Wednesday, 18 September 2019

223. धुरंधरों के बीच- एम. इकराम फरीदी

प्रेम और नफरत के बीच
धुरंधरों के बीच- एम.इकराम फरीदी, उपन्यास

सुरज पॉकेट बुक्स से प्रकाशित एम.इकराम फरीदी जी का नया उपन्यास पढने को मिला। उपन्यास संस्करण नया (जून-2019)है लेकिन ये लेखक महोदय का बहुत पहले का लिखा हुआ है।- इसकी रचना मैंने सन् 1998 में की थी, तब से लेखन क्षेत्र में मेरा संघर्ष और सफर जारी है।
बात उपन्यास की करे तो यह एक थीम पर आधारित है। उपन्यास की एक पंक्ति उपन्यास को बहुत प्रभावशाली तरीके से व्यक्त कर सकती है। - अपने लिए जीना ज़िंदगी नहीं होती। अपनों के लिए जीना ज़िंदगी होती है।
उपन्यास के कुछ पात्र अपने लिए जीते हैं और कुछ अपनों के लिए जीते हैं। यह संघर्ष और विरोध कहानी को रोचक और पठनीय बनाता है।
      यह रिश्तों पर आधारित एक प्रेमकथा है, भावना प्रधान कथानक, आपसी द्वेष और बदले पर आधारित है।

       उपन्यास के कथानक की बात करें तो यह कहानी दो अलग-अलग स्तर पर चलती है जो अंत में जाकर एक हो जाती है।
मुकेश और मोनिका एक दूसरे से प्यार करते हैं लेकिन मोनिका का भाई राजेश इसे बर्दाश्त नहीं करता।
वह मोनिका के आगे आकर स्थिर हुआ। उसकी आँखों में आँखें डाली। "तू मेरी बहन है, मैं तेरा भाई। भाई पर जो बहन की जिममेदारियाँ होती हैं मैंने निभायी और आगे भी निभाता। मैं रिश्ते को खूब अच्छी तरह से समझता हूँ। हर जायज बात को हर वक्त मानने को तैयार रहता हूँ लेकिन नाजायज़ हरकत किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं कर सकता।

      वहीं मोनिका मुकेश के अतिरिक्त और किसी को पसंद नहीं करती। मोनिका तो मुकेश को भी स्पष्ट कहती है- या तो तुम्हें मुझसे कोर्ट-मैरिज करनी होगी या फिर मैं आत्महत्या कर लूँगी। यह मेरा अटल फ़ैसला है। मुझे इस फ़ैसले से कोई डिगा नहीं सकता।" दो टुक शब्दों में बात की थी उसने। कहीं कोई आवाज़ में कंपन नहीं। लहजा अटल विश्वास से ठसाठस था।

     उपन्यास का दूसरा कथानक बृजेश नामक एक युवक का है।- बृजेश की उम्र कोई पच्चीस बरस थी। लम्बे कद और कसरती जिस्म का एक खूबसूरत युवक था वह। पर्सनॉल्टी दमदार थी।
      बृजेश का भाई बहुत गंभीर रूप से बीमार है। वह अपने भाई को बचाने के लिए अपने शादी ले रिश्ते तक को तोड़ देता है। बृजेश का मित्र विकास समझाते हुए बोला- "समझने की कोशिश कर मेरे यार! शादी को कुल पंद्रह दिन रह गये हैं। वे लोग सारी तैयारियाँ पूरी कर चुके हैं और जो रह गयी है, वो भी कर कर रहे हैं। अब हम मना करेंगे तो उनके दिल पर क्या बीतेगी। दाग़ लग जाएगा लड़की के दामन पर।"
एकाएक बृजेश हत्थे से उखड़ गया। "और मेरे दिल पर क्या बीत रही है यह पता है तुझे? पचास लाख रुपये का खर्चा बताया है डॉक्टर ने। कहाँ से आएगा इतना रुपया? किसी पेड़ पर लगा है जो झाड़ लूँ? और तू कह रहा है कि मैं ख़ुशियाँ मनाऊँ। नाचूँ, गाऊँ।"

