। एक वकील, जिसे जीने के लिए कोई काम करने की जरूरत ही नहीं थी, मगर अपने बल बूते पर अपनी हैसियत बनाने का वो पुरजोर तमन्नाई था। एक साधारण से केस में हाथ डालने के बाद हालात जिस तेजी से करवट बदले, उसे पता ही नहीं चला। एक सांसद, माफिया, धन कुबेर व्यापारी, जिसकी ताकत का कोई ओर छोर नहीं। राजनीतिक पैंतरों में सिद्धहस्त सारे दाँव-पेंच अपनाकर सरकार को भी बैक फुट पर ले जाने वाला बाहुबली नेता, जिस पर पलटवार करने के लिए सरकार की ओर से नियुक्त एन. सी. बी. और आई. बी. की संयुक्त टीम के भी पसीने छूट जाते हैं। सांझा मंजिल के लिए अलग-अलग रास्तों पर चले जब कई मुसाफिर एक ही पड़ाव पर आकर मिले, तो उनके सामने एक ही चुनौती थी किस तरह उस माफिया का अंत हो सके। और फिर निकाली गई एक -तरकीब..
आलोक सिंह खालौरी जी के साथ, मेरठ- 17.09.2022 |
लेखक श्री आलोक सिंह खालौरी जी से मेरा परिचय नया है। हालांकि आलोक जी को मैं लेखक के रूप में जानता था, उनके रचनाएं 'राजमुनि' और 'वो' काफी चर्चित रही हैं लेकिन 17 सितंबर 2022 को मेरठ में एक लेखक सम्मेलन में उनसे पहली बार मुलाकात हुयी। तब ही यह तय कर लिया था की आलोक जी की रचना पढनी है। किंडल पर 'तरकीब' उपन्यास मिला तो पढना आरम्भ करना किया। तो आलोक जी की कहानी मन को छू गयी।
'तरकीब' कहानी है एक भ्रष्ट पूर्व केन्द्रीय मंत्री और गुप्तचर विभाग के मध्य की। किस तरकीब से गुप्तचर विभाग एक भ्रष्ट नेता को दबोचते हैं।
कहानी के केन्द्र में है एक भ्रष्ट नेता रणविजय। रणविजय कोई पचपन साल का औसत क़दकाठी का आदमी था। सिर पर घने काले बाल थे, जो वक़्त के साथ सफेद हो चले थे। गोरा रंग, सुंदर नैननक़्श, आँखों पर सुनहरी फ्रेम का नज़र का चश्मा लगाए, वह बहुत ही संभ्रांत और पढ़ा लिखा नज़र आता था, जबकि पढ़ाई-लिखाई के नाम पर वह दसवीं फेल था, और सभ्रांत दिखने का, उसके इस ऊँचाई तक पहुँचने में बहुत बड़ा रोल था।
रणविजय भ्रष्ट है, ड्रग्स का कारोबार करता है, हत्यारा है और कुछ लोगों के कारोबार पर उसने कब्जा जमा लिया है। ऐसे आदमी एक नहीं अनेक दुश्मन होते हैं। ऐसी ही एक दुश्मन है उसकी कथित पुत्री पूजा।
वहीं सरकारी एजेंसियां एन.सी.बी.और आई. बी. को पता चलता है की रणविजय ड्रग्स के धंधे के अतिरिक्त आतंकवादियों से संबंध भी रखता है। इसलिए एन.सी.बी.और आई. बी. रणविजय को पकड़ने के लिए एक योजना बनाती है। लेकिन तेजतर्रार रणविजय के समक्ष वह कुछ नहीं कर पाती। विपक्षी नेता को पकड़ा पाना इतना आसान काम भी नहीं है। प्रथम प्रयास में तो सब योजनाएं भी ध्वस्त हो जाती हैं और रणविजय का एक कथन है- “साले ठुल्लों भूला मत करो कि सामने रणविजय है।”
लेकिन भारतीय एजेंसियां भी इतनी जल्दी हार मानने वाली नहीं है। एजेंसी सदस्य आरिफ, युगल, किशोर और अमित तथा प्राइवेट वकील अर्जुन- पूजा मिलकर पुनः प्लान बनाते हैं।
“फिर क्या करें ?”
