Wednesday, 7 September 2022

532. मतवाल चंद - संतोष पाठक

संघर्ष अहम् और कर्तव्य का
मतवाल चंद- संतोष पाठक
 
ताकत के मद में ऐंठे एमपी प्रचंड सिंह राजपूत ने मतवाल चंद को पीटते वक्त सपने में भी नहीं सोचा होगा कि वह हरकत उसकी जिंदगी की सबसे बड़ी भूल साबित होने वाली थी, ऐसी भूल जो उसकी सल्तनत को पूरी तरह तबाह और बर्बाद कर के रख देगी।
किसी बाहुबली के साथ जंग लड़ना आसान काम नहीं था। वह भी तब जबकि मतवाल का थाना इंचार्ज प्रचंड सिंह के खिलाफ मारपीट का मामला तक दर्ज करने को तैयार नहीं था।
आखिरकार उसने आर-पार की लड़ाई लड़ने का फैसला किया, एक ऐसी लड़ाई जिसके बारे में कोई नहीं जानता था कि उसका अंत कहां जाकर होने वाला था।
शह और मात का खेल चल निकला, कौन जीतेगा और कौन हारेगा इसका अंदाजा लगा पाना बेहद मुश्किल था।
अब देखना ये था कि क्या अकेला चना भांड फोड़ सकता था? (किंडल से)
वर्तमान यथार्थवादी समय में मनुष्य दुखी हो गया है। वह ज्वालामुखी की तरह अपने अंदर अथाह आग लिये बैठा है, बस इंतजार है उस ज्वालामुखी के फटने का। वहीं कर्तव्यनिष्ठ व्यक्ति का जीवन और भी मुश्किल है।‌ वहीं सत्ता और धन के नशे में चूर व्यक्ति कर्तव्यनिष्ठ व्यक्तियों को हेय दृष्टि से देखते हैं। 'मतवाल चंद' कहानी एक ऐसे ही कर्तव्यनिष्ठ पुलिसकर्मी और सत्ता-धन के मद में डूब व्यक्ति के संघर्ष की कहानी है।   लोकप्रिय जासूसी उपन्यास साहित्य में संतोष पाठक अपने तीव्रगति कथानक और तीव्रगति लेखन के लिए जाने जाते हैं। पाठक जब तक एक उपन्यास पूर्ण करता तब तक संतोष जी का नया उपन्यास बाजार में आ जाता है।
            अब चर्चा करते हैं उपन्यास 'मतवाल चंद' की। कहानी है सब इंस्पेक्टर मतवाल चंद की- सब इंस्पेक्टर मतवाल चंद असल के मतवाल चंद से एकदम अलग है, ईमानदार है, कर्तव्यनिष्ठ है और ड्यूटी को ड्यूटी की तरह करना जानता है। मगर अफसोस कि उसकी वह ड्यूटी ही एक रोज मुसीबत बनकर उसके गले में लटक गयी।
    एक रोज ट्रेफिक नियमों का उल्लंघन करने पर वह सांसद (M.P.) प्रचण्ड सिंह राजपूत की गाड़ियों के काफिले को रोक लेता है।
और प्रचण्ड सिंह राजपूत- वह 50 के पेटे में पहुंचता लाल भभूके चेहरे वाला पहाड़ जैसा शख्स था जिसकी खोपड़ी खलवाट थी।
     नेता जो कि बाहुबली था, जिसकी पुलिस महकमे से लेकर राजनैतिक गलियारों तक तूती बोलती थी। जो वहां का बादशाह भले ही नहीं था, मगर उसका नाम सुनकर अच्छे अच्छों की पतलून गीली हो जाया करती थी।
  सांसद महोदय से मतवाल चंद माफी भी मांगता है पर सत्ता के नशे में चूर सांसद का एक ही उत्तर था- “नहीं माफ तो हम नाहीं कर सकते हैं। सजा तो मिलेगी और सबके सामने मिलेगी। ना मिली तो कल को साला कोई दूसरा दरोगा ऐसा ही दुस्साहस कर बैठेगा, बल्कि सिपाही भी कर बैठें तो कोई बड़ी बात नहीं होगी, इसलिए सबक मिलना जरूरी है - कहकर उसने वहां खड़े अपने हथियारबंद आदमियों की तरफ देखा - बहिन चो... तमाशा का देख रहे हो, काम खत्म करो। का दिन भर इहें खड़े रहोगे, मगर जान से मत मारना वरना ससुरे को अपनी बेइज्जती का एहसास कैसे होगा?”
