मेजर नाना पाटेकर का एक और कारनामा
खेल खिलाड़ी का- विनय प्रभाकर
नाना पाटेकर सीरीज
विनय प्रभाकर कृत नाना पाटेकर सीरिज का एक उपन्यास 'मौत आयेगी सात तालों में' पढा था वहीं से मैं नाना पाटेकर का प्रशंंसक हो गया था। नाना पाटेकर उपन्यास साहित्य का एक दबंग पात्र है। जो देशप्रेमी है और अपराधी भी।
लोकप्रिय उपन्यास साहित्य में डकैती करने वाले कुछ प्रसिद्ध पात्र रहे हैं। सुरेन्द्र मोहन पाठक कृत विमल, अनिल मोहन जी का 'देवराज', अनिल सलूजा का 'बलराज गोगिया' और विनय प्रभाकर का 'नाना पाटेकर'। मुझे इनमें से नाना पाटेकर सबसे अलग लगता है। क्योंकि वह दबंग है,देशप्रेमी है, आर्मी का जवान रह चुका है, किसी से दबता नहीं और धुन का पक्का है।
अब बात करते है उपन्यास 'खेल खिलाड़ी का' के कथानक की।
पिछले घटनाक्रम में नब्बे करोड़ के सोने से नाम मात्र सोना लेकर मेजर फरार हो गया था।
नब्बे करोड़ के सोने में से सिर्फ दस-दस ग्राम के पांच बिस्कुट लेकर और जार्ज लुइस के सहयोग का आभार मानते हुए मेजर ने नदी में छलांग लगा दी। (पृष्ठ-10)
'खेल खिलाड़ी का' उपन्यास का कथानक इस घटना के बाद आरम्भ होता है। इस उपन्यास का पूर्व उपन्यास या कहानी अए किसी प्रकार का कोई संबंध नहीं है उक्त घटना का नाम मात्र चित्रण है।
वहाँ से मेजर सोनीपत पहुंचा। सोनीपत स्टेशन पर ट्रेन रूकते ही मेजर यह सोचकर वहाँ उतर गया कि दिल्ली जाने की जगह यह छोटा शहर उसके ठहरने के लिए ज्यादा ठीक रहेगा। (पृष्ठ-13)
मेजर ने सोनीपत को एक सुरक्षा स्थान मान कर यहीं ठहरने का विचार किया लेकिन क्या पता था यहाँ भी मुसीबत उसका पीछा नहीं छोड़ने वाली। और अंततः मेजर एक चक्रव्यूह में फंस ही गया।
मेजर को मजबूरी के चलते एक खतरनाक मिशन को अंजाम देना पड़ा और वह भी अकेले।
"वो मिशन खतरनाक तो है ही, साथ ही बेहद सीक्रेट भी। अगर जरा भी कही लीक हो गया तो वह मुकम्मल तौर पर चौपट हो जायेगा।" (पृष्ठ -34)
तिहाड़ जेल में मेजर - चाहे वह यहाँ अपने एक प्लान के तहत पहुंचा लेकिन जब उसे पता चला की यह उसका प्लान नहीं था वह मात्र किसी की कठपुतली बन कर नाच रहा था तो मेजर का दिमाग भी घूम गया। अब वह ना तो खुद को छुपा सकता था न ही असलियत बता सकता था।
''हे देवा!"- मन ही मन कसमसा उठते मेजर बुदबुदाया -"यह तू मेरा कैसा इम्तिहान ले रहा है। अगर मैं अपनी असलियत नहीं भी बताता तो ये शक के आधार पर खतरनाक इश्तिहारी मुजरिमों के फिंगर प्रिंट्स मंगवाकर ये साबित कर देंगे कि मैं मेजर नाना पाटेकर हूँ। अगर बताता हूँ तो यह मुझे ऐसे सख्त पहरे में कैद कर देंगे कि वहाँ से फरार हो पाना मेरे लिए मुमकिन नहीं रह जाएगा। दोनों ही सूरतें उसके लिए खतरनाक हैं और हर हाल में उसका राज खुलना ही खुलना है।"(पृष्ठ-147)
इस उपन्यास में एक और कहानी चलती है। वह कहानी है एक लूट की, हीरों की प्रदर्शनी की लूट की कथा है। शैलेन्द्र, नित्यानंद, कोठारी , पामेला और मुसम्मिल ये वे लोग है जो करोड़ों के हीरों को लूटने का प्लान तैयार करते हैं।
उपन्यास में मूलतः दो अलग-अलग कहानियाँ है। एक नाना पाटेकर की जो एक चक्रव्यूह में फंस जाता है और दूसरी कहानी है हीरों के लूट की। जैसा की नाना पाटेकर के उपन्यास से उम्मीद की जाती है की नाना पाटेकर डकैती करेगा वैसा इस इस उपन्यास नें कुछ भी नहीं है। डकैती से पाटेकर का कोई भी सम्बन्ध नहीं है।
नाना पाटेकर तो स्वयं एक उलझन में होता है और अंत तक उसी को सुलझाने में रहता है।
