Friday, 5 August 2022

528. C.I.A. का आतंक - वेदप्रकाश शर्मा

विजय का अमेरिकी अभियान
C.I.A. का आतंक - वेदप्रकाश शर्मा

"एक तरफ छात्रों को भड़काना, कुछ नेताओं को विभिन्न प्रकार के लाभ देकर जनता में वर्तमान सरकार के प्रति गलत विचारों का प्रचार करना, पत्रकारों तक को खरीदकर पत्रों द्वारा जनता में गलत भावनाएं भरना, युवा पीढ़ी को मादक वस्तुओं तथा यौवन के सेवन का चस्का डालकर उन्हें पथभ्रष्ट करना, यहां तक कि धर्म में आस्था रखने वाले वर्ग में किसी महापुरुष की हैसियत से अपने किसी सदस्य को उनके बीच पहुंचाना आदि अनेक तरीकों से भारत को अंदर ही अंदर खोखला कर रहे है और दूसरी तरफ भारतीय सुरक्षा सीमाओं पर तैनात फौजों की युद्ध सामग्री को रास्ते में ही नष्ट करना और तीसरी तरफ पाकिस्तान की आधुनिक युद्ध सामग्री देकर उसे पुनः युद्ध के लिए प्रेरित व तैयार करना उनके मुख्य काम हैं।"
  C.I.A. अमेरिका की गुप्तचर संस्था है। अमेरिका की यह संस्था भारत में सक्रिय थी और उसका कार्य था भारतीय शासन व्यवस्था को अस्त-व्यस्त करना। इसके लिए वह हिप्पियों के वेश में कुछ असामाजिक तत्वों को भारत में भेजती रही है।
  एक दौर था जब हिप्पी लोग भारत में कथित शांति की खोज में आते थे और उस समय अमरीका पाकिस्तान के ज्यादा नजदीक था, वह भारत में आतंकी तत्वों को सक्रिय कर रहा था। उस समय को आधार बना कर वेदप्रकाश शर्मा जी ने 'सी.आई.ए. का आतंक' उपन्यास लिखा है। जब सी.आई. ए. का आतंक भारत में बढ गया तो उसे रोकने के लिए भारतीय सीक्रेट सर्विस सक्रिय थी। सीक्रेट सर्विस का चीफ ब्लैक बाॅय और जासूसी विजय इसी विषय पर चर्चा करते हैं।
"सर, अमेरिका ने संपूर्ण भारत में सी. आई. ए का जाल बिछाया हुआ है। कदम-कदम पर एजेंट हैं। अमेरिका की इस संस्था का वार्षिक खर्च साढ़े तीन अरब डालर है। इसका प्रभाव इतना है कि कभी-कभी राष्ट्राध्यक्ष को भी इसकी बात माननी पड़ती है।"
"यह मैं जानता हूं प्यारे काले लड़के।"
"सी. आइ. ए. हमारे लिए बहुत ही बड़ा खतरा है सर।"
"यह भी मैं जानता हूँ।"
"लेकिन उससे छुटकारा कैसे पाया जाए? अमेरिका से ये हिप्पी लगातार आ रहें हैं, इनका कहना है कि ये शांति की खोज में हैं, जबकि अमेरिका इन्हीं के लिबास में सी आई. ए का जाल दिन-प्रतिदिन दृढ़ करता जा रहा है।”
“इससे छुटकारा पाना आसान नहीं।"

     भारत में बढते सी. आई. ए. के बढते आतंक को रोकने के लिए विजय गुप्त रूप से अमेरिका पहुंचता है और उसकी मदद के लिए रूस का जासूस बागरोफ भी अमेरिका पहुँच जाता है।
      और वहाँ उनके स्वागत के लिए जाल बिछाये अमेरिकी जासूस माईक तैयार था। और जाल भी ऐसा की जिसमें उनका फंसना तय था।
     उपन्यास में अंतरराष्ट्रीय अपराधी अलफांसे भी उपस्थित है, जो की सिर्फ रुपयों के लिए काम करता है। यहाँ भी अलफांसे अमेरिकन गुप्तचर संस्था CIA के लिए काम करता है, लेकिन यह काम वास्तव में वह रुपयों के लिए करता है। अलफांसे की कम किस से दुश्मनी और कब किस से दोस्ती हो जाये कहना संभव नहीं। वह C.I.A. के लिए काम भी करता है और उसे धमकाता भी है -"अपने चीफ से कहना मेरा नाम अलफांसे है और मुझसे टकराने का अर्थ सी. आई. ए का पतन होगा।"
     वहीं जब C.I.A. को यह पता चलता है की विजय और बागारोफ अमेरिका आ गये हैं तो वह सक्रिय होती है, लेकिन उनके लिए यह समस्या है की विजय-बागरोफ अमेरिका क्यों आये हैं। और इसी 'क्यों' का फायदा अलफांसे उठाता है। और फिर जासूस वर्ग के मध्य संघर्ष होता है जिसमें एक तरफ 'विजय-बागरोफ' हैं, दूसरी तरफ अमेरिकन माईक और तीसरे कोने पर है अलफांसे। उपन्यास में इनका संघर्ष, एक्शन और कारनामें पठनीय है।
     विजय एक विदूषक प्रवृत्ति का गुप्तचर है। वह जब अपनी विशेष हरकतों पर आता है तो सामने वाला चाहे कुछ भी कहता-बोलता रहे पर विजय उसकी बात पर ध्यान नहीं देता।
   वह अक्सर गंभीर बातों को अपनी 'झकझकी' में टाल देता है। विजय की एक रोचक झकझकी देखें-
"मैया मोरी मैं नाहि नोट चुरायो।
भोर होत अंग्रेजी पढ़न को स्कूल मोहि पठायो।
तीन बजे मैं गयो सनीमा साझ पड़े घर आयो।
मैं इतना छोटा अरु भला सेफ से कैसे रुपया हटायो।
पापा मेरे बैर पड़े हैं, झूठा ही दोष लगायो।
इतना सुन मम्मी ने टॉफी देकर बाहर भरायो।"

   वेदप्रकाश शर्मा जी द्वारा लिखित 'सी.आई.ए. का आतंक' उपन्यास 'विजय, बागारोफ, माईक और अलफांसे' के कारनामों पर आधारित है। भारत राष्ट्र में जब C.I.A. का आतंक बढ जाता है तो उस आतंक को खत्म करने के लिए विजय अमेरिका जाता है।
कथा स्तर पर उपन्यास न्यून है, बस उपन्यास में एक्शन है और जासूसवर्ग का संघर्ष है।
   अगर आप विजय -अलफांसे के कारनामें पसंद करते हैं तो यह उपन्यास आपको अच्छा लगेगा अन्यथा एक समान्य उपन्यास है।
उपन्यास - सी.आई.ए. का आतंक
लेखक -    वेदप्रकाश शर्मा
विजय- अलफांसे

No comments:

Post a Comment

शिकारी का शिकार- वेदप्रकाश काम्बोज

गिलबर्ट सीरीज का प्रथम उपन्यास शिकारी का शिकार- वेदप्रकाश काम्बोज ब्लैक ब्वॉय विजय की आवाज पहचान कर बोला-"ओह सर आप, कहिए शिकार का क्या...