और जिसके एक आदेश पर उसके साथी सब इंस्पेक्टर मतवाल चंद की जमकर पिटाई करते हैं, वह भी सभी के सामने।
  एक कर्तव्यनिष्ठ पुलिसकर्मी के लिए आत्मसम्मान का प्रश्न था। वह अपनी रिपोर्ट लिखवाने थाने, न्यायालय और वकील के पास जाता है लेकिन हर जगह उसे प्रचण्ड सिंह राजपूत से माफी मांग लेने की सलाह दी जाती है। पर मतवाल चंद अपनी जिद्द पर कायम था, वह प्रचण्ड सिंह के खिलाफ केस दर्ज करना चाहता था।
दोस्ती ने राय दी- मगर तुम जरूर सोच लो, क्योंकि एक बार मौत की राह पर आगे बढ़ गये तो वापसी के रास्ते बंद हो जायेंगे।”
एक और राय- मजिस्ट्रेट का लहजा बेहद धीमा हो उठा - लेकिन उसके बाद का हो सकता है, इतना तो समझते हैं न आप। काहे उसकी जान सांसत में फंसा रहे हैं, समझाते क्यों नहीं?”
पर प्रचण्ड सिंह का उत्तर था- आगे जो होगा उसे भुगत भी लेंगे। जान जाये तो जाये, मगर पीछे नहीं हटने वाले हम।”
और वह पीछे नहीं हटा, उसे पता था अगर एक बार पीछे हट गया तो ऐसे धन-सत्ता के नशे में चूर व्यक्ति ‌पुलिस विभाग को कुछ नहीं समझेंगे।
         और जब एक ईमानदार पुलिस ऑफिसर जब अपनी पर उतर आये तो जो न कर गुजरे वही कम होता है।
और फिर संघर्ष आरम्भ होता है एक कर्तव्यनिष्ठ पुलिसकर्मी और एक ताकतवर सांसद के मध्य।
यह तो है कहानी का बाहरी आवरण मात्र वास्तविक कहानी और उसके अंदर के ट्विस्ट और एक प्रशंसनीय समापन का आनंद तो उपन्यास को पढ कर ही लिया जा सकता है। अगर आप मर्डर मिस्ट्री से अलग हटकर कुछ पढना चाहते हैं तो यह उपन्यास आपको रोचक लगेगा।
     उपन्यास में पुलिस विभाग का चरित्र चित्रण बहुत अच्छे ढंग से किया गया है। मतवाल चंद स्वयं पुलिस विभाग से है और वहीं पुलिस विभाग सांसद महोदय के विरुद्ध भी नहीं जा सकता। इन दोनों परिस्थितियों के मध्य पुलिस विभाग की स्थिति भी पठनीय है। विशेषकर सीओ ओमप्रकाश कुशवाहा का चरित्र तो पाठकों को चौंका ही देगा।
      यह उपन्यास खादी और खाकी की‌ लड़ाई तो है ही है लेकिन इसका मूल भाव खादी का अहम और खाकी का कर्तव्यनिष्ठ होना भी है। लेकिन उपन्यास के नेपथ्य में एक और खेल भी खेला जा रहा है।
   उपन्यास के विषय में ज्यादा चर्चा करने का अर्थ है उपन्यास का आनंद खत्म करना। इसलिए आप उपन्यास पढें और कथा का वास्तविक आनंद लें।
एक ईमानदार पुलिसकर्मी और दबंग नेता के आपसी संघर्ष, पुलिसकर्मी के परिवार की स्थिति और पुलिस विभाग के अंदरूनी हालात को सशक्त ढंग से प्रस्तुत करता यह उपन्यास अतिरोचक है।
उपन्यास - मतवाल चंद
लेखक -    संतोष पाठक
फॉर्मेट-     eBook on kindle

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