उपन्यास चाहे रोचक है उसका प्रस्तुतीकरण सराहनीय है पर कहानी के स्तर पर उपन्यास में कुछ भी नहीं है। हीरों के लूट की कहानी को उपन्यास में से अलग कर दे तो भी नाना पाटेकर की कहानी पर कहीं कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। वहीं नाना पाटेकर की कहानी को अंत में बहुत छोटे रूप में खत्म कर दिया गया है।
उपन्यास का एक कथन मुझे बहुत अच्छा लगा।
जुर्म की बिसात शतरंज के खेल की तरह है। अगर खिलाड़ी को खेल जीतना है तो उसे राजा और वजीर को बचाने के लिए ऊंट, घोड़े, हाथी और प्यादों की कुरबानी देनी पड़ती है। (पृष्ठ-253)
उपन्यास का विस्तार बहुत ज्यादा है। लगभग 316 पृष्ठ के उपन्यास को 250 पृष्ठ तक समेटा जा सकता था। बहुत से घटनाक्रम ज्यादा विस्तृत हैं।
उपन्यास में दो कहानियाँ चलती हैं एक डायमण्ड प्रदर्शनी के लूट की और दूसरी आतंकवाद की। लेकिन दोनों कहानियाँ अंत तक एक नहीं हो पाती। हम ऐसा भी कह सकते है एक उपन्यास में दो कहानियाँ है। हालांकि दोनों कहानियाँ रोचक है पर दोनों कहानियाँ पूर्णतः अलग-अलग है एक पात्र है जो दोनों कहानियों का एक-दो जगज एक करने की कोशिश करता है लेकिन ऐसा हो नहीं पाता।
नाना पाटेकर मेरे पसंदीदा पात्र हैं। हालांकि प्रस्तुत उपन्यास मेरी उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा लेकिन भविष्य में नाना पाटेकर सीरिज पढने की इच्छा बलवती रहेगी।
निष्कर्ष-
उपन्यास में दो समांतर कहानियाँ चलती हैं पर लेखक दोनों कहानियाँ को एक करने में असफल रहा है। उपन्यास नाना पाटेकर सीरिज का होने के कारण पढा जा सकता है, मध्यम स्तर का उपन्यास है। कुछ नया और रोचक तो खैर नहीं है।
उपन्यास समीक्षा- मौत आयेगी सात तालों में- विनय प्रभाकर
उपन्यास- खेल खिलाड़ी का
लेखक- विनय प्रभाकर
प्रकाशक- मनोज पॉकेट बुक्स, दिल्ली
पृष्ठ- 316
खेल खिलाड़ी का- विनय प्रभाकर
नाना पाटेकर सीरीज
विनय प्रभाकर कृत नाना पाटेकर सीरिज का एक उपन्यास 'मौत आयेगी सात तालों में' पढा था वहीं से मैं नाना पाटेकर का प्रशंंसक हो गया था। नाना पाटेकर उपन्यास साहित्य का एक दबंग पात्र है। जो देशप्रेमी है और अपराधी भी।
लोकप्रिय उपन्यास साहित्य में डकैती करने वाले कुछ प्रसिद्ध पात्र रहे हैं। सुरेन्द्र मोहन पाठक कृत विमल, अनिल मोहन जी का 'देवराज', अनिल सलूजा का 'बलराज गोगिया' और विनय प्रभाकर का 'नाना पाटेकर'। मुझे इनमें से नाना पाटेकर सबसे अलग लगता है। क्योंकि वह दबंग है,देशप्रेमी है, आर्मी का जवान रह चुका है, किसी से दबता नहीं और धुन का पक्का है।
अब बात करते है उपन्यास 'खेल खिलाड़ी का' के कथानक की।
पिछले घटनाक्रम में नब्बे करोड़ के सोने से नाम मात्र सोना लेकर मेजर फरार हो गया था।
नब्बे करोड़ के सोने में से सिर्फ दस-दस ग्राम के पांच बिस्कुट लेकर और जार्ज लुइस के सहयोग का आभार मानते हुए मेजर ने नदी में छलांग लगा दी। (पृष्ठ-10)
'खेल खिलाड़ी का' उपन्यास का कथानक इस घटना के बाद आरम्भ होता है। इस उपन्यास का पूर्व उपन्यास या कहानी अए किसी प्रकार का कोई संबंध नहीं है उक्त घटना का नाम मात्र चित्रण है।
वहाँ से मेजर सोनीपत पहुंचा। सोनीपत स्टेशन पर ट्रेन रूकते ही मेजर यह सोचकर वहाँ उतर गया कि दिल्ली जाने की जगह यह छोटा शहर उसके ठहरने के लिए ज्यादा ठीक रहेगा। (पृष्ठ-13)
मेजर ने सोनीपत को एक सुरक्षा स्थान मान कर यहीं ठहरने का विचार किया लेकिन क्या पता था यहाँ भी मुसीबत उसका पीछा नहीं छोड़ने वाली। और अंततः मेजर एक चक्रव्यूह में फंस ही गया।
मेजर को मजबूरी के चलते एक खतरनाक मिशन को अंजाम देना पड़ा और वह भी अकेले।