     बृजेश को रूपयों की अतिआवश्यता है और इसके लिए वह कुछ भी करने को तैयार है। इस 'कुछ' भी में उसकी मदद उसका दोस्त करता है।

उपन्यास में इंस्पेक्टर कात्याल का किरदार दमदार है जो पाठक को प्रभावित करने में भी सक्षम है। कात्याल स्वयं के बारे में कहता है- “कात्याल कोई काम अधूरा नहीं करता ।” कात्याल में हास्य की प्रवृत्ति भी दृष्टिगोचर होती है- कात्याल ने स्वर में स्वर मिलाया– “शर्म साली साथ छोड़कर भाग गयी। अब आने की कोई उम्मीद भी नहीं है।”
लेकिन कात्याल का इस बार सामना कुछ ऐसे धुरंधरों से हुआ है जो स्वयं जो अपराध में महारथी समझने की भूल कर बैठते हैं।
     अब उपन्यास का एक रोचक दृश्य देख लीजिएगा। उपन्यास में ऐसे छोटे-छोटे ट्विस्ट उपन्यास को रोचक बनाये रखते हैं।
“मगर मर्डर करना किसका होगा?”
“मेरा।”
“तेरा मर्डर?” एक बार फिर हैरत ने पूरे लश्कर के साथ धावा बोला। अगर इस बार भी कप हाथ में होता तो यकीनन छूट जाता। खुद को नियंत्रित करता हुआ..... बोला– “क्या दिमाग तो नहीं फिर गया है तेरा?”
“साला दिमाग ही तो नहीं फिरना चाह रहा है वरना यह काम करने की जरूरत ही क्या थी?”

      उपन्यास का एक संवाद भी पढ लीजिएगा। यह मात्र संवाद ही नहीं है बल्कि जीवन में आगे बढना का मंत्र भी है।
आदमी से बढ़कर कुछ नहीं होता। जब आदमी कुछ करने की ठान ही लेता है तो उस काम का अंजाम खुद झुककर उस आदमी को सलाम करता है।”
       धुरंधरों के बीच उपन्यास पारिवारिक सम्बन्धों पर आधारित कथा है। एक भाई है जो अपनी बहन का किसी से प्यार सहन नहीं कर सकता और एक भाई है जो अपने बीमार भाई के लिए अपनी शादी का रिश्ता तक खत्म कर देता है। इस पारिवारिक कहानी में कुछ नेपथ्य के पीछे के किरदार हैं। सच तो ये है की वहीं किरदार उपन्यास के पात्रों को चलाते हैं।
          पारिवारिक अपराध और कुछ रहस्य-रोमांच से लिपटी यह उपन्यास मध्यम स्तर की है।


     एम. इकराम फरीदी का उपन्यास 'धुरंधरों के बीच' पढा। यह एक औसत स्तर का उपन्यास है। स्वयं लेखक भी स्वीकारता है की यह उनकी 21 साल पुरानी एक अपरिपक्व रचना है। एक समय था इस तरह की बहुत सी कहानियाँ लिखी गयी थी। लेकिन वह समय नहीं रहा और इसी वजह से अब ऐसी अपरिपक्व रचनाएँ अच्छी भी नहीं लगती। हालांकि कहानी कोई 'विशेष कमी' नहीं है, कमी है तो प्रस्तुतीकरण की।
रचना एक बार पढी जा सकती है। एक बार मनोरंजन कर सकती है। लेकिन फरीदी साहब से जो उम्मीद होती है, उस उम्मीद पर उपन्यास खरी नहीं उतरती।

उपन्यास- धुरंधरों के बीच. 

लेखक-    एम.इकराम फरीदी
प्रकाशक- सूरज पॉकेट बुक्स
संस्करण-  जून, 2019
एमेजन लिंक-  धुरंधरों के बीच 



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