“सोचना पड़ेगा सर। दिमाग़ की सारी ताक़त लगा कर सोचना पड़ेगा। कोई तो ऐसी तरकीब होगी, जिससे इसे इसके अंजाम तक भी पहुँचा दें और किसी के कान पर जूँ तक ना रेंगे।”
“ऐसी क्या तरकीब हो सकती है ?”
“निकलेगी सर। कोई न कोई तरकीब तो ज़रूर ही निकलेगी।”
........कोई तरकीब सोचनी पड़ेगी। कोई ऐसी तरकीब जो बिना शोरशराबे के, बिना किसी हंगामे के नेता जी का चैप्टर क्लोज़ कर दे।”–अमित उसे समझाता हुआ बोला।
और फिर एक शानदार तरकीब द्वारा भ्रष्ट नेता रणविजय के साथ एक बेहतरीन खेल खेल खेला जाता है। एक ऐसा खेल जहाँ उसके साथियों तक को भी अंत तक खबर नहीं होती की क्या खेल खेला जा चुका है।
नेता जी जिसे उपन्यास में 'मुर्गा' बोला जाता है। एक भ्रष्ट चरित्र और देशद्रोही व्यक्ति है, लेकिन विपक्ष में होने के कारण उस पर हाथ डालना बहुत मुश्किल है।
नेता रणविजय का औरतों के प्रति दृष्टिकोण बहुत ही निकृष्ट है। औरतों को मानसिक टाॅर्चर करने पर उसे शांति मिलती है। पल- पल उसका व्यवहार बदलता रहता है।वहीं रणविजय हरपल सतर्क रहने वाला व्यक्ति है। वह कहता है- “मैं युद्ध में हार की प्रतीक्षा नहीं करता। युद्धभूमि से किसी सुरक्षित जगह भाग जाता हूँ। अगर जीत निन्यानवे प्रतिशत पक्की हो, और हार केवल एक प्रतिशत हो, तो भी मैं सुरक्षित स्थान पर भाग जाने में यक़ीन रखता हूँ। साला एक पर्सेंट का भी रिस्क क्या लेना ? और जब पूर्ण विजय हो जाती है, तभी लौटता हूँ। अरे जब सैनिकों को ही लड़ना है, तो मैं क्यों ख़तरा उठाऊँ ? इस मामले में मेरे अंदर कोई अहंकार नहीं है।”
ज्यादातर उपन्यासों में यह देखने को मिलता है की जासूस वर्ग अपराधी पर हमला बोलते हैं और अपराधी को खत्म कर देते हैं, जो की तर्कसंगत नहीं होता। इस उपन्यास की यही विशेषता है की सरकारी एजेंसी एन. सी. बी. और आई. बी. की जो कार्यशैली दिखायी गयी है वह तर्कसंगत है। दोनों एजेंसियां योजना के अन्तर्गत कार्य करती हैं।
'तरकीब' उपन्यास की कहानी वास्तव में सत्य के बहुत करीब नजर आती है। वास्तव में गुप्तचर एजेंसियां जिस तरीके से कार्य करती हैं। उसका इस उपन्यास में बहुत अच्छे ढंग से वर्णन किया गया है।
उपन्यास में अनावश्यक विस्तार कहानी को बहुत धीमा करता है। कुछ पात्र और दृश्य उपन्यास में अगर न होते तो भी काम चल सकता था। उपन्यास में 'अर्जुन-पूजा' और वृंदा जैसे पात्र मेरे विचार से कथा में अनावश्यक विस्तार ही पैदा करते हैं। वहीं वृंदा से संबंधित बहुत से प्रश्न अधूरे रह जाते हैं।
अगर आप गुप्तचर विभाग की कार्यशैली को समझना चाहते हैं तो यह उपन्यास अवश्य पढें।
उपन्यास- तरकीब
लेखक- आलोक सिंह खालौरी
प्रकाशक- शब्दगाथा
बढ़िया कहानी 🤟🏽🤟🏽
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