"वो मिशन खतरनाक तो है ही, साथ ही बेहद सीक्रेट भी। अगर जरा भी कही लीक हो गया तो वह मुकम्मल तौर पर चौपट हो जायेगा।" (पृष्ठ -34)
तिहाड़ जेल में मेजर - चाहे वह यहाँ अपने एक प्लान के तहत पहुंचा लेकिन जब उसे पता चला की यह उसका प्लान नहीं था वह मात्र किसी की कठपुतली बन कर नाच रहा था तो मेजर का दिमाग भी घूम गया। अब वह ना तो खुद को छुपा सकता था न ही असलियत बता सकता था।
''हे देवा!"- मन ही मन कसमसा उठते मेजर बुदबुदाया -"यह तू मेरा कैसा इम्तिहान ले रहा है। अगर मैं अपनी असलियत नहीं भी बताता तो ये शक के आधार पर खतरनाक इश्तिहारी मुजरिमों के फिंगर प्रिंट्स मंगवाकर ये साबित कर देंगे कि मैं मेजर नाना पाटेकर हूँ। अगर बताता हूँ तो यह मुझे ऐसे सख्त पहरे में कैद कर देंगे कि वहाँ से फरार हो पाना मेरे लिए मुमकिन नहीं रह जाएगा। दोनों ही सूरतें उसके लिए खतरनाक हैं और हर हाल में उसका राज खुलना ही खुलना है।"(पृष्ठ-147)
इस उपन्यास में एक और कहानी चलती है। वह कहानी है एक लूट की, हीरों की प्रदर्शनी की लूट की कथा है। शैलेन्द्र, नित्यानंद, कोठारी , पामेला और मुसम्मिल ये वे लोग है जो करोड़ों के हीरों को लूटने का प्लान तैयार करते हैं।
उपन्यास में मूलतः दो अलग-अलग कहानियाँ है। एक नाना पाटेकर की जो एक चक्रव्यूह में फंस जाता है और दूसरी कहानी है हीरों के लूट की। जैसा की नाना पाटेकर के उपन्यास से उम्मीद की जाती है की नाना पाटेकर डकैती करेगा वैसा इस इस उपन्यास नें कुछ भी नहीं है। डकैती से पाटेकर का कोई भी सम्बन्ध नहीं है।
नाना पाटेकर तो स्वयं एक उलझन में होता है और अंत तक उसी को सुलझाने में रहता है।
उपन्यास चाहे रोचक है उसका प्रस्तुतीकरण सराहनीय है पर कहानी के स्तर पर उपन्यास में कुछ भी नहीं है। हीरों के लूट की कहानी को उपन्यास में से अलग कर दे तो भी नाना पाटेकर की कहानी पर कहीं कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। वहीं नाना पाटेकर की कहानी को अंत में बहुत छोटे रूप में खत्म कर दिया गया है।
उपन्यास का एक कथन मुझे बहुत अच्छा लगा।
जुर्म की बिसात शतरंज के खेल की तरह है। अगर खिलाड़ी को खेल जीतना है तो उसे राजा और वजीर को बचाने के लिए ऊंट, घोड़े, हाथी और प्यादों की कुरबानी देनी पड़ती है। (पृष्ठ-253)
उपन्यास का विस्तार बहुत ज्यादा है। लगभग 316 पृष्ठ के उपन्यास को 250 पृष्ठ तक समेटा जा सकता था। बहुत से घटनाक्रम ज्यादा विस्तृत हैं।
उपन्यास में दो कहानियाँ चलती हैं एक डायमण्ड प्रदर्शनी के लूट की और दूसरी आतंकवाद की। लेकिन दोनों कहानियाँ अंत तक एक नहीं हो पाती। हम ऐसा भी कह सकते है एक उपन्यास में दो कहानियाँ है। हालांकि दोनों कहानियाँ रोचक है पर दोनों कहानियाँ पूर्णतः अलग-अलग है एक पात्र है जो दोनों कहानियों का एक-दो जगज एक करने की कोशिश करता है लेकिन ऐसा हो नहीं पाता।
नाना पाटेकर मेरे पसंदीदा पात्र हैं। हालांकि प्रस्तुत उपन्यास मेरी उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा लेकिन भविष्य में नाना पाटेकर सीरिज पढने की इच्छा बलवती रहेगी।
निष्कर्ष-
उपन्यास में दो समांतर कहानियाँ चलती हैं पर लेखक दोनों कहानियाँ को एक करने में असफल रहा है। उपन्यास नाना पाटेकर सीरिज का होने के कारण पढा जा सकता है, मध्यम स्तर का उपन्यास है। कुछ नया और रोचक तो खैर नहीं है।
उपन्यास समीक्षा- मौत आयेगी सात तालों में- विनय प्रभाकर
उपन्यास- खेल खिलाड़ी का
लेखक- विनय प्रभाकर
प्रकाशक- मनोज पॉकेट बुक्स, दिल्ली
पृष्ठ- 316
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